मुम्बईया फिल्मों के गढ़े इंडिया को तो मनोज शुक्ला मुंतशिर चुभेगा ही

ऋषिकेश मुखर्जी की एक फिल्म है बेमिसाल। ऋषिकेश मुखर्जी बहुत सीधी सादी फिल्में बनाते थे। ये भी एक सामान्य सी कहानी पर बनायी गयी फिल्म है लेकिन फिल्म में एक दृश्य है जब अमिताभ बच्चन, राखी और विनोद मेहरा छुट्टियां मनाने के लिए कश्मीर जाते हैं। वहां राखी और अमिताभ बच्चन के बीच संवाद होता है। अमिताभ बच्चन कहते हैं कि मुगलों ने कश्मीर डिस्कवर किया। इस पर राखी कहती हैं कि मुगलों की तो बात ही कुछ और थी। उनका म्यूजिक देखिए, लिटरेचर दिखिए, आर्किटेक्चर देखिए। फिर अमिताभ बच्चन कहते हैं कि मुगलों का असली कंन्ट्रीब्यूशन का तो नाम ही नहीं लिया। अरे भाई मुगलई खाना।

ये संवाद सुनकर मैं चौंका कि ऋषिकेश मुखर्जी जैसे विद्वान फिल्मकार ने ये संवाद इस फिल्म में क्यों घुसाया होगा? क्या मुगलों से पहले भारत में कोई कश्मीर को नहीं जानता था? अगर हां तो सदियों तक पूरे भारत वर्ष से लोग चलकर शारदा पीठ क्या करने जाते थे? शंकराचार्य ने तो मुगलों से पहले वहां पहुंचे तो खोज का श्रेय देना ही है तो शंकराचार्य को दें या मुगलों को? फिर मैंने देखा कि इस फिल्म का डॉयलॉग राइटर कौन है तो पता चला डॉ राही मासूम रजा। डॉ राही मासूम रजा तमाम अच्छाइयों के बाद भी ऐसे झूठ फैलाने से अपने आप को नहीं रोक पाते थे।

हम जो भारत के लोग हैं उन्हें हमारी फिल्मों ने ही गढा है। फिल्मों के संवाद अवचेतन में बैठते हैं और हम शायद ही कभी उन्हें तथ्यात्मक रूप से परखते हों। और फिल्मों ने कई दशक से हमारे अवचेतन में सिर्फ अपने ही खिलाफ नफरत भरी है। आज हम जो अपने आप से, अपने धर्म से, अपने समाज से, अपनी परंपराओं से इतनी घृणा करते हैं उस घृणा को निर्मित करने में फिल्मों का बहुत बड़ा योगदान है। फिल्म निर्माण में ज्यादातर कम्युनिस्टों और बाद में इस्लामिस्टों का ही कब्जा रहा है। उनकी सोच के बारे में नया कुछ नहीं है कहने के लिए और अपनी फिल्मों में उन्होंने वही सारी गंदगी और सड़ांध जनता तक पहुंचाया कला के नाम पर। ऋषिकेश मुखर्जी जैसे इक्के दुक्के फिल्मकार ही थे जिन्होंने भारतीय समाज के विसंगतियें की आलोचना तो किया लेकिन कभी उसका सहारा लेकर पूरे समाज को गाली नहीं दी

इसलिए आज मनोज शुक्ला (मुंतशिर) की बात पर अगर हमें ही आपत्ति हो रही है तो इसमें कुछ गलत नहीं है। ये तो दशकों से हमारे अवचेतन में भरा गया है कि मुगल महान थे। हमें अपने राज समाज से घृणा करके मुगलों और बर्बर आक्रमणकारियों से प्रेम करना ही तो सिखाया गया है। वही हम कर रहे हैं। क्या गलत कर रहे हैं? इरफान हबीब और रोमिला थॉपर जैसे वामी इस्लामी इतिहासकारों ने दशकों कांग्रेस की पीठ पर बैठकर यही तो समझाया है न कि औरंगजेब मंदिर बनवाने के लिए पैसा देता था। उन्होंने कहां हमें ये जानने दिया कि वह नरमुंडों के पिरामिड बनाता था। लाशों से उतारकर जनेऊ तौलवाता था। मंदिरों को गिराने के खुतबे जारी करता था।

@संजय तिवारी की फेसबुक पोस्ट

विवाद: मुगलों को ‘डकैत’ कहने पर इन सेलेब्स के निशाने पर आए मनोज मुंतशिर, ऋचा चड्ढा बोलीं- जिससे नफरत हो उससे…

