आईएमए की 11 को विरोध प्रदर्शन, हड़ताल आयुर्वेद विरोधी मानसिकताडॉ. पसबोला

*आई० एम० ए०(IMA) का विरोध प्रदर्शन और हड़ताल की घोषणा आयुर्वेद विरोधी मानसिकता का प्रदर्शन: डॉ० डी० सी० पसबोला*

देहरादून 08 दिसंबर। केन्द्र सरकार के आयुष मंत्रालय ने आयुर्वेद के पोस्ट ग्रेजुएट्स डॉक्टर्स को सर्जरी करने के अधिकार से संबंधित अधिसूचना जारी कर दी है जिसके अनुसार आयुर्वेद चिकित्सक अब 58 प्रकार की सर्जरी कर सकेंगें। हालांकि इसकी घोषणा साल 2016 में ही कर दी गयी थी। जहां इस फैसले का आयुर्वेद चिकित्सकों ने स्वागत किया है एवं उनमें हर्ष है, वहीं अधिकांश एलोपैथिक चिकित्सकों एवं उनकी एसोसिएशन आई एम ए को सरकार का यह फैसला नागवार गुजरा है। बिना पूरा प्रकरण जाने समझे ही उनके द्वारा आयुर्वेद विरोधी मानसिकता का इस बार भी प्रदर्शन करते हुए 8 दिसम्बर को विरोध प्रदर्शन एवं 11 दिसम्बर को हड़ताल की घोषणा कर दी गयी ।

*राजकीय आयुर्वेद एवं यूनानी चिकित्सा सेवा संघ, उत्तराखण्ड( पंजीकृत) के प्रदेश मीडिया प्रभारी डॉक्टर डी० सी० पसबोला ने भी जहां आयुष मंत्रालय के फैसले का हृदय से स्वागत किया है, वहीं आई एम ए के विरोध एवं हड़ताल के फैसले को आयुर्वेद विरोधी सोच का परिचायक एवं अनुचित बताया है। संघ के उपाध्यक्ष डॉक्टर अजय चमोला ने भी आई एम ए के फैसले की घोर आलोचना करते हुए दुर्भाग्यपूर्ण एवं निन्दनीय बताया है। वहीं इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आई एम ए) के धरने और हड़ताल संबधी फैसले का नेशनल इंटिग्रेटेड मेडिकल एसोसिएशन(आयुष) ने भी कड़ी आलोचना की है। आयुष एसोसिएशन(NIMA) के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉक्टर आर० पी० पाराशर ने कठोर चेतावनी देते हुए कहा कि यदि आई एम ए ने अपना अड़ियल रवैया नहीं छोड़ा तो एलौपैथिक डॉक्टर्स का व्यावसायिक बहिष्कार किया जाएगा। उन्होंनें आई एम ए के पदाधिकारियों और सदस्यों के दोहरेपन की निंदा करते हुए कहा है कि दिन में जो हास्पिटल्स एवं नर्सिंग होम के मालिक आयुर्वेदिक डॉक्टरों के पास आकर उनके यहां मरीज रेफर करने की प्रार्थना करते हैं, रात को वही आई एम ए की मीटिंग में विरोध प्रदर्शन की बात करने लगते हैं, जो कि सही नहीं है।

यहां तक उन की एलोपैथी नाम ही खुद होम्योपैथी के जनक सैमुअल हैनीमैन ने दिया है, और 17 वीं शताब्दी तक एलोपैथी की कोई पहचान नहीं थी। जिस समय एलोपैथी का जन्म हुआ था, उससे भी 3000 वर्ष पूर्व आचार्य सुश्रुत, जिन्हें कि फादर आफ सर्जरी भी कहा जाता है, ने काशी में सर्जरी का पहला विश्वविद्यालय खोला था। उस समय भी भारत में आंख, कान, नाक, मुख के आपरेशन होते थे। फिर भी एलोपैथ्स द्वारा अपने देश की चिकित्सा पद्धति को हीन भाव से देखना एवं विरोध करना निन्दनीय एवं अक्षम्य है। असल में लगता है कि ऐलोपैथ सर्जरी में अपना एकाधिकार बनाये रखना चाहते हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *