ज्ञान:सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम,2000:धारा7,7A,8 और 9–इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड्स संरक्षण,ऑडिट,प्रकाशन एवं सीमाएं

सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 7, 7A, 8 और 9 – इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड्स का संरक्षण, ऑडिट, प्रकाशन और सीमाएं

सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 (Information Technology Act, 2000) का प्रमुख उद्देश्य भारत में डिजिटल लेन-देन, इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड्स (Electronic Records), और इलेक्ट्रॉनिक हस्ताक्षरों (Electronic Signatures) को वैधानिक मान्यता देना है। यह अधिनियम सरकारी प्रक्रियाओं को डिजिटल रूप में करने का मार्ग प्रशस्त करता है। अधिनियम का अध्याय III विशेष रूप से “इलेक्ट्रॉनिक गवर्नेंस” (Electronic Governance) से संबंधित है। इस अध्याय की धारा 4 से लेकर धारा 9 तक की व्यवस्थाएं इस दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।

धारा 4 से 6 तक हम पहले ही समझ चुके हैं कि इलेक्ट्रॉनिक रूप में दस्तावेज़ जमा करना, हस्ताक्षर करना और सरकार द्वारा उन्हें स्वीकार करना किस प्रकार कानूनी रूप से मान्य है। अब हम धारा 7, 7A, 8 और 9 के माध्यम से यह जानेंगे कि इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड्स को कितने समय तक कैसे रखा जाए, उनका ऑडिट कैसे किया जाए, उनका प्रकाशन कैसे हो और किन सीमाओं के अंतर्गत इन्हें लागू किया जा सकता है। धारा 7: इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड्स का संरक्षण (Section 7: Retention of Electronic Records)

धारा 7 यह स्पष्ट करती है कि यदि किसी कानून में यह आवश्यक है कि किसी दस्तावेज़, रिकॉर्ड या सूचना को किसी निर्धारित अवधि तक संरक्षित (Retain) किया जाना चाहिए, तो उस आवश्यकता को इलेक्ट्रॉनिक रूप में पूरा किया जा सकता है, यदि कुछ शर्तें पूरी की जाएं। पहली शर्त यह है कि उस इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड में दी गई सूचना ऐसी होनी चाहिए जो भविष्य में उपयोग के लिए सुलभ (Accessible) हो और उपयोग की जा सके। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि केवल डिजिटल रूप में स्टोर किया गया डेटा बेकार न हो, बल्कि जरूरत पड़ने पर उसका दोबारा उपयोग संभव हो।

दूसरी शर्त यह है कि वह इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड उसी प्रारूप में संरक्षित किया गया हो जिसमें उसे मूलतः (Originally) तैयार, भेजा या प्राप्त किया गया था, या किसी ऐसे प्रारूप में हो जिसे यह सिद्ध किया जा सके कि वह मूल सूचना को सही रूप में दर्शाता है। यह शर्त रिकॉर्ड की प्रामाणिकता (Authenticity) बनाए रखने के लिए आवश्यक है। तीसरी शर्त यह है कि उस इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड में यह जानकारी भी उपलब्ध होनी चाहिए कि वह रिकॉर्ड कहां से आया (Origin), कहां गया (Destination), और उसे किस तारीख और समय पर भेजा या प्राप्त किया गया। हालांकि, एक अपवाद भी है – यदि कोई सूचना केवल इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड को भेजने या प्राप्त करने की तकनीकी प्रक्रिया के दौरान स्वतः (Automatically) उत्पन्न हुई हो, तो उस पर यह शर्त लागू नहीं होगी। उपधारा (2) यह स्पष्ट करती है कि यदि किसी अन्य कानून में विशेष रूप से यह उल्लेख हो कि दस्तावेज़ इलेक्ट्रॉनिक रूप में ही संरक्षित किए जाएं, तो इस धारा की सीमाएं उस पर लागू नहीं होंगी। इसका तात्पर्य यह है कि विशेष कानूनों में यदि अलग प्रावधान हों, तो वे मान्य होंगे। धारा 7A: इलेक्ट्रॉनिक रूप में संरक्षित दस्तावेजों का ऑडिट (Section 7A: Audit of Electronic Records) यह धारा एक नया प्रावधान है जिसे बाद में अधिनियम में जोड़ा गया। यह कहती है कि यदि किसी कानून में दस्तावेज़ों, रिकॉर्ड्स या सूचनाओं का ऑडिट (Audit) करने की व्यवस्था है, तो वही व्यवस्था इलेक्ट्रॉनिक रूप में संरक्षित और प्रोसेस की गई सूचनाओं पर भी लागू होगी। इसका अभिप्राय यह है कि केवल इस आधार पर कि दस्तावेज़ डिजिटल रूप में हैं, ऑडिट से उन्हें छूट नहीं मिल सकती। जैसे कागज़ी रिकॉर्ड्स की जांच होती है, वैसे ही इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड्स की भी जांच की जा सकती है और की जानी चाहिए। इससे पारदर्शिता और उत्तरदायित्व (Accountability) को सुनिश्चित किया गया है। धारा 8: इलेक्ट्रॉनिक गजट में प्रकाशन (Section 8: Publication in Electronic Gazette) धारा 8 इस बात को लेकर है कि यदि किसी कानून में यह आवश्यक हो कि कोई नियम, अधिसूचना, उपविधि, आदेश आदि राजपत्र (Official Gazette) में प्रकाशित किया जाए, तो वह आवश्यकता इलेक्ट्रॉनिक गजट (Electronic Gazette) में प्रकाशित करके भी पूरी मानी जाएगी। इसका मतलब यह है कि सरकार यदि किसी नियम या अधिसूचना को डिजिटल रूप से गजट में प्रकाशित करती है, तो वह प्रकाशन वैध और प्रभावी माना जाएगा। इस धारा में एक और महत्वपूर्ण प्रावधान यह है कि जब किसी दस्तावेज़ को राजपत्र में या इलेक्ट्रॉनिक गजट में प्रकाशित किया जाता है, तो उसकी प्रकाशन की तिथि वह मानी जाएगी जो सबसे पहले किसी भी रूप में गजट में प्रकाशित की गई हो। इससे विवाद की स्थिति में यह स्पष्ट रहेगा कि किसी नियम का प्रभाव कब से लागू हुआ। यह प्रावधान प्रशासनिक प्रक्रिया को डिजिटल रूप में ले जाने का मार्ग प्रशस्त करता है और इससे जनता को नियमों की जानकारी त्वरित रूप से प्राप्त हो सकती है। धारा 9: इलेक्ट्रॉनिक रूप में दस्तावेज़ों की अनिवार्यता का अधिकार नहीं (Section 9: No Right to Insist on Electronic Form) धारा 6, 7 और 8 में यह व्यवस्था की गई है कि दस्तावेज़ों को इलेक्ट्रॉनिक रूप में स्वीकार या जारी किया जा सकता है। लेकिन धारा 9 यह स्पष्ट करती है कि इन धाराओं का यह मतलब नहीं निकाला जा सकता कि कोई व्यक्ति यह मांग करे कि सरकार या उसकी कोई संस्था केवल इलेक्ट्रॉनिक रूप में ही दस्तावेज़ों को स्वीकार या जारी करे। सरल शब्दों में कहा जाए तो यह प्रावधान संतुलन बनाए रखता है। यह जनता को डिजिटल विकल्प तो देता है लेकिन सरकारी संस्थाओं पर यह बाध्यता नहीं डालता कि वे केवल इलेक्ट्रॉनिक रूप में ही कार्य करें। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि जिन लोगों को अभी भी कागज़ी दस्तावेज़ों की आवश्यकता है, वे वंचित न हों। यह विशेष रूप से भारत जैसे देश में आवश्यक है जहां डिजिटल साक्षरता (Digital Literacy) अभी भी एक बड़ी चुनौती है। धारा 7 से 9 तक के प्रावधान यह दर्शाते हैं कि सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम डिजिटल दस्तावेज़ों की मान्यता, संरक्षा, पारदर्शिता और व्यावहारिकता को संतुलित करता है। एक ओर यह इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड्स को लंबे समय तक सहेजने और उनका ऑडिट करने की अनुमति देता है, वहीं दूसरी ओर यह प्रशासन और जनता को यह विकल्प भी देता है कि वे आवश्यकता अनुसार पारंपरिक तरीकों को भी अपनाए रख सकें। इन धाराओं का प्रभावी क्रियान्वयन ई-गवर्नेंस की सफलता की कुंजी है और यह भारत को डिजिटल युग में आगे ले जाने में सहायक सिद्ध होता है।

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