बरसी का अनोखा शिवमन्दिर,जिसे बनाया दुर्योधन ने,हिलाया भीम ने

सहारनपुर का अनोखा मंदिर:बरसी गांव में दुर्योधन ने बनवाया था महादेव मंदिर, भीम ने अपनी अमोघ शक्ति से पूरब दिशा से पश्चिम में घुमा दिया था मंदिर, इस गांव में नहीं होता है होलिका

महाशिवरात्रि को बरसी महादेव मंदिर में नवविवाहित जोड़े शिव बाबा का आशीर्वाद लेने के लिए आते हैं।

सहारनपुर 29 जुलाई। उत्तर प्रदेश के देहरादून से नजदीकी जनपद मुख्यालय सहारनपुर से 36 किलोमीटर दूर कस्बा नौनाता क्षेत्र के बरसी गांव में महाभारतकालीन शिव मंदिर लाखों श्रद्धालु शिवभक्तों की अटूट आस्था का केंद्र है। मंदिर क्षेत्र से समय-समय पर मिले अवशेष इसकी प्राचीनता का प्रमाण देते रहे हैं। दक्षिण पश्चिम द्वार वाले उक्त शिवालय के गर्भगृह में अथाह गहराई के शिवलिंग पर लाखों भक्त जलाभिषेक करने आते हैं। फाल्गुन मास की महाशिवरात्रि में तो प्रतिवर्ष लगने वाले तीन दिवसीय मेले पर लाखों श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं। सावन माह में शिवालय पर भीड़ तो रहती है।

मंदिर का ऐतिहासिक महत्व

नगर से लगभग छह किलोमीटर दूर स्थित गांव बरसी के मंदिर को महाभारत कालीन माना जाता है। मंदिर कमेटी के पूर्व प्रधान चौधरी. ऋषिपाल सिंह और प्राचार्य पदम सिंह के अनुसार अपने अज्ञातवास के दौरान पांडव इस क्षेत्र में रुके थे। भगवान शिव की आराधना के लिए भीम ने एक रात में ही इसका निर्माण कर शिवलिग स्थापित की थी। इसका प्रवेशद्वार दक्षिण दिशा में होने से इसे अशुभ माना गया। बाद में भगवान कृष्ण की आराधना पर उन्होंने दर्शन देकर यह आशीर्वाद दिया कि इस स्थिति में होने के बाद भी यहां की गई पूजा अर्चना सार्थक होकर कल्याण करेगी तभी से यह मंदिर लाखों भक्तों की आस्था का केंद्र बना हुआ है। प्रत्येक फाल्गुनी शिवरात्रि को दूर दराज से आए लाखों लोग यहां दर्शन करने आते हैं।

शासन से 40 लाख का बजट मंजूर

बता दें कि प्रदेश सरकार ने इस मंदिर को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने के लिए 40 लाख रुपये का बजट मंजूर किया है। विधायक तीरथ सिंह ने हाल में निर्माण कार्यों का शिलान्यास किया।

दुर्योधन ने रातों रात बनवाया था मंदिर

मंदिर के महंत भोपाल गिरी बताते हैं कि ऐसी मान्यता है कि महाभारत काल में युद्ध के दौरान भगवान श्रीकृष्ण भी सहारनपुर के बरसी गांव में कुछ समय के लिए रुके थे। श्रीकृष्ण ने कहा था कि यह भूमि तो मुझे ब्रज के जैसी लग रही है। तभी दुर्योधन ने रातों रात करीब एक सौ फीट ऊंचाई पर यह मंदिर बनवा दिया, जिसकी ऊंचाई 50 फीट रह गई है। तभी से इस गांव का नाम बरसी पड़ा। दुर्योधन ने मंदिर का मुख्य द्वार पूर्व दिशा में बनवाया था, लेकिन भीम ने अपनी अमोघ शक्ति से मंदिर को नींव सहित दक्षिण दिशा में घुमा दिया था। इसी कारण मंदिर का प्रवेश द्वार पश्चिम तथा निकासी द्वार दक्षिण दिशा में हो गया। बुजुर्गों के मुताबिक मंदिर की दीवारों पर सुंदर कलाकृतियां बनी हुई थी, जो अब नष्ट हो गई हैं। मंदिर में संगमरमर की मूर्तियों को खंडित होने पर गंगा में विसर्जित कर उनके स्थान पर नई मूर्तियां प्रतिष्ठापित कराई गई।

बरसी में नहीं होता होलिका दहन

इस गांव में होलिका दहन नहीं होता है। ऐसी मान्यता है कि यहां पर होलिका दहन होने से जमीन गर्म हो जाती है जिस कारण शिव के पैर जलते हैं। ऐसे में ग्रामीण आसपास के गांव में जाकर होलिका दहन करते हैं। भारत में दक्षिण-पश्चिम दिशा का अकेला मंदिरपूरे भारत में दक्षिण-पश्चिम द्वार का यह ऐसा मंदिर है, मंदिर के अंदर स्थापित प्राकृतिक विशालकाय शिवलिंग के दर्शन को देश-विदेश से श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं। महाशिवरात्रि को तो यहां पर तीन दिवसीय मेला लगाता है, जो दिन रात चलता है। मंदिर के द्वारा सुबह चार बजे खुल जाते हैं और भगवान शिव की पिंडी के दर्शनों को लाइन लगना शुरू हो जाती है। लेकिन कोरोना संक्रमण के कारण फिलहाल यहां काफी कम श्रद्धालु ही पहुंच रहे हैं।

नवविवाहित जोड़े भी पहुंचकर लेते हैं शिव बाबा का आशीर्वाद

महाशिवरात्रि को बरसी महादेव मंदिर में नवविवाहित जोड़े शिव बाबा का आशीर्वाद लेने के लिए आते हैं। ऐसी मान्यता है कि यदि नवविवाहित जोड़ा यहां पर महाशिवरात्रि को आकर बाबा का आशीर्वाद लेते हैं तो उनकी शादीशुदा जिंदगी अच्छे से बीतती है। इस मंदिर में प्रसाद के रूप में विशेषत बेर, कद्दू व गुड़ की भेली और जलाभिषेक के रूप में दूध, जल, व बेलपत्र चढ़ाए जाते हैं। नवविवाहित जोड़े यहां मत्था टेककर मन्नतें मांगने आते हैं।

मुकेश शर्मा, तीतरों (सहारनपुर) -बरसी गांव स्थित महाभारतकालीन शिव मंदिर लाखों श्रद्धालु शिवभक्तों की अटूट आस्था का केंद्र है। मंदिर क्षेत्र से समय-समय पर मिले अवशेष इसकी प्राचीनता का प्रमाण देते रहे हैं। दक्षिण पश्चिम द्वार वाले शिवालय के गर्भगृह में अथाह गहराई के शिवलिंग पर लाखों भक्त जलाभिषेक करने आते हैं। फाल्गुन मास की महाशिवरात्रि पर प्रतिवर्ष लगने वाले तीन दिवसीय मेले पर लाखों श्रद्धालु यहां पहुंचते है।

मानना है कि इस मंदिर को द्वापर काल में दुर्योधन ने करीब एक सौ फीट की ऊंचाई पर बनवाया गया था, जिसकी ऊंचाई 50 फीट रह गई है। तब इसका मुख्य द्वार पूर्व दिशा में था, लेकिन भीम ने अपनी अमोघ शक्ति से मंदिर को नींव सहित दक्षिण दिशा में घुमा दिया था। इसी कारण मन्दिर का प्रवेश द्वार पश्चिम तथा निकासी द्वार दक्षिण दिशा में हो गया। बुजुर्गों के मुताबिक मन्दिर की दीवारों पर सुंदर कलाकृतियां बनी हुई थी, जो अब नष्ट हो गर्इं। मन्दिर में संगमरमर की मूर्तियों को खंडित होने पर गंगा में विसर्जित कर उनके स्थान पर नई मूर्तियां प्रतिष्ठापित करा दी गई।

पुरातात्विक प्रमाणों के आधार पर बताया जाता है कि कुछ समय पूर्व मंदिर के आसपास खुदाई के दौरान विशाल वर्गाकार ईट मिली थी, जिस पर कोई लिपि वर्णित थी। इस ईट को पुरातत्व विभाग के पास जांच के लिए भेजा गया, लिपि को पढ़ा नही जा सका। इसके बाद भी मंदिर क्षेत्र से समय-समय महत्वपूर्ण पुरातन सामग्री प्राप्त होती रही है। मंदिर का गुंबद कटोरे के आकार का है जो गुप्तकालीन मंदिरों से मेले खाता है। बताया जाता है कि मंदिर क्षेत्र में सर्प के डस लेने पर भी किसी को कोई हानि नहीं होती है। शिवालय के प्रति बरसी निवासियों की अटूट आस्था का प्रमाण है कि इस गांव में होली पर्व नहीं मनाया जाता। मान्यता है कि होलिकादहन से भगवान शिव के पांव जलते हैं।

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