हर पराई सभ्यता, संस्कार, खान-पान ‘कूल’ हैं? शिवानी ने तो पुत्रियों को यही सिखाया

Shashank Bharadwaj
मशहूर साहित्यकार शिवानी की बेटी ईरा पांडे बताती हैं, “मेरे नाना के बगल का घर डेनियल पंत का था। जो कि एक ईसाई थे। हमारे दकियानूसी नाना ने उनकी दुनिया को हमारी दुनिया से अलग करने के लिए हमारे घरों के बीच एक दीवार बना दी थी। हमें सख्त हिदायत थी कि हम दूसरी तरफ देखें भी नहीं। मेरी मां ने एक बार लिखा था उनके (डेनियल) घर में जायकेदार गोश्त की पागल कर देने वाली महक हमारी बोरिंग सी ब्राह्मण रसोईं में पहुंच कर हमारी अदनी सी दाल, आलू की सब्जी और चावल को धराशायी कर देती थी।”

ये बात डेनियल पंत के घर के विषय में लिखी गई थी… जिनके पिता ने हिन्दू धर्म छोड़कर ईसाई धर्म अपना लिया था। इस तरह वो एक “कुमाउंनी बोरिंग ब्राह्मण रसोई” से आजाद हो गए थे और उन्हीं की बेटी शीला इरेना पंत ने आगे चलकर अपने से 10 साल बड़े और पहले से शादीशुदा लियाकत अली (पाकिस्तान के पहले प्रधानमंत्री) से निकाह किया और ईसाई धर्म छोड़कर इस्लाम धर्म अपना लिया।

लियाकत का परिवार खुद करनाल के जाट परिवार से था और उनकी पत्नी कुमाउंनी ब्राह्मण परिवार से थीं, इकबाल के पूर्वज कश्मीरी पंडित थे और जिन्ना के पूर्वज कठियावाड़ी हिन्दू… ये सब दो चार-पीढ़ी पहले धर्मांतरित हुए लोगों ने अपने पूर्वजों के धर्म को नापाक बताते हुए पाक ईमान वालों के लिए नरसंहार के दम पर पाकिस्तान बनाया।

हर वो चीज जो अपने पूर्वज, अपनी भाषा, अपने संस्कार, अपने देश के खिलाफ हो वो कूल है। मांसाहार, नशा, विवाहेतर संबंध, दूसरी शादी ये सब करना कूल है।

वैसे तो मैं व्यक्तिगत जीवन पर लिखने से बचता हूं लेकिन फिर भी ये लिख रहा हूं। जिन लोगों को हम आदर्शवादी तरीकों से पढ़ते हैं हमें उनका जीवन देखना चाहिए।

दो घरों के बीच में दीवार बनाने पर अपने नाना को दकियानुसी कहने वाली ईरा पांडे या उनकी मां ने दो धर्मों के बीच में दीवार बनाने वाले इन लोगों में से किसी एक के लिए भी कभी ऐसा कोई शब्द कहा होगा, मुझे संदेह है।

राणा लियाकत बहुत साहसी थीं उन्होंने पाकिस्तान बनाने के लिए मुस्लिम लीग की महिला विंग का नेतृत्व किया, ऐसा करना कूल था और जब पाकिस्तान बन गया तब वो ‘दो महिलाओं के बराबर एक पुरुष की गवाही’ के कानून की खिलाफत करने पर गिरफ्तार की जा रहीं थीं…
जोगेंद्र मंडल ने दलित अधिकारों के लिए पाकिस्तान बनवाने की पैरवी की, ऐसा करना कूल था, लेकिन जब वो बन गया तब वो खुद ही भाग कर भारत आ गए।
कम्युनिस्टों ने पाकिस्तान बनाने की पैरवी की, ऐसा करना कूल था आज कोई कम्युनिस्ट पार्टी पाकिस्तान में नहीं है।
लियाकत ने अपनी मातृभाषा पंजाबी छोड़ कर उर्दू अपना ली, ऐसा करना कूल था लेकिन जब उनका बनाया देश बंगालियों को ये बात समझाने गया तो 30 लाख लोग मर गए…

विवाहेतर संबंध या व्यभिचार पर मैं लिखना नहीं चाहता…

खैर बीबीसी के जिस वीडियो में ये बताया जा रहा है कि डेनियल पंत के घर की गोश्त की महक कैसे ब्राह्मण रसोई के शाकाहार को धवस्त कर देती थी वो ही वीडियो अंत में ये बताता है कि अपने जीवन के अंतिम दिनों में राणा लियाकत ने अपने भाई को एक टेलिग्राम लिखा जिस पर लिखा था “आई मिस अल्मोड़ा”

राणा लियाकत अपने सारे जीवन पहाड़ी कहत की दाल, दाड़िम की चटनी याद करती रही। ‘कूल’ चीजों के साथ ये ही दिक्कत है, उनकी उम्र ज्यादा नहीं होती।

क्या मालूम लियाकत भी करनाल की किसी कब्र में लेटे अपने मां-बाप की कब्रों को तो याद करते ही होंगे।
लेकिन, क्या ऐसा करना कूल होगा या इसे भी दकियानूसी माना जाएगा?
-अविनाश त्रिपाठी की फेसबुक पोस्ट

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