पौड़ी की बेटी: सुप्रीम कोर्ट ने दरिंदों को बाइज्जत छोड़ने का कारण नहीं बताया

सुप्रीम कोर्ट ने गैंगरेप-हत्या के आरोपितों को बरी किया:लड़की की मां बोली- कई मुश्किलें झेलीं, ये अन्याय नहीं झेला जाता.उत्तराखंड कांग्रेस अध्यक्ष करन माहरा और पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत की प्रतिक्रिया तो स्वाभाविक राजनीतिक ही है लेकिन इसी पार्टी के धीरेन्द्र प्रताप की प्रतिक्रिया संवेदनशील है। उन्होंने आगे की कानूनी कार्रवाई को हुंकार भरी है।

नई दिल्ली 07 नवंबर।‘हमें उम्मीद थी कि न्याय मिलेगा, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने हमें तोड़ दिया है। अभी समझ नहीं आ रहा है कि क्या करें। हमारी सोचने की ताकत खत्म हो गई है।’ 19 साल की बेटी के साथ गैंगरेप कर उसकी हत्या करने वाले आरोपितों के खिलाफ एक मां ने 10 साल लड़ाई लड़ी। आज नजरों के सामने सुप्रीम कोर्ट से उन्हें बरी होते देख वह ठीक से रो भी नहीं पा रही है।


सोमवार को इन 3 आरोपितों को सुप्रीम कोर्ट ने बरी कर दिया। 19 साल की अनामिका (बदला हुआ नाम) को 2012 में दिल्ली के छावला से किडनैप हुई थी। इसके बाद उसे हरियाणा के रेवाड़ी ले जाकर 3 दिन तक गैंगरेप किया गया। आरोपित इतने पर भी न माने, उनका चेहरा एसिड से जला दिया, बदन गर्म लोहे से दागा। पुलिस को शव मिला हुआ तो प्राइवेट पार्ट से शराब की बोतल भी मिली।

‘सुप्रीम कोर्ट का ये अन्याय कैसे झेलें’

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद लड़की की मां ने कहा कि कई मुश्किलें हम पहले से झेल रहे थे, पर अदालत का ये अन्याय नहीं झेला जा रहा। परिवार में आर्थिक परेशानियां हैं, उन्हें किसी तरह से झेल रहे हैं। इतनी दरिंदगी मेरी बेटी से हुई। अदालत ने ऐसे दरिंदों को छोड़ दिया।

इस मामले में पहले लोकल कोर्ट और फिर दिल्ली हाईकोर्ट ने तीनों आरोपितों को फांसी की सजा सुनाई थी। अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद पीड़ित परिवार के सदस्य हैरान हैं। उन्हें समझ नहीं आ रहा है कि बेटी को इंसाफ दिलाने को अब कहां जाएं।

छावला सामूहिक दुष्कर्म पीड़िता के माता-पिता ने कहा- खत्म हो गई जीने की इच्छा

दिल्ली के छावला इलाके में 2012 में हुए सामूहिक दुष्कर्म के मामले में सभी तीन आरोपितों के बरी होने के बाद पीड़िता के माता- पिता ने कहा कि “हम न केवल जंग हार गए हैं, बल्कि हमारी जीने की इच्छा भी खत्म हो गई है।” पीड़िता के पिता ने कहा कि उच्चतम न्यायालय ने इस फैसले से उन्हें निराश किया है और 11 साल से अधिक समय तक लड़ाई लड़ने के बाद न्यायपालिका से उनका विश्वास उठ गया है। उन्होंने यह आरोप भी लगाया कि ‘सिस्टम’ उनकी गरीबी का फायदा उठा रहा है।

दिल्ली के छावला इलाके में 2012 में हुए सामूहिक दुष्कर्म के मामले में सभी तीन आरोपितों के बरी होने के बाद पीड़िता के माता पिता ने कहा कि “हम न केवल जंग हार गए हैं, बल्कि हमारी जीने की इच्छा भी खत्म हो गई है।”
पीड़िता के पिता ने कहा कि उच्चतम न्यायालय ने इस फैसले से उन्हें निराश किया है और 11 साल से अधिक समय तक लड़ाई लड़ने के बाद न्यायपालिका से उनका विश्वास उठ गया है।

साल 2014 में, एक निचली ने मामले को “दुर्लभतम” बताते हुए तीनों आरोपितों को मौत की सजा सुनाई थी। बाद में दिल्ली उच्च न्यायालय ने इस फैसले को बरकरार रखा।

तीन लोगों पर फरवरी 2012 में 19 वर्षीय युवती के अपहरण, बलात्कार और बेरहमी से हत्या करने का आरोप है। अपहरण के तीन दिन बाद उसका क्षत-विक्षत शव मिला था।

पीड़िता की मां ने उच्चतम न्यायालय परिसर के बाहर फूट-फूटकर रोते हुए कहा, “11 साल बाद भी यह फैसला आया है। हम हार गए…हम जंग हार गए …मैं उम्मीद के साथ जी रही थी…मेरे जीने की इच्छा खत्म हो गई है। मुझे लगता था कि मेरी बेटी को इंसाफ मिलेगा।”

पीड़िता के पिता ने कहा, “अपराधियों के साथ जो होना था, वह हमारे साथ हुआ।”

उन्होंने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, “11 साल से हम दर-दर भटक रहे हैं। निचली अदालत ने भी अपना फैसला सुनाया। हमें राहत मिली। उच्च न्यायालय से भी हमें आश्वासन मिला। लेकिन उच्चतम न्यायालय ने हमें निराश किया। अपराधियों के साथ जो होना था, वह हमारे साथ हुआ।”

इस बीच, महिला अधिकार कार्यकर्ताओं ने उच्चतम न्यायालय के फैसले की आलोचना की ।

न्यायालय परिसर के बाहर पीड़िता के माता-पिता के साथ मौजूद कार्यकर्ता योगिता भयाना ने कहा, “मैं पूरी तरह से स्तब्ध हूं। सुबह, हमें पूरी उम्मीद थी कि शीर्ष अदालत मौत की सजा को बरकरार रखेगी और हमें यह भी लगता था कि वे मौत की सजा को आजीवन कारावास में बदल सकते हैं।”

सामाजिक कार्यकर्ता विनोद बछेती पिछले 10 वर्ष से न्याय की लड़ाई में परिवार का समर्थन कर रहे थे। उन्होंने कहा कि वे भविष्य की कार्रवाई पर चर्चा करने के लिए मंगलवार को एक बैठक करेंगे।

उन्होंने कहा, “हम पिछले 10 साल से परिवार का समर्थन कर रहे हैं। घटना 9 फरवरी, 2012 को हुई और 10 महीने बाद निर्भया सामूहिक बलात्कार हुआ। (छावला) पीड़िता अपने परिवार का खर्च भी उठा रही थी।”

IndiaChhawla Gang Rape Victim’s Parents Said The Desire To Live Is Over

Hindi NewsIndiaAjay Kumar Will Be

मामला उठाने वालीं एक्टिविस्ट ने कहा- अदालतों से भरोसा टूटा

इस मामले को उठाने वाली एंटी रेप एक्टिविस्ट योगिता भयाना कहती हैं- हमने सोचा भी नहीं था कि अदालत ऐसा फैसला करेगी। हम ज्यादा से ज्यादा ये सोच रहे थे कि हो सकता है,फांसी की सजा को कोर्ट उम्रकैद में बदल सकती है। हालांकि, हम उसके लिए भी तैयार नहीं थे। हम उसके खिलाफ भी आवाज उठाते। हम ये मानते हैं कि ऐसे दरिंदों को फांसी ही होनी चाहिए। ये पता चला उन्हें बरी कर दिया गया है तो हमें विश्वास ही नहीं हुआ।

इस फैसले से न्यायपालिका में हमारा भरोसा भी टूटा है। उम्मीद नहीं थी कि अदालत ऐसा कर सकती है। शाम तक वे दरिंदे जेल से बाहर होंगे। हम उस बच्ची की जान तो नहीं बचा सके, लेकिन कम से कम न्याय तो दिला ही सकते थे। अब तो हम वह भी नहीं कर पाए। अगर ऐसा ही होगा तो लड़कियां कैसे सुरक्षित रहेंगी। अपराधियों में खौफ कैसे बैठेगा?

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में बस इतना ही बताया है कि आरोपितों को बाइज्जत बरी और रिहा किया जा रहा है। उन्हें किस आधार पर बरी किया गया है ये अब नहीं बताया गया है।

काम से लौटते वक्त अगवा किया, फिर हत्या

अनामिका के साथ जब ये घटा, तब उसकी उम्र 19 साल थी। कम उम्र के बावजूद वह जानती थी कि घर की पूरी जिम्मेदारी उसे ही उठानी है। वो नौकरी कर परिवार का खर्च उठा रही थी।

मां अपनी बेटी को याद करते हुए कहती हैं- वह बहुत सपने देखती थी। कहती थी- जल्द से जल्द अपना घर खरीदना है। हमने भी कभी उस पर कोई पाबंदी नहीं लगाई। काम से लौटती थी तो तेजी से पास आकर कहती थी- मां मैं आ गई।

9 फरवरी 2012 को काम से घर लौटते वक्त उसे उठा लिया गया था। तीन दिन गैंगरेप के बाद उनकी हत्या कर दी गई। उनका परिवार दिल्ली के छावला में एक छोटे से किराये के कमरे में रहता है। पिता सिक्योरिटी गार्ड हैं और बेटी की मौत के बाद रिटायर हो जाने की उम्र में भी परिवार चलाने को नौकरी कर रहे हैं।

