भंडाफोड़: सीआईए ने की थी लाल बहादुर शास्त्री और डॉ. होमी भाभा की हत्या

CIA killed Indian nuclear physicist Homi Bhabha and Prime Minister Lal Bahadur Shastri confessions of Robert Crowleyin a book by Gregory Douglas.

मिस्ट्री पर अमेरिकी लेखक का खुलासा: CIA ने कराई थी वैज्ञानिक होमी भाभा और पूर्व PM लाल बहादुर शास्त्री की हत्या

अमेरिकी इंटेलिजेंसी एजेंसी CIA ने कराई थी भारतीय वैज्ञानिक होमी भाभा और पूर्व PM लाल बहादुर शास्त्री की हत्या. यह दावा अमेरिकी लेखक ग्रेगरी डगलस ने अपनी किताब कंवर्सेशन विद द क्रो में किया है.

अमेरिकी लेखक ग्रेगरी डगलस ने अपनी किताब ‘कंवर्सेशन विद द क्रो’ में कई खुलासे किए हैं.

अमेरिकी इंटेलिजेंसी एजेंसी CIA ने कराई थी भारतीय वैज्ञानिक होमी भाभा (Homi Bhabha) और पूर्व PM लाल बहादुर शास्त्री (Lal Bahadur Shastri) की हत्या. यह दावा अमेरिकी लेखक ग्रेगरी डगलस ने अपनी किताब ‘कंवर्सेशन विद द क्रो’ (Conversation with the crow) में किया है. उनकी किताब में रॉबर्ट क्रोली ने इस बात को स्वीकार है. रॉबर्ट उस दौर में CIA के डायरेक्ट्रेट ऑफ ऑपरेशन की जिम्मेदारी संभाल रहे थे. रॉबर्ट के बयान की रिकॉर्डेड बातचीत को किताब का रूप दिया गया है. रॉबर्ट के मुताबिक, गाय-प्रेमी भारतीय ऊंचे-ऊंचे स्वर में इस बात की डींग मारते हैं कि वे कितने चतुर थे और कैसे वे भी दुनिया में एक महान शक्ति बनने जा रहे थे. हम नहीं चाहते थे कि उनके पास किसी भी तरह के परमाणु हथियार हों क्योंकि ईश्वर जानता है कि उन्होंने इसके साथ क्या किया होता. रॉबर्ट के मुताबिक, जिस वक्त होमी भाभा की मौत हुई उस वक्त वो विएना जा रहे थे.

रॉबर्ट ने कहा, जिस विमान में वो जा रहे थे वो एयर इंडिया का कॉमर्शियल विमान था. रॉबर्ट ने कहा, मुझे उसकी कोई चिंता नहीं थी. मैं परेशान होता अगर उसमें मेरा को अपना होता. हम इसे वियना के ऊपर उड़ा सकते थे लेकिन हमने तय किया कि ऊंचे पहाड़ पर धमाके के बाद टुकड़ों के नीचे आने के लिए वो बेहतर जगह थी.

एशिया से चावल की खेती को नष्ट करने की तैयारी थी
रॉबर्ट ने अपने बयान में कहा, लाल बहादुर शास्त्री भी एक गाय प्रेमी थे. आप इन लोगों के बारे में नहीं जानते हैं. मेरा विश्वास करो, वे एक बम पाने के करीब थे और क्या हुआ अगर उन्होंने अपने घातक पाक दुश्मनों को मार गिराया?

हमने एक ऐसी बीमारी भी विकसित की थी जिसमें एशिया में चावल की खेती पूरी तरह से नष्ट की जा सकती है. बीमारी से एशिया के नक्शे से चावल मिटा दिया जाए क्योंकि यही वहां के लोगों का प्रमुख आहार है.

ट्विटर पर शेयर हुआ रॉबर्ट बयान के अंश

 

कौन थे होमी भाभा?

डॉक्टर होमी जहांगीर भाभा भारतीय परमाणु कार्यक्रम के जनक रहे हैं. वो ऐसे शख्स हैं जिन्होंने भारत में अटॉमिक एनर्जी प्रोग्राम की कल्पना की और इसे साकार करने के लिए हर जरूरी कदम उठाए. भारत परमाणु शक्ति से सम्पन्न हो सके, इसका रास्ता भी खोला.

भारत के इस वैज्ञानिक से इतना डर गया था अमेरिका, करवा दी थी हत्या

 

डॉक्टर होमी जहाँगीर भाभा को भारत के परमाणु उर्जा कार्यक्रम का जनक कहा जाता है। उन्होंने भारत में परमाणु कार्यक्रम की ऐसी नीव राखी जिसकी बदौलत भारत आज विश्व के प्रमुख परमाणु संपन्न देशों की कतार में खड़ा है | डॉक्टर होमी जहाँगीर भाभा उन वैज्ञानिकों में शामिल थे जिनके नाम से अमेरिका भी कांपता था। अमेरिका को दरअसल इस बात का खौफ पैदा हो गया था कि कहीं भारत उससे आगे न निकल जाए। यही कारण थी की भाभा को ख़त्म करने का प्लान अमेरिका ने बनाया और उसे पूरा भी किया | 24 नवंबर 1966 को फ्रांस के माउंट ब्‍लैंक के आसमान में एक विमान क्रैश हुआ और इसमें मौजूद सभी यात्री मारे गए। जिनमे डॉक्‍टर होमी जहांगीर भाभा भी शामिल थे |

डॉक्टर होमी जहाँगीर भाभा का जन्म मुंबई के एक आमिर पारसी परिवार में हुआ था । उनके पिता का नाम जहाँगीर भाभा था और उन्होंने कैम्ब्रिज से शिक्षा प्राप्त की थी । वे वकील होने के साथ साथ टाटा इंटरप्राइजेज में भी कम कर चुके थे।भाभा बचपन से ही असाधारण प्रतिभा के धनि थे । शुरुआत से ही उनकी रूचि भौतिक विज्ञानं और गणितमें थी | उनकी प्रारंभिक शिक्षा कैथरैडल स्कूल में हुई और फिर आगे की शिक्षा के लिए जॉन केनन में पढने गये। इसके बाद होमी ने एल्फिस्टन कॉलेज मुंबई और रॉयल इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस से बीएससी की परीक्षा पास की। वर्ष 1927 में वो इंग्लैंड चले गए जहाँ उन्होंने कैंब्रिज में इंजीनियरिंग की पढ़ाई की। सन् 1930 में स्नातक की उपाधि अर्जित की ।सन् 1934 में कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से ही उन्होंने डाक्टरेट की उपाधि भी प्राप्त की। अध्ययन के दौरान कुशाग्र बुद्धी के कारण होमी को लगातार छात्रवृत्ती मिलती रही। पीएचडी के दौरान उनको आइजेक न्यूटन फेलोशिप भी मिली। उन्हें प्रसिद्ध वैज्ञानिक रुदरफोर्ड, डेराक, तथा नील्सबेग के साथ काम करने का अवसर भी मिला।

द्वितीय विश्वयुद्ध की शुरुआत

डॉक्टर भाभा जब कैम्ब्रिज में अध्ययन और अनुसंधान कार्य कर रहे थे और छुट्टियों में भारत आए हुए थे तभी सितंबर 1939 में द्वितीय विश्व युद्ध छिड़ गया। इस समय हिटलर यूरोप पर कब्ज़ा किये जा रहा था । इंग्लैंड के अधिकांश वैज्ञानिक युद्ध के लिये सक्रिय हो गए और पूर्वी यूरोप में मौलिक अनुसंधान लगभग ठप्प हो गया। ऐसी परिस्थिति में डॉक्टर भाभा के लिए इंग्लैंड जाकर अनुसंधान जारी रखना के लिए संभव नहीं था। डॉक्टर भाभा को समझ में नहीं आ रहा था कि वे भारत में क्या करें?

