त्रिवेंद्र के उत्तराधिकारियों में गढ़वाली राजपूत सबसे आगे

त्रिवेंद्र के बाद किसे मुख्यमंत्री बनाएगी BJP ? रेस में आगे चल रहे हैं ये नाम

देहरादून 09मार्च। उत्तराखंड में पिछले तीन दिन से चल रही राजनीतिक उथल-पुथल का आज मंगलवार शाम को विराम लग गया है। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने राज्यपाल बेबी रानी मौर्य को त्यागपत्र दे दिया। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र के त्यागपत्र के बाद अब सांसद अनिल बलूनी, कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज सहित केंद्रीय मंत्री व उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री डॉक्टर रमेश पोखरियाल निशंक दौड में सबसे आगे थे। लेकिन, मंगलवार दोपहर बाद अचानक से ही पुष्पकर धामी और राज्य उच्च शिक्षा मंत्री डॉक्टर धन सिंह रावत का नाम भी चर्चा में आ गया। सरकार की ओर से विशेषतौर से हेलीकॉप्टर भेजकर डॉक्टर रावत को देहरादून बुलाया गया है। सूत्रों की मानें तो उत्तराखंड के पर्यवेक्षक व झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह मंगलवार शाम राजधानी देहरादून पहुंच गए हैं। बुधवार को भाजपा की विधानमंडल की मीटिंग भाजपा कार्यालय में 10 बजे प्रस्तावित भी है। बैठक में सांसदों, विधायकों व प्रदेश प्रभारी की मौजूदकी में प्रदेश के अगले मुख्यमंत्री के नाम की घोषणा हो सकती है।

सूत्रों की मानें तो त्रिवेंद्र सिंह रावत के मुख्यमंत्री पद से त्यागपत्र देने के बाद भाजपा हाईकमान किसी गढ़वाली ठाकुर को ही कुर्सी देने के मूड़ में है। अगर ऐसा होता है तो प्रदेश के अगले मुख्यमंत्री के नामों की अटकलों के बीच प्रदेश के उच्च शिक्षा मंत्री डॉक्टर धन सिंह रावत बाजी मार सकते हैं। वहीं अगर, उत्तराखंड में पहली बार हाईकमान की ओर से उपमुख्यमंत्री की कुर्सी पर मुहर लगती है तो खटीमा से विधायक पुष्कर सिंह धामी का चुना जाना लगभग तय माना जा रहा है। चूंकि, अगले साल 2022 में उत्तराखंड में विधानसभा चुनाव भी हैं, ऐसे में भाजपा हाईकमान गढ़वाली व कुमाऊंनी ठाकुरों को सरकार में नेतृत्व देकर बैलेंस करने की पूरी कोशिश करेगी। ऐसा करने से भाजपा को आगामी विधानसभा चुनाव में फायदा मिलना भी तय माना जा रहा है।

उच्च शिक्षा मंत्री डॉक्टर धन सिंह रावत भी आरएसएस से जुड़ने के साथ ही सभी की पहली पसंद हैं। पिछले कई सालों से आरएसएस और पार्टी संगठन में पकड़ बनाए हुए डॉक्टर रावत की राजनीति में बहुत ही सरल पहचान है। वह किसी भी विशेष ग्रुप में शामिल नहीं है। डॉक्टर रावत की विशेषता है कि वह किसी भी ग्रुप में आसानी से मिल जाते हैं। डॉक्टर रावत मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र की भी पहली पसंद हैं। प्रदेश में त्रिवेंद्र सरकार के चार साल के कार्यकाल में उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। सरकारी कॉलेजों में इंटरनेट की सुविधा से लेकर साइंस स्टूडेंट्स के लिए हाईटैक लैब बनाने की महत्वपूर्ण पहल भी की है। शांत स्वभाव के लिए पहचान रखने वाले डॉक्टर रावत पहली बार विधानसभा तक पहुंचे हैं। उत्तराखंड में पहली बार उपमुख्यमंत्री पद की अटकलों के बीच खटीमा विधायक पुष्कर सिंह धामी का नाम बहुत ही ज्यादा उछल रहा है। वह दूसरी बार खटिमा से व‍िधायक बने हैं। सूत्रों की मानें तो अपने सहज स्वभाव के लिए पहचान रखने वाले धामी पूर्व मुख्यमंत्री व महाराष्‍ट्र के राज्‍यपाल भगतसिंह कोश्‍यारी के करीबी हैं। कोश्यारी मुख्यमंत्री थे तो धामी उनके विशेष कार्याधिकारी थे।

