मत: हकीकत क्या है ‘गंगा जमुनी तहजीब’ की? क्या सिर्फ मुस्लिम तुष्टिकरण-3

गंगा जमुनी तहजीब : हकीकत

गंगा जमुनी तहजीब.. आजकल हर किसी तथाकथित सेक्युलर के मुंह से यह शब्द ज्यादातर सुनाई देता है। राजनीतिक लोगो की पहचान और जन्मजात कॉपीराइट है गंगा जमुनी तहजीब। यह शब्द इतना रोचक है कि यह शब्द कब, किसने और क्या सोच समझकर बनाया इसपर रिसर्च जरूर होनी चाहिए। यह सामान्य से 3 शब्दों का मेल कुछ लोगो के लिए अमृत वचन के समान है। उनके लिए यही उनका आदि है और यही उनका अंत। जिस प्रकार क्रिकेट में फील्डिंग करने वाली टीम के मुंह पर आउट शब्द रखा रहता है उसी प्रकार उन लोगो के मुंह पर यह रखा रहता है।

गंगा जमुनी तहजीब शब्द का इस्तेमाल हिन्दू – मुस्लिम संस्कृतियों के परस्पर मिलन व एक साथ आस्तित्व में रहने (Co-Existence) को लेकर इस्तेमाल किया जाता है। इसका एक अर्थ यह है कि दोनों समुदाय एक साथ बिना किसी आपत्ति  रहे हैं एवं दूसरा अर्थ यह है कि मुस्लिम सुख से रह रहे हैं। दरअसल भारत में इस शब्द को मुस्लिम तुष्टिकरण का पर्यायवाची बना दिया गया है क्योंकि सरकारों ने मुस्लिमों को शुरुआत से ही हर प्रकार से मदद पहुंचाई व अपना वोट बैंक तैयार किया। उन्हें हिन्दुओं के मुकाबले ज्यादा महत्त्व दिया गया और इसी मुस्लिम तुष्टिकरण को गंगा जमुनी तहजीब के पर्दे के पीछे किया गया।

गंगा जमुना तहजीब एक राजनैतिक शब्द है और इसका सामान्यतः कोई अर्थ नही निकलता। मैंने एक आसान तरीके से इसको समझने की कोशिश की है। गंगा एक नदी है और यमुना भी एक नदी है। दोनों ही नदियां भारत मे पूजनीय है। देश के मूलनिवासी यानि हिन्दू इनको मां या देवी मानते हैं। अब जमुना, यमुना का ही अपभ्रंश है। जैसे गाँव में जानवर को जनावर कहने वाले होते हैं उसी प्रकार यमुना को जमुना भी कई लोग कहते हैं।

अब रह गया तहजीब जोकि उर्दू का शब्द है। तहजीब मतलब संस्कार, या सभ्यता। गंगा जमुनी तहजीब को लोग दो सम्प्रदाय के लोगो के मेल जोल को रेखांकित करते हुए इस्तेमाल करते हैं। दो संप्रदाय शब्द अक्सर न्यूज़ में सुनाई देता है। सुप्रीम कोर्ट का आदेश है कि जब हिन्दू मुसलमानो में दंगे हो तो धर्म का नाम न लेकर दो सम्प्रदाय आपस में भिड़े, ऐसा कहना चाहिए। लेकिन आज की जनता जिस प्रकार आतंकवाद का नाम आते ही पाकिस्तान समझ जाती है उसी प्रकार दो सम्प्रदाय सुनते ही हिन्दू मुस्लिम समझ जाते हैं।

मुद्दे पर आते हैं। गंगा जमुनी तहजीब मतलब हिन्दू मुस्लिम संस्कृति, या हिन्दू मुस्लिम संस्कार। अब ये संस्कार तो उनमें ही आ सकते हैं जो हिन्दू और मुस्लिम दोनों की संतान हो, ( यह छुपा हुआ रहस्य है ) अब ऐसा सीधे-सादे तो कह नही सकते इसलिए हिन्दू मुस्लिम एकता को गंगा जमुनी तहजीब का अर्थ बना दिया गया। ऐसा मुझे लगता है।

