पहलगाम: 75 से हो रही पूछताछ

Pahalgam Terror Attack PSA Act: पहलगाम में 27 हिन्दू पर्यटकों के नरसंहार के बाद जम्मू-कश्मीर में आतंकियों और उनके समर्थकों पर कड़ी कार्रवाई जारी है. वहां 75 लोगों को ओवर ग्राउंड वर्कर्स होने के शक में पीएसए के तहत हिरासत में लिया गया है. क्या है यह कानून, आतंकियों के मददगारों के खिलाफ क्यों किया जा रहा इस्तेमाल? समझें यहां…

बिना केस के जेल, कोर्ट का गेट भी बंद… क्या है PSA, जिसमें 75 OGWs पर एक्शन

पहलगाम हमले के बाद 100 से ज्यादा OGWs हिरासत में लिए गए.
PSA में बिना मुकदमे के 2 साल तक हिरासत में रखा जा सकता है.
इस कानून में हिरासत के लिए ठोस सबूतों की भी जरूरत नहीं होती.
पहलगाम में हिन्दू पर्यटकों के नरसंहार के बाद से जम्मू-कश्मीर में आतंकियों और उनके सपोर्टर्स के खिलाफ ताबड़तोड़ एक्शन चल रहा है. इस हमले में आतंकियों ने 27 लोगों को धर्म पूछकर मार डाला था. पीएम नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह यह साफ कर चुके हैं कि इस हमले के गुनहगारों को किसी कीमत पर बख्शा नहीं जाएगा. कश्मीर में हुए इस नृशंस आतंकी हमले की जांच के तहत वहां पब्लिक सेफ्टी एक्ट (PSA) के तहत 100 से ज्यादा ओवर ग्राउंड वर्कर्स (OGWs) और पूर्व आतंकियों को हिरासत में लिया गया है. यह कार्रवाई कुपवाड़ा, हंदवाड़ा, और पुलवामा जैसे इलाकों में की गई है.

वैसे सवाल यह है कि आखिर यह पब्लिक सेफ्टी एक्ट है क्या, और इसका इस्तेमाल क्यों किया जा रहा है? आइए, इस कानून की खास बातों को विस्तार से जानते हैं…

क्या है पब्लिक सेफ्टी एक्ट?
जम्मू-कश्मीर पब्लिक सेफ्टी एक्ट, 1978 (PSA) एक निवारक हिरासत कानून है. अगर किसी शख्स से राज्य या लोगों की सुरक्षा को खतरा हो तो इस कानून के तहत उस व्यक्ति को मुकदमा चलाए बिना लंबे समय तक हिरासत में रखा जा सकता है. इस कानून का मुख्य मकसद आतंकवाद और अलगाववादी गतिविधियों को रोकना है.

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कब और क्यों बनाया गया यह कानून?
पीएसए को 1978 में तत्कालीन मुख्यमंत्री शेख अब्दुल्लाह की सरकार ने लागू किया था. इसका शुरुआती मकसद लकड़ी की तस्करी को रोकना था, क्योंकि उस समय जम्मू-कश्मीर में अवैध लकड़ी तस्करी एक बड़ी समस्या थी. लेकिन बाद में इसका इस्तेमाल आतंकवाद और अलगाववादी गतिविधियों को दबाने के लिए किया जाने लगा. इस कानून की जड़ें डिफेंस ऑफ इंडिया एक्ट, 1915 और 1946 के पब्लिक सिक्योरिटी एक्ट में देखी जा सकती हैं, जिन्हें ब्रिटिश शासन के दौरान बनाया गया था.

PSA की खास बातें…एहतियाती हिरासत : पीएसए के तहत किसी व्यक्ति को बिना किसी औपचारिक मुकदमे के हिरासत में लिया जा सकता है. यह हिरासत 3 महीने से लेकर 2 साल तक हो सकती है, जो ‘खतरे’ की गंभीरता पर निर्भर करता है.

आतंकवाद और अलगाववाद पर चोट : इस कानून का इस्तेमाल मुख्य रूप से आतंकवादियों, उनके समर्थकों (OGWs), और अलगाववादी नेताओं के खिलाफ किया जाता है.

कोर्ट में सीमित अपील : पीएसए के तहत हिरासत में लिए गए व्यक्ति को कोर्ट में अपील करने का अधिकार है, लेकिन यह प्रक्रिया बेहद जटिल है. हाई कोर्ट में अपील की जा सकती है, लेकिन जमानत मिलना मुश्किल होता है.

प्रशासनिक अधिकार : जिला मजिस्ट्रेट (DM) या डिविजनल कमिश्नर को यह अधिकार है कि वह पीएसए के तहत किसी को हिरासत में लेने का आदेश दे सके.

कम सबूतों की जरूरत : इस कानून के तहत हिरासत के लिए ठोस सबूतों की जरूरत नहीं होती. प्रशासन को सिर्फ यह साबित करना होता है कि व्यक्ति ‘सुरक्षा के लिए खतरा’ है.

पहलगाम हमले के बाद PSA का इस्तेमाल
पहलगाम की बैसरन घाटी में 22 अप्रैल को हुए आतंकी हमले में 27 लोग मारे गए थे. इस हमले में लश्कर-ए-तैयबा से जुड़े द रेसिस्टेंस फ्रंट (TRF) का हाथ था. एनआईए की जांच में यह सामने आया कि कई ओवर ग्राउंड वर्कर्स और पूर्व आतंकियों ने इस हमले में आतंकियों की मदद की थी. इसके बाद जम्मू-कश्मीर पुलिस और अन्य एजेंसियों ने पीएसए का सहारा लिया.

पब्लिक सेफ्टी एक्ट जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद और अलगाववाद से निपटने का एक बड़ा हथियार है. पहलगाम हमले के बाद 100 से ज्यादा ओवर ग्राउंड वर्कर्स पर इस कानून के तहत कार्रवाई से साफ है कि भारत आतंकवाद के खिलाफ सख्त रुख अपनाने को तैयार है.

 

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