महाराष्ट्र में गेम सत्ता से बड़ा है, लक्ष्य है उद्धव रहित शिवसेना

शिंदे की आड़ में BJP का बड़ा गेम:ऑपरेशन लोटस का टारगेट उद्धव की कुर्सी ही नहीं, शिवसेना भी छीनना है; 3 पॉइंट्स से समझें
नीरज सिंह

एकनाथ शिंदे को दलबदल कानून से बचते हुए उद्धव सरकार गिराने के लिए शिवसेना के 37 विधायक चाहिए, फिर भी वो रुक नहीं रहे। वो बागियों के डेरे में लगातार शिवसेना विधायकों को जोड़ते जा रहे हैं। गुवाहटी के पांच सितारा होटल के बाहर शिंदे ने 46 विधायक साथ होने का दावा किया। दैनिक भास्कर के सूत्र बता रहे हैं कि बागियों की तादात 50 तक पहुंच सकती है।

बस यहीं एक सवाल कौंध रहा है। आखिर शिंदे चाहते क्या हैं? वो लगातार जरूरत से ज्यादा शिवसेना के बागी विधायकों को क्यों जुटा रहे हैं? उधर, BJP ने अब तक विधानसभा सत्र बुलाने की मांग क्यों नहीं की है? उद्धव से खुली बगावत के बावजूद शिंदे लगातर क्यों कह रहे हैं कि वो बाला साहेब के सच्चे शिवसैनिक हैं और उन्होंने शिवसेना नहीं छोड़ी है।

इन सभी सवालों का एक ही जवाब है- एकनाथ शिंदे का मिशन सिर्फ उद्धव ठाकरे की कुर्सी छीनना नहीं, बल्कि शिवसेना भी छीनना है।

लेकिन कैसे…?

आगे बढ़ने से पहले हमें यह समझना होगा कि कानूनी तौर पर राजनीतिक पार्टियों में बंटवारा दो हालात में होता है।

पहला- जब संसद या विधानसभा सत्र में हों, यानी उनकी बैठक चल रही हों।

दूसरा- जब संसद या विधानसभा सत्र में न हों।

पहली परिस्थिति, में यानी जब संसद या विधानसभा सत्र में होती हैं तो किसी भी पार्टी के विधायकों के बीच होने वाले बंटवारे को पार्टी में बंटवारा माना जाता है। ऐसे बंटवारे पर ही दल-बदल कानून लागू होता है।

सीधे-सीधे कहें तो दल बदल कानून लागू करने के लिए संसद या विधानसभा को सत्र में होना जरूरी है। ऐसे हालात में गेंद विधानसभा के स्पीकर के हाथों में चली जाती है।

दूसरी तरह के हालात में, यानी जब संसद या विधानसभा सत्र में नहीं होती तब किसी भी पार्टी में होने वाला बंटवारा संसद या विधानसभा से बाहर का बंटवारा माना जाता है।

ऐसे में अगर पार्टी के चुनाव चिह्न पर कोई खेमा दावा करता है, यानी जब यह तय होना होता है कि कौन सा खेमा असली पार्टी है तब इन पर सिंबल्स ऑर्डर 1968 लागू होता है। सिंबल्स ऑर्डर 1968 के तहत सिर्फ चुनाव आयोग फैसला करता है।

सीधे शब्दों में कहें तो संसद या विधानसभा के सत्र में होने पर पार्टियों में होने वाले बंटवारे की गेंद चुनाव आयोग के पास चली जाती है।

चुनाव आयोग कैसे तय करता है असली पार्टी?