गंगा जमुना तहजीब शब्द बनने का मुख्य कारण भारत में हिन्दुओं को साजिशन कमजोर करना है। दरअसल भारत के अंदर भारत को कमजोर करने की एक गहरी साजिश ब्रिटिश काल से भी पहले से होती रही है। सबसे बड़ा धोखा तो यह दिया गया कि भारत को हिन्दू राष्ट्र के रूप में पहचान नही दी गयी जबकि हमेशा से दुनियाभर में भारत की पहचान हिन्दुओं से ही रही है फिर चाहे वो पुरातन ग्रीक सभ्यता में हो या चीनी व जापानी सभ्यता में। पुराणों में भी कहा गया है

हिमालयं समारभ्य यावत् इंदु सरोवरम् |

तं देवनिर्मितं देशं हिंदुस्थानं प्रचक्षते ||

 

सिन्धु नदी के कारण भी सिन्धुस्थान (अरबी में हिन्दुस्थान) नाम से विख्यात यह पुण्यधरा यहाँ के निवासी हिन्दुओं के शौर्य, साहस, भव्यता आदि के लिए प्रसिद्ध थी। अरब में एक कहावत है कि “हिन्दू की तरह लड़ना”। इसका इस्तेमाल वो लोग कभी बहादुरी की बात को बताने के लिए करते हैं। यहूदी में एक कहावत है “तुम्हारी बात मुझे हिन्दू की तलवार की तरह चुभी” यह कहावत कोई अत्यंत दुःख पहुंचने पर कही जाती है। इससे साफ प्रतीत होता है कि उस समय हिन्दुस्थान के हिन्दुओं की शौर्य गाथा किस कदर अरब और यहुदियों को मुंह जुबानी याद थी। जैसे-जैसे भारत में इस्लामिक काल आया, भारत के स्वाभिमान पर सबसे पहले हमला हुआ। सभी धर्मस्थानों पर मस्जिद बनाकर धर्म भ्रष्ट करना, हिन्दुओं पर अतिरिक्त कर लगाना, उनके कोई भी धार्मिक कार्य करने पर प्रतिबन्ध लगा देना आदि वो कृत्य थे जो मुस्लिम राजाओं ने भारत में किये। अंग्रेजी काल में भारतीय इतिहास का जब पुनर्लेखन किया जा रहा था तो इस प्रकार से इतिहास लिखा जा रहा था जिसमें हिन्दुओं को अपने इतिहास पर गर्व के स्थान पर शर्म आये साथ ही मुस्लिमों का महिमामंडन हो। स्वतंत्रता पश्चात भी यह क्रम चलता रहा। इसी में अकबर महान बना दिए गये और महाराणा प्रताप को युद्ध हारते हुए बताया गया। टीपू सुल्तान लाखों हिन्दुओं के कत्लेआम करने के बाद भी महान हो गया।

मुस्लिम काल भारत में करीब छह सौ साल रहा। इस दौरान भारत वर्ष में हिन्दू राजा अलग-अलग स्थानों पर अलग-अलग तरीके से मुस्लिमों से लड़ते रहे। ध्यान देने वाली बात यह है कि मुस्लिमों ने ये छह सौ साल मजे से बैठकर नही गुजारे बल्कि हिन्दुओं का भयंकर प्रतिरोध लगातार चलता रहा। पहले राजपूत, विजयनगर, फिर मराठा, सिख – जाट, बुन्देल, उत्तर पूर्व व सुदूर दक्षिण आदि स्थानों पर मुस्लिमों को लगातार युद्ध लड़ने पड़े। इस समय मुस्लिमों ने हिन्दुओं को लेकर कोई शालीनता नही दिखाई और न ही तब हिन्दू-मुस्लिम एकता जैसा कुछ था। गंगा जमुना तहजीब भी उस समय सुनाई नही देती थी। भारत को मुस्लिम राष्ट्र बनाने का एक एजेंडा था जोकि खलीफा के शासन के अंदर लाने के एजेंडे के साथ था। इसके बाद ब्रिटिश काल में भी कुछ ख़ास नही बदला। ब्रिटिश लोगों को भारतीय जनमानस से प्रतिरोध मिला लेकिन मुस्लिम लोगों ने कुछ खास दिलचस्पी नही दिखाई। मुस्लिम राजाओं ने अंग्रेजों से लड़ाई सिर्फ इसीलिए लड़ी क्योकि उनको राज प्यारा था। न भारत की स्वतंत्रता से कोई उन्हें मतलब था न ही भारत जैसा कोई देश का विचार उस समय मुस्लिमों में था। मुस्लिमों ने अंग्रेजी सरकार का विरोध तब किया जब तुर्की के खलीफा को अंग्रेजों ने हटा दिया। सही मायने में मुस्लिम काल से लेकर ब्रिटिश काल तक स्वतंत्रता की लड़ाई को हिन्दुओं ने ही अपने कंधों पर उठाया।

