सूरज तक नहीं जाना तो इसरो का आदित्य एल वन मिशन करेगा क्या?

India Aditya L1 Mission Not Going To Sun Know Isro Plan
सूरज पर नहीं जा रहा है भारत का आदित्य L1 मिशन, फिर इसरो का प्‍लान क्‍या है?
इसरो आदित्‍य एल1 मिशन लॉन्‍च करने को तैयार है। सितंबर में इसे लॉन्‍च किया जाएगा। हालांकि, इसके गंतव्य  को लेकर लोगों में भ्रम है। लोगों को लगता है कि यह सूरज की यात्रा करेगा। यह सच नहीं है। सूरज की यात्रा के बजाय यह एक विशेष बिंदू पर जाएगा।

मुख्य बिंदु
आदित्य एल1 मिशन इसरो लॉन्‍च करने को तैयार
मिशन की लोकेशन को लेकर हो रही है लोगों में उलझन
सूरज की यात्रा के बजाय एक विशेष बिंदू पर जाएगा यान
नई दिल्‍ली 28 अगस्त: भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) सितंबर में आदित्य एल1 मिशन लॉन्च करने को तैयार है। यह उसका पहला अंतरिक्ष-आधारित सोलर ऑबजर्वेटरी अंतरिक्ष यान है। इस महत्वाकांक्षी परियोजना का उद्देश्य सूरज के व्यवहार और अंतरिक्ष मौसम पर इसके असर के बारे में जानकारी प्राप्त करना है। हालांकि,ऐसा लगता है कि इसके गंतव्य को लेकर उलझन है। सूरज के नाम पर रखा गया आदित्य एल1 वास्तव में सूर्य की यात्रा नहीं करेगा। ऐसे में सवाल है कि फिर यह जा कहां रहा है। सूरज पृथ्वी से 15 करोड़ किलोमीटर है। सूरज पर जाने के बजाय आदित्य एल1 पृथ्वी से लगभग 15 लाख किलोमीटर दूर सूर्य-पृथ्वी प्रणाली के लैग्रेंज बिंदु 1 (एल1) के चारों ओर एक प्रभामंडल कक्षा में स्थित होगा।

क्‍या है इसरो का प्‍लान?

यह एक स्‍ट्रैटेजिक लोकेशन है जो आदित्य एल1 को ग्रहणों से बाधित हुए बिना लगातार सूरज का निरीक्षण करने में समर्थ बनाएगा। इससे वैज्ञानिकों को वास्तविक समय में सौर गतिविधियों और अंतरिक्ष मौसम पर उसके प्रभाव का अध्ययन करने में मदद मिलेगी।

L1 बिंदु अंतरिक्ष में खास लोकेशन है। यहां सूर्य और पृथ्वी का गुरुत्‍वाकर्षण छोटी वस्तुओं को उनके साथ चलने के लिए आवश्यक सेंट्रिपेटल फोर्स के बराबर होता है। यह संतुलन अंतरिक्ष यान को न्यूनतम ऊर्जा खर्च के साथ अपनी स्थिति बनाए रखने में मदद करता है। पृथ्वी-सूर्य प्रणाली का L1 पॉइंट सूर्य का निर्बाध दृश्य प्रदान करता है। अभी यहां सोलर और हेलिओस्फेरिक ऑबजर्वेटरी सैटेलाइट SOHO तैनात है।

L1 पॉइंट पर कितने दिन में पहुंचेगा यान

लॉन्च के बाद आदित्य L1 मिशन को L1 पॉइंट के चारों ओर प्रभामंडल कक्षा (हैलो ऑर्बिट) तक पहुंचने में 100 से ज्‍यादा अर्थ डे लगेंगे। 1,500 किलोग्राम का सैटेलाइट विभिन्न उद्देश्यों के साथ सात साइंस पेलोड ले लाएगा। इसमें कोरोनल हीटिंग,सोलर विंड एक्‍सीलरेशन, कोरोनल मैग्नेटोमेट्री,निकट-यूवी सौर विकिरण की उत्पत्ति और निगरानी के अलावा फोटोस्फीयर,क्रोमोस्फीयर और कोरोना का निरंतर अवलोकन शामिल है। लेकिन यह इन्हीं तक सीमित नहीं है।

क्‍या है मिशन का उद्देश्य?

मिशन का एक प्रमुख उद्देश्य सौर वायु और अंतरिक्ष मौसम के निर्माण और संरचना के पीछे के कारणों का अध्ययन है। यह जानकारी देगा कि कोरोनल मास इजेक्शन (सीएमई) और सोलर फ्लेयर्स कैसे बनते हैं। यह अध्‍ययन सौर गतिशीलता के पीछे के रहस्यों और अंतरग्रहीय माध्यम पर उसके प्रभावों को उजागर करेगा।

आदित्य एल1 मिशन सूर्य और हमारे ग्रह पर इसके प्रभाव के बारे में हमारी समझ बढ़ाने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है। अंतरिक्ष यान जो डेटा जुटाएगा उससे अंतरिक्ष मौसम चालकों की समझ बढेगी। सूर्य की गतिशीलता और अंतरिक्ष मौसम के बारे में हमारी समझ में यह बड़ा बदलाव ला सकता है।

Former Isro Scientist Nambi Narayanan On Aditya L1 Mission Watch Video
सूरज पर ISRO कौन-सा रहस्य खोजेगा? पूर्व साइंटिस्ट नंबी नारायणन ने बताया कि मिशन का असली उद्देश्य

चंद्रयान-3 मिशन की सक्सेस के बाद भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) एक और मिशन जुट गया हैं। अब ISRO सूर्य पर जाने की तैयारी कर रहा है। इसरो 2 सितंबर को अपना सन मिशन लॉन्च करने जा रहा है। सूर्य की स्टडी के लिए यह पहला भारतीय मिशन होगा।

मुख्य बिंदु
ISRO 15 लाख किलोमीटर की दूरी पर सूर्य का अध्ययन करेगा
इस अध्ययन में सूर्य से जुड़े कई रहस्यों से भी पर्दा उठेगा
2 सितंबर को श्रीहरिकोटा से सुबह 11.50 बजे लॉन्च होगा मिशन

चांद के बाद ISRO सूरज पर क्या खोजने वाला है? बीते कुछ घंटों से यह सवाल हर देशवासी के मन में चल रहा है। इसरो के पूर्व वैज्ञानिक नंबी नारायणन ने इस सवाल का साफ-साफ जवाब दिया है। वैज्ञानिक नंबी नारायणन का कहना है कि ‘यह एक स्टडी प्रोजेक्ट है, इसरो 15 लाख किलोमीटर की दूरी पर सूर्य का अध्ययन होगा। ‘ इससे साफ है कि इसरो सूर्य का गहराई से अध्ययन करेगा, इस दौरान सूर्य से जुड़े उन रहस्यों से भी पर्दा उठेगा, जिन्हें मानव प्रजातियां कई सदियों से जानना चाहता है। सूर्य की स्टडी को यह पहला भारतीय मिशन होगा।
अंतरिक्ष क्षेत्र में निजी भागीदारी पर इसरो के पूर्व वैज्ञानिक नंबी नारायणन ने कहा, कि ‘यह एक अच्छी स्थिति है क्योंकि जब निजी कंपनी सामने आएंगी तो उन्हें फंडिंग ढूंढनी होगी। आपको सरकार से फंडिंग नहीं लेनी पड़ेगी। मुझे लगता है कि करदाताओं से हमेशा को टैक्स नहीं लिया जाना चाहिए, हमें विभिन्न एजेंसियों से पैसा इकट्ठा करना चाहिए जो इसमें अपना फायदा देखती हों।’

इससे पहले नंबी नारायण ने कहा है कि ‘पहले की सरकारों को इसरो पर भरोसा नहीं था,यही वजह है कि भारतीय स्पेस एजेंसी को पर्याप्त मात्रा में बजट नहीं दिया जाता था।’ इसरो के शुरुआती दिनों की बात करते  नंबी नारायण का एक वीडियो वायरल है। वीडियो भाजपा ने भी अपने सोशल मीडिया हैंडल पर शेयर किया है। वीडियो में पूर्व इसरो वैज्ञानिक कहते दिख रहे हैं कि ‘सरकारों ने इसरो को तब फंड दिया जब इसने अपनी साख स्थापित कर ली।’

कब लॉन्च होगा मिशन?

इसरो चंद्रयान-3 मिशन की सफलता के बाद अब सूर्य को करीब से जानने को 2 सितंबर को सुबह 11.50 बजे देश की पहली अंतरिक्ष-आधारित वेधशाला ‘आदित्य-एल1’ लॉन्च करेगा। इसरो ने कहा कि आदित्य-एल1 को भारतीय रॉकेट पीएसएलवी-एक्सएल से ले जाया जाएगा। अंतरिक्ष एजेंसी ने आंध्र प्रदेश में श्रीहरिकोटा स्थित अंतरिक्ष प्रक्षेपण केंद्र की गैलरी से प्रक्षेपण देखने को सामान्य जनों को पंजीकरण करने को आमंत्रित किया है।

What India Will Gain From Aditya L1 Next Mission Of Isro
सूरज की तरफ 15 लाख किलोमीटर जाएगा आदित्य एल-1, चंद्रयान-3 के बाद भारत के लिए क्यों महत्वपूर्ण है यह सूर्य मिशन

वैज्ञानिक प्रोफेसर ए. एन. रामप्रकाश ने बताया कि आदित्य एल-1 के साथ 7 पेलोड भी अंतरिक्ष में भेजे जाएंगे। ये पेलोड सूरज के प्रकाशमंडल, वर्णमंडल और सबसे बाहरी परत का अध्ययन करेंगे। सात में से चार पेलोड लगातार सूर्य पर नजर रखेंगे जबकि तीन पेलोड परिस्थितियों के हिसाब से कणों और मैग्नेटिक फील्ड का अध्ययन करेंगे।

वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि आदित्य एल -1 मिशन से अंतरिक्ष में मौसम की गतिशीलता,सूर्य के तापमान, पराबैगनी किरणों के धरती,खासकर ओजोन परत पर पड़ने वाले प्रभावों का अध्ययन किया जा सकेगा। आदित्य-एल1 मिशन को 2 सितंबर को भेजे जाने की संभावना है। यह सूर्य की स्टडी के लिए पहला भारतीय अंतरिक्ष मिशन होगा।
वैज्ञानिकों का मानना है कि मिशन में विभिन्न प्रकार का डाटा एकत्र किया जायेगा ताकि कोई ऐसी व्यवस्था बनायी जा सके कि तूफान की जानकारी मिलते ही अलर्ट जारी किया जा सके।

आदित्य एल1 मिशन को एक महत्वपूर्ण उपकरण सोलर अल्ट्रावायलेट इमेजिंग टेलीस्कोप (एसयूआईटी) को पुणे स्थित इंटर-यूनिवर्सिटी सेंटर फॉर एस्ट्रोनॉमी एंड एस्ट्रोफिजिक्स (आईयूसीएए) ने तैयार किया है। आईयूसीएए के वैज्ञानिक एवं एसयूआईटी के मुख्य अन्वेषक प्रोफेसर दुर्गेश त्रिपाठी ने बताया कि इसरो का सूर्य मिशन आदित्य एल-1 है जो धरती से सूरज की तरफ 15 लाख किलोमीटर तक जायेगा और सूरज का अध्ययन करेगा।

उन्होंने बताया कि सूरज से काफी मात्रा में पराबैंगनी किरणें निकलती है और इस टेलीस्कोप (एसयूआईटी) से 2000-4000 एंगस्ट्रॉम के तरंग दैर्ध्य की पराबैंगनी किरणों का अध्ययन किया जायेगा। त्रिपाठी ने बताया कि इससे पहले दुनिया में इस स्तर की पराबैंगनी किरणों का पहले अध्ययन नहीं किया गया है।

आदित्य एल-1
यह सूर्य का अध्ययन करने वाला भारत का पहला अंतरिक्ष मिशन होगा। इसका उद्देश्य सूर्य का निकट निरीक्षण, वातावरण और चुंबकीय क्षेत्र का अध्ययन करना है। इसके महत्व ऐसे भी समझा जा सकता है कि सोलर सिस्टम पर पड़ने वाले प्रभाव उपग्रह की कक्षा और उसके जीवन को बाधित कर सकते हैं। अंतरिक्ष के वातावरण को समझने को यह मिशन विशेष है।

गगनयान मिशन
मिशन में तीन अंतरिक्ष अभियान कक्षा में भेजे जाएंगे। दो मानवरहित, जबकि एक मानवयुक्त होगा। मिशन में एक महिला समेत तीन भारतीय स्पेस में जाएंगे। इस लॉन्च के साथ भारत अमेरिका, चीन, रूस जैसे देशों की श्रेणी में होगा। गगनयान 3 मिशन भारत का पहला मानव स्पेस मिशन होगा और इसे 2024 में लॉन्च करने की योजना है।

मंगलयान-2
पहले मंगलयान मिशन की सफलता के बाद इसके लॉन्च की घोषणा हुई थी। मिशन 2024 में लॉन्च हो सकता है। मिशन अपने साथ ऑर्बिटर,लेंडर,रोवर ले जाएगा। 2016 में इसरो और फ्रांस ने मंगलयान के निर्माण को करार किया था। 2018 में फ्रांस प्रोजेक्ट से बाहर हो गया। मिशन में 2030 में मंगल ग्रह पर सॉफ्ट लैंडिंग की भी योजना बनाई गई है।

NISAR
इस मिशन को इसरो और नासा में करार हुआ है। इसके जनवरी 2024 में लॉन्च होने की आशा है। NISAR एक लो अर्थ ऑब्जर्वेटरी मिशन हैं, जो हर 12 दिनों में एक बार पृथ्वी की मैपिंग करेगा। मकसद ‘पृथ्वी के पारिस्थितिक तंत्र, बर्फ द्रव्यमान को समझना है।

शुक्रयान-1
इसे 2024 के अंत तक लॉन्च करने की योजना है। यह ऑर्बिटर मिशन होगा। यह शुक्र ग्रह के चारों ओर बादलों के बावजूद उसकी सतह की जांच करेगा। मिशन में शुक्र ग्रह की भू-वैज्ञानिक और ज्वालामुखीय गतिविधि,हवा की गति की विशेषताओं की स्टडी होगी।

आदित्य-एल1
मिशन का लक्ष्य एल1 के चारों ओर की कक्षा से सूर्य का अध्ययन करना है। यह अंतरिक्ष यान सात पेलोड लेकर जाएगा, जो अलग-अलग वेव बैंड में फोटोस्फेयर (प्रकाशमंडल), क्रोमोस्फेयर (सूर्य की दिखाई देने वाली सतह से ठीक ऊपरी सतह) और सूर्य की सबसे बाहरी परत (कोरोना) का अवलोकन करने में मदद करेंगे।

आईयूसीएए के एक अन्य वैज्ञानिक प्रोफेसर ए. एन. रामप्रकाश ने बताया कि सूरज की ऊपरी सतह पर विस्फोट होते रहते हैं लेकिन यह कब होंगे और इसके प्रभाव क्या होंगे,इसकी सटीक जानकारी नहीं है…ऐसे में इस टेलीस्कोप का एक उद्देश्य इनका अध्ययन करना भी है। इसके लिए हमने एक आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) आधारित तत्व विकसित किया है जो इसका डाटा (विस्फोटों का) एकत्र कर उसका मूल्यांकन करेगा।

आदित्य एल1 को सूर्य-पृथ्वी की व्यवस्था के लाग्रेंज बिंदु 1 (एल1) के चारों ओर एक प्रभामंडल कक्षा में रखा जाएगा, जो पृथ्वी से लगभग 15 लाख किलोमीटर दूर है। यहां से सूर्य को बिना किसी व्यवधान या ग्रहण के लगातार देखने का लाभ मिलेगा।

इससे पहले कौन कौन गया सन मिशन पर?

भारत पहली बार सूरज पर रिसर्च करने जा रहा है. लेकिन अब तक सूर्य पर कुल 22 मिशन भेजे जा चुके हैं. इन मिशन को पूरा करने वाले देशों में अमेरिका, जर्मनी, यूरोपियन स्पेस एजेंसी शामिल है. सबसे ज्यादा मिशन नासा ने भेजे हैं. यूरोपियन स्पेस एजेंसी ने भी नासा के साथ मिलकर ही अपना पहला सूर्य मिशन साल 1994 में भेजा था. नासा ने अकेले 14 मिशन सूर्य पर भेजे हैं. नासा के पार्कर सोलर प्रोब नाम के एक व्यक्ति ने सूर्य के आसपास से 26 बार उड़ान भरी है. नासा ने साल 2001 में जेनेसिस मिशन लॉन्च किया था. इसका मकसद था सूरज के चारों तरफ चक्कर लगाते हुए सौर हवाओं का सैंपल लेना.

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