भारत के चर्चित एनकाऊंटर, कुछ निकले फेक तो कुछ कोर्ट की जांच में सही

 

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Encounter Cases: कुछ एनकाउंटर न्याय के तराज़ू पर खरे तो कुछ निकले फर्ज़ी भी

राजेश चौधरी

पुलिस एनकाउंटर को लेकर अक्सर सवाल उठते रहते हैं लेकिन अदालत पहुंचे विवादित एनकाउंटरों पर नजर डालें तो कुछ एनकाउंटर सही साबित हुए हैं। हालांकि फर्जी एनकाउंटर को भी नाकारा नहीं जा सकता है। देखें यह रिपोर्ट…

नई दिल्ली 18 अप्रैल : उत्तर प्रदेश में STF ने अतीक अहमद के बेटे असद और शूटर गुलाम को एक एनकाउंटर में मार गिराया है। सरकार ने एनकाउंटर के बाद पुलिस को बधाई दी वहीं, विपक्ष का कहना है कि मुठभेड़ की जांच होनी चाहिए। सियासत के इतर अगर देश में हुए एनकाउंटर का इतिहास देखें तो इसमें कई मामलों की न्यायिक समीक्षा भी हुई है। कई चर्चित फैसले भी आए हैं। इस दिशा में कई अहम गाइडलाइंस भी बनीं। जानते हैं ऐसे कुछ चर्चित एनकाउंटर के बारे में जो न्यायिक जांच के दायरे में आए हैं:

 

​हैदराबाद में रेप-मर्डर के आरोपियों का एनकाउंटर


20 मई 2022 को हैदराबाद एनकाउंटर मामले में राज्य पुलिस के दावे को खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट की ओर से बनाए जांच कमीशन ने कहा था कि पुलिस की कहानी मनगढ़ंत है। पुलिसकर्मियों ने मिलकर आरोपियों को मारने के इरादे से फायरिंग की थी। जांच कमीशन की रिपोर्ट में सभी 10 पुलिसकर्मियों पर हत्या (समान नीयत से हत्या) का मुकदमा चलाने की सिफारिश की गई थी। रिटायर्ड जज वी. एस. सिरपुरकर की अगुआई वाले कमिशन ने रिपोर्ट में कहा कि पुलिस ने मनगढ़ंत कहानी बनाई कि आरोपितों ने पुलिस की पिस्टल छीनी और फायरिंग की थी और सेल्फ डिफेंस में उन्होंने फायरिंग की।

विकास दुबे केस में पुलिस को मिली थी क्लीन चिट

विकास दुबे के एनकाउंटर मामले में UP पुलिस को सुप्रीम कोर्ट की कमिटी से राहत मिली थी। 22 जुलाई 2021 को उत्तर प्रदेश के ADG (कानून-व्यवस्था) ने जानकारी दी थी कि कमिटी ने पुलिस को क्लीन चिट दी है। कोर्ट ने आयोग की रिपोर्ट वेबसाइट पर अपलोड करने को कहा था। साथ ही कहा था कि राज्य, आयोग की सिफारिश का पालन करे। रिपोर्ट में UP पुलिस के ऐक्शन में गड़बड़ी नहीं मिली। सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस बी. एस. चौहान की अगुआई में जांच आयोग के गठन को जुलाई 2020 में ग्रीन सिग्नल दिया था। 10 जुलाई 2020 को UP पुलिस जब विकास को लेकर जा रही थी तो एनकाउंटर में वह मारा गया था।

MBA स्टूडेंट का एनकाउंटर निकला फर्ज़ी

देहरादून में 3 जुलाई 2009 को गाजियाबाद के MBA स्टूडेंट की एनकाउंटर में हत्या कर दी गई थी। मामला CBI के पास गया और केस उत्तराखंड से दिल्ली ट्रांसफर हुआ। निचली अदालत ने 17 पुलिसकर्मियों को हत्या का दोषी ठहरा उम्रकैद की सजा दी थी। फिर हाई कोर्ट से 10 बरी हो गए और 7 दोषी करार दिए गए। मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। 2 जुलाई को शालीमार गार्डन में रहने वाला रणबीर सिंह दोस्त के साथ इंटरव्यू देने देहरादून गया था। किसी बात पर पुलिसकर्मी से उसकी कहासुनी हो गई और इसके बाद पास के जंगल में लेकर पुलिस ने एनकाउंटर में मार डाला। पुलिस ने दावा किया कि उसने बदमाश का एनकाउंटर किया है और पिस्टल की बरामदगी दिखाई। मृतक के पिता ने CBI जांच की मांग की थी।

CP शूटआउट में 10 पुलिसवाले दोषी

सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली के बहुचर्चित CP शूटआउट केस में ACP एस. एस. राठी समेत 10 पुलिसकर्मियों को दोषी ठहराया था। सभी को उम्रकैद की सजा हुई थी। घटना 31 मार्च 1997 की है। CP में उत्तर प्रदेश के गैंगस्टर यासीन  समझकर दो बिजनेसमैन का एनकाउंटर कर दिया गया था। पुलिस ने कहा था कि यह मामला पहचान में गलती का है। बिजनेसमैन को उन्होंने जानबूझकर नहीं मारा बल्कि यासीन का पीछा करते हुए गलती से घटना हुई। निचली अदालत ने सभी को बरी कर दिया था, लेकिन हाई कोर्ट ने 2009 में सभी दोषियों की आजीवन कारावास की सजा यथावत रखी थी।

लाखन भैया एनकाउंटर में 13 पुलिसकर्मी दोषी

मुंबई के लाखन भैया फेक एनकाउंटर मामले में सेशन कोर्ट ने 13 पुलिसकर्मियों समेत 21 लोगों को दोषी ठहराया था और आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। पुलिस का दावा था कि 11 सितंबर 2006 को उन्होंने अंधेरी इलाके में लाखन भैया (बदमाश) को ढेर किया था। लाखन के भाई ने दावा किया था कि उसे अपहृत कर फर्जी एनकाउंटर की कहानी पुलिस ने गढ़ी। इसके लिए पुलिस कमिश्नर को भेजे गए फैक्स और टेलिग्राम सबूत के तौर पर पेश किए गए। सेशन कोर्ट ने मामले में 21 लोगों को दोषी ठहरा 13 पुलिसकर्मी समेत अन्य को आजीवन कारावास की सजा सुनाई।

पीलीभीत में सिख युवकों की हत्या पर उठे थे सवाल

उत्तर प्रदेश के पीलीभीत में 11 सिख युवकों को फर्जी एनकाउंटर में मारने के आरोपित पुलिसकर्मियों को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने गैर-इरादतन हत्या के मामले में दोषी ठहराया। इस मामले में 43 पुलिसकर्मियों को कोर्ट ने सात-सात वर्ष कैद की सजा सुनाई थी। घटना 12 जुलाई 1991 की है। पुलिस के अनुसार लड़के आतंकी थे, लेकिन मामले की छानबीन CBI ने की और एनकाउंटर झूठा ठहराया था।

​2014 में SC ने जारी की थी गाइडलाइंस

एनकाउंटर मामले में सबसे पहले 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला दिया था और गाइडलाइंस जारी की थीं:

जांच में यह पता चलता है कि किसी पुलिस अफसर के खिलाफ IPC में मामला बनता है, तो उसे तुरंत सस्पेंड कर अनुशासनात्मक कार्रवाई शुरू की जाए।
जब भी पुलिस को आपराधिक गतिविधि के बारे में गुप्त जानकारी मिले तो वह सबसे पहले डायरी में उसकी एंट्री करे। अगर मुठभेड़ में पुलिस की ओर से फायर आर्म का इस्तेमाल किया गया हो और किसी की मौत हो गई हो तो सबसे पहले FIR दर्ज हो।
एनकाउंटर की स्वतंत्र जांच कराई जाए। CID या दूसरे थाने की पुलिस जांच करे और जांच का सुपरविजन वरिष्ठ अधिकारी करे।
पीड़ित के कलर फोटोग्राफ खींचे जाएं। साथ ही, मौके से खून, बाल और अन्य चीजों का सैंपल बनाकर उसे सुरक्षित किया जाए। गवाह के बयान के साथ ही उसका पूरा पता और टेलिफोन नंबर लिया जाए।
जिला अस्पताल के दो डॉक्टरों से मृतक का पोस्टमॉर्टम कराया जाए, विडियो रेकॉर्डिंग की जाए। घटना में इस्तेमाल हथियार, बुलेट सुरक्षित रखे जाएं। FIR की कॉपी तुरंत कोर्ट भेजी जाए।
अगर पीड़ित परिवार को लगे कि स्वतंत्र जांच नहीं हो पा रही है, तो पीड़ित परिवार सेशन कोर्ट के सामने शिकायत कर सकता है।


​क्या कहते हैं एक्सपर्ट?

सुप्रीम कोर्ट के सीनियर एडवोकेट संजय पारिख बताते हैं कि सुप्रीम कोर्ट ने 2014 के फैसले में कहा था कि अगर एनकाउंटर में पुलिस गोली चलाती है या चलानी पड़ती है तो मौत होने की स्थिति में FIR दर्ज होगी। CRPC की धारा-46 में जब पुलिस किसी को गिरफ्तार करती है और उस समय पुलिस बल पर आरोपित अगर हमला करता है तो पुलिस को जान बचाने के लिए हथियार चलाने का अधिकार है। लेकिन साबित करना होगा कि उसने आत्मरक्षा में हथियार चलाए।

 

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