अंग्रेजी काल में जो हुआ सो हुआ लेकिन आज़ादी मिलने के बाद जो लोग सत्ता में बैठे उन्हें न भारत के लोगों की आस्था से कोई मतलब था न ही भारतीय संस्कृति के प्रति उन्हें श्रद्धा थी। दुर्भाग्य का विषय है कि भारत का प्रथम प्रधानमन्त्री एक नास्तिक था और शिक्षा मंत्री मुस्लिम। इसी कारण न सिर्फ भारत को बांटकर मुस्लिमों को अलग देश दे दिया गया साथ ही बचे भारत को तथाकथित सेक्युलर राष्ट्र बनाने का निर्णय लिया। हालाँकि संविधान में सेक्युलर शब्द नही जोड़ा गया था लेकिन भारत का प्रधानमन्त्री सेक्युलर था। उसे हिन्दू आन-मान-शान से कोई लेना-देना नही था। जिस हिन्दुस्थान को जीतने को मुस्लिमों को 400 वर्ष लग गये उस भारत में अपनी ही सरकार हिन्दू-मुस्लिम भाईचारे (सही मायने में मुस्लिम तुष्टिकरण)को लेकर आई।

यह दीर्घकालिक सत्य है कि हिन्दू मुस्लिम भाईचारा कभी भी सम्भव नही है। हिन्दू-हिन्दू भाईचारा तो सम्भव है, मुस्लिम-मुस्लिम भाईचारा तो सम्भव है लेकिन हिन्दू –मुस्लिम कभी नही। ऐसा कहने के पीछे भी एक कारण है। हिन्दुओं और मुस्लिमों में वैचारिक दूरी इतनी अधिक है कि दोनों में समानता कभी नही हो सकती। इसी को लेकर सावरकर ने कहा था कि भाई-चारा स्थापित करने को दो शर्ते हैं, जबतक ये शर्तें पूरी नही होंगी भाईचारा कभी स्थापित हो ही नही सकता।

पहला है रक्त का सम्बन्ध – कोई दो समुदाय या पंथ अगर एक रक्त के हैं तो वो एक साथ रह सकते हैं। इसका अर्थ एक पूर्वज से है। इस दृष्टि से अगर भारत में हिन्दू मुस्लिम एकता लानी है तो भारत के मुस्लिम लोगों को यह न सिर्फ स्वीकार करना होगा कि वे हिन्दुओं से ही बने हैं साथ ही उन्हें हिन्दू पूर्वजों के प्रति सम्मान भी व्यक्त करना होगा।

दूसरी शर्त है कि इस भारत को पूजनीय मानना। हिन्दुओं के लिए यह भारत ही स्वर्ग से बढकर है। यहीं उनके भगवान जन्मे, यहीं उनकी आस्था है। भारत के बाहर कहीं भी हिन्दुओं के लिए कोई देश इतना बढकर नही जिसे वो भारत से ज्यादा सम्मान दें। यानि अपना देश ही हिन्दुओं के लिए महत्त्व का है। जबकि मुस्लिमों और ईसाईयों के साथ ऐसा नही है। मुस्लिमों के लिए भारत इसलिए महत्वपूर्ण हो सकता है कि वो यहाँ सैकड़ों वर्ष से रह रहे हैं, लेकिन उनकी आस्था सऊदी अरब की धरती के लिए हमेशा रही है और रहेगी। इसी प्रकार ईसाई-यहूदी भी वेटिकन और इजराइल की तरफ आस्था रखते हैं। जब तक यहाँ रहने वाले मुस्लिम विदेशी धरती के प्रति अपनी आस्था समाप्त नही करते और भारत की धरती को ही सर्वोच्च नही मानते तब तक हिन्दुओं का उनके साथ भाईचारा हो ही नही सकता। ऐसा कहने के लिए इतिहास के कई उदाहरण हमारे सामने है।

एक बार तुर्की ने अपने देश में रह रहे ईसाईयों को इसलिए अपना नागरिक स्वीकार कर लिया क्योकि भले ही वो उस समय ईसाई थे लेकिन उससे पहले तो वो सब तुर्की मुस्लिम ही थे। मतलब ईसाईयों की हालत आज के भारतीय मुस्लिमों जैसे ही थी। तुर्की ने बड़ा दिल दिखाते हुए ईसाईयों को बराबर समझा लेकिन जब तुर्की का युद्ध पडोस के ईसाई देश के साथ हुआ तो तुर्की मुस्लिमों के साथ खून का रिश्ता रखने वाले ईसाई अपनी आस्था के कारण तुर्की के साथ नही रह पाए। और ईसाई सेना की तुर्की टुकड़ी पड़ोसी ईसाई देश में आ मिली।

सिर्फ यही नही बल्कि अमेरिका–जर्मनी में तनाव के बीच अमेरिका में रह रहे हजारों जर्मन लोगों जोकि अमेरिकन बन चुके थे में भी स्थायित्व नही आया और आखिरकार जर्मनी का ही साथ उन्होंने दिया। भारत में सिख, बौद्ध भले ही अलग धर्म के तौर पर हों लेकिन उनकी आस्था इसी भारत में है और खून भी हिन्दुओं से मिलता है इसलिए भाईचारा उनके साथ स्थापित हो सकता है। भारत में यही कारण रहा कि जब तुर्की के खलीफा को गद्दी से ब्रिटिश लोगों ने उतार दिया तो भारत में टर्की से हजारों किलोमीटर दूर लाखों मुसलमान सडकों पर उतर आया। यह आस्था के कारण था।

इसलिए भारत में जितनी कोशिशें इस तथाकथित भाईचारे को बनाने में हुए हैं वो सब बेकार गयी हैं, आगे भी जाएगी। इस भाईचारे का एक ही मार्ग है – यहाँ रह रहे सभी मुस्लिमों का यह मान लेना कि भारत की भूमि से बढकर कुछ नही। ऐसा करने से मुस्लिमों और हिन्दुओं में एकता आ जाएगी भले ही फिर रीति रिवाज मुस्लिम न बदलें।

आज गंगा जमुनी तहजीब सिर्फ हिन्दुओं को दबाने के लिए है। आज दो अलग संस्कृति होने के कारण टकराव होता है लेकिन इतिहास की गलतियों के कारण आज हिन्दू दब्बू बन कर यह हिन्दू मुस्लिम भाईचारा निभाता रहता है। जिस एकता का कोई आधार ही नही, उसको बनाने में हमने 70 दशक दे दिए और क्या मिला? सिर्फ आतंकवाद और मुस्लिम बहुल इलाकों में दंगे। जिस एकता की बात आज राजनीतिक पार्टियाँ करती हैं, उनसे सवाल जरुर पूंछना चाहिए कि वो कौन सी एकता की बात करते है?

वह एकता जिसे कायम रखने को औरंगजेब ने लाखों हिन्दू मरवाये? या वह एकता जिसके लिए मराठों , सिख फौजें काट डाली गई? या फिर वो अकबर के जमाने की एकता जब राजपूतों के मानमर्दन को उनका कत्लेआम किया गया?

खैर.. यह सब बातें उन लोगों को याद ही नही आती जो इस गंगा जमुनी तहजीब की बात करते हैं। हिन्दू-मुस्लिम एकता की बात कैसे पूरी हो, इसका भी पूरा प्लान इन तथाकथित सेक्युलर लोगों के लोगो के पास है।

जब कभी जुमे की नमाज हो और मुसलमान सड़कें घेरकर नमाज पढ़ना शुरू कर दे तो आप चुपचाप नमाज खत्म होने का इंतज़ार कीजिए।

जब मुस्लिम गाय काटने ले जा रहे हों या काट रहे हो तो चुपचाप अंधे बने रहिए। अगर आप बोले तो हिन्दू-मुस्लिम एकता खतरे में आ जायेगी और साथ ही देश का लोकतंत्र भी।

