मुस्लिम नेता भी आ धमके हल्द्वानी दंगाइयों की हिमायत में

बिना कोर्ट के आदेश तोड़ा गया अतिक्रमण..हल्द्वानी पहुंचे मुस्लिम नेताओं ने क्या कहा
जमीयत उलेमा ए हिन्द के प्रतिनिधियों ने कर्फ्यू ग्रस्त इलाके में जाने के लिए प्रशासन से अपील की लेकिन प्रशासन नहीं माना।
हल्द्वानी हिंसा मामले को लेकर मुस्लिम संगठनों के नेता हल्द्वानी पहुंचे चुके हैं। जमीयत-उलेमा-ए-हिंद और जमात-ए-इस्लामिया हिंद के नेताओं ने SDM हल्द्वानी से बातचीत की। हल्द्वानी हिंसा पर प्रशासन से बातचीत के लिए पहुंचे मुस्लिम संगठन SDM से मिले।
उन्होंने कहा की बिना कोर्ट के आदेश पर अतिक्रमण तोड़ने की कार्यवाही की गयी। जिसके बाद बबाल हुआ। हकीकत यह है, की हज़ारों लोग पलायन कर चुके हैं। लिहाज़ा ये अपील है, की लोंगो में डर खत्म होना चाहिये। जमीयत उलेमा ए हिन्द के प्रतिनिधियों ने कर्फ्यू ग्रस्त इलाके में जाने के लिए प्रशासन से अपील की लेकिन प्रशासन नहीं माना।

बता दें कि हल्द्वानी घटना के दोषियों पर प्रशासन कार्रवाई शुरू कर दी है। कार्रवाई के डर से मलिक के बगीचे इलाके के आसपास लोग धीरे-धीरे पलायन कर रहे हैं। लोगों के घरों में ताले लगे हुए दिखाई दे रहे हैं। अपने घरों से लोग सामान लेकर जा रहे हैं। अब यह कितने दिनों तक अपने घरों से बाहर रहेंगे। यह स्पष्ट नहीं है। फिलहाल इलाके में हालात सामान्य हैं।

जमीअत उलमा-ए-हिंद और जमाअत-ए-इस्लामी हिंद के संयुक्त प्रतिनिधिमंडल ने दौरा किया
Jamiet Ulema and Jamat-e-Islami delegation meeting with officials in Haldwani
– एसडीएम और सिटी मजिस्ट्रेट से मुलाकात की, मृतकों के परिजनों के लिए एक करोड़ की सहायता की मांग

– जमीअत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद असद मदनी ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को लिखा पत्र

जमीअत उलमा-ए-हिंद और जमाअत-ए-इस्लामी हिंद के एक संयुक्त प्रतिनिधिमंडल ने हल्द्वानी का दौरा कर वहां एसडीएम परितोष वर्मा, सिटी मजिस्ट्रेट ऋचा सिंह और स्थानीय थाना प्रभारी नीरज भाकुनी से मुलाकात की। इस दौरान प्रतिनिधिमंडल ने हल्द्वानी के बनभूलपुरा में मदरसे की विध्वंस कारवाई के बाद पुलिस प्रशासन की भेदभावपूर्ण और बदले की कार्रवाई पर कड़ी नाराजगी व्यक्त की।

इस बीच जमीअत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद असद मदनी ने केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह को पत्र लिख कर परिस्थितियों पर गहरी चिंता व्यक्त की। मौलाना मदनी ने धार्मिक स्थलों के विध्वंस पर जल्दबाजी पर भी सवाल उठाया है और स्थाई समाधान खोजने की ओर ध्यान आकर्षित किया।

आज के प्रतिनिधिमंडल में जमीअत उलमा-ए-हिंद के महासचिव मौलाना हकीमुद्दीन कासमी, जमाअत-ए-इस्लामी हिंद के नायब अमीर मलिक मोतसिम, जमाअत-ए-इस्लामी हिंद के नायब अमीर शफी मदनी, जमीअत उलमा-ए-हिंद के वरिष्ठ संयोजक मौलाना गय्यूर अहमद कासमी, जमीअत उलमा-ए-हिंद के वरिष्ठ संयोजक मौलाना शफीक अहमद अल कासिमी मालेगानवी, जमाअत-ए-इस्लामी हिंद के सहायक सचिव लईक अहमद खां, जमाअत-ए-इस्लामी हिंद के सैय्यद साजिद शामिल थे।

