महेंद्र भट्ट ने राज्यसभा में उठाई मानव वन्य-जीव संघर्ष की समस्या, भूपेंद्र यादव ने कहा-स्थानीय निकायों को दे सकते है उन्मूलन अधिकार
देहरादून 27 मार्च। राज्यसभा सदस्य और प्रदेश अध्यक्ष श्री महेंद्र भट्ट ने मानव वन्यजीव संघर्ष से उत्तराखंड में होने वाली जनहानि का मुद्दा सदन में उठाया है। जिसमें उन्होंने ऐसे नरभक्षी जानवर के शीघ्र उन्मूलन की दृष्टि में नियमों के सुधार की केंद्र से मांग की है।
सदन में अनुपूरक प्रश्न संख्या 5 में बोलते हुए उन्होंने देवभूमि की इस गंभीर समस्या की तरफ सरकार का ध्यान आकृष्ट किया। उन्होंने कहा कि 3 वर्षो में ऐसी दुर्घटनाओं में हुए मानव नुकसान के ही आंकड़ों में अब तक 161 लोग अपनी जान गंवा चुके हैं जिसमें तेंदुए से 66, हाथी से 28, बाघ से 13, भालू से 5, सांप से 14 लोग शिकार बने हैं। उन्होंने इस स्थिति को चिंताजनक बताते हुए कहा कि इन घटनाओं के दोषी नरभक्षी जानवरों के उन्मूलन को नियमों के चलते राज्य को अनुमति मिलने में कई बार देर हो जाती है। उन्होंने पूछा, क्या सरकार इस संबंध में नियमों को लेकर शिथिलता देने पर विचार कर रही है?
प्रश्न जवाब देते हुए केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने कहा कि वन्य जीव अधिनियम के शेड्यूल 1 में आने वाली प्रजाति को लेकर वन्यजीव अधिकारी को ही ऐसे जानवरों को मारने की अनुमति देने का अधिकार है। वहीं दूसरी श्रेणी में आने वाले जानवरों को लेकर ये अधिकारी इस अनुमति को नीचे भी स्थानांतरित कर सकते हैं। केरल का जिक्र करते हुए बताया कि वहां कई मामलों में पंचायतों को भी अधिकार दिए गए हैं। चूंकि वन्य जीव संरक्षण का मामला है, फिर भी कोई जानवर बस्तियों गांवों के लिए खतरा बनता है, उसके लिए इस तरह के अधिकार दिए गए हैं। लेकिन दरअसल जनसंख्या का दबाव है, जिसके चलते कई बार ऐसी परिस्थितियों पैदा हो जाती हैं। इस संबंध में हमने हाल में ही उत्तराखंड में भी इस संबंध में बैठक की थी जिसमें रेस्क्यू सेंटरों की संख्या बढ़ने पर विचार किया गया है।
मानव-वन्यजीव संघर्ष के परिणाम व्यापक हैं, जिनमें फसलों का विनाश, कृषि उत्पादकता में कमी, संसाधनों (चारागाह भूमि और जल स्रोतों सहित) के लिए बढ़ती प्रतिस्पर्धा, पशुधन का शिकार, बुनियादी ढांचे को नुकसान, बीमारी का संक्रमण, और मनुष्यों और वन्यजीवों के लिए चोट या मृत्यु शामिल हैं।