जब मुस्लिम सुबह अजान के नाम पर लाउडस्पीकर से कान के पर्दे फाड़ रहे हो तो आप चुपचाप कान पर उंगली रखकर इन बेसुरी आवाज का आनंद लें। अगर आप कुछ बोले तो ये एकता खतरे में पड़ जाएगी।

अगर आप हिन्दू है और मुस्लिम बहुल इलाके में हैं तो कभी भी पूजा,कीर्तन में लाउडस्पीकर उपयोग न करे। इससे मुस्लिमों को दिक्कत होती है। नॉइज़ पॉल्युशन तो जानते ही होंगे, वो होता है।

अगर आप हिन्दू है और आपकी लड़की या बहन घर से बाहर किसी छेड़छाड़ का शिकार होती है और छेड़छाड़ करने वाले सभी आरोपित मुस्लिम हो तो आप बिलकुल भी न बोले। अपनी बहन या लड़की को घर पर ही रहने को कहें। बाहर न निकलने दे। इससे आप हिन्दू मुस्लिम एकता का पोषण कर पायेंगे ।

अगर आप हिन्दू है तो अपने मुस्लिम पड़ोसियों से ऐसे व्यवहार करें जैसे आप नास्तिक है और इस्लाम आपकी नजर में सर्वश्रेष्ठ है। यह हिन्दू मुस्लिम एकता की सबसे जरूरी कड़ी है।

कश्मीर की किसी भी आतंकवादी घटना पर ,”वहां के नौजवान भटके हुए है” जरूर कहे, इससे आपसी कौमी एकता मजबूत होती है।

कभी भी भूलकर पाकिस्तान को आतंकी देश न कहे, यह हिन्दू मुस्लिम एकता तोड़ने वाला वाक्य है।

मुस्लिमों के कई संगठन है। उन संगठनों में सिर्फ मुस्लिम ही सदस्य हो सकते हैं। फिर वहां ओसामा जी की शहादत पर गहन चर्चा होती है। शोक मनाया जाता है। कसाब की फांसी पर निंदा प्रस्ताव आता है। यह सब मुस्लिमों का आंतरिक मामला है। आप हिन्दू है तो इस पर कुछ न कहे..

आप अगर हिन्दू है और किसी हिन्दू संगठन से जुड़े हुए हो, तो आप हिन्दू मुस्लिम एकता के विरोधी हो।

हर किसी अप्रिय घटना पर आप संघ ने कराया है या इसके पीछे बीजेपी का हाथ है  कह सकते हैं। यह हिन्दू मुस्लिम एकता  बनाये रखने में मदद करता है।

हिन्दू मुस्लिम एकता या गंगा जमुनी तहजीब को मानने या पालन करने के लिए आपको कुछ थ्योरी भी बदलनी होंगी जैसे –

वेद ,पुराण सब झूठ से भरा है। यह अंधविश्वास है।

कुरान आसमान से उतरी

कुरान में जो लिखा है सब सच है

काबा में शैतान बन्द है

ईद पर बकरा, गाय, ऊंट, भैंस आदि काटने से अल्लाह खुश होता है

शिवलिंग पर दूध चढ़ाना अंधविश्वास और बेवकूफी है

हदीसों का पालन करना चाहिए

उपनिषद ब्राह्मणवाद है

दलित बेचारे हैं और इनपर ब्राह्मणों ने अत्याचार किया है

(शिया सुन्नी बरेलवी अहमदिया जैसे नामों पर बंटा पड़ा इस्लाम जिसमे सभी एक दूसरे के खून के प्यासे हैं। वो दूसरी बात है)

भगवान राम काल्पनिक है इसलिए अयोध्या में राम मंदिर बनने का सवाल ही नही होता

बीजेपी मतलब साम्प्रदायिक ताकत.. मोदी मतलब कट्टरवाद, योगी मतलब आतंकवाद जबकि औवेसी मतलब कौमी एकता, ओसामा मतलब इस्लामी लड़ाका और कश्मीर के पत्थरबाज मतलब भटके नौजवान

इन सभी बातों का पालन करके आप हिन्दू मुस्लिम एकता को मजबूत कर सकते हैं। इसे शेयर भी न करे, इससे भी हिन्दू मुस्लिम एकता खतरे में पड़ती है।

(स्रोत का उल्लेख करते हुए इसको शेयर करने के लिए आप स्वतंत्र हैं )

Ashish Rajput | Twitter/SirAshishRajput

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