मत: हिंदुओं को पूज्यनीय है जिहादी मोईनुद्दीन चिश्ती
खादिम को चाहिए नूपुर शर्मा की गर्दन, जिस मोइनुद्दीन चिश्ती की अजमेर में दरगाह उसके शागिर्दों ने हर दिन मंदिर में काटी गाय-गिराए मंदिर
अजमेर दरगाह के खादिम सलमान चिश्ती ने नूपुर शर्मा की हत्या के लिए भड़काया
अजमेर 19 जुलाई 2022 । उदयपुर में 28 जून 2022 को कन्हैया लाल का मोहम्मद रियाज और गौस मोहम्मद ने कला काट दिया था। उसके बाद अजमेर की दरगाह के दीवान जैनुल आबेदीन अली खान ने कहा था कि भारतीय मुस्लिम तालिबानी मानसिकता कबूल नहीं करेंगे। लेकिन अब दरगाह के खादिम सलमान चिश्ती का एक वीडियो सामने आया है, जिसमें वह, नूपुर शर्मा की गर्दन लाने वाले को अपना मकान देने की बात कह रहा है।
यह दरगाह ‘सूफी संत’ मोइनुद्दीन चिश्ती (Khwaja Moinuddin Chishti) का है, जिन्हें हज़रत ख्वाजा गरीब नवाज़ के नाम से भी जाना जाता है। सूफी संत मोइनुद्दीन चिश्ती का जन्म ईरान में हुआ था, लेकिन उन्हें राजस्थान के अजमेर में दफनाया गया था। ‘सूफी संत’ मोईनुद्दीन चिश्ती के बारे में इतिहास और उसकी वैबसाइट में दर्ज तथ्य बॉलीवुड की फिल्मों, गानों, सूफी संगीत और वामपंथी इतिहास से एकदम अलग हैं। हालांकि आलोचना और बहिष्कार से डरें संचालन अब दरगाह की वैबसाइट बदलने में लगे हैं लेकिन लोगों ने उसकी स्क्रीन शॉट लेकर उनका खेल खराब किया हुआ है।
इतिहासकार एमए खान ने अपनी पुस्तक ‘इस्लामिक जिहाद: एक जबरन धर्मांतरण, साम्राज्यवाद और दासता की विरासत’ (Islamic Jihad: A Legacy of Forced Conversion, Imperialism, and Slavery) में इस बारे में विस्तार से लिखा है कि मोइनुद्दीन चिश्ती, निज़ामुद्दीन औलिया, नसीरुद्दीन चिराग और शाह जलाल जैसे सूफी संत जब इस्लाम के मुख्य सिद्धांतों की बात करते थे, तो वे वास्तव में रूढ़िवादी और असहिष्णु विचार रखते थे, जो कि मुख्यधारा के जनमत के विपरीत था।
उदाहरण के लिए, सूफी संत मोईनुद्दीन चिश्ती और औलिया इस्लाम के कुछ पहलुओं जैसे- नाच (रक़) और संगीत (सामा) को लेकर उदार थे, जो कि उन्होंने रूढ़िवादी उलेमा के धर्मगुरु से अपनाया, लेकिन एक बार भी उन्होंने कभी हिंदुओं के उत्पीड़न के खिलाफ कोई कदम नहीं उठाया। औलिया ने अपने शिष्य शाह जलाल को बंगाल के हिंदू राजा के खिलाफ जिहाद छेड़ने को 360 अन्य शागिर्दों के साथ बंगाल भेजा था।
इस पुस्तक में इस बात का भी जिक्र किया है गया है कि वास्तव में, हिंदुओं के उत्पीड़न का विरोध करने की बात तो दूर, इन सूफी संतों ने बलपूर्वक हिंदुओं के इस्लाम में धर्म परिवर्तन में भी बहुत बड़ी भूमिका निभाई थी। यही नहीं, ‘सूफी संत’ मोइनुद्दीन चिश्ती के शागिर्दों ने हिंदू रानियों का अपहरण किया और उन्हें मोईनुद्दीन चिश्ती को उपहार के रूप में प्रस्तुत किया।
यह भी एक ऐतिहासिक तथ्य है कि चिश्ती, शाह जलाल और औलिया जैसे सूफी ‘काफिरों’ के खिलाफ जिहाद छेड़ने को भारत आए थे। उदाहरण को- मोइनुद्दीन चिश्ती, मुइज़-दीन मुहम्मद ग़ोरी की सेना के साथ भारत आए और गोरी के अजमेर जीतने से पहले वहाँ गोरी की तरफ से अजमेर के राजा पृथ्वीराज चौहान की जासूसी करने अजमेर में बस गए थे। यहाँ उन्होंने पुष्कर झील के पास अपने ठिकाने स्थापित किए।
