खुशखबरी आई आधी रात: ब्रिटेन को पछाड़ भारत विश्व की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था

ब्रिटेन को पछाड़ दुनिया की 5वीं सबसे बड़ी अर्थव्‍यवस्‍था बना भारत

नई दिल्ली 03 सितंबर।भारत ने ब्रिटेन को पीछे छोड़ द‍िया है। वह दुनिया की 5वीं सबसे बड़ी अर्थव्‍यवस्‍था बन गया है। ब्र‍िटेन ख‍िसककर छठे पायदान पर आ गया है। भारत के आगे अब सिर्फ अमेरिका, चीन, जापान और जर्मनी हैं। ब्रिटेन ने कभी भारत पर हुकूमत की है। भारत से पिछड़ना उसके ल‍िए बड़ा झटका है। ब्रिटेन इन द‍िनों कई तरह की दुश्‍वारियों से गुजर रहा है।

हाइलाइट्स
1-अब सिर्फ अमेरिका, चीन, जापान और जर्मनी से पीछे
2-एक दशक में 11वें से 5वीं सबसे बड़ी अर्थव्‍यवस्‍था बना
3-ब्रिटेन पर हुई दिक्‍कतें हावी, जीडीपी लगातार घटी |

नई दिल्‍ली 03 सितंबर: ब्रिटेन को पछाड़ भारत दुनिया की 5वीं सबसे बड़ी अर्थव्‍यवस्‍था बन गया है। उसके आगे अब सिर्फ अमेरिका, चीन, जापान और जर्मनी हैं। ब्रिटेन का भारत से पिछड़ना ब्रितानी सरकार के लिए बड़ा झटका है। वह इन द‍िनों कई तरह की दुश्‍वारियों से गुजर रही है। ब्रिटेन में ‘कॉस्‍ट ऑफ लिविंग’ लगातार बढ़ती जा रही है। इसके उलट ग्रोथ बेहद सुस्‍त है। दूसरी तरफ भारत दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ने वाली बड़ी अर्थव्‍यवस्‍थाओं में शुमार है। चालू वित्‍त वर्ष की पहली त‍िमाही (अप्रैल-जून) में भारत की अर्थव्‍यवस्‍था 13.5 प्रतिशत की गति से बढ़ी है।
इस साल भारत की अर्थव्‍यवस्‍था के 7 प्रतिशत की रफ्तार से बढ़ने के अनुमान हैं। MSCI इमर्जिंग मार्केट्स इंडेक्‍स में उसका वजन तिमाही में दूसरे नंबर पर रहा है। वह इस मामले में सिर्फ चीन से पीछे था। भारत पर कभी ब्रिटेन ने हुकूमत की है। 1947 से पहले तक भारत उसकी कॉलोनी हुआ करता था। 2021 के अंतिम तीन महीनों में भारत ने ब्रिटेन को मात दी है। अंतरराष्‍ट्रीय मुद्राकोष (IMF) के आंकड़ों के अनुसार, यह कैलकुलेशन अमेरिकी डॉलर पर आधारित है।

ब्र‍िटेन को नए प्रधानमंत्री की तलाश

यह खबर ऐसे समय आई है जब ब्रिटेन में नए प्रधानमंत्री को खोजने की कवायद तेज है। कंजर्वेजिट पार्टी के सदस्‍यों ने सोमवार को बोरिस जॉनसन का उत्‍तराधिकारी चुना। उम्‍मीद है कि विदेश मंत्री लिज ट्रस पूर्व वित्‍त मंत्री ऋषि सुनक को पीछे छोड़ देंगी। ब्रिटेन में चार दशकों में सबसे तेजी से महंगाई बढ़ी है। उस पर मंदी का संकट गहराता जा रहा है। बैंक ऑफ इंग्‍लैंड का कहना है कि 2024 तक यह स्थिति बनी रहेगी। ऐसे में जो कोई भी नया प्रधानमंत्री बनेगा उसके सामने कई चुनौतियां होंगी।

क‍ितनी बड़ी है भारत की अर्थव्‍यवस्‍था?

डॉलर एक्‍सचेंज रेट के हिसाब से नॉमिनल कैश टर्म्‍स में भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था का आकार मार्च तिमाही में 854.7 बिलियन डॉलर रहा। इसी आधार पर ब्रिटेन की अर्थव्‍यवस्‍था का साइज 816 अरब डॉलर था। आईएमएफ डेटाबेस और ब्‍लूमबर्ग टर्मिनल के हिस्टोरिकल एक्‍सचेंज रेट का इस्‍तेमाल करते हुए यह कैलकुलेशन किया गया।
कैश के मामले में दूसरी तिमाही में ब्रिटेन की जीडीपी सिर्फ 1 फीसदी बढ़ी है। इसमें महंगाई को एडजस्‍ट कर दिया जाए तो जीडीपी 0.1 फीसदी सिकुड़ी है। रुपये के मुकाबले पाउंड सटर्लिंग का प्रदर्शन डॉलर की तुलना में कमजोर रहा है। इस साल भारतीय करेंसी की तुलना में पाउंड 8 फीसदी कमजोर रहा है। इसके बाद भारत अब सिर्फ अमेरिका, चीन, जापान और जर्मनी से पीछे रह गया है। एक दशक पहले बड़ी अर्थव्‍यवस्‍थाओं में भारत 11वें पायदान पर था। वहीं, ब्रिटेन 5वें पायदान पर काबिज था।

विकसित देश बनने का बड़ा सपना तो हमने देख लिया, लेकिन ये पूरा कैसे होगा

71 वर्षीय मोदी ने भारत की आजादी के 75 साल पूरे होने पर 17वीं सदी के लाल किले की प्राचीर से अपने 83 मिनट के राष्ट्र के नाम संबोधन में कहा कि हमें अपने जीवनकाल में ही अगले 25 वर्षों में भारत को एक विकसित देश में बदलना होगा.

भारत की अर्थव्यवस्था लगातार मजबूती की राह पर है.

अगले 25 वर्षों में भारत के लिए क्या एक विकसित देश बनना वास्तविक रूप से संभव है? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हमारे और अपने साथ अपने उत्तराधिकारियों के लिए भी 2047 तक के लिए एक अत्यधिक महत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किया है. वैसे प्रधानमंत्री मोदी ने 2017 में भी साल 2022 तक भारत के विकसित देश बन जाने की बात कही थी.71 वर्षीय मोदी ने भारत की आजादी के 75 साल पूरे होने पर 17वीं सदी के लाल किले की प्राचीर से अपने 83 मिनट के राष्ट्र के नाम संबोधन में कहा कि हमें अपने जीवनकाल में ही अगले 25 वर्षों में भारत को एक विकसित देश में बदलना होगा.

मध्यम अर्थ व्यवस्था वाली लिस्ट में है भारत

हालांकि, फिलहाल विश्व बैंक ने भारत को निम्न-मध्यम आय वाली अर्थव्यवस्था की लिस्ट में रखा है. इसका अर्थ है कि वर्तमान में देश में प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय आय (GNI) $1,086 और $4,255 के बीच है. उच्च आय वाले देशों जैसे कि संयुक्त राज्य अमेरिका में प्रति व्यक्ति आय का यह आंकड़ा $13,205 या उससे अधिक है.बता दें कि 1,085 डॉलर प्रति व्यक्ति GNI वाले देश को निम्न-आय वाली अर्थव्यवस्था माना जाता है, तो $4,255 तक की कमाई वाले देशों को निम्न मध्यम-आय की श्रेणी में रखा जाता है. 13,205 डॉलर प्रति व्यक्ति तक सकल राष्ट्रीय आय वाले देशों को ऊपरी-मध्य-आय ग्रुप में गिना जाता है, जबकि $13,205 प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय आय से ऊपर का आंकड़ा रखने वाले देशों को उच्च-आय वाली अर्थव्यवस्था माना जाता है.

दुनिया की पांचवीं बड़ी अर्थव्यवस्था तो बना भारत लेकिन..

भारत दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बना है और मार्च 2023 में समाप्त होने वाले चालू वित्त वर्ष में इसके सात प्रतिशत से अधिक बढ़ने की उम्मीद है – जो इसे तेजी से बढ़ रही अर्थव्यवस्थाओं में प्रमुखता से खड़ा करती है.कई विशेषज्ञों का मानना है कि 2050 तक संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन के बाद भारत दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन सकता है. हालांकि इसकी प्रति व्यक्ति आय कम रह सकती है जिसका मौजूदा आंकड़ा 2,100 डॉलर है. इसकी वजह देश की बड़ी आबादी है. माना जा रहा है कि लगभग 1.4 बिलियन लोगों की जनसंख्या के साथ भारत के अगले वर्ष तक चीन को पार करते हुए दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला देश बन जाएगा.

जानें और आंकड़े

ब्रिटिश अर्थशास्त्री एंगस मैडिसन ने कहा कि विश्व अर्थव्यवस्था में भारत की हिस्सेदारी 1700 में जहां 24.4 प्रतिशत थी, वो 1950 में घटकर 4.2 प्रतिशत रह गई.1947 में जब अंग्रेजों ने भारत छोड़ा था, तब वह पहले वाला देश नहीं रह गया था. स्वतंत्र भारत में बनने वाली सरकारों ने उस गौरव को दोबारा हासिल करने के प्रयास किए लेकिन असफलता ही हाथ लगी. इस विफलता का श्रेय मुख्य रूप से भारत की आबादी को दिया गया, जिसमें ज्यादातर लोग गरीबी रेखा से नीचे थे. वहीं सरकारों ने भी चीन की तर्ज पर जनसंख्या को जनसांख्यिकीय लाभांश के रूप में नहीं देखा, जिसका प्रयोग देश को आगे बढ़ाने के रूप में किया जा सकता था.भ्रष्टाचार के चरम और अपर्याप्त तकनीकी प्रगति ने भी भारत के विकास की गति को धीमा कर दिया.इसके अलावा, देश की 70 प्रतिशत से अधिक जनता अभी भी प्राथमिक क्षेत्र (कृषि) में लगी हुई है. जबकि माध्यमिक (उद्योग) और तृतीयक (सेवाओं) में भी विशाल संभावनाओं को महसूस किया जाना चाहिए था.भारतीय अर्थव्यवस्था ने हाल के वर्षों में ही गति पकड़ी है. भारत की प्रति व्यक्ति आय 2000 के बाद से चौगुनी से अधिक हो गई है. तब यह आंकड़ा 500 डॉलर प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष का था.