हमने दो साल पहले भी इस केस पर एक रिपोर्ट की थी। तब ये मामला सुप्रीम कोर्ट में अटका हुआ था। पढ़िए यह रिपोर्ट…

पीड़ित के पिता लड़खड़ाते कदमों से एक छोटे से किराए के घर में दाखिल होते हैं। ये उनके रिटायर हो जाने की उम्र है, लेकिन कुछ देर बाद ही उन्हें नाइट ड्यूटी पर जाना है। वे सिक्योरिटी गार्ड हैं और घर के अकेले कमाने वाले। बड़ी बेटी, जिसने नौकरी करके परिवार की जिम्मेदारी थाम ली थी, सामने दीवार पर अब उसकी तस्वीर टंगी है।

वे हाथ से इशारा करके कहते हैं- ये थी मेरी बेटी। और मैं उस लड़की को देखती रहती हूं। सलीके से पहने कुर्ते पर गले में पड़ा सफेद दुपट्टा। चेहरा बिल्कुल पिता जैसा। आंखों से झांक रहे सपने। ये तस्वीर उसने अपने दस्तावेजों पर लगाने को खिंचवाई थी। अब दीवार पर टंगी है। उसकी मौत के साथ सिर्फ उसके सपने ही खत्म नहीं हुए हैं बल्कि परिवार में बाकी रह गए चार लोगों के सपने भी चकनाचूर हो गए हैं।

पिता जो हमेशा ये सोचते थे कि अब बेटी कमाने लगी है, मेरे आराम करने के दिन आ रहे हैं। वह मां,जो बेटी के टिफिन में रोटियां रखते हुए गर्व करती थी कि मेरी बेटी काम पर जा रही है। छोटे भाई-बहन,जो अपनी हर जरूरत के लिए दीदी की ओर दौड़ते थे,अब गुमसुम उदास से बैठे हैं। वे घर में एक-दूसरे से अपना दर्द छुपाते हैं,अकेले होते हैं तो दिल भर रो लेते हैं, लेकिन गम है कि कम नहीं होता।

वह 9 फरवरी 2012 की शाम थी। पीड़ित रोज की तरह काम से घर लौट रही थी। सूरज डूब चुका था, कुछ धुंधली रोशनी रह गई थी। बस से उतरते ही उसके कदम तेज हो गए थे, 20 मिनट का ये पैदल रास्ता उसे जल्दी तय करना था, लेकिन उस दिन दरिंदों की उस पर नजर थी। लाल रंग की एक इंडिका कार में उसे अगवा कर लिया गया।

दरिंदों ने हरियाणा ले जाकर तीन दिन उससे गैंगरेप किया। फिर सरसों के खेत में उसे मरने छोड़ दिया। पुलिस रिकॉर्ड बताते हैं वह दरिंदों से जान की भीख मांगती रही, लेकिन हवस मिटाने के बाद भी उनका दिल नहीं पसीजा और उन्होंने उसे ऐसी दर्दनाक मौत दी कि लिखते हुए हाथ कांपने लगते हैं।

उसकी आंखों में तेजाब डाल दिया गया। उसके नाजुक अंगों से शराब की बोतल मिली थी। पाना गरम करके उसके शरीर को दाग दिया गया। अगर ये सब न भी हुआ होता तो क्या उसकी मौत का गम परिवार के लिए कम होता?

मुख्यमंत्री के पास गए तो सुनने को मिला ‘ऐसी घटनाएं होती रहती हैं’

पीड़ित की मौत पर कहीं गुस्सा नहीं फूटा था। वह मीडिया की सुर्खियां नहीं बनी थी। उसके चले जाने के बाद बहसें नहीं हुईं, कानून नहीं बदले गए। कोई नेता उसके घर नहीं गया। उसके पिता जब बेटी के लिए इंसाफ मांगने तत्कालीन मुख्यमंत्री के पास गए थे तो ये कहकर लौटा दिया गया था कि ‘ऐसी घटनाएं तो होती रहती हैं।’ उस वक्त शीला दीक्षित मुख्यमंत्री थीं।

पिता बताते हैं कि वहां अधिकारियों ने उन्हें एक लाख रुपए का चेक दिया। इसके अलावा किसी भी तरह की कोई मदद या मुआवजा नहीं मिला।

हाईकोर्ट ने फांसी की सजा दी थी, कहा था- ये हिंसक जानवर, शिकार ढूंढते हैं

इस केस में 2014 में निचली अदालत ने रवि, राहुल और विनोद के लड़कों को दोषी पाया था। तीनों को फांसी की सजा सुनाई गई थी। इसी साल अगस्त में दिल्ली हाईकोर्ट ने भी फांसी की सजा यथावत रखी । तब अदालत ने कहा था- ये वो हिंसक जानवर हैं, जो सड़कों पर शिकार ढूंढते हैं। अब सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने इस फैसले को पलट दिया है।

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