मत:’फारेस्ट गंप’ की महानता में ही डूबेगी उसकी नकल ‘लाल सिंह चड्ढा’

फॉरेस्ट गंप की महानता में डूबेगी आमिर की लाल सिंह चड्ढा, 5 शिकायतें गौर करने लायक

अनुज शुक्ला

फॉरेस्ट गंप की बॉलीवुड रीमेक ‘लाल सिंह चड्ढा’ बनकर तैयार है। फिल्म 11 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस के मौके पर पूरे भारत में रिलीज होगी। बॉलीवुड फिल्म टॉम हैंक्स स्टारर फॉरेस्ट गंप की रीमेक लाल सिंह चड्ढा बनने की घोषणा के साथ चर्चा में है। फिल्म का ट्रेलर और विजुअल्स सामने आ गए हैं। वैसे भी, फॉरेस्ट गंप अब तक की सबसे महान फिल्मों में से एक है, इसलिए अधिकांश दर्शक फिल्म और इसकी सामग्री से अच्छी तरह परिचित हैं। फॉरेस्ट गंप की अपनी विरासत इतनी महान है कि इसे एक तरह से आमिर खान की फिल्म के लिए सबसे बड़ी चुनौती के रूप में रखा गया है। फॉरेस्ट गंप की महानता आमिर को सिनेमाघरों में किसी और चीज से ज्यादा खतरा है। अगर लाल सिंह चड्ढा बॉक्स ऑफिस पर डूबता है, तो हिंदू मुस्लिम जैसी चीजें टॉम हैंक्स की फिल्म से ज्यादा योगदान देंगी। और तुलना करना स्वाभाविक और निश्चित है।

1)अमेरिका और भारत की समयावधि में अंतर

फॉरेस्ट गंप एक शारीरिक रूप से अक्षम बच्चे की कहानी कहता है। बच्चा अपने पैरों पर चलने में असमर्थ है, लेकिन एक दिन वह न केवल अपने पैरों पर खड़ा होता है बल्कि एक अद्भुत रेसर भी प्रतीत होता है। सेना में शामिल होता है और एक सैनिक के रूप में सबसे कठिन अभियानों में भाग लेता है। वास्तव में, फॉरेस्ट गंप एक बच्चे की जीवन यात्रा के साथ-साथ एक अमेरिका के रूप में एक राष्ट्र की यात्रा को दर्शाता है।

कहने की जरूरत नहीं है कि एक व्यक्ति के जीवन की तरह, राष्ट्र की यात्रा के सभी खट्टे और मीठे अनुभव भी फिल्म के माध्यम से सामने आते हैं। अमेरिकी समाज की तमाम बुराइयों में असंतोष नजर आ रहा है. बच्चों के यौन शोषण की क्रूरता, जातिवाद, लिंग भेद और पुरुष वर्चस्व को दिखाया गया है। एक युद्ध देश और उसके समाज को कैसे प्रभावित करता है – पूरी ईमानदारी के साथ दिखाया गया है। अमेरिका की तरह भारत के भी बनने या बिगड़ने का अपना एक सफर है।

फॉरेस्ट गंप और लाल सिंह चड्ढा की तुलना स्वाभाविक है।

फॉरेस्ट गंप अपनी बनावट में एक त्रुटिहीन फिल्म है। जबकि लाल सिंह चड्ढा के विजुअल्स में फिलहाल ऐसी कोई छूट नहीं है, जिसका जिक्र किया जाए. कई समाजशास्त्री और फिल्म विश्लेषक लाल सिंह चड्ढा को इसी वजह से फॉरेस्ट गंप से कमजोर फिल्म मानते हैं। लोगों के मुताबिक टॉम हैंक्स की फिल्म में जिस तरह अमेरिकी समाज की कमियों को दिखाया गया है-लाल सिंह चड्ढा में उनका मिलना लगभग नामुमकिन है. बॉलीवुड की मास फिल्मों में असली बोल्डनेस कभी देखने को नहीं मिलती।