उत्तराखंड से सांसद अनिल बलूनी 2018 में राज्यसभा के लिए चुने गए थे। पिछले कई दशकों से वह भाजपा और आरएसएस में काफी सक्रिय रहे हैं। सांसद बनने के बाद बलूनी ने उत्तराखंड के लिए कई योजनाओं को लागू कराया था। केंद्र व उत्तराखंड सरकार के बीच तालमेन बनाने के लिए बलूनी को काफी उपयोगी माना जाता है। चाहे रेल प्रोजेक्ट्स हो या फिर हाईवे निर्माण की बात हो, बलूनी ने केंद्र से कई कल्याणकारी योजनाओं को लाकर उत्तराखंड को सौंपी है। सांसद अनिल बलूनी विगत दिनों कैंसर से पीड़ित थे और मुंबई के एक अस्पताल में विगत दिनों उनका इलाज भी चला था।

कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज की राजनीति में बहुत पकड़ है। 2009 में कांग्रेस से भाजपा शामिल हुए महाराज को त्रिवेंद्र सरकर में कैबिनेट मंत्री की कुर्सी भी सौंपी गई है। 2017 में जब भाजपा की सरकार प्रदेश में बन रही थी उस वक्त भी सतपाल महाराज के नाम की मुख्यमंत्री बनने की काफी चर्चाएं हुई थी। लेकिन, भाजपा हाईकमान ने मुख्यमंत्री की कुर्सी त्रिवेंद्र सिंह रावत को सौंप दी।

उत्तराखंड के अगले मुख्यमंत्री की रेस में दो सांसद भी है। हरिद्वार से सांसद व केंद्रीय शिक्षा मंत्री डॉक्टर रमेश पोखरियाल निशंक सहित नैनीताल सांसद अजय भट्ट के नाम की भी चर्चा है। निशंक उत्तराखंड के मुख्यमंत्री भी रह चुके हैं जबकि भट्ट ने भाजपा प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी भी संभाली है और वह पहली बार संसद तक पहुंचे हैं। गौर करने वाली बात है कि अगर किसी सांसद को मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंपी जाती है तो सरकार को छह महीने के अंदर उपचुनाव कराना होगा जबकि अगले साल 2022 में उत्तराखंड में विधानसभा चुनाव भी हैं।

धर्मांध रहे कि राजधानी देहरादून में दिल्ली से विशेषतौर से भेजे गए पर्यवेक्षक रमन सिंह की अध्यक्षता में शनिवार को कोर कमेटी की बैठक आयोजित की गई थी। बैठक की रिपोर्ट सिंह ने भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को सौंपी थी। रिपोर्ट के आधार पर ही मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र के भाग्य का फैसला तय हुआ था। सूत्रों की मानें तो उत्तराखंड में असंतुष्ट भाजपा नेताओं, आपसी तालमेल की कमी सहित बेलगाम होती ब्यूरोक्रेसी सहित मंत्रिमंडल विस्तार में देरी को प्रमुखता से रिपोर्ट में उजागर किया गया था।

सोमवार को नई दिल्ली में रात्रि विश्राम के बाद मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत मंगलवार करीब 10.30 बजे जौलीग्रांट एयरपोर्ट पहुंचे। जौलीग्रांट एयरपोर्ट पहुंचने के बाद मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र ने किसी से कुछ भी बात नहीं की और वह कुछ भी बात करने से बचते रहे। एयरपोर्ट से त्रिवेंद्र सीधे ही मुख्यमंत्री आवास के लिए रवाना हो गए हैं। मुख्यमंत्री आवास जाने के दौरान वह अपने विधानसभा क्षेत्र डोईवाला से होकर गुजरे थे। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र के दून पहुंचने पर समर्थकों में जोश भरा हुआ था और मुन्ना चौहान उनके साथ छाया की तरह लगे रहे। वहीं दूसरी ओर, गढ़ी कैंट स्थित मुख्यमंत्री आवास में भी समर्थकों का भारी समूह उमड़ा हुआ था। हालांकि, कोई भी विधायक तो नहीं पहुंचा लेकिन दर्जाधारी मंत्रियो की मौजदूगी बनी हुई थी।

मुख्यमंत्री आवास के बाहर भारी संख्या में मौजूद समर्थक त्रिवेंद्र के समर्थन में नारे भी लगाए थे। उल्लेखनीय है कि त्रिवेंद्र सिंह रावत के सोमवार दिल्ली दौरे के दौरान पार्टी हाईकमान से मिलने का मौका नहीं मिला था। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत सोमवार देर शाम राज्यसभा सांसद अनिल बलूनी के घर मुलाकात के लिए पहुंचे थे। करीब डेढ़ घंटे तक चली बैठ में दोनों नेताओं ने उत्तराखंड में चल रही राजनीतिक उथल-पुथल पर चर्चा की। बैठक के बाद मुख्यमंत्री ने भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के घर मुलाकात भी की। यहां, दोनों नेताओं ने उत्तराखंड में मचे राजनीतिक भूचाल पर चर्चा की थी।

जब से उत्‍तराखंड बना तब से हर मुख्‍यमंत्री की है यही कहानी

उत्तराखंड के इतिहास में यह पहली बार नहीं है जब सरकार का चेहरा बदलने की बात हो रही है.
यह बड़ा अजीब इत्तेफाक है साल 2017 में जिस सरकार को उत्तराखंड के इतिहास में सबसे ज्यादा सीटें मिली यानी कि 70 में से 57 वह सरकार भी राजनीतिक अस्थिरता की ओर बढ़ती दिख रही है. दरअसल उत्तराखंड के इतिहास में यह पहली बार नहीं है जब सरकार का चेहरा बदलने की बात हो रही है. 9 नवंबर 2000 को उत्तर प्रदेश से अलग होकर पहाड़ी राज्य उत्तरांचल बना था. इस सरकार के पहले मुखिया बने नित्यानंद स्वामी. शपथ ग्रहण के दिन से ही स्वामी सरकार पर अस्थिरता के बादल मंडराने लगे थे. मंच पर खूब नारेबाजी हुई और हल्ले गुल्ले के बीच गठित हुई सरकार चंद महीने भी पूरे नहीं कर पाई कि चुनाव आते-आते बीजेपी ने पार्टी के सीनियर नेता भगत सिंह कोश्यारी को प्रदेश की कमान सौंप दी गई.

जब एनडी त‍िवारी की सरकार बदलने के ल‍िए भी व‍िधायकों ने लगाए थे द‍िल्‍ली के चक्‍कर

2002 में कोश्यारी के नेतृत्व में चुनाव हुए और बीजेपी चुनाव हार गई. जीत कर आई कांग्रेस की सरकार के मुखिया बने एनडी तिवारी. कांग्रेस सरकार में पार्टी अध्यक्ष हरीश रावत ने कांग्रेस को जिताने में खासी मेहनत की थी, लेकिन जब कुर्सी तिवारी को गई तो कांग्रेस में भी सत्ता संघर्ष शुरू हो गया. हालांकि एनडी तिवारी सरकार राज्य की पहली सरकार थी, जिसने अपने कार्यकाल के 5 साल पूरे किए लेकिन इन 5 सालों में ऐसे कई मौके आए जब विधायक दिल्ली की ओर भागे. सरकार बदलने की बात हुई और खुद तत्कालीन मुख्यमंत्री तिवारी ने मुख्यमंत्री नहीं रहने की इच्छा जताई.
खंडूरी की राह भी नहीं थी आसान
2007 विधानसभा चुनाव के बाद बीजेपी की सरकार आई और पार्टी के मुखिया बने मेजर जनरल (रिटायर्ड) बीसी खंडूरी लेकिन खंडूरी की राह भी आसान नहीं रही। 2009 के लोकसभा चुनाव में खराब प्रदर्शन के बाद खंडूरी को जाना पड़ा और मुख्यमंत्री के तौर पर रमेश पोखरियाल निशंक की ताजपोशी हुई। इससे पहले कि निशंक अपना कार्यकाल पूरा कर पाते पार्टी में एक बार फिर खंडूरी को गद्दी सौंप दी. उनकी अगुवाई में 2012 के विधानसभा चुनाव हुए और खंडूरी खुद अपनी सीट हार गए. पार्टी के नेताओं का कहना है कि खंडूरी की हार उनकी हार नहीं थी बल्कि पार्टी के कुछ लोगों ने उनको मिलजुल को चुनाव हारवाया.

