कथित किसान आंदोलन में मौत का आंकड़ा क्या है?

किसान आंदोलन के दौरान हुई मौतों का आंकड़ा  क्या है

कृषि कानूनों को केंद्र सरकार निरस्त कर चुकी है। अब शोर उन कथित मौतों को लेकर जो इन कानूनों के विरोध में हुए किसानों के प्रदर्शन के दौरान हुई। केंद्र और राज्य सरकारों से किसान संगठन इन मृतक प्रदर्शनकारियों के परिवारों को मुआवजा देने की माँग कर रहे हैं। रिपोर्टों और किसान संगठनों के दावों के मुताबिक विरोध-प्रदर्शन के दौरान 700-750 कथित किसानों की मौत हुई।

दिसंबर 2021 में जब केंद्र सरकार ने ऐसे मृतकों की सूची नहीं होने की बात कही थी तो कॉन्ग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गाँधी ने एक लिस्ट रख यह भी कहा था कि मृतकों के परिवार को मुआवजा केंद्र सरकार दे। जब किसान संगठन और कॉन्ग्रेस मुआवजे की माँग कर रही है, तब यह तथ्य भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि किसी भी किसान प्रदर्शनकारी की मौत पुलिस कार्रवाई में नहीं हुई। अब इन मौतों का एक विस्तृत विश्लेषण सामने है जिससे पता चलता है कि ऐसे किसानों की संख्या काफी कम है, जिनकी मौत विरोध-प्रदर्शन स्थल पर हुई। किसान संगठन जिन 700 मौतों का दावा कर रहे उनमें अधिकतर की मौत अधिक उम्र, बीमारी, दुर्घटना और ऐसे ही अन्य कारणों से हुई। इनमें से शायद ही कोई मौत सीधे तौर पर कृषि कानूनों के विरोध-प्रदर्शन से जुड़ी है।

एक ब्लॉग पेज ने विरोध-प्रदर्शन के दौरान जान गँवाने वाले किसानों का रिकॉर्ड रख रखा है। एक्टिविस्ट और खोजी पत्रकार विजय पटेल जिनका ट्विटर हैंडल @vijaygajera है, ने इस रिकॉर्ड का गहन अध्ययन कर कुछ चौंकाने वाले तथ्य खोजे हैं। विजय ने एक लंबे थ्रेड में इन मौतों की प्रकृति बतायी है, जिससे साफ है कि ये सीधे तौर पर विरोध-प्रदर्शन से जुड़े नहीं है। कुछ मौतें संदिग्ध आत्महत्या हैं तो कुछेक कोरोना संक्रमण से जुड़ी हैं। मौत हमेशा दुर्भाग्यपूर्ण होती है। लेकिन किसी की मृत्यु का इस्तेमाल राजनीतिक फायदे को करना एक नई तरह की नीचता है। जो तथ्य विजय ने सामने रखे हैं और मृतकों की सूची की पड़ताल के दौरान सामने आए, उससे जाहिर है कि जिन 700 मौतों को किसानों के विरोध-प्रदर्शन से जोड़कर सामने रखा जा रहा है कि उनको लेकर कुछ स्पष्टीकरण की आवश्यकता है।

सबसे पहले तो यह स्पष्ट है कि 700 मौतों की संख्या का इस्तेमाल विपक्ष, किसान संगठनों, प्रोपेगेंडाबाजों और वामपंथी झुकाव वाले मीडिया संस्थान केंद्र सरकार की छवि धूमिल करने को कर रहे हैं। कॉन्ग्रेस इसका दुष्प्रचार न केवल किसानों के विरोध-प्रदर्शन, बल्कि कृषि कानूनों को निरस्त किए जाने के बाद भी राजनीतिक हथियार के तौर पर कर रही है।

विजय ने जिन 702 मौतों की पड़ताल की है उनमें से केवल 191 की मौत दिल्ली की सीमा के विरोध-प्रदर्शन स्थलों पर हुई। 340 लोगों की मौत विरोध-प्रदर्शन स्थल से घर लौटने के बाद हुई। यह स्पष्ट नहीं है कि क्यों किसान संगठन फिर इनकी मौतों को भी विरोध-प्रदर्शन से जोड़ रहे हैं। क्या केवल इसलिए कि जिनकी मृत्यु हुई वह दिल्ली की सीमा के विरोध-प्रदर्शन स्थलों पर मौजूद थे अथवा मौत से पहले वहाँ आए थे? साफ है कि इन लोगों की मौत को विरोध-प्रदर्शनों से जोड़ना बेतुके आरोप के सिवा कुछ नहीं है। इनके अलावा 108 लोगों की मौत विरोध-प्रदर्शन स्थल से घर लौटते वक्त रास्ते में हुई। इसमें हिंट एंड रन के केस भी शामिल हैं। ऐसे में सवाल यह भी है कि दुर्घटना में मौत को कैसे किसानों के विरोध-प्रदर्शन से जोड़ा जा सकता? इसके अलवा 63 लोगों की मौत दिल्ली की सीमा से इतर अन्य प्रदर्शन स्थलों या अन्यत्र हुई है।

नदी में डूबा लेकिन नाम किसानों की मौत की लिस्ट में जोड़ा गया

मृतक सूची में सुखपाल सिंह नाम का किसान भी है। पोस्ट के अनुसार, सिंह ने कई बार दिल्ली सीमा पर विरोध-प्रदर्शनों में भाग लिया। मगर मृत्यु के समय वह अपने पैतृक स्थान पर थे। रिकॉर्ड में कहा गया है कि सिंह अपने खेत की तरफ गए थे। तभी गलती से ब्यास नदी में डूब गए। इस बात का कोई स्पष्टीकरण नहीं है कि उनकी मृत्यु को एक प्रदर्शनकारी की मृत्यु क्यों कहा गया, जबकि वह अपने खेत में काम करते मरे थे।

ट्रेन में चढ़ते हुई मौत, लेकिन सूची में जगह मिली

एक अन्य किसान  गुरलाल  सिंह है, जो बहादुरगढ़ रेलवे स्टेशन पर एक दुर्भाग्यपूर्ण दुर्घटना का शिकार हो गए। वह घर लौटते ट्रेन चढ़ने की कोशिश कर रहे थे, मगर उनका पैर फिसल गया और यह दुर्घटना घट गई। प्राय: ऐसे हादसे तभी होते हैं जब कोई चलती ट्रेन में चढ़ने की कोशिश करता है। हालाँकि यह उल्लेख नहीं है कि ट्रेन चल रही थी या नहीं, मगर यह स्पष्ट है कि 47 वर्षीय गुरलाल की मृत्यु रेलवे स्टेशन पर हुई थी, न कि विरोध स्थल पर। एक अन्य प्रदर्शनकारी परमा सिंह की भी ट्रेन दुर्घटना में मृत्यु हुई। सिंह टिकरी सीमा से लौटते ट्रेन से गिर गए और उनकी मौके पर ही मौत हो गई। विरोध-प्रदर्शन बंद होने के बाद दिल्ली सीमा से लौटते एक अन्य किसान जसविंदर सिंह की मौत हो गई। वह एक ट्रैक्टर से गिर गए और उससे कुचल कर उनकी मौत हो गई। एक अन्य प्रदर्शनकारी सुखविंदर सिंह ने सड़क दुर्घटना में घायल हो दम तोड़ दिया। पीजीआई चंडीगढ़ में इलाज में उनकी मौत हुई।

संदिग्ध आत्महत्याएँ

सूची में 40 ऐसे नाम है जिन्होंने आत्महत्या की। इनमें से कई आत्महत्या की जाँच की जरूरत है। विजय ने एक किसान की तस्वीर शेयर की, जिसकी कथित आत्महत्या से मौत हो गई थी। लेकिन उसके चेहरे पर चोट के निशान साफ नजर आ रहे थे।

विरोध के दौरान पहली बार आत्महत्या की खबर  16 दिसंबर, 2020 को संत बाबा राम सिंह की आई। उन्होंने कथित तौर पर खुद को गोली मार ली और एक सुसाइड नोट छोड़ा, जिसमें उन्होंने दावा किया कि सरकार की आँखें खोलने के लिए आत्महत्या की। हालाँकि उनकी मौत को लेकर कई तरह के सवाल उठे थे।।

