जयंती: अटल ने दिया पहाड़ के संघर्ष का फल उत्तराखंड

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने 1996 में देहरादून में रैली में किया था राज्य बनाने का वादा जिसे 2000 में किया पूरा
उत्तराखंड को अलग राज्य बनाने का सपना अटल बिहारी वाजपेयी ने ही साकार किया था। उनके प्रधानमंत्री रहते ही उत्तराखंड के साथ-साथ झारखंड, छत्तीसगढ़ राज्य का भी गठन हो पाया था।
उत्तराखंड के गठन में अटल के योगदान को राज्य में निर्विवाद रूप से स्वीकार किया जाता है। राज्य गठन को लेकर लंबे समय से पहाड़ की जनता सड़कों पर संघर्ष कर रही थी। हर घर से बच्चा-बूढ़ा, जवान, महिलाएं सड़कों पर थे। पहाड़ी राज्य के सपना लेकर पहाड़ के लोगों की ओर से जो अभियान चलाया जा रही था, उसे 9 नवंबर 2000 को वाजपेयी ने प्रधानमंत्री बनते ही साकार कर दिया । अटल ने न केवल उत्तराखंड का गठन किया बल्कि इस नन्हें शिशु राज्य को अपने पैरों पर खड़ा होने को कई उपहार भी दिए। राज्य को विशेष औद्योगिक पैकेज देकर उन्होंने राज्य में औद्योगिक विकास की बुनियाद रखी। उन्होंने दस वर्ष को विशेष औद्योगिक पैकेज की घोषणा भी की थी। राज्य आंदोलनकारी और यूकेडी के केंद्रीय अध्यक्ष दिवाकर भट्ट ने कहा कि अटल जी छोटे राज्यों के पक्षधर थे। तभी उनके कार्यकाल में उत्तराखंड समेत तीन राज्यों का गठन हो पाया। उत्तराखंड उनके योगदान को कभी भूल नहीं सकता ।

सभा में व्यवधान से विचलित अटल ने बनाया उत्तराखंड

राज्य आंदोलनकारी प्रदीप कुकरेती बताते हैं कि वर्ष 1996 में देहरादून के परेड मैदान में हुई रैली में विरोध स्वरूप सांप छोड़ दिए गए थे। इससे रैली में भगदड मंच गई और बौखलाई पुलिस ने लाठीचार्ज कर दिया जिसकी चपेट में आकर 18 पत्रकार भी घायल हो गए। इससे आहत अटल इस घटना को कभी नहीं भूल पाएं और अवसर मिलते ही उन्होंने उत्तराखंड के साथ छत्तीसगढ़ और झारखंड की रचना कर दी।

स्कूटर से दून-मसूरी की सैर करते थे अटल

अटल जी का यूं तो संपूर्ण उत्तराखंड से गहरा नाता रहा मगर उन्हें दून और मसूरी से खास लगाव था। पहाड़ों की रानी मसूरी उन्हें बहुत आकर्षित करती थी। उनका एक साधारण व्यक्ति की तरह यहां स्कूटर पर घूमना आज भी दूनवासियों को आज भी याद है।
सरल व्यक्तित्व और ओजस्वी कंठ वाले अविस्मरणीय अटल। उत्तराखंड को अलग राज्य के रूप में अस्तित्व में लाने में अटल बिहारी वाजपेयी का महत्वपूर्ण योगदान रहा। अटल जी ही थे, जिन्होंने उत्तराखंड को विशेष राज्य का दर्जा दिया। वाजपेयी सरकार में ही उत्तराखंड देश का 27वां राज्य बना। इसके साथ ही उन्होंने राज्य को औद्योगिक पैकेज का उपहार दिया और वह भी तब जब राज्य में कांग्रेस सरकार थी। अटल जी का यूं तो संपूर्ण उत्तराखंड से गहरा नाता रहा, मगर उन्हें दून और मसूरी से खास लगाव था। पहाड़ों की रानी मसूरी उन्हें बहुत आकर्षित करती थी। उनका एक साधारण व्यक्ति की तरह यहां स्कूटर पर घूमना आज भी दूनवासियों को याद है।

अटल जी को जब भी अवसर मिलता था, वह मसूरी आते और यहां की शांत घाटियों में आत्ममंथन करते। देहरादून में उनके पारिवारिक मित्र स्वर्गीय नरेंद्र स्वरूप मित्तल रहते थे।
वाजपेयी जब भी दून आते,उनके पास खासा वक्त गुजारते। आज भी मित्तल परिवार के पास तस्वीरों के रूप में उनकी यादें मौजूद हैं। नरेंद्र स्वरूप मित्तल के पुत्र भाजपा नेता पुनीत मित्तल ने उनके साथ बिताए दिन स्मरण करते हुए बताया कि अटल जब भी देहरादून आते थे, उन्हीं के घर रुकते थे।

खुद उठाते थे अपना ब्रीफकेस

अटल में सरलता ऐसी थी कि वह अपने सामान का छोटा-सा ब्रीफकेस भी खुद उठाते थे। ट्रेन से आते-जाते थे। उनके ब्रीफकेस में एक धोती-कुर्ता,अंतर्वस्त्र,रुमाल और टूथब्रश होता था। जमीन से जुड़े अटल दून की सड़कों पर नरेंद्र स्वरूप मित्तल के साथ 1975 मॉडल के स्कूटर पर सैर करते थे। तब अटल नरेंद्र मित्तल के साथ स्कूटर पर ही मसूरी चले जाया करते थे। बाद में जब नरेंद्र स्वरूप मित्तल ने फिएट कार ले ली तो वह अटल जी को उसमें घुमाया करते थे।

मैंगो शेक और मूंग दाल थी पसंद

पुनीत मित्तल ने बताया कि अटल जी को मैंगो शेक और मूंग की दाल बेहद पसंद थी। वह हंसमुख स्वभाव के थे और नियमित रूप से सभी अखबार पढ़ते थे। अटल जी जब दून आते थे तो नरेंद्र स्वरूप उनके लिए 15-16 अखबार रोजाना मंगाया करते थे। दून के बाद वह मसूरी जाया करते थे और हफ्ते-दो हफ्ते यहां रहकर वापस दिल्ली लौट जाते थे।

शादी में पहुंचे थे अटल जी

पुनीत मित्तल की 12 फरवरी 1993 को शादी हुई तो उसमें भी अटल दून आए। पुनीत ने बताया कि उनके स्मरण में कम से कम 50 मर्तबा अटल उनके घर आए होंगे। प्रधानमंत्री बनने के बाद अटल जब परिवर्तन रैली में देहरादून आए थे तो उन्होंने पूरे मित्तल परिवार के साथ नाश्ता भी किया था।

फरवरी 2007 में आखिरी यात्रा

अटल जी ने देहरादून का आखिरी दौरा 19 फरवरी 2007 को किया था। उस वक्त 21 फरवरी को उत्तराखंड में विधानसभा के चुनाव होने थे। वह 19 फरवरी को प्रचार के अंतिम दिन यहां पहुंचे थे। भाजपा नेता बलजीत सिंह सोनी ने बताया कि उस दिन एयरपोर्ट पर वह अटल जी को व्हील चेयर पर हवाई जहाज तक ले गए थे। इससे पूर्व अटल जी नौ सितंबर 2006 को दून में आयोजित भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में पहुंचे थे। सुभाष रोड स्थित एक होटल में आयोजित यह बैठक सात से नौ सितंबर तक चली थी। इसमें लालकृष्ण आडवाणी, एम. वेंकैया नायडू, डॉ. मुरली मनोहर जोशी, नरेंद्र मोदी (तब गुजरात के मुख्यमंत्री) और राजनाथ सिंह जैसे भाजपा के तमाम बड़े नेता पहले दिन ही दून पहुंच गए थे। स्वास्थ्य संबंधी परेशानी की वजह से अटल जी अंतिम दिन इस बैठक का हिस्सा बने। उन्हें चलने में काफी दिक्कत हो रही थी। भाजपा नेता बलजीत सिंह सोनी ने बताया कि पार्टी के सभी नेता चाहते थे कि अटल जी परेड मैदान में उसी शाम होने वाली जनसभा को संबोधित करें, लेकिन अटल जी की स्थिति मंच पर चढ़ पाने की नहीं थी। लिहाजा, वह जनसभा में नहीं गए। होटल में कार्यकारिणी की बैठक में कुछ देर के लिए शामिल हुए और थोड़े आराम के बाद लौट गए.

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