विजय बहुगुणा भी बमुश्किल डेढ़ साल अपना कार्यकाल पूरा कर पाए

बहरहाल बीजेपी की सरकार चली गई और कांग्रेस जीती और सत्ता संघर्ष के बीच विजय बहुगुणा जो वक्त विधायक भी नहीं थे, वह मुख्यमंत्री बनाए गए. बहुगुणा बमुश्किल डेढ़ साल भी अपना कार्यकाल पूरा कर पाए और 2013 में केदारनाथ की भीषण आपदा और इसके बाद सरकार की जो देशभर में फजीहत हुई उसका संज्ञान लेते हुए कांग्रेस आलाकमान ने तब बहुगुणा की विदाई कर दी.

हरीश रावत की सरकार भी पूरा नहीं कर सकी अपना कार्यकाल

बहुगुणा की जगह उनके धुर विरोधी हरीश रावत 2014 में मुख्यमंत्री बनाए गए लेकिन रावत अपना कार्यकाल पूरा कर पाते. उससे पहले ही उनकी पार्टी में भगदड़ मच गई और एक बड़ा धड़ा विजय बहुगुणा, हरक सिंह रावत और दूसरे नेताओं के साथ 2016 में बीजेपी में शामिल हो गया और इस तरीके से 2017 में जो विधानसभा चुनाव में कांग्रेस में बुरी तरह से हार गई. लेकिन दिलचस्प बात यह है जब देश भर में मोदी लहर चल रही थी तो उसका असर उत्तराखंड में भी चला.

2017 में बीजेपी को मिली सबसे बड़ी जीत

2017 के चुनाव में उत्तराखंड के आज तक के संसदीय इतिहास में सबसे बड़ी जीत बीजेपी को मिली। 70 विधानसभा सीटों में 57 सीटें बीजेपी की झोली में आ गई. इतने बड़े मैंडेट के साथ सत्ता में आई बीजेपी के मुखिया बने त्रिवेंद्र सिंह रावत. बीजेपी सत्ता में तो आ गई लेकिन पार्टी के अंदर सत्ता संघर्ष जारी रहा अब जो ताजा घटनाक्रम उत्तराखंड में बना हुआ है वह कहीं ना कहीं इस ओर इशारा कर रहा है कि छोटे प्रदेश में पिछले 20 सालों में राजनीतिक अस्थिरता यहां की नियति बन गई है.
केंद्रीय मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक का नाम भी चर्चाओं में है. निशंक राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री भी रहे हैं. वर्तमान में वे हरिद्वार से सांसद हैं. निशंक की संघ और पार्टी दोनों में अच्छी पकड़ है. उत्तराखंड में भी उनका अच्छा खासा प्रभाव है.
बीजेपी में प्रदेश महामंत्री सुरेश भट्ट भी हाईकमान की लिस्ट में हो सकता है. भट्ट इससे पहले हरियाणा बीजेपी में दस साल तक महामंत्री संगठन जैसे महत्वपूर्ण पद पर रहे हैं. वे उत्तराखंड के कुमाउ के रहने वाले हैं. संघ की पृष्ठिभूमि से हैं. उत्तराखंड में प्रदेश बीजेपी में डेढ़ साल तक महामंत्री का पद सुरेश भट्ट के लिए खाली रखा गया था. ऐसे में सुरेश भट्ट भी आलाकमान की पसंद हो सकते हैं. उनके नाम पर संघ भी हरी झंडी दे सकता है.
इधर महाराष्ट्र के राज्यपाल एवं उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी के नाम की भी चर्चा है. बीजेपी यदि किसी नए मेंबर को मुख्यमंत्री के तौर पर उतारती है तो उसे चुनाव में भी दिक्कत नहीं होगी. वैसे भी सल्ट विधानसभा में उपचुनाव होने हैं. ऐसी सूरत में बीजेपी इस सीट से चुनाव लड़ सकती है.

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