2) फॉरेस्ट गंप और लाल सिंह चड्ढा की कहानी में मौलिकता का अंतर

फॉरेस्ट गंप एक राष्ट्र की यात्रा में अपने स्वयं के निर्णयों की आलोचनात्मक रूप से व्याख्या करता है। उदाहरण के लिए, वहां के समाज पर वियतनाम जैसे सामाजिक-आर्थिक सुधारों और युद्ध के प्रभाव की जांच करने का प्रयास किया गया है। कई अन्य बड़ी राजनीतिक घटनाओं का भी उल्लेख मिलता है। स्वतंत्रता के बाद, एक राष्ट्र के रूप में भारत के अपने चरण भी हैं।

ऐसा लगता है कि बॉलीवुड फिल्म निर्माता चीजों की आलोचनात्मक व्याख्या से डरते हैं। जब भी सामाजिक-राजनीतिक व्याख्याओं की कोशिश की गई है, विवाद सामने आए हैं। शास्त्री की हत्या, चीन के साथ पाकिस्तान के युद्ध, आपातकाल, बांग्लादेश के विभाजन में देश की भूमिका, उदारवाद, गठबंधन की राजनीति की शुरुआत और क्षेत्रीय दलों का उदय, इंदिरा-राजीव गांधी की हत्या, मंडल आंदोलन, बाबरी विध्वंस आदि। , लाल सिंह चड्ढा उनसे बचने की कोशिश दिखाते हैं।

लाल सिंह चड्ढा की कहानी का फ्रेम टाइम आजादी के बाद, शायद 1980 के बाद देखा जाता है। क्योंकि फिल्म में चीन या पाकिस्तान के साथ स्पष्ट युद्धों के बजाय, कारगिल युद्ध का संदर्भ दिखाया गया है, जिसे राजनीतिक परेशानियों में डाले बिना दिखाने में कोई समस्या नहीं है। . शेष संदर्भ दिखाई नहीं दे रहे हैं। हो सकता है मेकर्स ने उन्हें ट्रेलर का हिस्सा न बनाया हो। ऐसा भी हो सकता है कि विवादित विषयों को छोड़ दिया गया हो।

यदि ऊपर वर्णित घटनाओं को फिल्म में गंभीर रूप से नहीं लिया जाता है, तो यह कहना दुख नहीं होना चाहिए कि आमिर की फिल्म की कहानी फॉरेस्ट गंप की तरह मूल नहीं है।

3) टॉम हैंक्स और आमिर खान के बीच अभिनय में अंतर

1995 में आई फॉरेस्ट गंप ने कई ऑस्कर अवॉर्ड जीते। इसमें से एक को टॉम हैंक्स ने गम्प की मुख्य भूमिका के लिए जीता था। टॉम हैंक्स को हॉलीवुड का सबसे बेहतरीन अभिनेता माना जाता है। एक अभिनेता के तौर पर उनकी फिल्मों का अपना बेंचमार्क होता है। माना जाता है कि आमिर खान भी टॉम हैंक्स की परंपरा के अभिनेता हैं। आमिर पर हॉलीवुड के एक अभिनेता की छाप साफ दिखाई दे रही है।

अब लाल सिंह चड्ढा के ट्रेलर में आमिर की परफॉर्मेंस और फॉरेस्ट गंप में टॉम हैंक्स की परफॉर्मेंस पर नजर डालें तो दोनों कलाकारों के काम में काफी अंतर है। गम्प के किरदार में टॉम हैंक्स पूरी तरह से ओरिजिनल लगते हैं। वहीं ट्रेलर में कई जगह आमिर की एक्टिंग साफ नजर आ रही है. आमिर आंखें उठाकर और अजीब तरीके से अपना चेहरा खींचे हुए नजर आ रहे हैं। जैसे वे किसी भोले-भाले किरदार को जबरन जीने की कोशिश कर रहे हों। उनका अभिनय मौलिक नहीं लगता।

 

आमिर ने अब तक कई फिल्मों में दमदार किरदारों से दर्शकों को चौंका दिया है, लेकिन वह फॉरेस्ट गंप में टॉम हैंक्स की तुलना में लाल सिंह चड्ढा में एक नौसिखिए अभिनेता के रूप में नजर आते हैं। शायद फिल्म में उनकी एक्टिंग को विस्तार से देखा जा सकता है।

 

4) करीना कपूर और रॉबिन राइट के अभिनय में अंतर

एक्टिंग के मामले में ठीक यही बात करीना कपूर खान के अभिनय में नजर आती है. भले मौलिक ना लगे मगर आमिर अपने किरदार के किए पिछली फिल्मों से हटकर नए मैथड का इस्तेमाल तो करते दिखते हैं हालांकि करीना अपनी पुरानी फ़िल्मी किरदारों में से ही किसी एक की पिच पर नजर आती हैं. करीना जो किरदार कर रही हैं वह फॉरेस्ट गंप का दूसरा सबसे महत्वपूर्ण किरदार है. एक ऐसी लड़की जिसका बचपन सेक्सुअल अब्यूज में झुलसा है और वह नशे की लत में है.

लड़की की जिंदगी में कोई मकसद नजर नहीं आता. वह एक असहनीय दर्द से पीड़ित है और इसी वजह से हिप्पियों की तरह हमेशा अंजान और गुमनाम सफ़र में नजर आती है. मगर लड़की को फॉरेस्ट के लिए ख़ास लगाव है. कहीं भी करीना के चेहरे पर किरदार की पीड़ा, मानसिक उलझने और उसका बेल्लौसपन नजर नहीं आता. कई जगह तो करीना आम प्रेम कहानियों वाली हीरोइन नजर आती हैं. जबकि फॉरेस्ट गंप में रॉबिन राइट ने इसी किरदार को बेहतरीन तरीके से जिया है.

5) अद्वैत चंदन और रोबर्ट जेमेकिस के निर्देशन में अंतर

अद्वैत चंदन आमिर के पसंदीदा निर्देशक हैं. दोनों ने इससे पहले सीक्रेट सुपरस्टार के लिए साथ काम किया था. फॉरेस्ट गंप का निर्देशन रॉबर्ट रॉबर्ट ज़ेमेकिस ने किया था. रॉबर्ट जैसा असर लाल सिंह चड्ढा में में नहीं दिखता. कई मर्तबा लाल सिंह चड्ढा बॉलीवुड की एक फ़ॉर्मूला फिल्म नजर आती है.

लाल सिंह चड्ढा के लिए फॉरेस्ट गंप के बेंचमार्क से पार पाना ही सबसे बड़ी चुनौती होगी।

 

लाल सिंह चड्ढा हॉलीवुड मूवी फॉरेस्ट गम्प की कमजोर रिमेक साबित होगी

लाल सिंह चड्ढा व्यक्ति फॉरेस्ट गम्प की कहानी को बेशक दोहरा लेगा लेकिन साथ में राष्ट्र और समाज की जो यात्रा चलती है उसे दिखा पाना आसान नहीं होगा.

दिलीप मंडल

फॉरेस्ट गम्प और लाल सिंह चड्ढा का पोस्टर | फोटो – सोशल मीडिया

आमिर खान और किरण राव लाल सिंह चड्ढा बना रहे हैं. आमिर खान और करीना कपूर इसमें लीड रोल में हैं और ये फिल्म 11 अगस्त को रिलीज हो रही है. फिल्म 1994 में बनी हॉलीवुड की बहुचर्चित फिल्म फॉरेस्ट गम्प का ऑफिशियल रिमेक है. फॉरेस्ट गम्प को छह ऑस्कर मिले हैं और ये सर्वकालिक श्रेष्ठ मूवी की लिस्ट में शुमार होती है. इसलिए आमिर खान की फिल्म लाल सिंह चड्ढा को लेकर भी बहुत ज्यादा उम्मीदें हैं.

मेरा मानना है कि लाल सिंह चड्ढा कई कारणों से फॉरेस्ट गम्प की ऊंचाई को नहीं छू पाएगी. इसलिए नहीं कि आमिर खान कोई कमतर एक्टर हैं. न ही इसलिए कि इस फिल्म के डायरेक्टर में दम नहीं है. ऐसा इसलिए होगा क्योंकि फॉरेस्ट गम्प एक मुश्किल और बेहद साहसिक मूवी है. इसका कथानक ऐसा है कि इसकी नकल आसान नहीं है. खासकर भारत के सामाजिक, सांस्कृतिक माहौल में ऐसी फिल्म बना पाना मुश्किल है.

फॉरेस्ट गम्प एक अमेरिकी बच्चे/युवा की कहानी है जो रीढ़ की हड्डी की समस्या के कारण चल नहीं पाता था. साथ ही वह मानसिक रूप से भी स्मार्ट लोगों की श्रेणी में नहीं था. यह एक व्यक्ति के अदम्य साहस, संघर्ष से कमजोरियों पर विजय पाने, उसकी मासूमियत और प्रेम की कहानी है. फिल्म अगर सिर्फ यही होती तो आमिर खान या कोई भी अच्छा एक्टर आसानी से इसको कॉपी कर लेता.

लेकिन फॉरेस्ट गम्प इसके साथ ही अमेरिकी राष्ट्र की भी यात्रा है. शारीरिक रूप से असमर्थ एक बच्चे के जीवन यात्रा राष्ट्र की जीवन यात्रा से जुड़कर चलती है और यही बात इस फिल्म को खास बनाती है. दिलचस्प बात ये है कि अमेरिकी राष्ट्र की जिस यात्रा को ये फिल्म दिखाती है वह कतई गौरवशाली नहीं है. अमेरिका के जिन तीन दशकों को ये फिल्म दिखाती है, उसमें राष्ट्र की गौरव गाथा ही नहीं, उसकी बुराइयां, नीचता और घटियापन भी उजागर होती है. फॉरेस्ट गम्प में अमेरिकी राष्ट्र कोई पवित्र चीज नहीं है. फॉरेस्ट गम्प में दिखाए गए अमेरिका में नस्लवाद, युद्धोन्मादी शासन, लिंगभेद और पुरुष वर्चस्व पूरी क्रूरता से सामने आया है.

मेरा मानना है कि लाल सिंह चड्ढा व्यक्ति फॉरेस्ट गम्प की कहानी को बेशक दोहरा लेगा लेकिन साथ में राष्ट्र और समाज की जो यात्रा चलती है, उसे दिखा पाना आसान नहीं होगा. खासकर इन दृश्यों और प्रसंगों को दिखा पाना लाल सिंह चड्ढा के लिए बेहद मुश्किल होगा।

फॉरेस्ट गम्प युद्ध विरोधी फिल्म है. इस फिल्म का लगभग एक चौथाई हिस्सा युद्ध की विभीषिका और उससे बचने या युद्ध के विरोध से संबंधित है. ये उस दौर की कहानी है जब अमेरिका ने कई युद्ध लड़े और लगभग सभी युद्धों में वो विजेता रहा. 1994 की इस फिल्म से तीन साल पहले ही अमेरिका खाड़ी युद्ध में जीत चुका था. लेकिन इस फिल्म में जिस युद्ध की कहानी है, वह वियतनाम युद्ध है. उस युद्ध में महाशक्ति अमेरिका हारा था और बहुत बुरा हारा था. वियतनाम युद्ध को कथानक के तौर पर चुनना लेखक और डायरेक्टर का निर्णय था. क्या भारत में बनने वाली इस फिल्म की रिमेक में डायरेक्टर भारत की किसी हार की कहानी बता पाएंगे? दिखाने को तो 1962 का भारत-चीन युद्ध भी दिखाया जा सकता है. लेकिन किसी भारतीय फिल्म के लिए ये कर पाना आसान नहीं होगा.
फॉरेस्ट गम्प साहस की कहानी है लेकिन साथ ही यह आदमी के महामानव न होने और मानवीय कमजोरी को स्वाभाविक बताने की भी कहानी है. जब फॉरेस्ट गम्प युद्ध के लिए वियतनाम जाने वाला होता है तो उसकी दोस्त जेनी उससे कहती है कि – ‘मुझसे वादा करो. जब भी कोई संकट आएगा तो साहस दिखाने की जरूरत नहीं है. तुम सीधे भाग लेना. ठीक है भाग लेना?’ फॉरेस्ट गम्प की कहानी में निरंतरता में है. जब उपद्रवी बच्चे गम्प पर पत्थर फेंकते हैं तो भी वह भाग लेता है जो बेहद स्वाभाविक और मानवीय है. इस फिल्म में सैनिकों के दर्द हैं और उनकी आंखों के आंसू हैं. इस फिल्म में युद्ध का एक ही सीन है जिसमें अमेरिकी सैनिक पीछे हटते और भागते हैं. ये वीडियो गेम के सैनिक नहीं हैं जो सुपरमैन की तरह गोलियां दागकर सबको मार डालते हैं. क्या भारत में बनी इस फिल्म की रिमेक भारतीय सैनिकों को भागता या रोता दिखा पाएगी. आसान नहीं है. साथ ही फॉरेस्ट गम्प में युद्ध विरोधी रैली है, नारे हैं, पोस्टर हैं. ये सब दिखा पाना आसान नहीं होगा. भारत में युद्ध विरोधी रैली होती भी नहीं है.
राष्ट्रवाद को लेकर भी फॉरेस्ट गम्प अनावश्यक आदर का भाव नहीं रखती. जब अमेरिकी राष्ट्रपति जॉन एफ कैनेडी फुटबॉलर गम्प से पूछते हैं कि ऑल अमेरिकन होना उन्हें कैसा लगता है तो गम्प पहले तो डकार लेते हैं और फिर कहते हैं कि मुझे पेशाब करना है. ये किसी भी देश के फिल्मकार के लिए एक मुश्किल सीन है. भारत में तो इसे दिखा पाना असंभव है.
फॉरेस्ट गम्प फिल्म अमेरिकी नस्लवाद की भी खासी चीर फाड़ करती है. इसमें नस्लवाद और नस्लवाद-विरोधी संघर्ष को लगातार दिखाया गया है. गम्प को अपने उस पूर्वज का मजाक उड़ाते दिखाया गया है, जिसने नस्लवादी संगठन कू क्लक्स क्लान बनाया था. गम्प जिस यूनिवर्सिटी में हैं, वहां यूनिवर्सिटी ऑफ अलाबामा में पहले-पहल जब दो अश्वेत स्टूडेंट्स आते हैं तो उस समय के रोमांच और तनाव को ये फिल्म दिखाती है. ये फॉरेस्ट गम्प की व्यक्तिगत मासूमियत ही है जो नस्लवाद का निषेध करती है. फिल्म में गम्प के दोस्त अश्वेत सैनिक बूबा की भी कहानी है, जिसे फौज में शामिल तो कर लिया गया है लेकिन पूरी फिल्म में वह युद्ध और हार-जीत पर एक शब्द नहीं कहता. वह हमेशा झींगा मछली पालन और उसके लिए नाव खरीदने की ही बात करता है. ये फिल्म दिखाती है कि अश्वेत बूबा के परिवार की औरतें कई पीढ़ियों से श्वेत मालिकों को झींगा मछली बनाकर खिलाती हैं, पर जब झींगा मछली बिजनेस का पैसा आता है तो युद्ध में मारे गए बूबा की पत्नी के घर में एक श्वेत रसोइया उसे झींगा परोसती है. भारतीय संदर्भ में ये कहानी किसी दलित के जीवन की हो सकती है. लेकिन इसे फिल्मों में दिखाना आसान नहीं है.
फॉरेस्ट गम्प में स्कूल एडमिशन का जो दृश्य है, उसे भारतीय संदर्भ में दिखा पाना आसान नहीं होगा. इस दृश्य में स्कूल का प्रिंसिपल कम आईक्यू वाले गम्प को एडमिशन देने के बदले में गम्प की मां से सेक्स मांगता है और गम्प की मां इसके लिए तैयार हो जाती है. भारत में जहां गुरु को ब्रह्मा, विष्णु और महेश जैसा कुछ माना जाता है और जिसका एक जातीय संदर्भ भी है, क्या किसी गुरु को इस तरह दिखाया जा सकेगा?

 

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