बागेश्वर सरकार के धीरेंद्र शास्त्री को पुलिस की क्लीन चिट पर बार बार प्रहार हिंदू संतों पर ही क्यों?

बाबा बागेश्वर धाम सरकार आचार्य धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री को दी नागपुर पुलिस ने क्लीन चिट- परन्तु हिन्दू संतों पर ही बार-बार वार, प्रहार क्यों?

बाबा बागेश्वर धाम के धीरेन्द्र शास्त्री को अंतत: नागपुर पुलिस ने क्लीन चिट दे दी और कहा कि बाबा के दिव्य दरबार में किसी भी प्रकार का जादू टोने का वह कृत्य नहीं हो रहा था, जिसका आरोप अंध श्रद्धा निर्मूलन संस्था के श्याम मानव ने लगाया था। पुलिस के अनुसार उन्होंने नागपुर में आयोजित कथा एवं दरबार में जो बोला गया, उसकी ट्रांसक्रिप्ट बनवाई थी और उसका बारीकी से अध्ययन किया जा रहा था। इसलिए देर हुई। बार-बार पुलिस की ओर से यह स्पष्टीकरण दिया गया कि उन पर कोई ऊपरी दबाव नहीं है।

यह ऊपरी दबाव की बात बार-बार क्यों कही जाती है? क्या हिन्दू संत होना इस देश में या कथित प्रगतिशीलों की दृष्टि में अपराध है? क्या ऐसा हिन्दू संत होना जो पूरे देश के हिन्दुओं को एक साथ रखने की बात करते हो, ऐसे संत होना अपराध है? जो संत अपनी कथाओं के माध्यम से उन लोगों को वापस हिन्दू धर्म में ला रहे हों, जिन्हें मिशनरी ने लालचवश ईसाई बना लिया है, ऐसे संत होना अपराध है?

बाबा बागेश्वर धाम कहाँ पर हैं?

बाबा बागेश्वर धाम मध्यप्रदेश में स्थित हैं। आधिकारिक वेबसाईट के अनुसार “मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले के ग्राम गढ़ा में स्थित “बागेश्वर धाम”, जो स्वंयभू हनुमान जी की दिव्यता के लिए देश – विदेश में प्रसिद्ध है। कई तपस्वियों की दिव्य भूमि है बागेश्वर धाम, जहां लोगों को बालाजी महाराज की कृपा और आशीर्वाद दर्शन मात्र से ही मिल जाते हैं। यहां बालाजी महाराज एक अर्जी के माध्यम से सुनते हैं आपकी समस्या और धाम के पीठाधीश्वर पूज्य धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री जी महाराज, जिसे दुनिया बागेश्वर धाम सरकार के नाम से संबोधित करती है, के माध्यम से समाधान करवाते हैं।”

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दोहरा दृष्टिकोण है मीडिया का और कथित “विज्ञानवादियों का”

यदि मीडिया और कथित प्रगतिशीलों की बात की जाए तो उनके अनुसार हिन्दू धर्म की आस्था का कोई मोल नहीं है। और कथित अंधश्रद्धा वाले लोग कभी भी मिशनरी पर प्रश्न नहीं उठाते! रोज ही अजीबोगरीब वीडियो ईसाई बनाते हुए दिखाई देते हैं, परन्तु वह सभी लोग जो हिन्दू संतों पर प्रश्न उठाते हैं, हिन्दू संतों को पिछड़ा कहते हैं, वह कभी भी होली वाटर आदि पर प्रश्न नहीं उठाते। यह सब बातें छोड़ भी दी जाएं, तो संगठित रूप से चर्च में किए जा रहे महिलाओं के शोषण पर भी प्रश्न नहीं उठाते हैं।

