द्रौपदी का डांडा हिमस्खलन: श्वेत बर्फ में रंगीन रस्सियां देख ढूंढें 26 शव

Avalanche In Uttarkashi Draupadi Ka Danda Peak: Dead Bodies Found With Help Of Colorful Rope
Uttarkashi Avalanche: पहले की हवाई रेकी, फिर बर्फ के बीच रंगीन रस्सियां देखकर खोजे 26 पर्वतारोहियों के शव

उत्तरकाशी में इसी पहाड़ी पर हुआ हिमस्खलन

हिमस्खलन में दबे पर्वतारोहियों को खोजने में रंगीन रस्सी ने खोजी दलों की मदद की। ट्रैक के ऊपर से जब हेलीकॉप्टरों ने उड़ान भरकर रेकी तो पर्वतारोहियों की रंगीन रस्सी सफेद बर्फ पर दिखाई दी। काफी दूर तक यह रस्सी दिख रही थी।

इसके बाद वहां पर करीब डेढ़ दिन की मेहनत के बाद संयुक्त खोजी दल पहुंचा और मानवीय प्रयासों से शवों की तलाश में जुट गया। जो लोग गहरे क्रेवास में फंसे हैं, उन्हें निकालने में समय लग रहा है। इसके साथ ही मौसम भी दुश्वारियां खड़ी कर रहा है।

दरअसल, बर्फ में कई फीट या मीटर गहराई तक दबे शवों को खोजने को कोई विशेष तकनीक खोजी दल के पास नहीं होती है। इसके लिए मानवीय प्रयासों से ही उन्हें चढ़ाई वाले रास्ते का अनुमान लगाकर खोजा जाता है।

द्रोपदी का डांडा में रेस्क्यू अभियान

द्रोपदी का डांडा में हुए हिमस्खलन में भी इसी तरह मैन्युअली खोजी अभियान चलाया गया। एसडीआरएफ कमांडेंट मणिकांत मिश्रा ने बताया कि पर्वतारोहण के लिए एक विशेष ट्रैक का ही इस्तेमाल किया जाता है। इस पर्वत पर चढ़ने के लिए चुनिंदा ट्रैक हैं। सेना के चीता हेलीकॉप्टर ने इन ट्रैक के ऊपर से उड़ान भरी और एक दिन तक रेकी की।

उत्तरकाशी में यहीं हुआ एवलांच

इस दौरान मंगलवार को एक ट्रैक पर पर्वतारोहियों की रस्सी नजर आ गई। कुछ रंगीन वस्तुओं जैसा भी दिखाई दे रहा था। इस स्थान को देखकर ही यहां पर खोजी दल को भेजा गया। बुधवार से यहां पर खोज शुरू हुई और अब तक 26 शवों को निकाल लिया गया है।

द्रोपदी का डांडा ट्रैक

मिश्रा ने बताया कि यह दल क्रेवास में फंसे लोगों (शवों) को मन्युअली बाहर निकाल रहे हैं। जो लोग अभी नहीं मिले हैं उनके बारे में आशंका जताई जा रही है कि वह इसके आसपास ही किसी गहरे क्रेवास में फंसे हुए हैं। गहरे क्रेवास में फंसे लोगों को निकालने में ज्यादा समय लगता है। इसका कारण है कि इनमें बड़ी मात्रा में बर्फ भर जाती है।
बर्फ में क्रेवास
ग्लेशियर की बड़ी दरारों को क्रेवास कहा जाता है। यह दरार बहुत गहरी होती हैं। इनके ऊपर बर्फ जम जाती है। इसलिए यह दरारें ऊपर से दिखाई नहीं देती। ग्लेशियर में अगस्त-सितंबर में बहुत अधिक मात्रा में क्रेवास बनते हैं। इस दौरान ग्लेशियर के ऊपर जमी बर्फ की परत पिघल जाती है।

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