विवेचना:शिंदे पर दांव लगा भाजपा ने लगाये पांच निशाने

शिंदे को CM बनाकर BJP ने साधे 5 निशाने:ठाकरे की विरासत पर कब्जा, उद्धव का संगठन भी टूटेगा; BMC भी हथियाएंगे

महाराष्ट्र के राजनीतिक नाटक के इस सीजन का क्लाइमैक्स आ गया है। एकनाथ शिंदे महाराष्ट्र के नए CM बने हैं। बीजेपी ने उन्हें समर्थन दिया है और मंत्रिमंडल में भी शामिल हुई है। इस क्लाइमैक्स के बाद सभी के मन में बस एक ही सवाल है। आखिर बीजेपी ने सिर्फ 49 विधायकों के समर्थन वाले एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री क्यों बनाया?  में विवेचना में जानते हैं कि बीजेपी ने कैसे एक तीर से पांच निशाने साधे हैं…

निशाना-1: एकनाथ शिंदे के जरिए उद्धव की शिवसेना को खत्म करना

महाराष्ट्र में बीजेपी और शिवसेना, दोनों ही हिंदूवादी राजनीति के कॉम्पिटिटर हैं। 30 सालों से साथ होने के बावजूद दोनों ही जानते हैं कि किसी एक के बढ़ने का मतलब दूसरे का कम होना है। आकंड़े भी इसकी गवाही देते हैं। साल-दर साल शिवसेना सिमटती गई और बीजेपी उतनी ही तेजी से आगे बढ़ती गई।

पिछले विधानसभा चुनाव में शिवसेना और बीजेपी दोनों साथ मिलकर लड़ीं। बीजेपी बड़ी पार्टी बनी और मुख्यमंत्री पद पर दावा ठोंक दिया, लेकिन शिवसेना समझ गई कि अगर मुख्यमंत्री की कुर्सी फिर से फडणवीस के हाथ में गई तो बीजेपी को तेजी से फैलने से कोई रोक नहीं पाएगा। 2019 में बीजेपी और उद्धव के बीच मचे घमासान की बड़ी वजह मुख्यमंत्री की कुर्सी ही थी।

चूंकि शिवसेना को खत्म किए बिना बीजेपी आगे नहीं बढ़ सकती, लेकिन शिवसेना खत्म हो जाए और उसका ब्लेम बीजेपी के सिर पर न आए, इसलिए शिंदे को मुख्यमंत्री बनाया गया। इसके अलावा शिंदे को मुख्यमंत्री बनाकर बीजेपी ये संदेश देना चाहती है कि उन्हीं का खेमा असली शिवसेना है।

गुरुवार को महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेते हुए एकनाथ शिंदे।

निशाना-2: पूरे राजनीतिक  ड्रामे में शिंदे को आगे कर खुद का बचाव

बीजेपी ठाकरे की विरासत वाली शिवसेना को समेटना तो चाहती है, लेकिन वो यह भी नहीं चाहती थी कि महाराष्ट्र की जनता के सामने यह ठीकरा उसके सिर फूटे। यही वजह है कि इस बगावत में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के बावजूद बीजेपी खुद सामने नहीं आई। उधर, शिंदे बार-बार खुद को असली शिवसेना बताते रहे। और आखिरकार बीजेपी ने शिवसैनिक शिंदे को मुख्यमंंत्री बना कर सबसे बड़ा दांव खेल दिया।

इसके साथ ही शिंदे को मुख्यमंत्री बनाने के पीछे एक बड़ी वजह यह भी है कि बीजेपी अभी टेस्ट एंड ट्रायल करना चाहती है। वो परखना चाहती है कि बाल ठाकरे के बेटे उद्धव ठाकरे की कुर्सी और पार्टी छीनने पर महाराष्ट्र की जनता कैसे रिएक्ट करती है। चुनाव में अगर इसका उल्टा असर पड़ा तो नतीजे केवल शिंदे और उनके गुट को भुगतने होंगे। सरकार का चेहरा न होने की वजह से बीजेपी काफी हद तक इससे बची रहेगी।

निशाना-3ः शिवसेना तो रहेगी, लेकिन ठाकरे की विरासत सिमट जाएगी

महाराष्ट्र में बालासाहेब ठाकरे की विरासत बीजेपी की राह का बड़ा रोड़ा थी। जिसकी झंडा बरदारी फिलहाल उद्धव ठाकरे कर रहे हैं। शिंदे को सुप्रीम पावर देने से शिवेसना के संगठन में टूट पड़ने के आसार हैं। संगठन के लोग मुख्यमंत्री के खेमे में जाना चाहेंगे। इस तरह उद्धव ठाकरे की ताकत और कमजोर पड़ जाएगी।

शिंदे के बागी कैंप की ओर से लगातार यह कहा जाता रहा कि उद्धव ठाकरे हिंदुत्व को भूलकर एनसीपी और कांग्रेस के करीबी हो गए हैं। शिंदे के इस दांव को उद्धव भी भांप चुके थे, इसीलिए दो तिहाई पार्टी गंवाने और सुप्रीम कोर्ट में सुनिश्चत हार के बावजूद जाते-जाते औरंगाबाद का नाम संभाजी नगर और उस्मानाबाद का धाराशिव कर दिया। दरअसल, उद्धव नहीं चाहते थे कि हिंदुत्व की राजनीति पर उनकी पकड़ कमजोर हो।

भाजपा ने सोची-समझी रणनीति के तहत ही शिंदे को मुख्यमंत्री बनाया है ताकि वो धीरे-धीरे उद्धव के खेमे को कमजोर कर सके।

निशाना-4: 37 सालों से शिवसेना की ताकत का सोर्स BMC छीनना

बीजेपी के एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री बनाने के दांव की एक और वजह एशिया के सबसे अमीर नगर निगम बृहनमुंबई म्यूनिसिपल कॉर्पोरेशन यानी BMC पर कब्जे की लड़ाई है। बीजेपी का प्रमुख एजेंडा शिवसेना से BMC को छीनना है। इस साल सितंबर में BMC के चुनाव होने हैं और इनमें BJP की नजरें शिवसेना के वोट बैंक को कमजोर करने की है।

एकनाथ शिंदे समेत शिवसेना के दो तिहाई से ज्यादा विधायकों को समर्थन देते हुए सरकार बनवाकर बीजेपी ने शिवसेना के वोट बैंक में सेंध लगाने की कोशिश की है। इससे शिवसेना कमजोर होगी, जिसका फायदा बीजेपी को BMC चुनावों में हो सकता है।

दरअसल, मुंबई में शिवसेना की ताकत BMC में उसकी मजबूत पकड़ से ही आती है। शिवसेना 1985 में BMC में सत्ता में आई थी और तब से BMC पर उसका कब्जा बरकरार है। 2017 के चुनावों में BMC पर कब्जे के लिए शिवसेना और बीजेपी के बीच कांटे की लड़ाई हुई थी और 227 सीटों में से शिवसेना को 84 और बीजेपी को 82 सीटें मिली थीं।

निशाना-5: शिंदे को मुख्यमंत्री बनाने से मराठाओं में बीजेपी का दखल बढ़ेगा

सभी जानते हैं कि बाल ठाकरे ने अपनी राजनीति की शुरुआत मराठी मानुष से की थी। यानी मराठा अस्मिता उनकी राजनीति का कोर रही है। ये बात अलग है कि 90 के दशक में हिंदूवादी राजनीति के जोर पकड़ने के बाद ठाकरे ने हिंदूवादी राजनीति की भी शुरुआत कर दी।

इधर, बीजेपी राष्ट्रीय पार्टी होने की वजह से मराठी अस्मिता की राजनीति नहीं कर सकती है। इससे बाकी हिंदी भाषी बेल्ट में उस पर बुरा असर पड़ेगा। बीजेपी को ऐसे में हिंदुत्व के अलावा एक और फैक्टर की जरूरत थी। उसकी भरपाई के लिए भाजपा ने शिंदे पर दांव खेला है। शिंदे मराठा हैं और इसका फायदा बीजेपी को जरूर मिलेगा।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *