समान नागरिक संहिता पर गुजरात-उत्तराखंड की समितियां सही: सुप्रीम कोर्ट

Uttarakhand और Gujarat में UCC के लिए बनी कमेटी सही, चुनौती देने वाली याचिका खारिज- SC

Supreme Court: गुजरात और उत्तराखंड में यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू करने के लिए कमेटी के गठन को चुनौती देने वाली याचिका सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दी है. चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस पी एस नरसिम्हा ने कहा कि आर्टिकल 162 में राज्यों को कमेटी के गठन का अधिकार है.

नई दिल्ली 10 जनवरी: गुजरात और उत्तराखंड में यूनिफॉर्म सिविल कोड (Uniform Civil Court) लागू करने के लिए कमेटी के गठन को चुनौती देने वाली याचिका सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दी है. चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ (CJI DY Chandrachud) और जस्टिस पी एस नरसिम्हा (Justice PS Narsimha) ने कहा कि आर्टिकल 162 के तहत राज्यों को कमेटी के गठन का अधिकार है. अगर राज्य ऐसा कर रहे तो इसमे गलत क्या है. सिर्फ कमेटी के गठन को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती नहीं दी जा सकती है.

Uttarakhand और Gujarat में कमेटी के गठन को चुनौती

उत्तराखंड सरकार (Uttarakhand Government) ने पिछले साल मई में एक एक्सपर्ट कमेटी का गठन किया था. सुप्रीम कोर्ट रिटायर्ड जज जस्टिस रंजना प्रकाश देसाई की अध्यक्षता में बनाई गई इस कमेटी को राज्य में यूनिफार्म सिविल कोड के अध्ययन और क्रियान्वयन की जिम्मेदारी सौंपी गई थी. इसके अलावा गुजरात सरकार (Gujarat Government) ने भी पिछले साल अक्टूबर में यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू करने के लिए कमेटी का गठन करने का फैसला लिया था. अनूप बरनवाल की ओर से दायर याचिका में राज्यों की इस पहल को चुनौती दी गई थी.

यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) का मसला पेंडिंग

वैसे शादी, तलाक, गुजारा भत्ता ,उत्तराधिकार के लिए सभी धर्मों में एक समान कानून लागू करने की वकील अश्विनी उपाध्याय की एक अन्य याचिका सुप्रीम कोर्ट में पहले से पेंडिंग है. सुप्रीम कोर्ट में केन्द्र सरकार (Central Government) ने इस याचिका का ये कहते हुए विरोध किया है कि ये एक नीतिगत मसला है, जिस पर फैसला लेना संसद का काम है. कोर्ट इस बारे में संसद को कानून बनाने के लिए निर्देश नहीं दे सकता.

UCC को लेकर सरकार का पक्ष

सरकार का कहना था कि लॉ कमीशन यूनिफॉर्म सिविल कोड को लेकर गंभीरता से विचार कर रहा है. कमीशन की रिपोर्ट आने के बाद सरकार तमाम हितधारकों से बात करेगी, लेकिन इसे लागू करने के बारे में फैसला संसद को लेना है. कोई बाहरी ऑथोरिटी उसे कानून बनाने के लिए निर्देश नहीं दे सकती.
सुप्रीम कोर्ट ने समान नागरिक संहिता को लागू करने के लिए राज्यों की समितियां बनाने को चुनौती देने वाली जनहित याचिका खारिज की
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की सुप्रीम कोर्ट की खंडपीठ ने समान नागरिक संहिता (यूसीसी) को पेश करने और लागू करने के लिए समितियों का गठन करने के उत्तराखंड और गुजरात राज्यों के फैसले को चुनौती देने वाली जनहित याचिका (पीआईएल) पर विचार करने से इनकार कर दिया। विचाराधीन जनहित याचिका अनूप बरनवाल द्वारा दायर की गई। पीठ ने यह देखते हुए कि विचाराधीन राज्यों को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 162 के तहत समितियों के गठन करने का अधिकार है, कहा कि जनहित याचिका सुनवाई योग्य नहीं है।
सीजेआई डी वाई चंद्रचूड़ ने मौखिक रूप से टिप्पणी की, “इसमें गलत क्या है? ऐसी समितियों के गठन को अदालतों के समक्ष अधिकारातीत के रूप में चुनौती नहीं दी जा सकती है। समवर्ती सूची की प्रविष्टि 5 को देखें।” अदालत ने कहा कि अनुच्छेद 162 प्रदान करता है कि राज्यों की कार्यकारी शक्ति का विस्तार विधायिका को करने की अनुमति देता है। तदनुसार, याचिका को किसी भी गुण से रहित होने के कारण खारिज कर दिया गया। केस टाइटल- अनूप बरनवाल व अन्य बनाम यूओआई और अन्य डब्ल्यूपी (सी) नंबर 1086/2022
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