प्रतिनिधिमंडल ने परिस्थितियों की समीक्षा करने के बाद कहा कि हल्द्वानी की वर्तमान स्थिति प्रशासन की जल्दबाजी का परिणाम है। प्रशासन ने बुलडोजर की कार्रवाई करने में जल्दबाजी दिखाई, जबकि मामला हाईकोर्ट में विचाराधीन है। प्रतिनिधिमंडल ने यह सवाल भी उठाया कि प्रोटोकॉल की नरमी बरते बिना शूट-एट-साइट का आदेश किस आधार पर दिया गया जिसके कारण इतने लोगों की जान चली गई। यह भी दुखद है कि पुलिस आंसू गैस का इस्तेमाल करने के बजाय पत्थरबाजी करने में शामिल थी जैसा कि विभिन्न वीडियो फुटेज में दिखाई दिया है। बहरहाल, जो भी स्थिति हल्द्वानी में बनी है, वह किसी भी सभ्य समाज में किसी भी स्थिति में स्वीकार्य नहीं है।

प्रतिनिधिमंडल ने  कहा कि हिंसा में जो भी लोग लिप्त थे, उनके विरुद्ध कार्रवाई होनी चाहिए लेकिन तलाशी अभियान में निर्दोष लोगों को बड़ी संख्या में गिरफ्तार करना, मुस्लिम अल्पसंख्यक इलाकों में महिलाओं और बच्चों को धमकाना और बदले की भावना से लोगों को बंद करना अत्यंत गलत कार्रवाई होगी। इसलिए पुलिस अधिकारियों को चेतावनी दी जाए कि लोगों को परेशान न करें, बल्कि जिला प्रशासन शांति और विश्वास बहाली के लिए प्रभावी कदम उठाए। साथ ही जिन की जानें गई हैं, उनके परिजनों को एक करोड़ रुपये का मुआवजा और परिवार के एक सदस्य को नौकरी दी जाए। प्रतिनिधिमंडल ने मांग की कि धार्मिक स्थानों के विध्वंस से पहले प्रभावित पक्ष को हर प्रकार से संतुष्ट होने का अवसर दिया जाना चाहिए। साथ ही बिना विश्वास में लिए कोई भी कार्रवाई करने से बचना आवश्यक है।

प्रतिनिधिमंडल ने भारत जैसे धार्मिक रूप से प्रभुत्व वाले देश में लोगों के लिए धार्मिक मामले बेहद भावनात्मक होते हैं, इसलिए इन्हें नज़रअंदाज करना और हिटलरशाही का रास्ता अपनाते हुए विध्वंस को बदले की कार्रवाई में बदलना बिल्कुल भी स्वीकार्य नहीं है। जो कुछ भी हल्द्वानी में हुआ उसे रोका जा सकता था, यदि यह दृष्टिकोण अपनाया गया होता। प्रतिनिधिमंडल ने महसूस किया कि उत्तराखंड में यह एक परंपरा बन गई है कि मुस्लिम अल्पसंख्यकों से संबंधित इबादत की जगहों को ध्वस्त कर दिया जाता है और फिर कुछ लोग विध्वंस का वीडियो बना कर जश्न मनाते हैं, जिससे एक वर्ग का दिल काफी दुखी होता है। ऐसी परिस्थिति देश हित में नहीं है, बल्कि इससे देश का माहौल खराब होता है। प्रतिनिधिमंडल ने एसडीएम से अनुरोध किया कि वह व्यक्तिगत रूप से हमारी मांगों पर विचार करें और स्थिति में सुधार के लिए हर संभव कदम उठाएं। प्रतिनिधिमंडल ने यह भी माग की कि इस घटना की न्यायिक जांच हाई कोर्ट के निवर्तमान या सेवानिवृत्त जज से कराई जाए।

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