मत: कांग्रेस में कितने लंगड़े घोडे,कितने बारात वाले?

Uttarakhand Congress party not prepare new generation in politics drought in Congress nursery

पहली पांत की जड़ें हिलीं, दूसरी की जम नहीं पाईं, जानें क्या कहते हैं राजनीतिक विशेषज्ञ

देहरादून/नई दिल्ली 09 जून 2025।  सत्ता से बाहर आठ साल के वनवास ने सुविधावादी नेताओं को तो सत्तारूढ भारतीय जनता पार्टी का रास्ता दिखा दिया है. अब सत्ता की दावेदार और प्रमुख विपक्ष कांग्रेस का वह स्वरूप दिखता ही नही हैं. महत्वपूर्ण सभी पदों पर हरीश रावत खेमे के लोग  दिखते हैं। सर्वाधिक सक्रिय और विजिबल टीवी चैनलों पर दिखने वालों में भी ऐसे चेहरे नहीं हैं जो जनसामान्य को कांग्रेस के विचारों और कार्यक्रमों से कन्विंस कर पाये. कांग्रेस में नये नेताओं को पैदा करने वाली नर्सरी माने जाने वाली एनएसयूआई, युवा कांग्रेस जैसे संगठनों को लुंज-पुंज बना दिया है। इन संगठनों में अब वैसा जोश, उत्साह और सक्रियता नहीं दिखती जो एक दशक पहले दिखाई देती थी।

प्रदेश की सत्ता में वापसी के लिए जूझ रही कांग्रेस में पहली पांत के नेताओं को अपनी हिलती जड़ों को संभालना मुश्किल हो रहा है। दुर्भाग्य से उनकी जगह लेने के लिए पार्टी की दूसरी पांत भी जड़ें नहीं जमा पा रही हैं। इस दोहरी चुनौती के साथ पार्टी को 2027 के विधानसभा चुनाव में उतरना

राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि पार्टी के क्षत्रपों की छाया में दूसरी पांत पनप नहीं पा रही है। सत्ता से बाहर होने के कारण दूसरी पंक्ति के नेताओं में भी पार्टी की बड़ी भूमिका लेने में कोई खास दिलचस्पी दिखाई नहीं देती है। विधानसभा, लोकसभा व निकाय चुनाव में मिली हार के बाद अब कांग्रेस में सत्ता की वापसी के लिए छटपटाहट दिख रही है। लेकिन पार्टी में नेताओं की दूसरी पांत सक्रिय नहीं है।

जानकारों का मानना है कि विधानसभा चुनाव में उतारने के लिए कांग्रेस के पास वही पुराने चेहरे होंगे, जिन्हें वह राजनीतिक अनुभव के आधार पर प्रत्याशी बनाएगी। पिछले आठ साल से कांग्रेस प्रदेश में सत्ता से बाहर है। इस अवधि में पार्टी के भीतर से कोई मजबूत और लोकप्रिय युवा चेहरा उभर कर सामने नहीं आ पाया। पार्टी फोरम पर जिन युवा चेहरों को पेश किया गया, वे परिवारवाद की कांग्रेसी परंपरा से निकले हैं।
जोश, उत्साह और सक्रियता नहीं दिखती
जानकारों का मानना है कि कांग्रेस के भीतर कई चेहरों ने पार्टी के अनुसांगिक संगठनों के जरिए परिवारवाद के इस कवच को तोड़कर सांगठनिक फोरम पर अपनी जगह बनाने की कोशिश की लेकिन वे नाकाम रहे। सत्ता से बाहर आठ साल के वनवास ने कांग्रेस नेताओं को पैदा करने वाली नर्सरी माने जाने वाली एनएसयूआई, युवा कांग्रेस सरीखे संगठनों को लुंज-पुंज बना दिया है। इन संगठनों में अब वैसा जोश, उत्साह और सक्रियता नहीं दिखती जो एक दशक पहले दिखाई देती थी। राजनीतिक प्रेक्षकों का कहना है कि जब तक कांग्रेस अपनी सांगठनिक ताकत जुटाएगी, तब तक चुनावी मोर्चों पर उसके भाग्य में सिर्फ संघर्ष ही लिखा होगा।

कांग्रेस में नेताओं की कमी नहीं है। यह एक ऐसी पार्टी है जहां बड़े नेता से लेकर कार्यकर्ता तक सभी को एक समान महत्व दिया जाता है। भाजपा सरकार भी कांग्रेस में रहे नेताओं के सहारे चल रही है। भाजपा डरा धमका कर कांग्रेस नेताओं को तोड़कर अपनी पार्टी में शामिल करती है। लेकिन कांग्रेस में एक से बढ़ कर एक नेता हैं। –सूर्यकांत धस्माना, उत्तराखंड कांग्रेस उपाध्यक्ष

