पंजाब हरियाणा हाईकोर्ट लिव-इन रिलेशनशिप पर कठोर

Punjab and Haryana High Court: लिव इन रिलेशनशिप में नाबालिग को सुरक्षा देने का सवाल ही नहीं, पंजाब एंड हरियाणा हाई कोर्ट का फैसला
पंजाब एंड हरियाणा हाई कोर्ट ने लिव इन रिलेशनशिप में रहने वाली नाबालिग लड़की को सुरक्षा देने से इनकार कर दिया. कोर्ट ने कहा कि नाबालिग को लिव इन रिलेशनशिप में सुरक्षा नहीं दी जा सकती, क्योंकि ये अप्रत्यक्ष तौर पर नाबालिगों के लिव इन रिलेशनशिप को मंजूरी देना होगा।
नई दिल्ली,04 अप्रैल 2025,पंजाब एंड हरियाणा हाई कोर्ट ने लिव इन रिलेशनशिप में रहने वाली नाबालिग लड़की को सुरक्षा देने से इनकार कर दिया. कोर्ट ने लड़की की सुरक्षा मांगने वाली याचिका खारिज कर दी. कोर्ट ने कहा कि नाबालिग को किसी भी लिव इन रिलेशन में सुरक्षा देने का सवाल ही नहीं उठता. कोर्ट ने कहा कि अदालतों को ऐसे मामलों में सावधानी बरतनी होगी, ताकि लिव इन रिलेशनशिप को अप्रत्यक्ष स्वीकृति ना मिले.

नाबालिग को लिव इन में सुरक्षा देने से इनकार-
पंजाब एंड हरियाणा हाई कोर्ट में लिव इन रिलेशनशिप में रहने वाली नाबालिग लड़की को सुरक्षा देने से इनकार कर दिया. जस्टिस सुमित गोयल ने फैसला दिया कि लड़की की उम्र 17 साल 7 महीने है. ऐसे में नाबालिग को किसी भी लिव इन रिलेशन में सुरक्षा देने का सवाल ही नहीं उठता. अदालतों को ऐसे मामलों में सतर्क रहना चाहिए, जहां नाबालिग का कल्याण सर्वोपरि होना चाहिए. हाई कोर्ट ने कहा कि अगर नाबालिग को सुरक्षा दी जाती है तो यह अप्रत्यक्ष तौर से नाबालिगों के लिव इन रिलेशनशिप को मंजूरी देने जैसा होगा.

बालिगों के लिए लिव इन रिलेशन को मान्यता-
हाई कोर्ट ने कहा कि भारत में बालिग के लिए लिव इन रिलेशनशिप के कॉन्सेप्ट को सामाजिक और कानूनी मान्यता प्राप्त हो गई है, हालांकि जब कोई नाबालिग शामिल होता है तो कानूनी ढांचा अपना पूरा ध्यान बच्चे के कल्याण की सुरक्षा पर केंद्रित कर देता है. जस्टिस गोयल ने कहा कि न्यायापालिका का संवैधानिक कर्तव्य है कि वह नाबालिगों के अधिकारों को बनाए रखे और उनको ऐसी परिस्थितियों से बचाए, जो उनकी सुरक्षा, संरक्षा और भविष्य से समझौता कर सकती हैं.

हाई कोर्ट ने ऐसा कहते हुए निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखा है.कोर्ट ने अधिकारियों को नाबालिग लड़की की सुरक्षा सुनिश्चित करने का निर्देश दिया. हालांकि मौजूदा परिस्थितियों में इस कपल को कानूनी सुरक्षा देने से इनकार कर दिया.

क्या है पूरा मामला

दंपत्ति ने अदालत के समक्ष दलील दी कि वे एक-दूसरे को लंबे समय से जानते हैं और वर्तमान में लिव-इन रिलेशनशिप में रह रहे हैं।
पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने हाल ही में एक लिव-इन जोड़े के लिए सुरक्षा की मांग वाली याचिका को खारिज कर दिया, क्योंकि न्यायालय ने पाया कि लड़की की उम्र मात्र 17 वर्ष और सात महीने थी।

न्यायमूर्ति सुमित गोयल ने कहा कि न्यायालय अप्रत्यक्ष रूप से ऐसे लिव-इन रिलेशनशिप स्वीकार नही कर सकता जिसमें नाबालिग शामिल हो। इसके बजाय, एकल न्यायाधीश ने जोर देकर कहा कि न्यायालयों को इस तथ्य के प्रति सचेत रहना चाहिए कि नाबालिग का कल्याण और भलाई सर्वोपरि है।

न्यायालय ने कहा, “ऐसी परिस्थितियों में सुरक्षा का दायरा बढ़ाना, वास्तव में नाबालिगों को शामिल करने वाली लिव-इन व्यवस्था की अंतर्निहित स्वीकृति होगी, जो युवा और संवेदनशील लोगों को शोषण और नैतिक संकट से बचाने को बनाए गए स्थापित वैधानिक ढांचे के प्रतिकूल है.