भारतीय विज्ञान संस्थान में किया अध्यापन का कार्य
उनकी बहुमुखी प्रतिभा से परिचित कुछ विश्वविद्यालयों ने उन्हें अध्यापन कार्य के लिये आमंत्रित किया। अंततः डॉ. भाभा ने ‘भारतीय विज्ञान संस्थान’ (IISc) बैंगलोर को चुना जहाँ वे भौतिक शास्त्र विभाग के प्राध्यापक के पद पर रहे। यह उनके जीवन का महत्त्वपूर्ण परिवर्तन था। डॉक्टर भाभा के लिए कैम्ब्रिज की तुलना में बैंगलोर में काम करना मुश्किल था। कैम्ब्रिज में वे आसानी से अपने वरिष्ठ लोगो से सम्बन्ध बना लेते थे लेकिन बंगलौर में उनके लिए चुनौतीपूर्ण था। उन्होंने अपना अनुसंधान कार्य जारी रखा और धीरे-धीरे भारतीय सहयोगियों से संपर्क भी बनाना शुरू किया। उन दिनों ‘भारतीय विज्ञान संस्थान’, बैंगलोर में ‘सर सी. वी. रामन’ भौतिक शास्त्र विभाग के प्रमुख थे। सर सी. वी. रामन ने डॉक्टर भाभा को शुरू से ही पसंद किया और डॉ. भाभा को ‘फैलो ऑफ़ रायल सोसायटी’ (FRS) में चयन हेतु मदद की।

देश में विज्ञान की उन्नति चाहते थे भाभा

बैंगलोर में डॉॉक्टर भाभा कॉस्मिक किरणों के हार्ड कम्पोनेंट पर अनुसंधान का कार्य कर रहे थे, किंतु वे देश में विज्ञान की उन्नति के बारे में बहुत चिंतित थे। उन्हें चिंता थी कि क्या भारत उस गति से उन्नति कर रहा है जिसकी उसे ज़रूरत है? देश में वैज्ञानिक क्रांति के लिए बैंगलोर का संस्थान पर्याप्त नहीं था। डॉक्टर भाभा ने नाभिकीय विज्ञान के क्षेत्र में विशिष्ट अनुसंधान के लिए एक अलग संस्थान बनाने का विचार बनाया और सर दोराब जी टाटा ट्रस्ट से मदद माँगी। यह सम्पूर्ण भारतवर्ष के लिए वैज्ञानिक चेतना एवं विकास का निर्णायक मोड़ था।

भारत के परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम की कल्पना
भाभा ने ही भारत के परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम की कल्पना की थी। उन्होने मुट्ठी भर वैज्ञानिकों की सहायता से मार्च 1944 में न्‍यूक्लियर एनर्जी पर रिसर्च प्रोग्राम शुरू किया था। उन्होंने न्‍यूक्लियर साइंस पर तब काम करना शुरू किया था दुनिया को इसकी चैन रिएक्‍शन के बारे में काफी कम जानकारी थी। इतना ही नहीं उस वक्‍त नाभिकीय उर्जा से विद्युत उत्पादन की कल्पना को कोई मानने को तैयार नहीं था। उन्हें ‘आर्किटेक्ट ऑफ इंडियन एटॉमिक एनर्जी प्रोग्राम’ भी कहा जाता है।

टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ़ फंडामेंटल रिसर्च की स्थापना की
उन्होंने जेआरडी टाटा की मदद से मुंबई में ‘टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ़ फंडामेंटल रिसर्च’ की स्थापना की और वर्ष 1945 में इसके निदेशक बन गए।वर्ष 1948 में डॉक्टर भाभा ने भारतीय परमाणु ऊर्जा आयोग की स्थापना की और अंतरराष्ट्रीय परमाणु उर्जा मंचों पर भारत का प्रतिनिधित्व किया। इसके अलावा वह कई और महत्त्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय संगठनों के प्रमुख भी रहे।

विज्ञान के साथ-साथ कला के क्षेत्र में भी थी रूचि
भाभा के बारे में एक बड़ी मजेदार बात ये है कि विज्ञान के साथ-साथ शास्त्रीय संगीत, मूर्तिकला, चित्रकला तथा नृत्य आदि क्षेत्रों में उनकी गहन रूचि और अच्छी पकङ थी। वे चित्रकारों और मूर्तिकारों को प्रोत्साहित करने के लिए उनके चित्रों और मूर्तियों को खरीद कर टॉम्ब्रे स्थित संस्थान में सजाते थे और संगीत कार्यक्रमों में भी हिस्सा लिया करते थे।

भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र

डॉॉऊ भाभा ने पेडर रोड में ‘केनिलवर्थ’ की एक इमारत का आधा हिस्सा किराये पर लिया। यह इमारत उनकी चाची श्रीमती कुंवर पांड्या की थी। संयोगवश डॉ. भाभा का जन्म भी इसी इमारत में हुआ था। TIFR ने उस समय इस इमारत के किराए के रूप में हर महीने 200 रुपये देना तय किया था। उन दिनों यह संस्थान काफ़ी छोटा था। कर्मचारियों के लिए चाय की दुकान संस्थान से लगभग एक किलोमीटर की दूरी पर थी। श्रीमती पांड्या ने कर्मचारियों की चाय अपनी रसोई में ही बनाने की इजाजत दे दी। वह अपने प्रिय भतीजे डॉ. भाभा को अपने हाथों से चाय बनाकर पिलाया करतीं थीं। आज उस दो मंजिली पुरानी इमारत की जगह एक बहुमंजिली इमारत ने ले ली है, जो अब मुख्यतः ‘भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र’ के अधिकारियों का निवास स्थान है।

संयुक राज्य संघ द्वारा आयोजित सम्मलेन के सभापति
वर्ष 1955 में जिनेवा में संयुक्त राज्य संघ द्वारा आयोजित ‘शांतिपूर्ण कार्यों के लिए परमाणु ऊर्जा का उपयोग’ के पहले सम्मलेन में डॉक्टर होमी भाभा को सभापति बनाया गया। जहाँ पश्चिमी देशों के वैज्ञानिक इस बात का प्रचार कर रहे थे कि अल्पविकसित देशों को पहले औद्योगिक विकास करना चाहिए तब परमाणु शक्ति के बारे में सोचना चाहिए वहीँ डॉक्टर भाभा ने इसका जोरदार खण्डन किया और कहा कि अल्प विकसित राष्ट्र इसका प्रयोग शान्ति पूर्वक तथा औद्योगिक विकास के लिए कर सकते हैं।

18 महीनों में परमाणु बम बना सकता है भारत

अक्टूबर 1965 में भाभा ने ऑल इंडिया रेडियो से घोषणा की थी कि अगर उन्हें छूट मिले तो भारत 18 महीनों में परमाणु बम बनाकर दिखा सकता है। वह मानते थे और काफी आश्‍वस्‍त भी थे कि अगर भारत को ताकतवर बनना है तो ऊर्जा, कृषि और मेडिसिन जैसे क्षेत्रों के लिए शांतिपूर्ण नाभिकीय ऊर्जा कार्यक्रम शुरू करना होगा। इसके अलावा भाभा यह भी चाहते थे कि देश की सुरक्षा के लिए परमाणु बम भी बने। हालांकि यह उनका छिपा हुआ अजेंडा था।

अमेरिका की खुफिया एजेंसी सीआईए ने करायी विमान हादसे में उनकी हत्या

भारत के इस महान वैज्ञानिक और स्वप्नदृष्टा का निधन 24 जनवरी 1966 में स्विट्जरलैंड में एक विमान दुर्घटना में हो गया।वह इस विमान में वियना एक कांफ्रेंस में हिस्‍सा लेने जा रहे थे। इस विमान में उस वक्‍त 117 यात्री सवार थे। भारत को इस विमान दुर्घटना से गहरा धक्‍का लगा था।एक थ्‍योरी के मुताबिक विमान का पायलट उस वक्‍त जिनेवा एयरपोर्ट को अपनी सही पॉजीशन बताने में नाकाम रहा था और विमान दुर्घटनाग्रस्‍त हो गया था। लेकिन दूसरी थ्‍योरी के मुताबिक यह विमान एक हादसे का नहीं बल्कि एक षड़यंत्र के तहत बम से उड़ाया गया था। इस विमान को दुर्घटनाग्रस्‍त करने के पीछे अमेरिका की खुफिया एजेंसी सीआईए का हाथ था। एक न्‍यूज वेबसाइट ने अपनी रिपोर्ट में कथित तौर पर इस बात का संकेत दिया है कि प्‍लेन क्रैश में अमेरिकी खुफिया एजेंसी का हाथ था। इसकी वजह भारत के परमाणु कार्यक्रम को पटरी से उतारना था।

