उत्तराखंड के पहाड़ियों की असल दीपावली है ‘इगास’

कल 4 नवम्बर को है *इगास* – उत्तराखण्ड की लुप्त होती दीपावली

शायद ही किसी गैर उत्तराखण्डी ने इगास के बारे में सुना होगा. दरअसल आजकल के पहाडी बच्चों को भी इगास का पता नहीं है कि इगास नाम का कोई त्यौहार भी है.

दरअसल पहाडियों की असली दीपावली इगास ही है, जो दीपोत्सव के ठीक ग्यारह दिन बाद मनाई जाती है. दीपोत्सव को इतनी देर में मनाने के दो कारण हैं. पहला और मुख्य कारण ये कि – भगवान श्रीराम के अयोध्या वापस आने की खबर सूदूर पहाडी निवासियों को ग्यारह दिन बाद मिली, और उन्होंने उस दिन को ही दीपोत्सव के रूप में हर्षोल्लास से मनाने का निश्चय किया. बाद में छोटी दीपावली से लेकर गोवर्धन पूजा तक सबको मनाया, लेकिन ग्यारह दिन बाद की उस दीवाली को नहीं छोडा.

पहाडों में दीपावली को लोग दीए जलाते हैं, गौ पूजन करते हैं, अपने ईष्ट और कुलदेवी कुलदेवता की पूजा करते हैं, नयी उडद की दाल के पकौड़े और गहत की दाल के स्वांले (दाल से भरी पूडी़) बनाते हैं. दीपावली और इगास की शाम को सूर्यास्त होते ही हर घर के द्वार पर ढोल दमाऊ के साथ बडई (एक तरह की ढोल विधा) बजाते हैं फिर लोग पूजा शुरू करते हैं, पूजा समाप्ति के बाद सब लोग ढोल दमाऊ के साथ कुलदेवी या देवता के मंदिर जाते हैं और वहां पर मंडाण (पहाडी नृत्य) नाचते हैं, चीड़ की राल और बेल से बने भैला (एक तरह की मशाल) खेलते हैं, रात के बारह बजते ही सब घरों से इकट्ठा किया सतनाजा (सात अनाज) गांव की चारों दिशा की सीमाओं पर रखते हैं. इस सीमा को दिशाबंधनी कहा जाता है इससे बाहर लोग अपना घर नहीं बनाते. ये सतनाजा मां काली को भेंट होता है.

इगास मनाने का दूसरा कारण है गढवाल नरेश महिपति शाह के सेनापति वीर माधोसिंह गढवाल तिब्बत युद्ध में गढवाल की सेना का नेतृत्व कर रहे थे, गढवाल सेना युद्ध जीत चुकी थी लेकिन माधोसिंह सेना की एक छोटी टुकडी के साथ मुख्य सेना से अलग होकर भटक गए. सबने उन्हें वीरगति को प्राप्त मान लिया. लेकिन वो जब सकुशल वापस आए तो सबने उनका स्वागत बडे जोर शोर से किया. ये दिन दीपोत्सव के ग्यारह दिन बाद का दिन था, इसलिए इस दिन को भी दीपोत्सव जैसा मनाया गया. उस युद्ध में माधोसिंह गढवाल – तिब्बत की सीमा तय कर चुके थे जो वर्तमान में भारत- तिब्बत सीमा है.

भारत के बहुत से उत्सव लुप्त हो चुके हैं. बहुत से उत्सव तेजी से पूरे भारत में फैल रहे हैं जैसे महाराष्ट्र का गणेशोत्सव, बंगाल की दुर्गा पूजा, पूर्वांचल की छठ पूजा, पंजाब का करवाचौथ, गुजरात का नवरात्रि में मनाया जाना वाल गरबा डांडिया आदि.

लेकिन पहाडी त्यौहार इगास लुप्त होने वाले त्यौहारों की श्रेणी में है. इसका मुख्य कारण है बढता बाजारवाद तथा क्षेत्रीय लोगों की उदासीनता और पलायन है.

धन्यवाद है उत्तराखण्ड की राज्य सरकार का जिसने इसे राज्य का मुख्य त्यौहार का दर्जा देकर इस अवसर पर सरकारी अवकाश की घोषणा की.

आप सभी को आने वाली इगास की ढेर सारी शुभकामनाएं!💐💐

©️ BIST BABA की वाट्सअप पोस्ट

*क्यों मानते है इगास (Igas Festival)?*

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार श्रीराम जी के वनवास से अयोध्या लौटने पर लोगों ने कार्तिक कृष्ण अमावस्या को दीये जलाकर उनका स्वागत किया था लेकिन गढ़वाल क्षेत्र दुरुस्थ इलाकों में राम के लौटने की सूचना दीपावली के ग्यारह दिन बाद कार्तिक शुक्ल एकादशी को प्राप्त हुई, इसीलिए ग्रामीणों ने अपनी खुशी जाहिर करते हुए एकादशी को दीपावली का उत्सव मनाया।

दूसरा तथ्य यह है कि गढ़वाल राज्य के सेनापति वीर भड़ माधोसिंह भंडारी जब तिब्बत के साथ दीपावली पर्व पर लड़ाई से वापस नहीं लौटे तो जनता इससे काफी दुखी हुई और उन्होंने निराश होकर दीप उत्सव नहीं मनाया। इसके ठीक ग्यारह दिन बाद एकादशी को जब वह लड़ाई से लौटे, तब उनके लौटने की खुशी में दीपावली मनाई गई। जिसे *इगास पर्व* नाम दिया गया।
*हरिबोधनी एकादशी यानी इगास पर्व* पर विष्णु भगवान शीर सागर से शयनावस्था से जागृत होते हैं इसलिए इस दिन विष्णु की पूजा करते है। साथ ही गोवंश की पूजा भी की जाती है।

*भैलू क्या है?*

इगास (Igas Festival) के दिन भैलू खेला जाता है जो रोशनी का प्रतीक है। भैलू एक प्रकार का रोशनी करने का तरीका है जिसमे रस्सी के एक सिरे पर मशाल बनाकर तथा दूसरे सिरे से हाथ से पकड़कर सिर के उप्पर घुमाते है, जिससे रोशनी का एक प्रतिमान बनता है जो देखने में काफी सुंदर लगता है।
यह पर्व मवेशियों के लिए भी खास होता है इस दिन मवेशियो को टीका लगाकर जौ का दाला खिलाया जाता है।
*सभी मित्रो को इगास की हार्दिक शुभकामनाएं।
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