जयंती:श्याम जी कृष्ण वर्मा का इंडिया हाउस था इंग्लैंड में क्रांतिकारियों का अड्डा

…………………………………………. चरित्र-निर्माण, समाज-सुधार तथा राष्ट्रवादी जन-चेतना के लिए समर्पित *मातृभूमि सेवा संस्था* (राष्ट्रीय स्तर पर पंजीकृत) आज देश के ज्ञात व अज्ञात राष्ट्रभक्तों को उनके अवतरण, स्वर्गारोहण व बलिदान दिवस पर कोटि कोटि नमन करती है। 🙏🙏🌹🌹🌹🌹
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🌹🙏🌹 *श्यामजी कृष्ण वर्मा जी* 🌹🙏🌹

जन्म: 04 अक्टूबर, 1857 माण्डवी (कच्छ) गुजरात
निधन: 30 मार्च1930 जिनेवा, स्विट्ज़रलैण्ड

✍️ क्रान्तिकारी गतिविधियों के माध्यम से भारत की आजादी के संकल्प को गतिशील करने वाले श्यामजी कृष्ण वर्मा जी क्रान्तिकारियों व विदेश में पढ़ने वालें भारतीय विद्यार्थियों के लिए प्रेरणास्रोत थे। वे वकील और पत्रकार होने के साथ साथ एक महान क्रांतिकारी थे। आपको ऑक्सफोर्ड से एम॰ए॰ और बार-ऐट-ला की उपाधियाँ मिलीं थीं। पुणे में दिये गये आपके संस्कृत के भाषण से प्रभावित होकर मोनियर विलियम्स ने श्यामजी कृष्ण वर्मा जी को ऑक्सफोर्ड में संस्कृत का सहायक प्रोफेसर बना दिया था। *उन्होंने लन्दन में ‘इण्डिया हाउस’ की स्थापना की* जो इंग्लैण्ड जाकर पढ़ने वाले छात्रों के परस्पर मिलन एवं विविध विचार-विमर्श का एक प्रमुख केन्द्र था। क्रूर ब्रिटिश अधिकारी *सर विलियम हट कर्जन वायली* को लंदन के इंपीरियल इंस्टीट्यूट में खुलेआम गोली मारकर उसकी हत्या के अपराध में *विदेशी धरती पर फाँसी चढ़ने वाले प्रथम भारतीय क्रांतिकारी मदनलाल ढींगड़ा,* श्यामजी कृष्ण वर्मा जी के प्रिय शिष्यों में से एक थे जिनके बलिदान पर उन्होंने छात्रवृत्ति (SCHOLARSHIP) भी शुरू की थी।

📝श्यामजी कृष्ण वर्मा जी ने सन् 1888 में राजस्थान के अजमेर में वकालत के साथ-साथ स्वराज के लिये काम करना शुरू कर दिया था। मध्यप्रदेश के रतलाम, राजस्थान के उदयपुर और गुजरात के जूनागढ़ में काफी लम्बे समय तक दीवान (अति महत्वपूर्ण पद) रहने के उपरान्त जब उन्होंने यह अनुभव किया कि ये राजे-महाराजे अंग्रेजों के खिलाफ़ कुछ नहीं करेंगे तो वे इंग्लैण्ड चले गये ।
*महर्षि स्वामी दयानंद सरस्वती से मिलने और उनका साहित्य पढ़ने के बाद श्यामजी उनके राष्ट्रवादी दर्शन से प्रभावित होकर पहले ही उनके अनुयायी बन चुके थे।* स्वामी दयानंद सरस्वती जी की प्रेरणा से ही उन्होंने लन्दन में ‘इंडिया हाउस’ की स्थापना की थी, जिससे मैडम कामा, वीर सावरकर, वीरेन्द्रनाथ चट्टोपाध्याय, एस. आर. राना, लाला हरदयाल और मदन लाल ढींगरा जैसे क्रांन्तिकारी जुड़े थे। यह इंडिया हाउस एक तिमंजिला भवन था जिसे उन्होंने आर्थिक तंगी में चल रहे एक धनी व्यक्ति से खरीदा था। इस भवन का नाम उन्होंने इण्डिया हाउस रखा और उसमें रहने वाले भारतीय छात्रों को छात्रवृत्ति देकर लन्दन में उनकी शिक्षा का व्यवस्था की। जब वर्ष 1905 में इंडिया हाउस एक छात्रावास (होस्टल) के रूप में खोला गया, तो इसमें 30 छात्रों को आवास उपलब्ध कराया गया। इण्डिया हाउस वर्ष 1905 से 1910 के दौरान लन्दन में स्थित एक अनौपचारिक भारतीय राष्ट्रवादी संस्था थी। वर्तमान में भारतीय उच्चायोग लंदन के इण्डिया हाउस में स्थित भारत का एक राजनयिक मिशन है।

✒ *इंडिया हाउस को भारतीय छात्रों के लिए एक छात्रावास के रूप में स्थापित किया गया था और यूरोप में भारतीय क्रांतिकारियों के लिए एक आकर्षण का केंद्र बन गया था। इंडिया हाउस का उद्घाटन 01 जुलाई 1905 को एच.एम.हयंडमैन ने किया था। उद्घाटन में उपस्थित अन्य प्रमुख हस्तियों में दादाभाई नौरोजी, चार्लोट डेस्पर्ड और भीकाजी कामा शामिल थे। इंडियन होम रूल सोसायटी द्वारा इंडिया हाउस में साप्ताहिक रविवार की बैठकें आयोजित की जाने लगीं । भारत में गिरफ्तारी की निंदा करने वाले प्रस्तावों को पारित किया गया और भारत के लिए पूर्ण स्वतंत्रता की वकालत की गई । उन्होंने सन् 1857 के विद्रोह की याद में वार्षिक शहीद दिवस समारोह भी आयोजित किया। श्यामजी कृष्ण वर्मा जी द्वारा स्थापित इंडिया हाउस को विनायक दामोदर सावरकर के संरक्षण में दे दिया गया था, क्योंकि श्यामजी कृष्ण वर्मा पेरिस में निर्वासित थे। श्यामजी कृष्ण वर्मा जी की पत्रिका, द इंडियन सोशियोलॉजिस्ट, इंडिया हाउस का एक अंग थी। जुलाई 1909 में सर विलियम हट कर्जन वायली की हत्या में फंसने के बाद संगठन भंग हो गया। मदन लाल ढींगरा जी लगातार इंडिया हाउस आते जाते रहते थे और सावरकर जी ने उनके कार्यों की निंदा करने से इंकार कर दिया था। उनकी गिरफ्तारी के बाद, इंडिया हाउस को बंद कर दिया गया और बेच दिया गया।

✒ 31 मार्च 1930 में जिनेवा के अस्पताल में उन्होंने यह पार्थिव शरीर छोड़ दिया। अंतरराष्ट्रीय कानून के कारण उनका शव सेंट जार्ज सीमेट्री में रख दिया गया। बाद में उनकी पत्नी की अस्थियां भी यहीं रखी गई। चार अक्टूबर 1989 को उनकी स्मृति में डाक टिकट जारी किया गया*आजादी के 55 साल तक किसी भी सरकार ने श्याम जी कृष्ण वर्मा की अस्थियों की सुध नहीं ली थी,* तब सन् 2003 में श्याम जी कृष्ण वर्मा और उनकी पत्नी भानुमति कृष्ण वर्मा जी (जो क्रांतिकारी कार्यों में श्याम जी की सहयोगी थी) की अस्थियों को गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने स्विट्ज़रलैंड सरकार से अनुरोध करके भारत मंगवाया और मांडवी, भुज (गुजरात ) में हूबहू इंडिया हाउस जैसी इमारत बनाकर उनको सच्ची श्रद्धांजलि दी।
अब यह भुज का बेहद लोकप्रिय स्मारक है जहां प्रतिदिन हजारों दर्शनार्थी आते हैं।🌹🙏🙏🌹

✍️ राकेश कुमार
🇮🇳 *मातृभूमि सेवा संस्था 9891960477* 🇮🇳

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