श्याम मानव, जो कथित रूप से सम्मोहन थेरेपी करते हैं और उस थेरेपी का पैसा भी लेते हैं, वह यह दावा कैसे करते हैं कि सम्मोहन से दर्द ठीक हो सकता है? सम्मोहन चिकित्सा क्या मुख्य धारा की चिकित्सा है या फिर क्या है? इस पर अभी भी तमाम विवाद है और श्याम मानव खुद पर्सनेलिटी डेवलपमेंट की कार्यशालाएं चलाते हैं एवं सामाजिक समस्याओं पर वीडियो बनाते हैं। प्रश्न यह भी उठ सकते हैं कि क्या उस समाज पर बात करने का उन्हें अधिकार है, जिसके आराध्यों और जिसके लोक की रस्मों आदि को वह मानते नहीं हैं। सामाजिक समस्याओं पर बात करने का क्या कोई दायरा नहीं होता है? क्या सामाजिक समस्याओं पर बात करने के लिए पूरे देश एवं समाज को समझना आवश्यक नहीं होता है?

समाचार वेबसाईट के अनुसार उन्होंने अंग्रेजी साहित्य में एम ए किया है और फिर उन्होंने कथित रूप से समाज सुधार करना आरम्भ किया। उन्होंने कथित रूप से कई बाबाओं के “अंधविश्वासों” का खुलासा किया। परन्तु उनकी सीमित दृष्टि कभी भी उन फैंको मुल्क्कल तक नहीं जाती है, जिन पर ननों ने ही बलात्कार का आरोप लगाया था और न ही श्याम मानव उन ननों के साथ खड़े हुए, जो रिलीजियस शोषण का शिकार हुई हैं। और न ही सिस्टर लूसी के साथ जिसे केवल वेटिकन ने इसलिए गवाही के “पात्र” नहीं माना क्योंकि उन्होंने कविता लिखने जैसा पाप किया था!

https://www.thenewsminute.com/article/kerala-church-says-vatican-approves-sr-lucy-s-expulsion-refuses-pay-her-150665
1982 में बनी अंधश्रद्धा उन्मूलन समिति में उनका दायित्व मात्र हिन्दुओं पर ही हमला करना रहा है, ऐसा प्रतीत होता है क्योंकि यदि ऐसा नहीं होता तो मदर टेरेसा को संत की उपाधि मिलने का यह समिति विरोध करती? मदर टेरेसा को संत की उपाधि क्यों मिली थी, यह सभी को पता है! मदर टेरेसा के पहले चमत्कार का दावा वर्ष 1998 में किया गया था, कि एक महिला का ट्यूमर मदर टेरेसा के तावीज के चलते ठीक हो गया था!

मगर वर्ष 1982 में स्थापित इस कथित अंधश्रद्धा विरोधी संस्था ने इसका कोई विरोध किया हो या यह कहा हो कि ऐसा नहीं हो सकता, ध्यान में नहीं आता। दूसरा चमत्कार तो और भी अजीब था और वह तो भारत से भी नहीं था।

यह ब्राजील के किसी आदमी का था, जिसके दिमाग में मल्टीप्ल ट्यूमर था, जो मदर टेरेसा की प्रार्थना के बाद ऑपरेशन थिएटर में जाने से पहले ठीक हो गया था, और जिसे उसकी बीवी ने मदर टेरेसा की प्रेयर का चमत्कार बताया था।

और संत की उपाधि तो अभी कुछ ही वर्ष पहले अर्थात वर्ष 2016 में दी गयी है, तो उस समय भी भारत से किसी भी ऐसे व्यक्ति का विरोध नहीं व्यक्त किया गया जो खुद को कथित प्रगतिशील कहता है या फिर पढ़ा लिखा होने का दावा करता है।

हालांकि श्याम मानव इतने प्रगतिशील हैं कि वह राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा में भी सम्मिलित होते हैं और स्वयं को कांग्रेसी परिवार का भी बताते हैं:

लल्लनटॉप जैसा चैनल जो श्याम मानव के कथित चैलेन्ज के बाद अपनी एजेंडा पत्रकारिता करते हुए बाबा के बहाने हिन्दुओं को निशाना बना रहा था, उस चैनल के साथ साक्षात्कार में आचार्य धीरेन्द्र शास्त्री ने जब यह कहा कि वह कन्याओं का विवाह करवाते हैं एवं वह चाहते हैं कि लल्लनटॉप भी योगदान करे तो एजेंडा पत्रकार या कहें सत्य की लड़ाई लड़ने वाले पत्रकार बगलें झाँकने लगे थे।

इस साक्षात्कार में आचार्य धीरेन्द्र शास्त्री के सामने बहुत ही अजीबोगरीब प्रश्न रखे गए, परन्तु जो बात आचार्य धीरेन्द्र शास्त्री ने उस साक्षात्कार में कही, वह बहुत मूल बात है एवं वह मूल प्रश्न है कि क्या इस देश में अब कथित अंधश्रद्धा उन्मूलन के नाम पर हनुमान चालीसा भी पढ़ना अपराध होगा?

प्रश्न यह है कि जादू टोना क्या है? क्या परिभाषा है? यदि निगेटिव एनर्जी का कथित उपचार सम्मोहन थेरेपी के माध्यम से किया जाए तो वह उपचार है और यदि निगेटिव एनर्जी को हनुमान चालीसा के माध्यम से दूर किया जाए और यह आश्वासन दिया जाए कि यह शक्ति हैं, इनके स्मरण करते रहते से आपके जीवन की बाधाएं दूर होंगी, वह अन्धविश्वास है?

कौन यह तय करेगा कि क्या विश्वास है और क्या अन्धविश्वास है? श्रद्धा की परिभाषा का निर्धारण क्या वह लोग करेंगे जो स्वयं के लिए एक ऐसी श्रद्धा चाहते हैं, जहाँ पर कोई प्रश्न न हो? श्रद्धा का निर्धारण कैसे किया जा सकता है? क्या यह आश्वासन कि प्रभु श्री राम सरे कष्ट हरेंगे, श्रद्धा में आएगा या अंधश्रद्धा में? अंधश्रद्धा की परिभाषा क्या है?

भगवान के प्रति विश्वास अब वह लोग निर्धारित करेंगे जो भगवान में विश्वास नहीं करते? और बार बार हिन्दू संतों पर आक्रमण क्यों?

वह भी प्रश्न करते हैं कि अंतत: हिन्दू धर्म पर ही हमला क्यों होता है? उन पर लल्लनटॉप के पत्रकारों ने कट्टर होने का आरोप लगाया। उन्होंने उत्तर दिया कि हम अपने धर्म के कट्टर हैं। फिर उनसे कहा गया कि यदि आप अपने धर्म के कट्टर हैं तो उनके तो विरोधी होंगे!

इस पर उनका कहना था कि यदि वह विरोध मान रहे हैं तो यह उनका दृष्टिकोण है। उनको अपने धर्म का कट्टर होना चाहिए।

फिर उन्होंने कहा कि कट्टरता तो घातक होती है, इस पर आचार्य धीरेन्द्र शास्त्री ने कहा कि ““यदि कट्टरता के साथ बाप को बाप कहना घातक है तो फिर इस दुनिया का प्रत्येक वह व्यक्ति घातक है, जो अपने बाप को बाप कहता है। भगवान राम इस दुनिया के प्रत्येक हिंदू व्यक्ति के पिता हैं, परमपिता हैं, जगदीश्वर हैं, जगन्नाथ हैं तो वो बाप हैं। इसलिए, ललकार कर बाप को बाप कहना यदि लल्लनटॉप की नजर में घातक है तो ये घातकपन रहना चाहिए। ऐसे में तो प्रत्येक व्यक्ति घातक है।”

जादू टोने के आरोप में उन्होंने कहा कि वह निगेटिव एनर्जी को हटाने के लिए हनुमानचालीसा की उन पंक्तियों का पाठ करते हैं कि भूत पिशाच निकट नहीं आवे, महावीर जब नाम सुनावें!

उन्होंने प्रश्न किया कि क्या हनुमानचालीसा का पाठ करना गलत है? यह हमारी आस्था का विषय है और यदि इस चौपाई का पाठ करना गलत है तो फिर हर हनुमान भक्त को जेल में डाल देना चाहिए!

पत्रकार कहते हैं कि साइंस इस बात को नहीं मानता कि आत्मा होती है!

अब प्रश्न यह उठता है कि क्या साइंस के आधार पर हिन्दू धार्मिक तत्वों का निर्धारण किया जाएगा! वह अंग्रेजी साइंस जिसके विषय में सीएफ एंड्रूज़ ने कहा था कि यदि इसे प्यार से पढ़ाया जाए तो यह ईसाई रिलिजन फैलाने का माध्यम है, उस साइंस के आधार पर हिन्दुओं के धार्मिक तत्वों जैसे पितर आदि का निर्धारण होगा? यह कौन करेगा? अन्धविश्वास की सीमा अंग्रेजी अर्थात ईसाई विज्ञान निर्धारित करेगा क्या?

सी एफ एंड्रूज़- THE RENAISSANCE IN INDIA: ITS MISSIONARY ASPECT
और कोई भी आरोप लगाएगा तो पत्रकार उसकी सच्चाई जानने के लिए पहुँच जाएँगे? पत्रकार आज तक कितने ऐसे ईसाई पास्टर के पास गए हैं, जो कथित रूप से बीमारी भगा देते हैं? औरतें बोलने लगती हैं तुरंत! औरतें गिर गिर कर क्या नाटक करती हैं?

ऐसे तमाम वीडियो इन्टरनेट पर हैं, परन्तु आज तक कोई भी श्याम मानव या कथित प्रगतिशील लोग माइक लेकर उस तरह नहीं पहुंचे, जैसे धीरेन्द्र शास्त्री जी की सत्यता जांचने के लिए पहुँच गए थे। वीडियो में देखा जा सकता है कि कैसे पत्रकार पागल कुत्तों की तरह आचार्य धीरेन्द्र शास्त्री के पीछे पड़े हैं।

वीडियो में देखा जा सकता है कि कैसे पत्रकार अनजान लोगों को उठाकर ला रहे हैं और आचार्य की जैसे परीक्षा ले रहे हैं। अब यह प्रश्न उठ सकता है कि मीडिया के इन पत्रकारों ने किस आधार पर यह “परीक्षा” ली? इस परीक्षा को लेने का अधिकार इनके पास कहाँ से आया? खैर सत्य दिखाने के नाम पर जो कथित परीक्षा मीडिया ने उस “साइंस” के आधार पर आचार्य धीरेन्द्र शास्त्री की ली, जिस साइंस का उद्देश्य सीएफ एंड्रूज़ पहले ही बता चुके हैं, क्या यही परीक्षा वह किसी उस मौलाना या मौलवी या किसी ऐसे मजहबी इंसान की ले सकते हैं, जो जिन्नातों को भगाने का दावा करता है या फिर पास्टर की ले सकते हैं जो स्टेज पर ही शरीर से बीमारी गायब कर देते हैं।

यद्यपि नागपुर पुलिस ने आचार्य धीरेन्द्र शास्त्री के विषय में यह स्पष्ट कर दिया है कि उन्होंने किसी भी क़ानून का उल्लंघन नहीं किया, परन्तु फिर भी यह मात्र प्रथम चरण था, जैसा आचार्य धीरेन्द्र शास्त्री स्वयं कहते हैं कि अब उनपर और हमले होंगे और यही कारण हैं कि वह अब विवाह करेंगे क्योंकि मिशनरी उन्हें टार्गेट करती रहेंगी! वह कुछ भी साज़िश कर सकती हैं!

अब प्रश्न यही कि अंतत: कब तक मात्र हिन्दू संतों को उनके धार्मिक विश्वासों के आधार पर निशाने पर लिया जाता रहेगा और उनके धार्मिक विश्वासों का निर्धारण अंग्रेजी साइंस क्यों करता रहेगा?

इस विषय में अभी और लिखना शेष है! शेष अगले लेखों में

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