राहुल गांधी पार्टी में ‘लंगड़े घोडे़’ ढूंढ रहे हैं, शशि थरूर,आनंद शर्मा  को किस कैटगरी में रखेंगें?
राहुल गांधी का संगठन सृजन अभियान भले ही गुजरात के बाद मध्य प्रदेश पहुंचा हो, लेकिन असली जरूरत उनके अपने इर्द-गिर्द के ‘लंगड़े घोड़ों’ को पहचानने की है. ये जानने की कि कौन वास्तव में कांग्रेस का हित चाहता है, और कौन चापलूसी कर रहा है।

राहुल गांधी के ‘सरेंडर’ वाले बयान पर शशि थरूर की प्रतिक्रिया के बाद कांग्रेस कहां तक जा सकती है?

माफी मांगना बड़ी हिम्मत की बात होती है. और, गलती स्वीकार करनेक भी हिम्मत होनी चाहिये. किसी और की गलती स्वीकार करना, और उसके लिए माफी मांगना तो और भी ज्यादा हिम्मत की बात होती है, अगर सिर्फ राजनीति न हो. गलती कबूल करना मात्र टालना भर न हो.

हाल फिलहाल राहुल गांधी को समाज के कई वर्गों से माफी मांगते देखा गया. कांग्रेस से 90 के दशक में गलतियां हुईं, स्वीकार करते देखा गया, लेकिन वे गलतियां जिनसे कांग्रेस पार्टी को नुकसान होता हो, उसके लिए कौन माफी मांगेगा? और कौन गलती स्वीकार करेगा?

अब तो राहुल गांधी कांग्रेस में संगठन सृजन अभियान चला रहे हैं.  शुरुआत गुजरात से हुई थी  घोड़े की कहानी से. वो अभियान मध्य प्रदेश तक पहुंचा. अघोषित तौर पर ये काम बिहार में भी हुआ. लेकिन, कुछ वैसा नहीं, जैसा गुजरात में पहले राहुल गांधी, और बाद में मल्लिकार्जुन खड़गे बता रहे थे. गुजरात में घोषणा जरूर हुई, लेकिन एक्शन का अभी नहीं पता. मध्य प्रदेश का तो हाल का मामला है।

राहुल गांधी ने घोडे का  किस्सा सुनाया था. गुजरात वाले किस्से में राहुल गांधी ने एक घोड़ा और जोड़ा है – लंगड़ा घोड़ा.

राहुल गांधी का कहना है, लंगड़े घोड़े रिटायर करने हैं. राहुल गांधी जिन घोड़ों को रिटायर करने की बात करते हैं, उनके बारे में वो मानते हैं कि वे भाजपा का काम करते हैं. जैसे गुप्तचर हैं.

मुश्किल ये है कि जिस तरह के घोड़ों की बात राहुल गांधी राज्यों में जाकर कर रहे हैं, वैसे तो उनके आस पास भी भरे पड़े होंगे. जैसे चिराग तले अंधेरा होना कहा जाता है – क्या राहुल गांधी को नहीं लगता कि संगठन सृजन अभियान तो राज्यों से पहले अपने इर्द गिर्द चलाना जरूरी है.

क्या ‘लंगड़ा घोड़ा’ सिर्फ प्रदेश कांग्रेस में ही हैं?

जिस तरह के कांग्रेस नेताओं को राहुल गांधी अभी लंगड़ा घोड़ा बता रहे हैं, पहले ऐसे नेताओं को वो डरपोक कहते थे. ये बात तब की है जब ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस छोड़कर भाजपा में गये थे. तब तो राहुल गांधी यहां तक कह रहे थे, जो डरपोक नहीं हैं और बाहर हैं उनको कांग्रेस में लाया जाना चाहिये.

ज्योतिरादित्य सिंधिया के बाद कई और नेता कांग्रेस छोड़कर चले भी गये. सचिन पायलट नहीं गये, तो राहुल गांधी उनके धैर्य की मिसाल भी दे रहे थे. हो सकता है, वो मन की बात बोल रहे हों लेकिन सुनने में तो कटाक्ष ही लग रहा था. लगता है जो नेता नहीं गये उनको रिटायर करने का प्लान बना हो.

बड़ा सवाल है, क्या राहुल गांधी को नहीं लगता कि जो लंगड़े घोड़े वो राज्यों में ढूंढ रहे हैं? वे तो दिल्ली में उनके इर्द गिर्द भी हो सकते हैं.ये राहुल गांधी का ही कहना है कि कांग्रेस में बारात के घोड़ों बार बार रेस में भेज दिया जाता है, और रेस के घोड़ों को बारात में.

लेकिन, क्या राहुल गांधी ने कभी ध्यान दिया है कि जो भी सही बात करता है, हकीकत की तरफ इशारा करता है, पार्टी हित की बात करता है – वो लंगड़ा घोड़ा करार दिया जाता है.