विधानसभा से बाहर राजनीतिक पार्टियों में बंटवारे के सवाल को चुनाव आयोग सिंबल्स ऑर्डर 1968 के तहत तय करता है। इसके लिए आयोग उसके सामने पेश फैक्ट्स, दस्तावेज और हालात की स्टडी करता है। खुद को असली पार्टी होने का दावा करने वाले दोनों या सभी खेमों को सुनता है। मामले में अगर कोई शख्स कुछ कहना चाहता तो उसे भी आयोग सुनता है।

चुनाव आयोग इसके बाद ही तय करता है कि पार्टी सिंबल का असली हकदार कौन सा खेमा है। आयोग सिंबल को फ्रीज भी कर सकता है। यानी कोई भी खेमा पार्टी सिंबल का इस्तेमाल नहीं कर पाता है।

चुनाव आयोग ऐसे मामलों में तभी फैसला करता है जब बंटवारा नेशनल या स्टेट पार्टी में हुआ हो। रजिस्टर्ड लेकिन गैर मान्यता प्राप्त पार्टी होने पर चुनाव आयोग मामले को आपस में सुलझाने या कोर्ट जाने की सलाह देता है। रजिस्टर्ड लेकिन गैर मान्यता प्राप्त पार्टी का मतलब होता है कि पार्टी चुनाव आयोग में रजिस्टर्ड तो है, लेकिन उसे कोई स्थायी चुनाव चिह्न नहीं दिया गया है।

कुछ उदाहरण से जानिए पार्टी बंटने पर चुनाव आयोग ने क्या किया…

2017 में UP विधानसभा चुनाव से पहले जब सपा दो खेमों में बंट गई थी। इसके बाद चुनाव आयोग ने 17 जनवरी 2017 को अखिलेश को सपा का साइकिल सिंबल दिया।
जयललिता की मौत के बाद AIADMK में दो गुट हो गए। पलानीस्वामी-पन्नीरसेल्वम और शशिकला कैंप के टीटीवी दिनाकरन ने पार्टी के सिंबल पर अपना-अपना दावा जताया। इसके बाद 23 मार्च 2017 को चुनाव आयोग ने AIADMK का सिंबल दो पत्ती फ्रीज कर दिया था।
पिछले 24 घंटे की बयानबाजी में असली शिवसेना और उद्धव की शिवसेना का फर्क बता रहे हैं एकनाथ शिंदे…

 

इससे पहले ‌BJP नेता फडणवीस भी अपने बयानों से असली बनाम उद्धव की शिवसेना में अंतर को बढ़ावा देते रहे हैं…

 

अब तीन बातों से जो तस्वीर दिख रही है, उसमें साफ है कि शिंदे का निशाना सिर्फ उद्धव की कुर्सी नहीं, शिवसेना हथियाना है…

शिंदे लगातार बागी विधायकों की संख्या बढ़ाकर शिवसेना पर दावा ठोक सकते हैं।
गेंद चुनाव आयोग के पाले में रहे इसलिए BJP विधानसभा सत्र बुलाने की मांग नहीं कर रही है।
असली शिवसैनिक जैसे बयान देकर शिंदे दिखाना चाहते हैं कि उन्हें पार्टी से बगावत नहीं की और असली शिवसेना वही हैं।

‘पवार ने उद्धव ठाकरे को पहले ही बगावत की चेतावनी दे दी थी’, फिर क्यों अपना किला नहीं बचा पाए उद्धव?

महाराष्ट्र (Maharashtra) में शिवसेना (Shiv Sena) नेता एकनाथ शिंदे (Eknath Shinde) की बगावत के बाद सरकार बचाने की कवायद जारी है. बताया जा रहा है कि मौजूदा राजनीतिक संकट को लेकर कई महीनों से आशंका जताई जा रही थी. अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस ने सूत्रों के हवाले से बताया है कि कुछ महीने पहले ही एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने उद्धव ठाकरे को शिवसेना के भीतर ‘बढ़ते गुस्से’ को लेकर चेताया था. पवार ने ‘संभावित बगावत’ को लेकर भी संकेत दिया था.

‘नेताओं से नहीं मिलते ठाकरे’
एक बड़े नेता ने एक्सप्रेस को बताया,”शरद पवार ने करीब 4 से 5 महीने पहले उद्धव ठाकरे को चेतावनी दी थी. ठाकरे को सलाह दी थी कि वे अपने पार्टी नेताओं और महा विकास अघाडी के दूसरे मंत्रियों के साथ मिलकर बातचीत शुरू करें. नेताओं के लिए मुख्यमंत्री उपलब्ध नहीं थे, इसलिए पवार ने एमवीए नेताओं के बीच बढ़ते असंतोष को भांप लिया था. कुछ मौकों पर तो पवार भी ठाकरे से अप्वाइंटमेंट नहीं ले पाते हैं. नेताओं को समय नहीं दे पाने के कारण पवार भी सीएम से नाराज हैं.”

वहीं, एक कांग्रेस नेता ने बताया कि पार्टी के विधायकों और मंत्रियों ने दिल्ली में आलाकमान के सामने इस मुद्दे को दो बार उठा चुके हैं. उन्होंने कहा””कई मौकों पर हमारे कैबिनेट मंत्रियों को किसी प्रोजेक्ट या पॉलिसी पर मुख्यमंत्री के हस्तक्षेप की जरूरत पड़ी. लेकिन मुख्यमंत्री कार्यालय से अप्वाइंटमेंट मिलना असंभव जैसा है.”

‘CM ने 45 कॉल का भी जवाब नहीं दिया’

उद्धव ठाकरे के इस व्यवहार की वजह से कई विधायक निराश हैं. MVA गठबंधन के साथ जुड़े छोटे दलों और निर्दलीय विधायकों ने भी इसी तरह की चिंता जताई. शिकायत है कि उद्धव ठाकरे से मिल पाना विधायकों के लिए मुश्किल भरा काम है.

एमवीए सरकार को समर्थन कर रही एक पार्टी के विधायक ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया,”मैंने सीएमओ में 45 बार कॉल किया था. लेकिन कोई जवाब नहीं मिला. छोटे दलों और निर्दलीय विधायकों को महत्व नहीं देने के रवैये से नाराजगी बढ़ी है. इसलिए विधान परिषद और राज्यसभा चुनावों के दौरान कई विधायकों ने शिवसेना से दूरी बना ली.”

‘शिवसेना का आंतरिक मामला’

इससे पहले जब मंगलवार 21 जून को एकनाथ शिंदे के कारण राजनीतिक संकट गहराया तो शरद पवार ने मीडिया से बात की. उन्होंने इस मुद्दे को शिवसेना का आंतिरक मामला बता दिया. पवार ने कहा कि अगर शिवसेना महाराष्ट्र सरकार के नेतृत्व में बदलाव करती है कि एनसीपी भी उसे सपोर्ट करेगी. हालांकि उन्होंने यह भी कह दिया कि उद्धव ठाकरे बेहतर नेतृत्व दे रहे हैं.

फिलहाल शिवसेना नेता एकनाथ शिंदे विधायकों के साथ सूरत से गुवाहाटी पहुंच चुके हैं. गुवाहाटी में बीजेपी विधायक सुशांत बरगोहन शिवसेना के विधायकों को लेने पहुंचे. दौरान एकनाथ शिंदे ने दावा किया कि उनके साथ 40 विधायक मौजूद हैं. उन्होंने गुवाहाटी एयरपोर्ट पर मीडिया से ये भी कहा कि वे शिवसेना नहीं छोड़ रहे और बालासाहेब के हिंदुत्व को आगे ले जाना चाहते हैं

राजनीति में अगर किसी का सिक्का चलता है तो वो है नंबर गेम. यानी जिसके पास बहुमत का आंकड़ा सरकार उसकी. और महाराष्ट्र (Maharashtra) में कभी उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) का उद्धार करने वाले एकनाथ शिंदे (Eknath Shinde) ने अब उद्धव का नंबर गेम ही बिगाड़ दिया है. और ये सवाल अब लाज़मी हो गया है कि उद्धव सरकार रहेगी या जाएगी? और इस सवाल का जवाब छिपा है महाराष्ट्र की विधानसभा के अंक गणित में. तो क्या कहता है अंक गणित आइये समझते हैंै

एकनाथ शिंदे की बगावत से पहले

महाराष्ट्र विधानसभा में कुल 288 सीटें हैं. पिछला चुनाव साल 2019 में हुआ था. बहुमत किसी को नहीं मिला था. चुनाव में सबसे ज्यादा सीटें बीजेपी को मिलीं. बीजेपी के खाते में आईं 106 सीटें. शिवसेना को मिलीं 56 सीटें. NCP को 54 और कांग्रेस को 44 सीटें मिलीं. इसके अलावा छोटे दल और निर्दलीय उम्मीदवारों के हिस्से आईं 28 सीटें. बीते 12 मई को शिवसेना के एक विधायक की मौत हो गई. यानी विधानसभा में बचे 287 विधायक. लिहाजा बहुमत का आंकड़ा 145 से घटकर 144 हो गया है.

उद्धव सरकार के पास कितने विधायक थे?

शिंदे की बगावत से पहले महाविकास अघाड़ी (MVA) यानी शिवसेना, NCP और कांग्रेस गठबंधन के पास कुल 169 विधायकों का समर्थन था. इसमें शिवसेना, NCP और कांग्रेस के विधायकों के अलावा समाजवादी पार्टी (SP) के 2, प्रहार जनशक्ति पार्टी (PJP) के 2, बहुजन विकास अघाड़ी (BVA) के 3 और 9 निर्दलीय विधायकों का समर्थन भी सरकार को हासिल था.

BJP के पक्ष में कितने MLA?

बात अगर बीजेपी की करें तो विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 106 सीटें मिली थीं. इसके अलावा राष्ट्रीय समाज पक्ष (RCP) का 1, जनस्वराज्य शक्ति पक्ष (JSS) का 1 और 5 निर्दलीय विधायकों को मिलाकर बीजेपी के पास 113 की संख्या बनती है. इसके अलावा अन्य दलों के पास 5 विधायक हैं. इनमें AIMIM के 2, CPI (M) का 1 और राज ठाकरे की पार्टी MNS के पास 1 विधायक

एकनाथ शिंदे के बागी होने के बाद की स्थिति

एकनाथ शिंदे ने दावा किया है कि उनके समर्थन में शिवसेना और अन्य मिलाकर 40 विधायक हैं. अपने समर्थन वाले विधायकों के साथ शिंदे ने एक फोटो शेयर की है. इस फोटो में शिंदे को मिलाकर 35 विधायक दिखाई दे रहे हैं. इसके अलावा 5 और विधायक शिंदे अपने खेमे में बता रहे हैं. और अगर ये आंकड़े गलत नहीं हैं तो उद्धव ठाकरे का मुख्यमंत्री कार्यालय से सामान बांधने का वक्त आ गया है.

बगावत से पहले MVA के पास 169 विधायक थे. और अगर इस आंकड़े से 40 विधायकों को कम कर दें तो संख्या बनती है 129. यानी बहुमत के 144 के आंकड़े से काफी पीछे. यानी शरद पवार और उद्धव ठाकरे ने अगर कोई सियासी जादू नहीं किया तो सरकार गिरना तय हैं.

फिर BJP आराम से सरकार बना लेगी!

अगर एकनाथ शिंदे बीजेपी की तरफ शिफ्ट हुए तो देवेंद्र फडणवीस को दोबारा मुख्यमंत्री बनने में अब ज्यादा वक्त नहीं है. शिवसेना में बगावत से पहले बीजेपी गठबंधन के पास 113 विधायक थे. अगर एकनाथ शिंदे खेमे के 40 विधायकों का समर्थन बीजेपी को मिला तो बीजेपी गठबंधन का ये आंकड़ा पहुंच जाएगा 153 पर. यानी बहुमत से कहीं ज्यादा संख्या बल. इस स्थिति में अगर दो चार विधायक छिटके तो भी बीजेपी को खास दिक्कत नहीं होगी.

एक तस्वीर ये भी है कि शिंदे के 40 विधायकों के साथ बीजेपी अकेले भी सरकार बनाने की स्थिति में है. बीजेपी के 106 और शिंदे के 40 विधायकों का जोड़ 146 होता है. और महाराष्ट्र विधानसभा में फिलहाल बहुमत का आंकड़ा 144 है.

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