ये इतना बड़ा मुद्दा क्यों है

1947 के बाद से, हमारे सकल घरेलू उत्पाद में 30 गुना की, तो प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद में 8 गुना वृद्धि हुई है. लेकिन विकास के ये आंकड़े इतने प्रभावशाली नहीं हैं कि हमें विकासशील से विकसित देश की श्रेणी में तेजी से आगे ले जा सकें.

भारत की उपलब्धियां:

1950-51 में भारत की जीडीपी 2.79 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर 2021-22 में अनुमानित रूप से 147.36 लाख करोड़ रुपये हो गई है. भारत की अर्थव्यवस्था वर्तमान में $ 3.17 ट्रिलियन पर है, जिसकी 2022 में दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की उम्मीद है.
भारत की प्रति व्यक्ति शुद्ध राष्ट्रीय आय (सकल घरेलू उत्पाद से घटाया गया मूल्यह्रास + विदेशी स्रोतों से आय) 1950-51 में 12,493 रुपये था. 2021-22 में यह बढ़कर 91,481 रुपये हो गया है.
1947-48 में जहां सरकार की कुल राजस्व प्राप्तियां 171.15 करोड़ रुपये थीं जो अब 2021-22 में बढ़कर 20,78,936 करोड़ रुपये हो गई हैं.
भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 1950-51 में 911 करोड़ रुपये से बढ़कर 2022 में 45,42,615 करोड़ रुपये हो गया है. इन आकड़ों के आधार अब भारत के पास दुनिया का पांचवां सबसे बड़ा विदेशी मुद्रा भंडार है.
भारत का खाद्यान्न उत्पादन जो 1950-51 में 50.8 मिलियन टन था, वह बढ़कर अब 316.06 मिलियन टन हो गया है.
देश में साक्षरता दर भी बढ़ा है. 1951 में यह 18.3 प्रतिशत था, जो अब बढ़कर 78 प्रतिशत हो गया है. महिलाओं में भी साक्षरता दर 8.9 प्रतिशत से बढ़कर 70 प्रतिशत से अधिक हो गया है.

लेकिन एक पेंच भी है

देश की प्रगति के ये आंकड़े भले ही अपने आप में कितने प्रभावशाली दिखें, एक विकसित राष्ट्र का टैग मिलने की आकांक्षा को पूरा करने के लिए पर्याप्त नहीं हैं.विकसित देशों में, आबादी के एक बड़े हिस्से के पास गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाओं और परिवहन जैसी बुनियादी आवश्यकताओं की पहुंच है. उन देशों में समृद्धि स्पष्ट रूप से नजर आती है जिसके प्रतीक बड़ी कारों और उच्च आवासीय और वाणिज्यिक टावरों के अलावा मजबूत पर्यावरण संरक्षण और नागरिक मानदंडों का पालन भी है.इसके ठीक विपरीत, हमारे गांवों में लाखों लोग अब भी भूखे सोते हैं और स्कूलों, अस्पतालों, सड़कों जैसी तमाम बुनियादी सुविधाओं से वंचित हैं. शहरों की स्थिति भी बेहतर नहीं है जहां कचरे के पहाड़ खड़े रहते हैं तो अपर्याप्त पाइप्ड सीवरेज नेटवर्क के अलावा पानी और बिजली की कमी का संकट भी आए दिन रहता है.

नेता ‘माई-बाप’ की राजनीति में उलझे

विकसित पश्चिमी देशों में जहां लोग अपने जीवन को बेहतर बनाने की मांगों पर वोट देते हैं, या वैश्विक व्यवस्था में अपने देशों की प्रतिष्ठा में बढ़ोतरी की मांग रखते हैं, वहीं भारत में राजनेता अभी भी ‘माई-बाप’ की राजनीति में ही उलझे हुए हैं.अंतरराष्ट्रीय संस्थानों द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले वर्गीकरण में विकसित देश और विकासशील देश अलग हो जाते हैं. संयुक्त राष्ट्र, विश्व बैंक, विश्व व्यापार संगठन और विश्व आर्थिक मंच जैसी एजेंसियां विकसित और विकासशील देशों को क्लब करने के लिए अपने संकेतकों का उपयोग करती हैं.हमें यह याद रखना चाहिए कि हम एक निम्न-आय वाले देश से एक निम्न-मध्यम-आय वाले देश की श्रेणी में शामिल हुए हैं और एक लकीर को लांघना हमारे लिए आसान नहीं रहा है. यह एक लंबी प्रक्रिया रही जिसका हिस्सा हम भी बनना चाहते थे. हम निश्चित रूप से एक ऐसा लोकतंत्र बने रहना चाहते हैं, जहां हम पर कुछ भी थोपा न जाए. बेशक यह हासिल करना और भी मुश्किल हो जाता है.

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