मोदी क्या करके सफल हो रहे जहां चूक रहा विपक्ष?

Opposition Parties Leadership To Articulate An Alternative Governing Vision Against Narendra Modi
प्रधानमंत्री मोदी ने ऐसा क्या किया जिससे उन्हें मिली सफलता? विपक्ष से क्या हो रही है चूक
कई ऐसे विषय हैं जिनकी ओर विपक्षी दलों ने ध्यान नहीं दिया। विपक्षी दलों को एक ऐसा नेतृत्व खड़ा करना होगा जो राष्ट्रीय गौरव, सांस्कृतिक मुद्दों और आर्थिक विकास को ध्यान में रखते हुए वैकल्पिक शासन की दृष्टि उत्पन्न कर सके। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ऐसा किया है और इसीलिए उन्हें सफलता मिली है।

नई दिल्ली: देश के कुलीन वर्ग को हाशिये पर खड़े लोगों की बात सुनने की जरूरत आखिर क्यों है। आजकल राजनीति में सिर्फ अर्थव्यवस्था की ही बात होती है, लेकिन धर्म, संस्कृति और लोगों की गहरी आस्थाओं को नजरअंदाज किया जाता है। इससे गुस्सा, हताशा और असंतोष पैदा होता है। यही वजह है कि राष्ट्रवादी, दक्षिणपंथी राजनीति को फायदा हो रहा है। सवाल यह भी है कि क्या कुलीन वर्ग की चर्चाएं जमीनी हकीकत से कट चुकी हैं। राजनीतिक दर्शन को सड़कों और गांवों तक पहुंचना चाहिए, जहां लोग इकट्ठा होकर चर्चा करते हैं। सवाल ये नहीं कि सत्ता में बैठे लोग बुद्धिजीवियों की सुन रहे हैं या नहीं, बल्कि ये है कि क्या बुद्धिजीवी लोगों की सुन रहे हैं। भारत सहित कई देशों में कुलीन वर्ग के खिलाफ आक्रोश है। शायद इसलिए भी क्योंकि ये कुलीन वर्ग कोई बेहतर विकल्प नहीं दे पाए हैं। वे सांस्कृतिक और धार्मिक पक्षों की उपेक्षा करते हैं।
हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर माइकल सैंडल हाल ही में नई दिल्ली में आयोजित इंडियन एक्सप्रेस के एक कार्यक्रम में शामिल हुए। इस कार्यक्रम में उन्होंने अपनी बात रखी साथ ही कई सवालों के जवाब भी दिए। सैंडल ने कहा कि राजनीति जो गहरे सांस्कृतिक और आध्यात्मिक स्रोतों को नजरअंदाज करती है, वो गुस्सा, हताशा और असंतोष पैदा करती है। यही वजह है कि राष्ट्रवादी दक्षिणपंथी राजनीति को सफलता मिल रही है। जो राजनीति सिर्फ अर्थव्यवस्था पर केंद्रित है और सामाजिक न्याय, विकास और सांस्कृतिक-धार्मिक मुद्दों को नजरअंदाज करती है, वो असफल होगी।

सालों से, वैश्विक संकटों का सबसे ज्यादा असर समाज के सबसे गरीब तबके पर पड़ा है। इससे हमें अपनी मौजूदा व्यवस्था पर पुनर्विचार करना चाहिए था, लेकिन हमने ऐसा नहीं किया। उदाहरण के लिए, 2008 के वित्तीय संकट के बाद, बैंकों को बचाने के लिए पैसा दिया गया (जिसका फायदा अमीरों को हुआ), वहीं गरीबों को कोई मदद नहीं मिली। इस वजह से गरीब और अमीर दोनों वर्गों में गुस्सा पैदा हुआ।

1950 के दशक में जब जवाहरलाल नेहरू एक केंद्रीय भूमिका में थे। दुनिया भर के देशों में यह भावना थी कि सांप्रदायिक संघर्ष और हिंसा से बचने के लिए, पूरी तरह से धर्मनिरपेक्ष शासन सिद्धांतों की आवश्यकता है। धर्मनिरपेक्षता उदारवाद का एक संस्करण है जो जोर देकर कहता है कि नागरिकों को सार्वजनिक स्थान में प्रवेश करते समय अपने नैतिक और आध्यात्मिक विश्वासों को घर पर ही छोड़ देना चाहिए। यह एक ऐसी अवधारणा थी जिसका पालन शुरू से ही कभी नहीं किया गया था, नहीं तो आजादी के इतने वर्षों बाद समान नागरिक संहिता की बात नहीं कर रहे होते।

आदित्य पुरी (एचडीएफसी बैंक के पूर्व सीईओ) इंडियन एक्सप्रेस में छपे अपने लेख में कहते हैं कि निश्चित रूप से, न्याय, कानून, अधिकार, कर्तव्य और स्वतंत्रता के प्रश्नों को महत्वपूर्ण धारणाओं और विश्वासों के संदर्भ के बिना तय करना संभव नहीं है। बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करता है कि क्या विपक्षी दल एक वैकल्पिक शासन दृष्टि को स्पष्ट करने के लिए नेतृत्व ढूंढ सकते हैं जो राष्ट्रीय पहचान, गर्व, सार्वजनिक अभिव्यक्ति के महत्व को ध्यान में रखता है और सांस्कृतिक, सामाजिक और आर्थिक मुद्दों पर व्यापक सहमति रखता है।

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