मध्ययुगीन लेख ‘जवाहर-ए-फरीदी’ में उल्लेख है कि किस तरह चिश्ती ने अजमेर की आना सागर झील, जो कि हिन्दुओं का एक पवित्र तीर्थ स्थल है, पर बड़ी संख्या में गायों का क़त्ल किया, और इस क्षेत्र में गायों के खून से मंदिरों अपवित्र किये गये थे। मोइनुद्दीन चिश्ती के शागिर्द प्रतिदिन एक गाय का वध करते और मंदिर परिसर में बैठकर गोमांस खाते थे।
इस अना सागर झील का निर्माण ‘राजा अरणो रा आनाजी’ ने 1135 से 1150 के बीच करवाया था। ‘राजा अरणो रा आनाजी’ सम्राट पृथ्वीराज चौहान के पिता थे। आज इतिहास की किताबों में अजमेर को हिन्दू-मुस्लिम’ समन्वय के रूप में तो पढ़ाया जाता है, लेकिन यह जिक्र नहीं किया जाता है कि यह सूफी संत भारत में जिहाद को बढ़ावा देने और इस्लाम के प्रचार को आया था, जिसके लिए उन्होंने हिन्दुओं के साथ हर प्रकार का उत्पीड़न स्वीकार किया।
खुद मोइनुद्दीन चिश्ती ने तराइन की लड़ाई में पृथ्वीराज चौहान को पकड़ लिया था और उन्हें ‘इस्लाम की सेना’ को सौंप दिया। लेख में इस बात का प्रमाण है कि चिश्ती ने चेतावनी भी जारी की थी, जिसमें उन्होंने दावा किया था – “हमने पिथौरा (पृथ्वीराज) को जिंदा पकड़ लिया है और उसे इस्लाम की सेना को सौंप दिया है।”
मोइनुद्दीन चिश्ती का एक शागिर्द था मलिक ख़ितब। उसने एक हिंदू राजा की बेटी का अपहरण कर लिया और उसे चिश्ती को निकाह के लिए ‘उपहार’ के रूप में प्रस्तुत किया। चिश्ती ने खुशी से ‘उपहार’ स्वीकार किया और उसे ‘बीबी उमिया’ नाम दिया।
हर दिन काटी गाय, मंदिर में फैलाया खून… मंदिर में ही खाते थे गोमांस: अजमेर के मोइनुद्दीन चिश्ती और उसके शागिर्दों का सच
12 December, 2023
ऑपइंडिया स्टाफ़
अजमेर मोइनुद्दीन चिश्ती
इतिहास में जो दर्ज… उससे मोइनुद्दीन चिश्ती ‘सूफी संत’ कैसे? (फोटो साभार: veenaworld & MA Khan Book)
अजमेर अभी चर्चा में है। कट्टर इस्लामी लोग मोइनुद्दीन चिश्ती (Moinuddin Chishti) को लेकर कही गई एक बात से नाराज हैं। ये लोग कभी इसे ‘सूफी संत’ बोलते हैं, कभी हज़रत ख्वाजा गरीब नवाज़ के नाम से पुकारते हैं। पैगंबर मोहम्मद पर लिखे-पढ़े-बोले गए बातों से ‘सर तन से जुदा’ करने वाली भीड़ अब ‘सूफी संत’ मोइनुद्दीन चिश्ती या हज़रत ख्वाजा गरीब नवाज़ के लिए भी लोगों की गर्दन काटने पर आमादा हैं। आखिर कौन था यह शख्स? कहाँ से आया था? क्या करता था?
जिस शख्स के नाम पर किसी का गला काट दिया जाए, ‘सर तन से जुदा’ करने की धमकी दी जाए, उस ख्वाजा गरीब नवाज़ (Khwaja Garib Nawaz) या मोइनुद्दीन चिश्ती से जुड़ा इतिहास हिंदू-विरोधी है, मंदिर/मूर्ति-भंजक है, गौहत्या के पाप से सना हुआ है। ये ऐतिहासिक तथ्य हैं, वो भी सबूतों के साथ। इतिहासकार एमए खान की पुस्तक से लेकर मध्ययुगीन लेख ‘जवाहर-ए-फरीदी’ में लिखी गई बातों में इसकी कट्टरता का उल्लेख है। शेख अब्दुल हक मुहद्दिस देहलवी की अखबार-उल-अख्यार ( Akhbar-Ul-Akhyar) से भी सचित्र उदाहरण लिया गया है।
‘सूफी संत’ का लिबास ओढ़ कर जो भारत आए, उन मकसद क्लियर था। कामरेडी इतिहास ने उनके मकसद छिपाये, इसलिए वो ‘सूफी संत’ कहे गये, आप जाने-अनजाने जाकर चादर चढ़ा आते हैं। हकीकत में अधिकांश सूफी संत या तो इस्लामिक आक्रांताओं की आक्रमणकारी सेनाओं के साथ भारत आए थे, या इस्लाम के सैनिकों की विजय के बाद। लेकिन इन सबके भारत आने के पीछे सिर्फ एक ही लक्ष्य था और वह था इस्लाम का प्रचार। इसको उलेमाओं के क्रूरतम आदेशों के साथ गाने-बजाने की आड़ में हिन्दुओं की आस्था पर चोट करने वाले ‘संतों’ से बेहतर और क्या हो सकता था?