17 दिसंबर, 2020 को बताया  गया  कि एक समाचार चैनल के एक एंकर से बात करते हुए चंडीगढ़ की अमरजीत कौर नाम की एक नर्स ने इस आत्महत्या पर सवाल उठाए। अपने बयान में उन्होंने कहा कि यह असंभव है कि संत राम सिंह आत्महत्या करे। उसने आगे सुसाइड नोट को लेकर सवाल खड़े करते हुए कहा कि यह उनकी हैंडराइटिंग से मेल नहीं खाता है। कौर ने कहा कि जिसने लोगों को समस्याओं से बाहर निकलने और जीवन में मजबूत रहने के लिए प्रोत्साहित किया हो, वह आत्महत्या नहीं कर सकता। उसने कहा कि वह लोगों से कहते थे कि आत्महत्या करना किसी बात का जवाब नहीं है। उन्हें ऐसा नहीं करना चाहिए।

दूसरी रिपोर्ट की गई मौत कुलबीर सिंह की थी, जिसने विरोध स्थल से वापस आने के बाद  आत्महत्या कर ली रिपोर्ट्स के मुताबिक, वह कर्ज के चलते तनाव में था।

बढ़ते कर्ज के दबाव में किसान द्वारा की गई तीसरी  आत्महत्या दिसंबर 2020 में दर्ज की गई थी। गुरलभ सिंह ने विरोध स्थल से लौटने के बाद आत्महत्या कर ली। उन पर 6 लाख रुपए का कर्ज था।

एक अन्य किसान  रंजीत सिंह  ने भी फरवरी 2021 में धरना स्थल से लौटने के बाद आत्महत्या कर ली थी। उन पर 15 लाख रुपए का कर्ज था। रिपोर्ट्स के अनुसार उन्हें बैंक कुर्की का नोटिस मिला था।   लखविंदर सिंह कॉमरेड ने भी आत्महत्या की। उन पर 15 लाख रुपए कर्ज था।  रिपोर्ट्स में कहा गया था कि कर्ज के चलते उन्होंने खुदकुशी कर ली।

मुकेश मुद्गिल  को जिंदा जलाने का मामला

राकेश टिकैत के बयान से ब्राह्मण समाज में आक्रोश
किसान आंदोलन में भारतीय किसान यूनियन (भाकियू) के राष्ट्रीय प्रवक्ता चौधरी राकेश टिकैत का वायरल बयान पूरे दिन चर्चाओं में रहा। ब्राह्मण समाज के लोगों ने बैठक कर इसकी निंदा की और बोले कि भाकियू केवल एक जाति-बिरादरी का संगठन नहीं . टिकैत ने कहा था कि जाट तो मंदिर संदिग्ध नही जाता लेकिन हिंदू समाज मंदिरों में चढावा चलाता है जिसका कोई हिसाब किताब नही है. अगर ब्राह्मणों ने चढ़ावे का हिसाब नही दिया और आंदोलन को उसका हिस्सा नहीं दिया तो उनके खिलाफ सीधी कार्रवाई होगी. इसके खिलाफ भारतवर्ष के ब्राह्मणों में प्रतिक्रिया हुई

