लद्दाख: चीन कैसे हटा पीछे और क्यों, बताया ले.जनरल जोशी ने

चीन से सीमा पर कैसे निपटा भारत, सेना ने पहली बार दी बड़ी जानकारी

दिल्ली18 फ़रवरी 2021। पूर्वी लद्दाख में भारत और चीन के बीच नौ महीने तक चले तनाव के दौरान कई बार ऐसे मौक़े आए, जब दोनों देशों की सेनाएँ युद्ध की कगार पर पहुँच गई थीं.

हालाँकि, कई दौर की कमांडर लेवल की बातचीत और तनाव कम करने की कोशिशों के बाद आख़िरकार दोनों देशों ने ऐलान किया कि 10 फरवरी से चरणबद्ध तरीक़े से भारत और चीन की सेनाएँ डिसइंगेजमेंट करेंगी.

लद्दाख में दोनों देशों की सेनाओं के डिसइंगेजमेंट का मतलब यह है कि दोनों देशों की सेनाएँ, जो पिछले क़रीब नौ महीने से एक-दूसरे के सामने मोर्चाबंदी करके खड़ी हुई थीं, वे अपनी पोजिशंस से हट रही हैं.

डिसइंगेजमेंट की प्रक्रिया शुरू होने के बाद पहली बार भारतीय सेना के किसी मौजूदा अधिकारी ने इस मामले पर विस्तृत रूप से जानकारी दी है.

भारतीय सेना के नॉर्दन आर्मी कमांडर लेफ़्टिनेंट जनरल योगेश कुमार जोशी ने मंगलवार को कई मीडिया संस्थानों को इंटरव्यू दिए हैं. इनमें उन्होंने पिछले नौ महीने से दोनों देशों के बीच जारी सैन्य तनाव को लेकर कई अहम जानकारियाँ दी हैं.

पैंगोंग झील के पूर्वी किनारे पर डिसएंगेजमेंट समझौते में अपने बंकर हटाते चीनी जवान

31 अगस्त को दोनों देश युद्ध की कगार पर आ गए थे
सीएनएन न्यूज18 को दिए इंटरव्यू में ले.जनरल वाई के जोशी ने कहा है कि इस दौरान वैसे तो कई मर्तबा दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ा, लेकिन मुख्य तौर पर पिछले साल 31 अगस्त को भारत और चीन की सेनाएँ युद्ध की कगार पर पहुँच गई थीं.

इस इंटरव्यू में उन्होंने बताया है कि पिछले साल 29 और 30 अगस्त को भारतीय सेना के रणनीतिक रूप से बेहद अहम कैलाश रेंज की चोटियों पर क़ब्ज़ा करने के बाद ऐसे हालात बन गए थे, जहाँ पर युद्ध होना तकरीबन तय लग रहा था.

वे बताते हैं कि भारतीय सेना के इन चोटियों पर क़ब्ज़ा करने के अचानक क़दम से चीन की सेना अवाक रह गई थी और यह उसके लिए रणनीतिक तौर पर एक बड़ा झटका था.

उन्होंने बताया है कि इसके बाद 31 अगस्त को चीनी पीएलए (पीपुल्स लिबरेशन आर्मी) ने कैलाश रेंज पर भारतीय क़ब्ज़े में आई चोटियों पर काउंटर ऑपरेशन की कोशिश की. जोशी कहते हैं कि इसके चलते हालात बेहद तनावपूर्ण हो गए थे.

भारतीय सेना की किस रणनीति के कारण चीन पीछे हटने को मजबूर हुआ

भारत चीन

इसी इंटरव्यू में उन्होंने कहा है कि गलवान की घटना ने चीज़ों को बिल्कुल बदल दिया. वे कहते हैं, “हमें खुली छूट दे दी गई कि हम अपनी मर्ज़ी के मुताबिक़ ऑपरेशंस चला सकते हैं.”

वे कहते हैं कि उस वक़्त से सेना को ये छूट मिल गई कि जैसे ही उन्हें हालात बिगड़ते दिखाई दें, वे ट्रिगर दबा सकते हैं.

लेकिन, जोशी ये भी कहते हैं, “गोली चलाने के लिए किसी साहस की ज़रूरत नहीं होती है. उस वक़्त सबसे मुश्किल काम गोली न चलाने का साहस पैदा करना ही था. हम तकरीबन युद्ध के हालात पर पहुँच गए थे.”

’45 चीनी सैनिकों की मौत’

इस इंटरव्यू में ले.जनरल जोशी ने ये भी बताया है कि गलवान घाटी में भारतीय और चीनी सेनाओं के बीच हुई झड़प में चीनी सेना के कितने सैनिक हताहत हुए थे.

उन्होंने कहा है कि इस घटना में तकरीबन 45 चीनी सैनिक मारे गए थे.

यह पहला मौक़ा है, जब आर्मी ने गलवान झड़प में मरने वाले चीनी सैनिकों की संख्या के बारे में एक आँकड़ा दिया है.

हालाँकि, अभी तक चीन ने आज तक इस बारे में कोई आधिकारिक जानकारी नहीं है कि इस झड़प में उसके कितने सैनिक मारे गए थे.

लद्दाख़ में भारतीय सैनिक

सेना की बहादुरी से बदल गया गेम

नॉर्दर्न कमांड के प्रमुख ले. जनरल वाई के जोशी ने ये भी बताया कि कैसे पिछले साल मई में चीन ने पैंगॉन्ग झील के उत्तरी किनारे पर फ़िंगर 4 तक भारतीय इलाक़े पर क़ब्ज़ा कर भारत को चौंका दिया था.