‘शांतिपूर्ण सूफीवाद’ का मिथक, कई सदियों तक इस्लामिक ‘विचारकों’ और वामपंथी इतिहासकारों ने खूब फैलाया है। वास्तविकता इन दावों से कहीं अलग और विपरीत है। वास्तविकता यह है कि इन सूफी संतों को भारत में इस्लामिक जिहाद को बढ़ावा देने, ‘काफिरों’ के धर्मांतरण और इस्लाम को स्थापित करने लाया गया था।
इसी में एक सबसे प्रसिद्ध नाम आता है ‘सूफी संत’ ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती (Khwaja Moinuddin Chishti) का, जिसे हज़रत ख्वाजा गरीब नवाज़ कहा जाता है। मोइनुद्दीन चिश्ती ईरान में पैदा हुआ और राजस्थान के अजमेर में दफनाया गया था।
एमए खान की पुस्तक का अंश
इतिहासकार एमए खान ने अपनी पुस्तक ‘इस्लामिक जिहाद: एक जबरन धर्मांतरण, साम्राज्यवाद और दासता की विरासत’ (Islamic Jihad: A Legacy of Forced Conversion, Imperialism, and Slavery) में इस बारे में विस्तार से लिखा है। उदाहरण के लिए औलिया इस्लाम ने अपने शिष्य शाह जलाल को बंगाल के हिंदू राजा के खिलाफ जिहाद छेड़ने के लिए 360 अन्य शागिर्दों के साथ बंगाल भेजा था।
पुस्तक में इस बात का भी जिक्र किया गया है कि वास्तव में, हिंदुओं के उत्पीड़न का विरोध करने की बात तो दूर, इन सूफी संतों ने बलपूर्वक हिंदुओं के इस्लाम में धर्म परिवर्तन में भी बहुत बड़ी भूमिका निभाई थी। यही नहीं, ‘सूफी संत’ मोइनुद्दीन चिश्ती के शागिर्दों ने हिंदू रानियों का अपहरण किया और उन्हें मोईनुद्दीन चिश्ती को उपहार के रूप में प्रस्तुत किया।
गौरी के साथ भारत आकर अजमेर में लगाया था डेरा
यह भी एक ऐतिहासिक तथ्य है कि चिश्ती, शाह जलाल और औलिया जैसे सूफी ‘काफिरों’ के खिलाफ जिहाद छेड़ने के लिए भारत आए थे। उदाहरण को- मोइनुद्दीन चिश्ती, मुइज़-दीन मुहम्मद ग़ोरी की सेना के साथ भारत आया और गोरी के अजमेर जीतने से पहले वहाँ गोरी की तरफ से अजमेर के राजा पृथ्वीराज चौहान की जासूसी करने अजमेर में बस गया। यहाँ उसने पुष्कर झील के पास अपने ठिकाने स्थापित किए।
एमए खान की पुस्तक का अंश
प्रतिदिन गाय का वध और मंदिरों को अपवित्र करते थे चिश्ती के शागिर्द
मध्ययुगीन लेख ‘जवाहर-ए-फरीदी’ में इस बात का उल्लेख किया गया है कि किस तरह चिश्ती ने अजमेर की आना सागर झील, जो कि हिन्दुओं का एक पवित्र तीर्थ स्थल है, पर बड़ी संख्या में गायों का क़त्ल किया, और इस क्षेत्र में गायों के खून से मंदिरों को अपवित्र करने का काम किया था। मोइनुद्दीन चिश्ती के शागिर्द प्रतिदिन एक गाय का वध करते थे और मंदिर परिसर में बैठकर गोमांस खाते थे।
आना सागर झील का निर्माण ‘राजा अरणो रा आनाजी’ ने 1135 से 1150 के बीच करवाया था। ‘राजा अरणो रा आनाजी’ सम्राट पृथ्वीराज चौहान के पिता थे। आज इतिहास की किताबों में अजमेर को हिन्दू-मुस्लिम’ समन्वय के पाठ के रूप में तो पढ़ाया जाता है, लेकिन यह जिक्र नहीं किया जाता है कि यह सूफी संत भारत में जिहाद को बढ़ावा देने और इस्लाम के प्रचार के लिए आए थे, जिसके लिए उन्होंने हिन्दुओं के साथ हर प्रकार का उत्पीड़न स्वीकार किया।
पृथ्वीराज चौहान की जासूसी और उन्हें पकड़वाने में चिश्ती की भूमिका
खुद मोइनुद्दीन चिश्ती ने तराइन की लड़ाई में पृथ्वीराज चौहान को पकड़ लिया था और उन्हें ‘इस्लाम की सेना’ को सौंप दिया। लेख में इस बात का प्रमाण है कि चिश्ती ने चेतावनी भी जारी की थी, जिसमें उन्होंने दावा किया था – “हमने पिथौरा (पृथ्वीराज) को जिंदा पकड़ लिया है और उसे इस्लाम की सेना को सौंप दिया है।”
हिन्दू राजा की बेटी ‘बीबी उमिया’ का अपहरण और निकाह
मोइनुद्दीन चिश्ती का एक शागिर्द था मलिक ख़ितब। उसने एक हिंदू राजा की बेटी का अपहरण कर लिया और उसे चिश्ती को निकाह के लिए ‘उपहार’ के रूप में प्रस्तुत किया।
साभार: शेख अब्दुल हक मुहद्दिस देहलवी की अखबार-उल-अख्यार, अनुवाद – AMU में अब्दोलरेजा अधामी की PhD थीसिस, पेज 19
‘सूफी संत’ मोइनुद्दीन चिश्ती ने खुशी-खुशी ‘उपहार’ स्वीकार किया और उसे ‘बीबी उमिया’ नाम दिया। मोइनुद्दीन चिश्ती की सोच थी पैगंबर मोहम्मद की राह पर चलना। ऊपर अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में पीएचडी के लिए जमा की गई थीसिस में भी यह बात लिखी गई है। इसके अलावा खुद अजमेर दरगाह की वेबसाइट पर भी इसकी जानकारी पहले उपलब्ध थी। इसका स्क्रीनशॉट आप नीचे देख सकते हैं।
अजमेर दरगाह की वेबसाइट पर पहले दी गई जानकारी
अजमेर दरगाह की वेबसाइट का आर्काइव लिंक यहाँ देखा जा सकता है।
सैय्यद अतहर अब्बास रिज़वी की किताब ‘भारत में सूफीवाद का इतिहास’
सैय्यद अतहर अब्बास रिज़वी की किताब ‘भारत में सूफीवाद का इतिहास’ अगर आप पढ़ें तो उसमें भी यह जानकारी दी गई है। इस किताब के खंड-1 के 124 पेज नंबर पर आप इसे पढ़ सकते हैं.
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अजमेर की दरगाह में दफन ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती एक ऐसा मुसलमान था जिसने अपने जीते जी हिंदुओं के प्रति धर्मांधता की नीति अपनाई और जितना हिंदुओं को काट सकता था उतना उसने काटा । इसके उपरांत भी हिंदू की मूर्खता देखिए कि ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह पर चादर चढ़ाने वालों में सबसे अधिक हिंदू ही होते हैं ।
सिरत अल क़ुतुब के अनुसार इसने 7 लाख हिन्दुओं को अपने जीवनकाल में मुस्लमान बनाया था।’मजलिस सूफिया’ नामक ग्रंथ के अनुसार जब वह मक्का हज करने गया तो उसे ये निर्देश दिया गया कि
वो हिंदुस्तान जाये और वहां पर कुफ्र के अंधकार
को दूर करके वहां इस्लाम का राज्य स्थापित करे।
इसी आदेश को शिरोधार्य कर हिंदुओं के प्रति पहले दिन से ही नफरत का भाव अपने भीतर भरकर यह व्यक्ति एक ‘इस्लामिक बम’ के रूप में भारत में आया और यहां आकर हिंदुओं के साथ जितना अधिक अत्याचार कर सकता था, उतना करता रहा।
मारकत इसरार नामक ग्रंथ के अनुसार इसने तीसरी
शादी एक हिन्दू लड़की को जबरन धर्मान्तरित करके
की थी । वह हिंदू लड़की नहीं चाहती थी कि इस धर्मांध और अत्याचारी बर्बर मुसलमान मुस्लिम के साथ उसकी शादी हो , परंतु उसकी इच्छा का सम्मान करना भला क्रूर और अत्याचारी ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती जैसे व्यक्ति के यहां कहां संभव था ?
यह हिंदू लड़की अभी पूर्ण युवावस्था को भी प्राप्त नहीं हुई थी । अभी वह अपनी किशोरावस्था में ही थी। लेकिन ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती उसके पिता को एक युद्ध में परास्त कर इस किशोरी को उठाकर लाने में सफल हो गया था। ऐसे में उसके अपने क्रूर कानूनों के अंतर्गत किसी भी काफिर की बेटी पर अब उसका अपना अधिकार हो गया
ऑफइंडिया सात जुलाई 2022 से साभार