इसमें आगे कहा गया कि कानून ने नाबालिगों की स्वतंत्रता को सीमित कर दिया है, उनकी कम उम्र को ध्यान में रखते हुए तथा परिणामस्वरूप अनुचित प्रभाव और अविवेकपूर्ण विकल्पों के प्रति संवेदनशीलता को ध्यान में रखते हुए।

न्यायालय ने कहा, “विधायी आदेश के अनुसार, किसी भी प्रकार के दुर्व्यवहार या अनुचितता को रोकने के प्रावधान मौजूद हैं, जो उन लोगों के अप्रतिबंधित विवेक से उत्पन्न हो सकते हैं, जिन्हें अभी परिपक्वता की पूर्ण सुविधाएँ प्राप्त नहीं हुई हैं। कोई भी न्यायिक अनुमति जो अप्रत्यक्ष रूप से नाबालिग को ऐसे रिश्ते में शामिल होने की अनुमति देती है, न केवल विधायी इरादे के विपरीत होगी, बल्कि अबोधता की पवित्रता को बनाए रखने को बनाए गए बहुत ही मजबूत ढांचे को भी कमजोर करेगी।”

न्यायालय के समक्ष युगल ने कहा कि वे एक दूसरे को लंबे समय से जानते हैं तथा वर्तमान में लिव-इन रिलेशनशिप में हैं। युगल ने पहले अपने परिवारों की सहमति से सगाई की थी, लेकिन लड़की के परिवार ने बाद में सगाई तोड़ दी, क्योंकि उसके पिता उसकी शादी उससे बड़े व्यक्ति से करवाना चाहते थे, जिसने शादी के बाद उसे विदेश ले जाने की पेशकश की थी।

इसलिए, उन्होंने न्यायालय से सुरक्षा आदेश मांगा।

लड़की की उम्र ध्यान में रखते हुए, न्यायमूर्ति गोयल ने स्पष्ट किया कि न्यायालय को अपने सुरक्षात्मक अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करते समय सावधानी से चलना चाहिए, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि उसका आदेश कानून द्वारा स्पष्ट रूप से निषिद्ध न हो।

न्यायालय ने याचिका को खारिज करते हुए कहा, “निस्संदेह, याचिकाकर्ता संख्या 2 नाबालिग है, इसलिए याचिकाकर्ताओं को याचिका में मांगी गई राहत नहीं दी जा सकती।”

हालांकि, न्यायालय ने तरन तारन के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक को कानून के अनुसार आवश्यक कदम उठाने का निर्देश भी दिया।

याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व अधिवक्ता प्रिंस शर्मा ने किया।

नाबालिग लड़की ने अपने पार्टनर के साथ रहने की इच्छा जताई थी और तर्क दिया का उनका संबंध सहमति से था और इसे संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत संरक्षित किया जाना चाहिए, जिसमें जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का जिक्र है. इस याचिका पर हाई कोर्ट ने 27 मार्च को फैसला सुनाया और नाबालिग लड़की को लिव इन रिलेशन में सुरक्षा देने से इनकार कर दिया.