वे कहते हैं कि इसके बाद कई दफ़ा दोनों देशों के कोर कमांडरों के बीच बातचीत हुई, लेकिन चीन वापस हटने को राज़ी नहीं था.

इसके बाद सेना को निर्देश दिया गया कि वे कुछ ऐसा करें, जिससे चीन को भारतीय शर्तें मानने के लिए राज़ी किया जा सके.

जोशी कहते हैं कि तब सेना ने 29 और 30 अगस्त को कैलाश रेंज की रणनीतिक रूप से अहम चोटियों पर क़ब्ज़ा कर लिया.

इससे चीन रणनीति रूप से बड़े नुक़सान के हालात में पहुँच गया, और आख़िरकार चीन को डिसइंगेजमेंट के लिए राज़ी होना पड़ा.

डिसइंगेजमेंट की प्रक्रिया कैसे होगी?

इंडियन एक्सप्रेस को दिए इंटरव्यू में ले.जनरल जोशी ने कहा है कि डिसइंगेजमेंट की प्रक्रिया में चार चरण शामिल हैं. हर चरण की लगातार निगरानी और वेरिफ़िकेशन की जाएगी.

वे कहते हैं कि डिसइंगेजमेंट के पहले चरण में आर्मर और मैकेनाइज्ड यूनिट्स को मोर्चों से पीछे हटाया जाएगा.

दूसरे और तीसरे स्टेप में नॉर्थ और साउथ किनारों से इंफेंट्री पीछे हटेंगी और चौथे स्टेप में कैलाश रेंज से डिसइंगेजमेंट होगा.

वे बताते हैं कि दूसरे चरण का डिसइंगेजमेंट पूरा होने वाला है.

ले. जनरल जोशी कहते हैं कि जब चारों स्टेप पूरे हो जाएँगे और दोनों तरफ़ से फ़्लैग मीटिंग्स के ज़रिए इसकी पुष्टि हो जाएगी, तो इसके 48 घंटे के भीतर एक कोर कमांडर लेवल की मीटिंग होगी.

इस मीटिंग में डिसइंगेजमेंट के चरण की रूपरेखा पर बात होगी. इसमें बाक़ी के मसलों के समाधान निकाले जाएँगे.

क्या फ़िंगर 4 से 8 तक सेना के पेट्रोल नहीं कर पाने से घाटा हुआ है? इस सवाल पर ले. जनरल जोशी कहते हैं कि अप्रैल 2020 तक भारतीय सेना फ़िंगर 3 पर धन सिंह थापा पोस्ट पर क़ब्ज़ा किए हुए थी और यही भारतीय सेना की आख़िरी पोस्ट थी

भारत चीन

वे कहते हैं कि पीएलए फ़िंगर 4 तक पेट्रोल करती थी. हम मानते हैं कि एलएसी फ़िंगर 8 तक है, जबकि चीनी मानते हैं कि एलएसी फ़िंगर 4 तक है.

अप्रैल 2020 के बाद पीएलए ने फ़िंगर 4 तक के इलाक़े पर क़ब्ज़ा कर लिया था, उन्होंने वहाँ, हेलिपैड, बंकर, टेंट और दूसरे स्ट्रक्चर तैयार कर लिए थे.

इंडियन एक्सप्रेसव्यू में लेफ्टिनेंट जनरल जोशी कहते हैं कि दोनों पक्ष अप्रैल 2020 की स्थिति में पहुँच गए हैं. वे कहते हैं, “इसमें हमारी आख़िरी पोस्ट धन सिंह थापा पोस्ट होगी और पीएलए फ़िंगर 8 के पूर्व पर वापस लौट जाएगी.”

वे कहते हैं कि दोनों पक्षों ने फ़िंगर 4 से 8 तक पेट्रोलिंग नहीं करने का फ़ैसला किया है, क्योंकि दोनों पक्षों के इस इलाक़े को लेकर अपने-अपने दावे हैं.

“कुछ लोग भ्रम पैदा कर रहे”

ले. जनरल जोशी ने ये भी कहा है कि कुछ लोग यह भ्रम पैदा कर रहे हैं कि इस इलाक़े (फ़िंगर 4 से 8 तक) को बिना पेट्रोलिंग वाले इलाक़े के तौर पर स्वीकार करके हमें पीएलए के मुक़ाबले घाटा हुआ है.

वो कहते हैं, “असलियत यह है कि यह हमारे लिए एक बड़ी सफलता है. पहला, पीएलए हमारी दावे वाली रेखा यानी फ़िंगर 8 के पीछे चली गई है. दूसरा, यह एग्रीमेंट उनके फ़िंगर 4 तक पेट्रोलिंग के फ़ायदे को ख़ारिज करता है. बल्कि असलियत तो यह है कि पीएलए हमारे दावों वाले इलाक़े पर कोई सैन्य या दूसरी गतिविधि नहीं कर सकती है. तीसरा, वे हमारे दावे वाले इलाक़ों से अप्रैल 2020 के बाद बनाए गए सभी स्ट्रक्चर्स को ख़त्म कर रहे हैं. इस तरह से इस पूरी ज़मीनी हक़ीक़त को सही संदर्भ में समझना ज़रूरी है.”

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