किसान आंदोलन में भारतीय किसान यूनियन (भाकियू) के राष्ट्रीय प्रवक्ता चौधरी राकेश टिकैत का वायरल बयान पूरे दिन चर्चाओं में रहा। ब्राह्मण समाज ने बैठक कर इसकी निंदा की और कहा कि भाकियू केवल एक जाति-बिरादरी का संगठन नहीं है। यह सर्वसमाज के किसानों का संगठन है। उधर, राकेश टिकैत ने कहा कि उनके बयान का गलत मतलब न निकाला जाए।
शुक्रवार को ब्राह्मण समाज रोहाना और पुरकाजी क्षेत्र की बैठक क्षेत्र के अध्यक्ष ओम दत्त शर्मा के निवास स्थान रोहाना में हुई। बैठक में दिल्ली में चल रहे किसान आंदोलन के दौरान एक सभा में भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता चौधरी राकेश टिकैत के ब्राह्मण समाज के प्रति दिए गए बयान को घृणित और नफरत फैलाने वाला बताया। वक्ताओं ने कहा कि राकेश टिकैत को यह नहीं भूलना चाहिए कि भारतीय किसान यूनियन केवल एक जाति-बिरादरी का संगठन नहीं है।
भाकियू में ब्राह्मण समाज के लोग भी हैं। भाकियू तहसील सदर के अध्यक्ष विकास शर्मा हैं। बैठक में वक्ताओं ने ब्राह्मण समाज से राकेश टिकैत को माफी मांगने की अपील की। कहा कि ब्राह्मण समाज अपना अपमान कभी नहीं सहेगा। उनका ऐसा बयान समाज मे ब्राह्मण के प्रति नफरत फैलाने की साजिश बताया। बैठक में आदेश शर्मा, तुलसीराम शर्मा, महेंद्र शर्मा, अंशुल शर्मा और ज्योतिष आचार्य एवं कर्मकांड विशेषज्ञ आशुतोष शुक्ला, अश्वनी शर्मा आदि शामिल रहे।

उधर, भाकियू राष्ट्रीय प्रवक्ता चौधरी राकेश टिकैत ने सफाई देते हुए कहा कि मेरे बयान का गलत मतलब न निकाला जाए। कहने का आशय केवल इतना था कि मंदिरों के पुजारी व विभिन्न ट्रस्ट गुरुद्वारों की भांति आंदोलन में अपने बैनर के साथ लंगर की सेवा प्रदान करें। मेरे बयान को तोड़-मरोड़कर या अन्यथा न लिया जाए। वीडियो को एडिट कर गलत तरीके से पेश न किया जाए। कृषि कानूनों के विरोध में चल रहा आंदोलन सभी का है। लेकिन टिकैत के पलवल में दिए बयान ने आंदोलन को ऐसा ब्राह्मण विरोधी मोड दिया जिसके चलते टिकैत के साथियों ने बहादुरगढ के एक ब्राह्मण किसान मुकेश मुद्गिल को पैट्रोल डाल कर जिंदा जला दिया था.

17 जून 2021 को, यह बताया गया कि मुकेश नाम के एक किसान को उसके साथी किसानों ने टिकरी बॉर्डर पर आग लगा दी थी। मृतक ने प्रदर्शनकारियों के साथ नशा किया और  मारपीट बाद उसे जला दिया। मुकेश को जातिसूचक गालियां  दी गईं। सोशल मीडिया पर उसे आग लगाने का एक वीडियो भी वायरल हो गया, जिसमें आग लगाने से पहले ब्राह्मणों को जातिवादी गालियाँ दी जा रही थी.

टिकरी सीमा पर किसानों ने मुझे लगाई आग’: मृतक का वीडियो आया सामने, किसान संगठनों ने अस्पष्ट वीडियो जारी कर बताया आत्महत्या

बहादुरगढ़ में किसान आंदोलन के लोगों ने एक व्यक्ति जिंदा जला दिया। मृतक कसार गाँव निवासी मुकेश मुद्गिल है। आरोप है कि मुकेश ने किसान आंदोलन में शामिल कुछ लोगों के साथ आंदोलन स्थल पर ही शराब पी। इसके बाद मुकेश और उन लोगों में कुछ कहासुनी हो गई जिसमें राकेश टिकैत के साथियों ने यह कह कर उसे जला दिया कि अब तक कोई  ब्राह्मण किसान शहीद नहीं हुआ । पैट्रोल पंप कर्मचारी ने परिजनों को जानकारी दी.

मुकेश पर तेल छिड़क कर आग लगाई गई थी। गंभीर झुलसे मुकेश की कुछ घंटों बाद मौत हो गई। आंदोलन में ‘शहीद’ बता कसार निवासी मुकेश पर तेल छिड़क आग लगाई गई।  मृतक परिजनों का सीधा आरोप है कि घटना के चारों आरोपित राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के पास टिकरी बॉर्डर पर चल रहे किसान आंदोलन में हैं।

जिंदा जलाए गए मुकेश मुद्गिल  के परिवार से मिले सांसद अर‍विंद शर्मा, सीबीआई जांच की उठाई मांग
इस मामले में जींद के किसान कृष्‍ण समेत अन्‍य आरोपितों को गिरफ्तार भी किया गया। मरने से पहले मुकेश की दो से तीन वीडियो वायरल हैं। इसमें अलग-अलग बयान हैं