सीआईए अधिकारी के हवाले से सामने आई जानकारी

दरअसल इस वेबसाइट ने 11 जुलाई 2008 को एक पत्रकार ग्रेगरी डगलस और सीआईए के अधिकारी रॉबर्ट टी क्राओली के बीच हुई कथित बातचीत को फिर से पेश किया है। इस बातचीत में सीआईए अधिकारी रॉबर्ट के हवाले से कहा गया है, ‘हमारे सामने समस्या थी। भारत ने 60 के दशक में आगे बढ़ते हुए परमाणु बम पर काम शुरू कर दिया था। उन्‍होंने इस बातचीत में रूस का भी जिक्र किया है जो भारत की मदद कर रहा था। भाभा का उल्लेख करते हुए सीआईए अधिकारी ने कहा, ‘मुझपर भरोसा करो, वह खतरनाक थे। उनके साथ एक दुर्भाग्यपूर्ण ऐक्सिडेंट हुआ। वह परेशानी को और अधिक बढ़ाने के लिए वियना की उड़ान में थे, तभी उनके बोइंग 707 के कार्गो में रखे बम में विस्फोट हो गया।

शास्‍त्री की मौत में भी सीआईए का हाथ

इस विमान दुुर्घटना के बाद इस इलाके में पत्रकारों का समूह भी गया था जिसको वहां पर विमान के कुछ हिस्‍से भी मिले थे। इसके अलावा वर्ष 2012 में वहां पर एक डिप्‍लो‍मे‍टिक बैग भी मिला जिसमें कलेंडर, कुछ पत्र और कुछ न्‍यूज पेपर्स थे। रॉबर्ट का कहना है कि सीआईए का हाथ सिर्फ भाभा के विमान को हादसाग्रस्‍त करने में ही नहीं था बल्कि लाल बहादुर शास्‍त्री की मौत में भी था। 1947 में भारत सरकार द्वारा गठित परमाणु ऊर्जा आयोग के प्रथम अध्यक्ष नियुक्त हुए। 1953 में जेनेवा में अनुष्ठित विश्व परमाणुविक वैज्ञानिकों के महासम्मेलन में उन्होंने सभापतित्व किया। भाभा 1950 से 1966 तक परमाणु ऊर्जा आयोग के अध्यक्ष थे, तब वो भारत सरकार के सचिव भी हुआ करते थे। वो कभी भी अपने चपरासी को अपना ब्रीफ़केस उठाने नहीं देते थे।

30 अक्तूबर, 1909 को मुंबई के पारसी परिवार होमी भाभा के पिता जहांगीर भाभा एक जाने-माने वकील थे. होमी भाभा की शुरुआती पढ़ाई मुंबई के कैथेड्रल स्कूल और जॉन केनन स्कूल में हुई. उन्हें शुरू से ही भौतिक विज्ञान और गणित में खास रुचि थी. रॉयल इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस से बीएससी करने के बाद 1927 में हायर स्टडी के लिए इंग्लैंड चले गए. कैंब्रिज यूनिवर्सिटी से मैकेनिकल इंजीनियरिंग की परीक्षा पास की।

भाभा ने जर्मनी में कॉस्मिक किरणों का अध्ययन किया और उन पर कई प्रयोग भी किए. पढ़ाई पूरी करने के बाद साल 1939 में भारत लौटे और बेंगलुरु के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस से जुड़ गए. उन्हें शास्त्रीय संगीत, मूर्तिकला, चित्रकला और नृत्य के क्षेत्र में भी गहरी रुची थी. मशहूर वैज्ञानिक और नोबेल पुरस्कार विजेता सर सी.वी. रमन उन्हें भारत का लियोनार्डो डी विंची भी कहा करते थे.

साल 1957 में भारत ने मुंबई के करीब ट्रांबे में पहला परमाणु अनुसंधान केंद्र स्थापित किया. 1967 में इसका नाम भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र कर दिया गया. 24 जनवरी, 1966 को विमान दुर्घटना में इनकी मौत हुई जिसका रहस्य आज तक नहीं सुलझा।

 

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