मनोज मुंतशिर, ऋचा चड्ढा और धायवान – फोटो : सोशल मीडिया

सोशल मीडिया पर इन दिनों मुगलों को लेकर बहस छिड़ी हुई है जिस पर आए दिन किसी ना किसी सेलेब्स की प्रतिक्रिया सामने आ रही है। हिंदी फिल्मों के गीतकार मनोज मुंतशिर ने कुछ समय पहले मुगलों को लेकर बयान दिया था जिसके बाद से ही सोशल मीडिया पर यूजर्स से लेकर सेलेब्स तक दो हिस्सों में बंटे नजर आ रहे हैं। कुछ लोग जहां मनोज मुंतशिर की बात को सही ठहरा रहे हैं तो वहीं कुछ लोगों को उनकी बात से बहुत आपत्ति है।

मनोज शुक्ला मुंतशिर ने कहा क्या, पहले वो सुनें-कुल 11 मिनट का वीडियो है ्

 

मुगलों को डकैत बताने पर ऋचा चड्ढा ने की आलोचना

बता दें कि हाल ही में मनोज का एक वीडियो आया था जिसमें उन्होंने मुगलों को ‘डकैत’ बता दिया। अब मनोज की इस बात के बाद से बड़ा विवाद खड़ा हो गया। कई लोगों ने उनकी बात पर समर्थन जताया तो वहीं कुछ लोगों ने उन पर आरोप लगाया कि वो नफरत फैला रहे हैं। अब हाल ही में इस मुद्दे पर अभिनेत्री ऋचा चड्ढा और नीरज घायवान की प्रतिक्रिया सामने आई हैं। उन्होंने ट्वीट कर मनोज मुंतशिर की आलोचना की है। हालांकि मनोज ने निर्देशक कबीर खान की बात का जवाब दिया था।

बता दें कि सोशल मीडिया पर मनोज मुंतशिर ने एक वीडियो अपलोड किया था जिसका टाइटल है- ‘आपके पूर्वज कौन थे’। ये वीडियो 24 अगस्त को अपलोड किया गया जिसमें उन्होंने कई सवाल उठाए थे। अब मुगलों को लेकर कही गई बातों पर यूजर्स और सेलेब्स की तरफ से प्रतिक्रिया आने लगी।

विवेक अग्निहोत्री – फोटो : सोशल मीडिया
एक तरफ फिल्ममेकर विवेक रंजन अग्निहोत्री समेत कई लोगों ने उनका समर्थन दिखाया तो वहीं फिल्म निर्देशक कबीर खान ने मुगलों को राष्ट्र निर्माता बता दिया। कबीर खान का कहना था कि, ‘हम फिल्मों में अगर मुगलों को एक खलनायक के तौर पर दिखाते हैं तो हमें इसकी वजह भी बताना चाहिए’। बता दें कि इस वीडियो में कहा गया है कि देश के लोगों का ब्रेन वॉश किया गया है और देश को लूटने वाले डकैतों के नाम पर सड़कों का नामकरण किया गया।

अब उनके इस वीडियो पर अभिनेत्री ऋचा चड्ढा ने ट्वीट किया है। उन्होंने कहा कि, ‘ये बेहद खराब कविता है और बिल्कुल भी देखने लायक नहीं हैं। उन्हें पेन नेम छोड़ देना चाहिए क्यों आप ऐसे किसी नाम से पैसा कमाते हो जिससे आपको नफरत है’। दरअसल वो उनके पेन नेम मुंतशिर की बात कर रही थीं।

ऋचा के अलावा नीरज घायवान ने भी मनोज मुंतशिर की आलोचना की। बता दें कि मनोज मुंतशिर ने इस वीडियो में कहा था कि, ‘इतिहास के किताबों से भगवानों को हटा दिया गया और मुगल शासकों को शामिल किया गया जबकि उन्होंने धर्म के नाम पर लोगों का कत्ल किया था’। अब ये मुद्दा और आगे ही बढ़ता जा रहा है और लोगों की प्रतिक्रियाएं सामने आ रही हैं।

 

कौन हैं मनोज मुंतशिर, जिसने बाहुबली जैसी फिल्म के डॉयलॉग लिखे

मनोज मुंतशिर (Manoj Muntashir) का असली नाम मनोज शुक्ला है. 27 फरवरी 1976 को यूपी की अमेठी में जन्में मनोज आज किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं. अपनी कलम की बदौलत आज वे आज पूरी दुनिया में अपनी छाप छोड़ चुके हैं.

फिल्म बाहुबली के हिंदी के डॉयलॉग्स लिखे
इलाहाबाद आकाशवाणी में पहली नौकरी मिली
अनूप जलोटा ने पहला काम दिया

जिनकी फितरत है मस्ताना और कलम की स्याही में है इश्क भरा. जिनके प्रेम गीत लबों पर चढ़ते ही सीधे दिल में बस जाते हैं. जी हां, हम बात कर रहे हैं मनोज मुंतशिर की. मनोज मुंतशिर, एक ऐसा नाम जिसकी कलम ने बॉलीवुड में एक नया इतिहास रच दिया. हिंदुस्तानी सिनेमा की नई क्रांति ‘बाहुबली’ (Bahubali) के तमाम हिंदी डायलॉग मनोज ने ही लिखे हैं. ‘रुस्तम’ फिल्म का मशहूर गाना ‘तेरे संग यारां’ इन्हीं की कलम से निकला है. बहुत कम लोग जानते होंगे कि मनोज मुंतशिर (Manoj Muntashir) का असली नाम मनोज शुक्ला है. 27 फरवरी 1976 को यूपी की अमेठी में जन्में मनोज आज किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं. अपनी कलम की बदौलत आज वे आज पूरी दुनिया में अपनी छाप छोड़ चुके हैं.

‘देवसेना को किसी ने हाथ लगाया तो समझो बाहुबली की तलवार को हाथ लगाया’ और ‘औरत पर हाथ डालने वाले का हाथ नहीं काटते, काटते हैं उसका गला’ ये वो डॉयलॉग्स हैं, जिनकी वजह से बाहुबली बच्चे-बच्चे की पसंदीदा फिल्म बन गई. अमेठी जैसे छोटे शहर में जन्म लेने के बाद भी मनोज ने बड़े-बड़े सपने देखना नहीं छोड़ा. उन्होंने अपनी कलम से ही अपने सपनों तक पहुंचने लिए रास्ता तैयार किया. उन्होंने मीडिया को एक बार बताया था कि वे जब यूपी से मुंबई पहुंचे थे, तो उनके पास ज्यादा पैसा नहीं था. वे कहते हैं कि जूते फटे पहन कर आकाश पर चढ़े थे सपने हर दम हमारी औकात से बड़े थे.

ऐसे बीता बचपन

मनोज के पिता पेशे से किसान थे, और मां प्राइमरी स्कूल में टीचर. पिता की कोई खास आमदनी थी नहीं, और मां की सैलरी महज 500 रुपए थी. इसके बाद भी उनके माता-पिता ने उन्हें कॉन्वेंट में पढ़वाया. बचपन से ही उन्हें लिखने का शौक था. उन्होंने खुद कहा था कि जब वे 7 या 8 क्लास में थे तब दीवान-ए-ग़ालिब किताब पढ़ी थी. उस वक्त उन्हें उर्दू नहीं आती थी, इसलिए उस किताब को समझना मुश्किल था. उस किताब को समझने के लिए उर्दू सीखना जरूरी था. फिर एक दिन मस्जिद के नीचे से 2 रुपए की उर्दू की किताब खरीदी, उसमें हिंदी के साथ उर्दू लिखी हुई थी. उसी किताब से उर्दू सीखा. जिसके बाद गाने और शायरी लिखनी शुरू कर दी.

135 रुपये में मिली थी पहली नौकरी

साल 1997 में मनोज की इलाहाबाद आकाशवाणी में नौकरी लगी. पहली सैलरी के रूप में 135 रुपए मिले थे. जब वे अपने सपनों को साकार करने के लिए मुंबई पहुंचे, तो उनके पास ज्यादा पैसे नहीं थे. उनके जूते तक फटे थे. करीब डेढ़ साल मुंबई के अंधेरी में रातें फुटपाथ पर कटीं. कई दिनों तक भूखे भी रहना पड़ा. इसके बाद भी उन्होंने हार नहीं मानी. साल 1999 में अनूप जलोटा ने पहला काम दिया. उन्होंने एक भजन लिखने को दिया. इससे पहले उन्होंने कभी भजन नहीं लिखा था. इसलिए इस काम में उन्हें काफी दिक्कत हुई. इस काम के लिए अनूप जलोटा ने मनोज को 3000 रुपये का चेक दिया. वो कहते हैं कि इतनी बड़ी रकम देखकर मैं खुद को अमीर समझने लगा था.

कौन बनेगा करोड़पति के लिरिक्स लिखे

16 साल पहले स्टार टीवी के एक अधिकारी ने मनोज के काम से प्रभावित होकर उन्हें मिलने के लिए बुलाया. उसने जब मनोज मुंतशिर से अमिताभ बच्चन से मुलाकात करवाने की बात कही तो उन्हें लगा कि मजाक कर रहा है. फिर वो व्यक्ति उन्हें एक होटल ले गया, जहां अमिताभ बच्चन से उनकी मुलाकात हुई. 20 मिनट की मीटिंग के बाद उनका सलेक्शन हुआ और साल 2005 में कौन बनेगा करोड़पति में उनके लिरिक्स सुनने को मिले.

 

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