आंदोलनस्‍थल पर जलाए गए कसार गांव के मुकेश मामले मेरोहतक लोकसभा सीट से भाजपा सांसद अरविंद शर्मा आंदोलन स्‍थल पर जलाए गए कसार गांव निवासी मृतक मुकेश मुद्गिल के घर पहुंचे। सांसद अरविंद शर्मा ने मामले की सीबीआई जांच की मांग की । उन्होंने कहा कि व्यक्ति को जिंदा जलाना घिनोना काम है, 36 बिरादरी इस घटना की निंदा करती है। सांसद ने मृतक मुकेश के परिवार को न्याय की मांग की है। उन्होंने बंगाल की युवती से दुष्कर्म मामले की भी सीबीआई जांच की मांग की है। अरविंद शर्मा ने कहा कि सरकार किसानों के खिलाफ नहीं है। सरकार समाधान चाहती है ,इसलिए बातचीत को आधी रात भी तैयार है।
किसान आन्दोलनस्थल पर युवक को जिंदा जलाने में पुलिस दो आरोपित पकड़ चुकी । मामले में चार लोगों पर मुकेश को जिंदा जलाने के आरोप हैं। सांसद के सामने ही ग्रामीणों ने रोष जताया । ग्रामीणों ने कहा कि हम इन आंदोलनकारियों से तंग आ चुके। गांव के सरपंच टोनी व मुकेश के परिवार की सुरक्षा की मांग की तो सांसद ने तुरंत एसपी को फोन करके निर्देश दिए। ग्रामीणों ने कहा कि अगर सरकार व प्रशासन ने गांव के पास से आंदोलनकारी नही हटाये तो वे मृतक की तेरहवीं बाद आरपार की लड़ाई करेंगे।
मामले में जींद के किसान कृष्‍ण और संदीप समेत अन्‍य आरोपित गिरफ्तार भी किये जा चुके है। मृत्यु पूर्व मुकेश की दो-तीन  वीडियो वायरल हैं।  घटना से ठीक पहले मुख्‍य आरोपित कृष्‍ण की भी एक वीडियो वायरल हो रही है जिसमें वह जातिगत टिप्‍पणी करता दिख रहा है।

मुकेश मुद्गिल की मौत बाद ये विवाद थम नहीं रहा है। युवक को पेट्रोल डालकर जलाने से बेहद ही संगीन मामला बना हुआ है। आरोपितों ने भी पुलिस पूछताछ में अपना जुर्म माना। सरकार ने मामले में एसआईटी भी गठित की। विधायक नरेश कौशिक भी मामले की जांच करवाने में लगे। अरविंद शर्मा भी पीडि़त परिवार से मिले। इस दौरान पूर्व विधायक नरेश कौशिक,सतपाल राठी,कर्मवीर राठी,बिजेंद्र पंडित,मुकेश कौशिक, पालेराम शर्मा, ऋषि भारद्वाज, नरेश शर्मा आदि मौजूद थे।

बलात्कार, छेड़छाड़ और अब एक व्यक्ति को जिंदा जलाए जाने के लिए कड़ी आलोचना के बाद टिकरी सीमा पर हिंसक विरोध प्रदर्शन के नेतृत्वकारी संगठन ‘किसान एकता मोर्चा’ ने एक अस्पष्ट वीडियो जारी कर दावा किया कि मुकेश ने खुद को आग लगा ली थी।  इसके विपरीत कोई भी आरोप ‘भाजपा का प्रोपेगंडा’ है।

REALITY OF BJP PROPAGANDA AGAINST FARMERS

Victim of fire incident at Tikri Border is telling another side of his story. pic.twitter.com/sE5zDDBMFl

— Kisan Ekta Morcha (@Kisanektamorcha) June 17, 2021
वीडियो में मुकेश जली अवस्था में अँधेरे में बैठे दिख रहे हैं। गंभीर रूप से जलाने के दौरान, एक किसान उनसे पूछताछ करते सुना जाता है कि उन्हें किसने आग लगाई थी। काफी दबाव के बाद, मुकेश दर्द से कराहते कहते हैं कि उन्होंने आत्मदाह किया क्योंकि वह पारिवारिक समस्याओं से थक गए थे।