सवाल तो ये भी है कि G-23 के कांग्रेस नेता थे, किस कैटेगरी में आते हैं? गांधी परिवार के करीबी नेताओं ने तो उनको ‘लंगड़ा घोड़ा’ ही करार दिया था.

G-23 के ज्यादातर नेता कांग्रेस छोड़ चुके हैं. G-23 का नेतृत्व करने वाले गुलाम नबी आजाद भी, और कपिल सिब्बल भी. हां, शशि थरूर अब भी कांग्रेस में बने हुए हैं – अभी तो लगता है जैसे नेतृत्व की नाक में दम भी किये हुए हैं.

शशि थरूर जैसे नेता किस कैटेगरी में हैं

अब तो ये सवाल भी उठता है कि राहुल गांधी के तय किये गये पैमाने पर शशि थरूर आखिर किस कैटेगरी में आते हैं? शशि थरूर ‘लंगड़े घोड़े’ वाली कैटेगरी में आते हैं या नहीं? अगर आते हैं तो क्या अब उनको भी रिटायर किया जाएगा? क्योंकि शशि थरूर तो लगातार ऐसे काम कर रहे हैं. विदेश दौरे के लिए केंद्र सरकार के सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल में शामिल किये जाने से लेकर अब राहुल गांधी के ‘सरेंडर’ वाले बयान पर प्रतिक्रिया देने तक.

घोड़ों के किस्से सुनाने के साथ ही, भोपाल में राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के आगे सरेंडर करने का इल्जाम भी लगाया था, जिसके लिए वो भाजपा के निशाने पर आ गये हैं, और सोशल मीडिया पर ट्रेंड भी कर रहे हैं.

घोड़ों के किस्से वाले अंदाज में ही राहुल गांधी ने कहा था, ‘उधर से ट्रंप ने फोन किया, और इशारा किया… मोदी जी क्या कर रहे हो? नरेंदर, सरेंडर… और जी हुजूर कर के मोदी जी ने ट्रंप के इशारे का पालन किया.’

शशि थरूर और उनके साथी अमेरिका के वाशिंगटन डीसी थे, जहां प्रेस कांफ्रेस में राहुल गांधी के बयान पर सवाल पूछ लिया गया. पत्रकार के सवाल के आखिर में राहुल गांधी का नाम था, जिसे शशि थरूर ने दोबारा पूछकर कंफर्म किया, और फिर अपनी राय जाहिर की.

शशि थरूर बोले, ‘हमारे मन में अमेरिका के राष्ट्रपति पद के प्रति अगाध आदरभाव है, हम अमेरिकी राष्ट्रपति का सम्मान करते हैं… हम अपने बारे ये कह सकते हैं कि हमने खासतौर पर किसी को मध्यस्थता करने को कहा नहीं.’

पाकिस्तान का जिक्र करते हुए भी शशि थरूर ने अपनी बात दोहराई, अगर वे आतंकवाद का ढांचा नष्ट करना चाहते हैं, हम उनसे बात कर सकते हैं… अगर वे गंभीर कदम उठाते हैं, और ऐसा दिखाते हैं कि पाकिस्तान भारत के साथ सामान्य रिश्ते रखना चाहता है, तो हम निश्चित रूप से बात करने को तैयार हैं… और इसके लिए हमें किसी मध्यस्थ की जरूरत नहीं होगी.

क्या घोड़ों के अस्तबल से निकलने के बाद ही जागेंगे?

राहुल गांधी के घोड़ों के किस्से अब कपिल सिब्बल की बातों की याद दिलाने लगे हैं, जब वो भी कांग्रेस में हुआ करते थे. बात तभी की है, जब सचिन पायलट अपने समर्थक विधायकों के साथ दिल्ली दरबार में अपनी बात कहने को इंतजार कर रहे थे.

तभी कपिल सिब्बल ने सोशल मीडिया पर कांग्रेस को लेकर अपनी फिक्र जताई थी, करीब करीब वैसी ही फिक्र जैसी सोनिया गांधी को लिखी G-23 वाली चिट्ठी में कांग्रेस नेताओं ने जताई थी.

तब कपिल सिब्बल ने लिखा था, ‘अपनी पार्टी के लिए चिंतित हूं, क्या घोड़ों के अस्तबल से निकलने के बाद ही हम जागेंगे?

कपिल सिब्बल भले ही कांग्रेस छोड़कर समाजवादी पार्टी के सपोर्ट से राज्यसभा के निर्दलीय सदस्य बन गये हों, लेकिन उनका सवाल अब भी मौजूं है. जैसे कोई शाश्वत सवाल हो. जैसे कोई फिर से अभी- अभी पूछ रहा हो?

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *