विवेचना: वामपंथ विरूद्ध हिंदुत्व: पहला हमला सनातनी मान्यता,दूसरा नैतिकता पर

क्या आप ने कभी सोचा भी है -??-

“वामपंथ” ने भारत का और हिंदुओं का कितना नुकसान किया है।

“हज़ार साल” की गुलामी में इस्लाम और 200 साल में – “अंग्रेज़ और ईसाई” न कर सके,इतना हिंदुओं का – “धार्मिक और संस्कृतिक” – नुकसान वामपंथियों ने किया है।

खुद को बुद्धिजीवी कहलाने वाले – ये लोग – वाकई में – “देशद्रोही और बेईमान” हैं।

समझ लीजिये कैसे।

वामपंथ ने “सनातन धर्म की मान्यताओं” की निंदा की, – उन्हें “अंधश्रद्धा” कहा।वस्तुत: हर धर्म श्रद्धा ही होता है,
जहां अपनी श्रद्धा तो श्रद्धा होती है और दूसरे की “अंधश्रद्धा”,- इससे अधिक कुछ नहीं।

सत्य, जैसे सूरज के कारण प्रकाश मिलता है, यह दिखता है, उसमें विश्वास करने की जरूरत नहीं होती – वैसा सत्य किसी के पास नहीं है।
सभी मान्यताएँ हैं, श्रद्धा है, सब की एक epistemological limitation आ जाती है जिसके बाद अंतर्यात्रा शुरू होती है।

अस्तु, – वामपंथ के नुक़सानों की बात करते हैं।

समाज के लिए पहचान महत्व की होती है, और उस पहचान के आधार स्तम्भ देश, धर्म और ईश्वर संबन्धित मान्यताएँ होती हैं।लोग इन्हीं के लिए जीते मरते हैं।

द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात “वामियों” ने एक पश्चाताप में “जलते हुए विश्व को” – “राष्ट्रवादी भावना” से नफरत करना सिखाया कि – इसी से हत्याएँ होती हैं।
फिर धर्म पर आए कि – यह तो झूठ का पुलिंदा ही है,,

है कोई ईश्वर तो सामने आए, – अन्यथा हम धर्म को मज़ाक कहेंगे, अफीम कहेंगे और प्रतिबंधित करेंगे।
जहां हमारी सत्ता होगी वहाँ हम धर्म को “प्रतिबंधित” करेंगे,और जहां हमारी सत्ता नहीं होगी – वहाँ उसका मज़ाक उडाएंगे — ताकि लोगों के लिए धर्म महत्व ही ना रहे।

भारत में “वामियों” ने – यह बड़े ही सफलतापूर्वक किया – लेकिन – “केवल हिंदुओं के साथ”।यूरोप में इसाइयत का बैंड बजा चुके थे,मगर भारत में “ईसाई सत्ता” थी उसने इन “बौधिक वेश्याओं” को हिंदुओं का नुकसान करने ही इस्तेमाल किया।

भारत स्वतंत्र होने के बाद भी ये हिंदुओं की ही श्रद्धाओं का मज़ाक बनाते रहे – जिसके कारण अपनी श्रद्धाओं से डिगे हिन्दू drift हो गए।कुछ को कई बाबाओं ने पकड़ लिया, कुछ दरगाहों में गए, कुछ को – ईसा के चरवाहों ने अपने चारागाहों में ले लिए और कुछ नास्तिक भी हुए।

लेकिन इन वामपंथियों ने हिंदुओं को अपना शिकार बनाते हुए – “विदेशी मूल” के विधर्मों पर – कभी भी जुबान नहीं खोली।जिस “सायंटिफिक टेंपर” की वामपंथी रट लगाए रहते हैं “विदेशी मूल” के विधर्मों पर सवाल उठाने के लिए – उनके पास भी आधार बहुत हैं,

लेकिन क्या –“अंधश्रद्धाओं” – की बात करते किसी “वामपंथी” ने इन – “विदेशी मूल के विधर्मों” – की कभी बात भी की है ?
वामियों को यह समझ नहीं आता – ऐसी बात नहीं है,
लेकिन उन्होने यह अपने स्वार्थ के लिए न केवल – हिंदुओं से बल्कि – इस देश से भी बेईमानी की है,जिसकी सज़ा उन्हें मिलनी ही चाहिए।
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अभी कुछ लोग इस बात पर हैरान या परेशान हैं कि – संसद और विधानसभाओं में हाशिये पर पहुंचा वामपंथ अभी तक खत्म या पराजित क्यों नहीं हुआ,
बल्कि उसके सामर्थ्य में कोई कमी क्यों नहीं आई -??-
कारण है गलत युद्धक्षेत्र।

हम लोग – वामपंथ को एक राजनैतिक बुराई या प्रतिद्वंदी या शत्रु के रूप में देख रहे हैं – जबकि वामपंथ एक “सामाजिक समस्या” बन चुका है।

राजनैतिक वामपंथ केवल उसका एक सामने दिखने वाला चेहरा या प्रकार है।उसका मूल कहीं और है।

“वामपंथ फेमिनिज्म” में भी है और “सेक्युलरिज्म” में भी।
पूंजी के वितरण के दावों में भी है और कम्पनियों पर लगाये गए सीएसआर में भी।राजनैतिक तौर पर ये केवल – एक पार्टी या विचारधारा दिखता है,- पर ये बुराई – आती समाज से है।

वामपंथ का मूल है – “सामाजिकता और नैतिकता का पतन”नैतिकता वामपंथ के लिए “विष” है।
इसलिए वो “नैतिकता” को हर तरीके से टारगेट करता है।
मुफ्तखोरी को, अवैध संबन्धों को, रिश्वत, कामचोरी, परीक्षा में नकल,- ये सब वामपंथ ही – जायज ठहराता है।

अगर इसे – “सामाजिक तौर” पर ना निपटा जाए तो – फिर आप इसे – “राजनैतिक और आर्थिक तौर”- पर कितना भी निपटाते रहिये,ये वामपंथ – बार बार उठकर खड़ा होता रहेगा।आखिर – “राजनीति और आर्थिक क्षेत्र में” – लोग आते हमारे – इसी समाज – से ही तो हैं।

“राजनैतिक और आर्थिक” रूप से वामपंथ से लड़ाई केवल एक “छाया” से युद्ध है और छाया केवल उतनी ही शक्तिशाली होती है जितना की मूल।जैसे – रावण की शक्ति – उसकी नाभि में थी।

वामपंथ के हरेक रूप की शक्ति, चाहे आर्थिक हो या राजनैतिक या कोई और, -वामपंथ असली शक्ति – “सामाजिक वामपंथ” में है।

यह सांस्कृतिक, राजनैतिक और आर्थिक वामपंथ के मूल में है,ये तीनों उसके वो मुख हैं जो हमारे बीच जहर उगलते दिखते मात्र हैं,मगर उनका संचालन जो करता है वो सामाजिक वामपंथ है।

हर बुराई को जब तक वामपंथ को – “सामाजिक समर्थन” – मिलता रहेगा – तब तक वामपंथ नहीं मरेगा बल्कि नए नए स्वरूप में पुनर्जन्म भी लेगा।अगर आप भले ही भ्रष्टाचार के लिए वामपंथ को कितना भी कोसिए,अगर उसके सामने हें हें हें हें करते हुए – दुम हिलाते हैं ताकि – आप का कोई काम हो जाये, आप ही उसे “संजीवनी” दे रहे हैं।
और हाँ, असल में – ये किसी पक्ष, धर्म की मोनोपोली नहीं होता और शर्म इसे नहीं होती।परेशानी पैर में है तो – दवा सर पर मत लगाइये।

सामाजिक तौर पर वामपंथ को खत्म करने के तरीके वही हैं जो पुराने भारत में थे।“नैतिकता” की स्थापना, – “धर्म सम्मत आचरण” और “’वामपंथियों” का सामाजिक अपराधी के रूप में “’सामाजिक बहिष्कार”।

बस इसे खत्म करने का एक तरीका “सामाजिक रूप” से लोगों से जुड़ना और दूसरा “परिवार को और मजबूत” बनाना।
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सांड को बैल क्यूँ बनाया जाता है ?
गाय को जो बछड़ा होता है वो आगे चलकर सांड (Bull) बनता है।

सांड को अपनी शक्ति का अंदाजा होता है।
वैसे तो आमतौर पर सांड शांत होता है लेकिन चिढ़ने पर भयंकर हो जाता है।
सांड आसानी से वश में भी नहीं होता और शायद ही हल या गाड़ी को जोता जाता है।
उसे वश करना भी आसान नहीं होता — बहुत हिंसक प्रतिकार करता है।

लेकिन उसको “बधियाकर” बैल (bullock, Ox) बनाया जाता है तो वो “नपुंसक” हो जाता है।
ताकत तो रहती है लेकिन – नपुंसक होने के कारण -आसानी से वश में किया जा सकता है,
हल गाड़ी, माल ढोने, कोल्हू से तेल निकालने – आदि कई काम आता है।

कोल्हू का बैल सुना होगा आप ने, – कोल्हू का सांड सुना है कभी -??-

एक समाज को – सांड से बैल बनाने का – सब से सही तरीका है उसको “बदनाम” करते रहो।
उस की – “सहनशीलता” के मापदंड आप बनाओ और अपनी मर्जी के अनुसार बदलते रहो।
“बदनामी” की इतनी मार मारो कि – आप को देखते ही वो गर्दन झुकाकर “जुवा” स्वीकार करे।

सांड को बैल – वही लोग बनाते हैं – जो उसकी मेहनत की खुद खाते हैं। और अंत में उसे भी – काटकर “BEEF PARTY” करते हैं।

त्रिशूल उठाकर चलिये – महादेव का – यह नंदी – अब बैल नहीं बनेगा।

किसी देश पर कब्जा करने के – “बौद्धिक युद्ध” – के “चार कदम” हैं।

रुसी जासूस “बेज़मेनोव” ने भारत में भी खूब काम किया है।

उसकी रोपी हुई पौध आज भी भारत में लहलहा रही है।

वे चार कदम हैं :—
1. Demoralisation, यानि – मनोबल का पतन करना..
2. Destabilisation यानि – अस्थिरता पैदा करना…
3 Crisis यानि – संकट पैदा करना…
4.जिसे वे कहते हैं Normalisation या सामान्यीकरण पर जिसका अर्थ होता है,
“वाम तंत्र” का देश पर कब्जा।

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पहले चरण में – पूरी एक पीढ़ी लग जाती है।पूरी एक पीढ़ी को – “शिक्षा और मीडिया” – के माध्यम से “ब्रेनवाश” करके उनका “मनोबल” तोड़ दिया जाता है।

दूसरे चरण में :– देश की – “प्रशानिक व्यवस्था” – में “असंतुलन” खड़ा किया जाता है,
जिससे कि देश “संकट” की घड़ी का सामना करने में “असमर्थ” हो जाये।
इस प्रक्रिया में 5-10 वर्ष लग सकते हैं।

फिर कोई एक “अकस्मात” घटना होती है जो देख कर – “एक तात्कालिक घटना” का परिणाम लगती है,पर जिसकी – “भूमिका वर्षों”- से लिखी जाती है।

“अस्थिर प्रशासन” उसका सामना करने में “अक्षम सिद्ध” होता है और “वामपंथी तंत्र” देश पर कब्जा कर लेता है।यानि “चेक मेट”.

ये सारी बाते मैंने अपने मन से नही कही है यह सब बाते रुसी जासूस के इन्टरव्यू से लेकर ही लिखी है,
रुसी जासूस “बेज़मेनोव” इन्टरव्यू का वीडियों यूट्यूब पर उपलब्ध है।सोवियत रशिया की KGB के एजेंट यूरी बेज़्मेनोव का वह इंटरव्यू अवश्य सुनें यूट्यूब पर उपलब्ध है।

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