सामाजिक मूल्यों के खिलाफ है…’, लिव-इन रिलेशनशिप को सुरक्षा देने से हाईकोर्ट ने किया इनकार
पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने महत्वपूर्ण फैसले में लिव-इन जोड़े को संरक्षण देने से इनकार कर दिया जिसमें से एक व्यक्ति पहले से ही शादीशुदा है और उसके बच्चे भी हैं। कोर्ट ने कहा कि ऐसे मामले में संरक्षण देने से गलत काम करने वालों को बढ़ावा मिलेगा और भारतीय समाज के नैतिक मूल्यों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।
हाई कोर्ट ने शादीशुदा व्यक्ति के लिव -इन रिलेशनशिप को संरक्षण देने से मना कर दिया है।
लिव-इन रिलेशनशिप को संरक्षण देने से हाईकोर्ट ने किया इनकार
कहा- शादीशुदा व्यक्ति का लिव -इन में रहना नैतिक मूल्यों के खिलाफ
पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में एक ऐसे लिव-इन जोड़े को संरक्षण देने से इनकार कर दिया, जिसमें से एक व्यक्ति पहले से ही शादीशुदा है और उसके बच्चे भी हैं।
कोर्ट ने कहा कि ऐसे मामले में संरक्षण देने से गलत काम करने वालों को बढ़ावा मिलेगा और भारतीय समाज के नैतिक मूल्यों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।
ऐसी याचिकाओं से अवैध प्रथाओं का मिलेगा बढ़ावा
जस्टिस संदीप मौदगिल ने कहा कि भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21 प्रत्येक नागरिक को शांति और सम्मान पूर्वक जीने का अधिकार देता है, लेकिन यह अधिकार कानून के दायरे में होना चाहिए।

उन्होंने यह भी कहा कि ऐसे मामलों में याचिकाओं को स्वीकार करने से द्विविवाह जैसी अवैध प्रथाओं को बढ़ावा मिलेगा, जो भारतीय दंड संहिता की धारा 494 में अपराध है।

शादीशुदा का लिव-इन में रहना नैतिक मूल्यों के खिलाफ

हाईकोर्ट ने कहा कि एक विवाहित व्यक्ति का लिव-इन रिलेशनशिप में रहना सामाजिक ताने-बाने और नैतिक मूल्यों के खिलाफ है। उन्होंने स्पष्ट किया कि इस तरह के अवैध संबंधों को वैधता प्रदान करना अन्यायपूर्ण होगा और यह उस व्यक्ति के जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन करेगा, जो पहले से विवाह संबंध में है।
कोर्ट ने कहा कि ऐसे जोड़े अपने परिवार और माता-पिता की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचा रहे हैं। यह न केवल माता-पिता के अधिकारों का उल्लंघन है, बल्कि समाज में परिवार की गरिमा और सम्मान को भी ठेस पहुंचाता है।
विवाह एक पवित्र और महत्वपूर्ण रिश्ता है: हाईकोर्ट
हाईकोर्ट ने ने विवाह को एक पवित्र और सामाजिक रूप से महत्वपूर्ण रिश्ता बताया। उन्होंने कहा कि भारतीय समाज में विवाह केवल दो व्यक्तियों का संबंध नहीं है, बल्कि यह सामाजिक स्थिरता और नैतिक मूल्यों का आधार है। जस्टिस मौदगिल ने कहा कि पश्चिमी संस्कृति को अपनाने से भारतीय समाज में पारिवारिक और सांस्कृतिक मूल्यों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है।
लिव-इन रिलेशनशिप जैसी आधुनिक जीवनशैली को स्वीकार करना हमारी गहरी सांस्कृतिक जड़ों से भटकाव है। हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ताओं को संरक्षण देने से इनकार करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक पूर्व निर्णय का हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के तहत विवाहित व्यक्ति अवैध संबंध के लिए संरक्षण नहीं मांग सकता।
पश्चिमी संस्कृति से अलग है भारतीय संस्कृति’
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि भारतीय समाज में सामाजिक और सांस्कृतिक मूल्यों को संरक्षित करना अत्यंत आवश्यक है। व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का दुरुपयोग करके सामाजिक ताने-बाने को क्षति नहीं पहुंचाई जा सकती। कोर्ट ने कहा कि विवाह एक पवित्र रिश्ता है, जिसमें कानूनी और सामाजिक सम्मान हैं। हमारे देश में गहरी सांस्कृतिक और नैतिक तर्क पर महत्वपूर्ण जोर दिया जाता है।
हालांकि, जैसे-जैसे समय बीतता गया हमने पश्चिमी संस्कृति को अपनाना शुरू कर दिया, जो भारतीय संस्कृति से काफी अलग है। भारत के एक हिस्से ने आधुनिक जीवन शैली को अपनाया है, जिसे लिव-इन रिलेशनशिप कहा जाता है।
बता दें कि संरक्षण याचिका एक जोड़े द्वारा दायर की गई थी, जिसमें से एक पहले से ही शादीशुदा था और उसके बच्चे थे। दंपति को अपने रिश्तेदारों से खतरा होने की आशंका थी।

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