हालाँकि ‘किसान’ इस वीडियो का इस्तेमाल खुद को आरोपों से मुक्त करने को कर रहे हैं, मगर इसके अलावा एक और वीडियो है, जिसमें जहाँ मुकेश अस्पताल में इलाज के दौरान अपनी मृत्यु पहले बयान देते हुए दिख रहे हैं। यह वीडियो हमने एक्सेस किया । हमारे एक्सेस इस वीडियो में, मुकेश अपने हमलावरों की पहचान करते हुए स्पष्ट  कहते हुए सुना जा सकता है कि टिकरी सीमा पर मौजूद किसानों ने उसे आग लगा दी। इस वीडियो में मुकेश साफ-साफ कह रहे हैं कि टिकरी बॉर्डर पर किसानों ने खासकर सफेद कुर्ते में एक व्यक्ति ने उन्हें आग लगा दी। पुलिस अधिकारी उससे विशेष रूप से पूछता है कि क्या उसने खुद को आग लगाई या उसे आग लगाने वाले किसान थे। इस पर वह साफ कहते हैं कि उन्होंने खुद को आग नहीं लगाई, किसानों ने उन्हें आग लगा दी।

घटना के अनुसार सुबह साढ़े तीन बजे मुकेश जिंदा जला दिया गया। अगर हम किसान एकता मोर्चा का डाला वीडियो देखें, तो इसका मतलब है कि आग लगने के ठीक बाद कुछ लोग उससे पूछताछ कर रहे थे।  ये वही लोग थे, जिन्होंने आग लगाई थी।

ऐसा लगता है कि मुकेश दर्द से बेसुध था और डरा हुआ भी था, क्योंकि जलाने वालों को बचाने को लोग उससे पूछताछ कर रहे थे। ऐसे समय में मुकेश के दिमाग में एक ही चीज चल रही होगी कि वह किसी तरह वहाँ से निकल जिंदा बच जाए।

हमारा एक्सेस किया गया दूसरा वीडियो स्पष्ट रूप से दिखाता है कि इससे पहले कि  मृत्युपूर्व मुकेश ने बताया था कि उसे टिकरी सीमा पर मौजूद किसान ने जला दिया था।

टिकरी बॉर्डर पर मुकेश मुद्गिल को जिंदा जलाया
घटना हरियाणा के बहादुरगढ़ के पास कसार गाँव की है। गुरुवार (जून 17, 2021) तड़के तीन बजे सीमा पर प्रदर्शन कर रहे ‘किसानों’ ने मुकेश पर पेट्रोल छिड़क कर आग लगा दी। उसे तुरंत अस्पताल ले जाया गया जहाँ उसने दम तोड़ दिया।

मदन लाल नाम के एक व्यक्ति की पुलिस शिकायत के अनुसार, बुधवार (जून 16, 2021) को शाम करीब 5 बजे मुकेश प्रदर्शनकारी किसानों के स्थल पर पहुँचा था। मदन लाल को बाद में पता चला कि मुकेश को आग लगा दी गई है। वह सरपंच टोनी कुमार के साथ वहां पहुँचे तो देखा कि मुकेश बुरी तरह झुलस गया है।

किसान धरना स्थल क्राइम हॉट स्पॉट बन गया 
यह पहली बार नहीं है कि राष्ट्रीय राजधानी के आसपास की सीमाओं के साथ ‘किसान’ विरोध स्थल से इस तरह की अपराध की घटनाएँ सामने आ रही हैं। ‘किसान आंदोलन’ स्थल हाल ही में अपराध का केंद्र बन गया है क्योंकि पिछले कुछ महीनों में साइट से बलात्कार, हत्या के कई आरोप सामने आए हैं।

गौरतलब है कि अप्रैल में, दिल्ली में टिकरी सीमा के पास कसार गाँव के पास एक साथी किसान प्रदर्शनकारी द्वारा 26 वर्षीय कृषि-विरोधी कानून प्रदर्शनकारी की हत्या कर दी गई थी। पीड़ित की पहचान गुरप्रीत सिंह के रूप में हुई थी, जो टिकरी सीमा पर कृषि कानूनों का विरोध कर रहा था। सिंह की हत्या एक साथी प्रदर्शनकारी रणबीर सिंह उर्फ ​​सत्ता सिंह ने पैसे के विवाद को लेकर की थी।

इसी तरह, 25 मार्च को हाकम सिंह नाम के एक 60 वर्षीय किसान का गला कटा हुआ पाया गया था। पुलिस के अनुसार, सिंह की हत्या ‘तेज धार वाले हथियार’ से की गई थी। उनका शव टिकरी सीमा पर नए बस स्टैंड के पीछे एक खेत में अन्य कृषि विरोधी कानून प्रदर्शनकारियों द्वारा खोजा गया था। रेप की घटनाएँ भी सामने आ चुकी हैं।

मौत की वजहें

अज्ञात बीमारी जो कोरोना या कुछ और भी हो सकती है जो शायद प्रदर्शन स्थल से लेकर लोग गए होंगे से 307 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई। हर्ट अटैक से 203 लोगों की जान गई। मौत के लिए ज्ञात यह सबसे बड़ी वजह है।

विजय ने एक ट्वीट में बताया है कि दिल का दौरा पड़ने से होने वाली मौतों को राष्ट्रीय और राज्य औसत के हिसाब से, मौत के प्राकृतिक वजह के रूप में चिह्नित किया जाना चाहिए था और इसके लिए सरकार को दोषी नहीं ठहराया जा सकता।

मौतों के रिकॉर्ड से पता चलता है कि हार्ट अटैक और अज्ञात कारणों के अलावा, किसानों की मौत हिट एंड रन, दुर्घटना, संदिग्ध आत्महत्या और निमोनिया, कोविड-19, ब्रेन स्ट्रोक, कोल्ड स्ट्रोक, पेट में संक्रमण जैसी विभिन्न बीमारियों की वजह से हुई। इस सूची में 3 ऐसे लोगों का भी जिक्र है जिनकी हत्या हुई। लेकिन उस दलित सिख लखबीर सिंह का नाम नहीं है जिसकी हत्या कुंडली बॉर्डर पर अक्टूबर 2021 में निहंग सिखों ने बेरहमी से कर दी थी।

बुजुर्गों को लालच दिया गया

एक ट्विटर यूजर जिसका हैंडल @Hindavi_Swarajy है, ने नवंबर 2021 में एक थ्रेड प्रकाशित किया था। इसमें उन्होंने बताया था कि उनके दादा को विरोध प्रदर्शन स्थल पर फुसलाकर ले जाने के लिए कैसे लोग उनके घर आए थे। उनके दादा की उम्र 80 वर्ष से अधिक है। उन्होंने घर आए लोगों को अपने दादा को प्रदर्शन में ले जाने से मना कर दिया, लेकिन उनके इलाके के कई बुजुर्ग प्रदर्शन में शामिल होने गए थे।

उन्होंने बताया था कि प्रदर्शन स्थल पर 7 लोगों की मौत हो गई थी। उन्होंने बताया था, “दुर्भाग्य से प्रदर्शन स्थल पर सात लोगों की मौत हो गई। अपने बीमार बुजुर्गों की सेवा करने, उनका इलाज करवाने की जगह मेरे मुहल्ले के लालची लोगों ने उन्हें प्रदर्शन में शामिल होने भेज दिया। अब वे गिद्ध की तरह मुआवजा मॉंग रहे और मोदी को जिम्मेदार ठहरा रहे। ऐसे लोगों को वाहेगुरु कभी क्षमा नहीं करेंगे।”

मौतों को कोई उचित नहीं ठहरा सकता। मौतें हमेशा दुर्भाग्यपूर्ण होती हैं और पीड़ित परिवार से काफी कुछ छीन लेती है। लेकिन, मौतों को राजनीतिक तमाशा बनाना और उनका इस्तेमाल व्यवस्था विरोधी दुष्प्रचार के लिए करना, एक ऐसी नीचता है जिससे हर किसी को दूर रहना चाहिए।

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