पहलगाम के आतंकियों को यहीं दिये गये थे हथियार

पहलगाम हमले में मारे गए शुभम द्विवेदी की पत्नी ने बताया- ‘AK-47 लेकर नहीं आए थे आतंकी, उन्हें वहीं दिए गए हथियार’

Pahalgam Terror Attack: शुभम द्विवेदी की पत्नी ने दावा ने किया कि वहां जो लोग सूट, शॉल बेच रहे थे, उन्होंने ही आतंकियों को हथियार सप्लाई किया होगा. उन्होंने संदिग्ध को लेकर भी बताया.

पहलगाम आतंकी हमले में जान गंवाने वाले शुभम द्विवेदी की पत्नी ने कई अनावरण किए

Pahalgam Terror Attack:

कानपुर 03 मई 2025। जम्मू कश्मीर के पहलगाम में 22 अप्रैल 2025 को हुए आतंकी हमले को लेकर भारत ने आतंकियों और उनके आका पाकिस्तान पर कई बड़े फैसले लिए हैं. इस आतंकी हमले में जान गंवाने वाले कानपुर के शुभम द्विवेदी की पत्नी एशान्या ने कई बड़े रहस्य खोले हैं. उन्होंने बताया कि आतंकी अपने साथ एके-47 लेकर नहीं आए थे, बल्कि उन्हें वहीं किसी ने हथियार सप्लाई किए थे.E

एक न्यूज चैनल से बात करते हुए एशान्या ने बताया कि उनके पति शुभम ने घोड़े वाले से पूछा कि ऊपर नेटवर्क रहता है कि नहीं तो उसने कहा कि फुल नेटवर्क रहता है. अगर वो बोल देता कि नेटवर्क नहीं आता है तो हम वहां जाते ही नहीं. उन्होंने कहा कि जब तक आतंकी हमला नहीं हुआ तब तो हम कश्मीर में सुरक्षित महसूस कर रहे थे.

आतंकियों को हथियार दिए गए थे’

उन्होंने बताया, “हमें थोड़ी-थोड़ी दूर पर भारतीय सेना के जवान दिख रहे थे तो हमें आसपास के लोगों की बातों पर शक नहीं हुआ. अब मुझे याद आ रहा है कि वे लोग पूछ रहे थे कि कौन-कौन आपके साथ आये हैं. आप लोग कपल में चलिये. वे लोग नॉर्मल जिंस पहन हुए थे और उनके पास कोई हथियार नहीं था. उन्हें हथियार सप्लाई किया गया था. वहां पर जो लोग शूट, शॉल बेच रहे थे, शायद उन्होंने ही हथियार सप्लाई किया होगा.”

एक व्यक्ति अकेला चरा रहा था भेड़’

शुभम द्विवेदी की पत्नी ने बताया, “एक व्यक्ति वहां अकेला भेड़ चरा रहा था. इतने बड़े फिल्ड में वह अकेला भेड़ चरा रहा था, जिसका कोई सेंस नहीं था. मुझे नहीं पता कि वह संदिग्ध है कि नहीं, लेकिन वह पूरी तरह ढ़के हुए कपड़े पहने हुए थे. क्या पता वो कुछ अंदर छिपाया हुआ हो?”

उन्होंने कहा, “हमारे फैमिली मेंबर ऊपर जाने से डर रहे थे, लेकिन घोड़े वाले ने उन्हें कहा कि ऊपर बहुत सुंदर है. इसे लेकर घोड़े वाले से काफी बहस हुई. मेरे ससुर ने उसे कहा कि आप पैसे पूरे ले लो, लेकिन हम वहां नहीं जाएंगे तो वो कहने लगा कि पैसे की कोई बात नहीं और फिर 10 मिनट बहस बाद हम ऊपर गए.

ऐशान्या द्विवेदी ने पहलगाम हमले पर कहा

पिछले सप्ताह ही ऐशान्या की आंखों के सामने उनके पति की हत्या हो गई. वो आज भी उसे याद कर रो पड़ती हैं.

घर की भीड़ में अपनी सुध-बुध खो चुकी वो गुमसुम सी बैठी थीं. ऐशान्या पहलगाम हमले में मारे गए 31 वर्षीय शुभम द्विवेदी की पत्नी हैं. पूरे परिवार की स्थिति ऐशान्या जैसी ही है. इस घर ने इकलौता बेटा खोया है.

सरकार से नाराज वर्षीय ऐशान्या द्विवेदी ने कहा, “हमारे देश ने, हमारी सरकार ने हमें उस जगह (पहलगाम) अनाथ छोड़ दिया था.हम जिनके भरोसे वहां घूम रहे थे,वो तब वहां मौजूद ही नहीं थे.”

जब घटना हुई तब वहां सुरक्षा व्यवस्था क्या थी? इस पर ऐशान्या ने कहा, “कोई सिक्योरिटी गार्ड, कोई आर्मी का सिपाही नहीं था. घर में माँ-बाप सुरक्षा कर सकते हैं लेकिन घर के बाहर हमारी सुरक्षा की ज़िम्मेदारी सरकार की है.”

धीरे-धीरे लोग शुभम को भूल जाएंगे’

शुभम द्विवेदी की हाल ही में शादी हुई थी
अलमारी में रखी शुभम की तस्वीर की तरफ निहारते हुए ऐशान्या का गला रुंध आया. वो उस तस्वीर को गौर से देख रही थीं.

“मैंने अपना प्यार, अपना पति, अपनी दुनिया अपनी आँखों के सामने ख़त्म होते देखा है. भगवान ऐसा दिन कभी किसी को न दिखाए.” यह कहते हुए ऐशान्या के आंसू बहने लगे जो देर तक थमे नहीं. वो बहुत देर खमोश रहीं.

ऐशान्या ने सरकार से अपील की, “इस देश की ग़लती से, सरकार की फेलियर (नाकामी) से हमारा पति शहीद हुआ है इसलिए शुभम को शहीद माना जाये.”

“दूसरी ज़रूरी बात, क्योंकि शुभम को पहली गोली लगी थी जिससे बहुत लोगों को वहां से भागने का मौका मिल गया. जो लोग आज वहां से सुरक्षित अपने घर पहुंच पाए हैं जो ये बता पा रहे हैं कि हम बच गये वो सिर्फ शुभम की वजह से ही संभव हो पाया है.”

ऐशान्या समेत पूरे परिवार ने शुभम को पहली गोली लगने का दावा किया है.

“अगर हिन्दुस्तान में कोई हिन्दू कहने पर मारा जाता है तो मैं उसे शहीद मानती हूँ. सरकार को भी मानना चाहिए. और अगर सरकार की नाकामी से भी किसी की हत्या होती है तो भी उसे शहीद  मानना चाहिए.”

शुभम द्विवेदी की पत्नी ऐशान्या
ऐशान्या ने देश के सभी नागरिकों से अपील की है कि शुभम के कारण बहुतों की जान बची है इसलिए सभी लोग शुभम को शहीद मानने की इस मांग में हमारा साथ दें. अगर शुभम को शहीद का दर्जा न मिला तो कुछ दिन में उसे भुला दिया जाएगा.

“शुभम भूलने की चीज नहीं है. उसे किसी को नहीं भूलना चाहिए. मुझे नहीं पता सरकार उसे याद रखने को क्या करेगी, पर इतना ज़रूर करे जिससे मैं शहीद की पत्नी कहलाऊं. मैं इस पहचान के साथ उसके बिना जीवन बिता लूंगी.”

ऐशान्या के इन शब्दों में शुभम के बिना पूरा जीवन गुजारने की तकलीफ थी.

पहलगाम की बैसरन घाटी में 22 अप्रैल को हुए हमले में 26 लोग मारे गए थे. जिसमें कानपुर के शुभम द्विवेदी भी शामिल थे.

जम्मू-कश्मीर में चरमपंथी हमले में मारे गए शुभम के पिता संजय कुमार द्विवेदी ने पत्रकारों से कहा, “हमारे बेटे को घूमने का बहुत शौक था.उसने दुनिया के कई देशों की यात्रा की थी.वो हर जगह से सुरक्षित वापस आया.ये तो अपना देश था.अपने ही देश में उसकी निर्मम हत्या सिर्फ इसलिए हो गई क्योंकि वो एक हिन्दू था.”

“शीर्ष पर बैठे लोगों को यह जरूर सोचना चाहिए कि अपने हिन्दुस्तान में हिन्दू होने से किसी की भी हत्या हो सकती है. मेरा बेटा तो चला गया लेकिन किसी और का बेटा ऐसे कभी न जाए, इसलिए सरकार को आतंकवादियों को जड़ से खत्म करना होगा.”

इकलौते बेटे की मौत उनके जीवन के शेष दिनों को गहरा घाव देकर चली गई है. शुभम की माँ एक दूसरे कमरे में एकांत में बैठी थीं. वो किसी से भी बात करने की स्थिति में नहीं थीं.

बेटे की हत्या के बाद से संजय द्विवेदी की तबियत खराब है. वो ज्यादा किसी से बात नहीं करते हैं. शुभम ने तीन-चार साल से पिता का सीमेंट का पूरे बिज़नेस जिम्मेदारी से संभाल रखा था. शुभम ने एमबीए किया था.

शुभम की दो महीने पहले 12 फरवरी को बड़ी धूमधाम से ऐशान्या से ओरछा में डेस्टिनेशन वेंडिंग हुई थी. ऐशान्या ने सोशल मीडिया हैंडल पर शादी की सभी रस्मों के खूब सारे फोटो और वीडियो साझा किये हैं. जिसमें परिवार के लोग बहुत खुश हैं.

ऐशान्या की शुभम से जान पहचान मेट्रोमोनियल साइट पर हुई थी. एक अक्तूबर 2024 को पहली बार वो परस्पर मिले थे.

ऐशान्या कहती हैं, “शुभम ने छह सात महीनों में मुझे बहुत प्यार दिया. उन यादों के सहारे हम पूरा जीवन इसी घर में बिता देंगें. मुझे इस घर ने हमेशा बेटी माना है. ससुराल और मायके में कोई फर्क ही समझ नहीं आया.”

‘गुस्सा सरकार से था, मारे गए बेकसूर लोग’

शुभम को मैगी खाना और घूमना बहुत पसंद था. पहली बार वो अपने पूरे परिवार के साथ 17 अप्रैल को कश्मीर घूमने गये थे. 23 अप्रैल को उनकी वापसी थी. वापसी के एक दिन पहले 22 अप्रैल को वो पहलगाम घूमने गये थे. जिस दिन शुभम की हत्या हुई थी वह कश्मीर में इस परिवार का आख़िरी दिन था.

ऐशान्या यात्रा की तैयारी के दिनों को याद करते हुए कहती हैं, “शादी के बाद से शुभम ने साल में दो फैमिली ट्रिप प्लान किया था. ये हमारी पहली फैमिली ट्रिप थी. इस बार कहाँ जाना है सबने वोट किया और फिर हमने कश्मीर जाना चुना. हमें नहीं पता था हमारे लिए कश्मीर इतना बुरा होगा.”

“सरकार तो कह रही थी अब कश्मीर सुरक्षित है. वहां 370 हट चुका है. हम लोग तो वहां बिना किसी चिंता घूमने गये थे हमें नहीं पता था कि वहां हमारी दुनिया ही खत्म हो जाएगी.”

शुभम इकलौते बेटे थे. उनकी एक छोटी बहन आरती हैं, जिनकी शादी शुभम की शादी से दो साल पहले हो गई थी. इस यात्रा में शुभम के परिवार के कुल 11 लोग गए थे, जिनमें शुभम की पत्नी, माता-पिता, बहन-बहनोई, ऐशान्या के माता-पिता और बहन समेत उनकी बहन के सास-ससुर थे.

जब ये दुर्घटना हुई थी तब शुभम के साथ उनकी पत्नी के अलावा ऐशान्या की छोटी बहन शाम्भवी और उनके माता-पिता समेत कुल 5 लोग थे. परिवार के छह लोग बैसरन घाटी के आधे रास्ते से ही वापस लौट आये थे. क्योंकि शुभम की बहन आरती को घोड़े पर बैठकर बहुत घबराहट हो रही थी उन्होंने ऊपर जाने से मना किया तो परिवार के 5 अन्य सदस्य भी नहीं गए.

ऐशान्या ने बताया, “जब हम एयरपोर्ट पहुंचे तो हमें ऐसे बहुत परिवार मिले, जिन्होंने आतंकवादियों से कहा था कि हमें भी गोली मार दो जैसे हमारा पति मारा है. लेकिन हमलावरों ने कहा कि सरकार को जाकर बताना तुम्हारे पति के साथ हमने क्या किया है.”

“आतंकवादियों के ऐसा कहने से लगता है कि वो सरकार से गुस्सा थे लेकिन मारे गए बेकसूर लोग.”

हमें लगा कोई प्रैंक कर रहा है’

क्या आपसे ही उन्होंने कुछ कहा था? इस सवाल के जवाब में ऐशान्या ने बताया, “नहीं. मुझे कुछ कहने-सुनने का समय ही नहीं मिला. हमें ऊपर पहुंचे हुए केवल 10 मिनट ही हुए थे. मैगी और कॉफ़ी ऑडर की थी. घड़ी में तब 02 बजकर 25 मिनट हुआ था. एक हवाई फायरिंग हुई जिसे हमने सुना भी. कॉफ़ी वाला जैसे ही कॉफ़ी रखकर गया कुछ सेकेण्ड बाद एक व्यक्ति हमारे नजदीक आया जिसने शुभम से पूछा हिन्दू हो या मुसलमान”.

“हमें लगा हमारे साथ कोई प्रैंक कर रहा है. हमने हंसते हुए पूछा क्या हुआ. उसने फिर पूछा हिन्दू हो या मुस्लिम. मुस्लिम हो तो कलमा पढ़ो. हमें अभी भी लग रहा था कि कोई प्रैंक ही कर रहा है. जैसे ही हमारे और शुभम के मुंह से हिन्दू निकला. हमारा वाक्य भी पूरा नहीं हुआ उसने शुभम के सिर के बाएं हिस्से पर गोली चला दी.”

यह कहते हुए ऐशान्या की आँखों से लगातार आंसू बह रहे थे और उनके शब्द लड़खड़ा रहे थे, “गोली लगते ही वो गिर गया. मैंने उसे उठाया. उसका चेहरा गायब हो चुका था. केवल मांस के चीथड़े और खून ही था. फिर क्या हुआ मुझे कुछ भी याद नहीं.”

जब शुभम को गोली लगी तब उनके ससुर टॉयलेट गए थे. उनकी सास कुछ दूर टहल रही थीं. ऐशान्या की बहन कुछ दूर पर इन दोनों की फोटो खींच रही थीं.

ऐशान्या की छोटी बहन शाम्भवी ने बताया, “मैं दीदी से कुछ ही मीटर की दूरी पर थी. हमें ऊपर आये अभी केवल 10 मिनट हुए थे. एक हवाई फायरिंग हमने भी सुनी. इसके बाद मैंने एक आदमी जीजा (शुभम) के पास आते देखा. वो डार्क कलर के काले या स्लेटी कलर के कपड़े पहने था. उसके हाथ में गन थी. चेहरे पर कोई मास्क नहीं था.”

“उसे देखकर मुझे लगा कि ये कोई सुरक्षा का जवान है पर वो आर्मी ड्रेस में नहीं था. मुझे ये भी लगा कि ये कोई गेम खिलाने वाला भी हो सकता है. सिर्फ पांच सेकेण्ड का खेल था. सबकुछ मेरी आँखों के सामने हुआ.”

ये बताते हुए वो काफी तकलीफ में थी और रो पडीं.

उन्होंने बताया, “मुझे अभी भी लग रहा था कि ये सब एक शूटिंग है. अभी जीजा उठ जायेंगे. पर ऐसा नहीं हुआ. उनके पास एक ग्रेट माइंड था, जिसे गोली से बाहर कर दिया गया था.”

सरकार हर भारतवासी को दे सुरक्षा का भरोसा’

इतना सब देख शाम्भवी तेजी से दीदी की तरफ भागी. तब तक गोलियों की आवाज़ बढ़ने लगी थी.

“मैंने दीदी को जबरदस्ती खींचकर गेट के बाहर किया. माँ और पापा खोजे. पापा वाशरूम न जाते तो उन्हें भी कुछ हो सकता था. सबको खींचकर बाहर लाये कि जल्दी भागो नहीं तो वो सबको मार देंगे.”

शाम्भवी ने यह भी बताया कि नीचे आने का रास्ता बहुत पथरीला था. घोड़े से ऊपर आते डर लग रहा था. पैदल वापसी संभव नहीं थी पर किसी ने भी हमारी मदद नहीं की.

“हम घोड़े वालों से बहुत गिड़गिड़ाये कि मेरे मम्मी-पापा नीचे पैदल नहीं जा पाएंगे. दीदी की हालत बहुत खराब थी पर जब किसी ने मदद नहीं की तो हम गिरते-पड़ते बहुत मुश्किल से नीचे उतर कर आ पाए. ऊपर गोलियां चलने की आवाज़ 20-25 मिनट तक आई और फिर सब खत्म हो गया.”

“जीजा को गोली लगते ही आसपास के 100-150 लोग इधर-उधर भागने लगे थे. अगर किसी और को पहली गोली लगती तो हो सकता है कि हम लोग भी भाग पाते और बच जाते.”

शाम्भवी को इस बात पर ज्यादा गुस्सा है कि उनके जीजा को सिर्फ धर्म के नाम पर मारा गया.

शाम्भवी घटना के पहले के कश्मीर यात्रा का अनुभव साझा करती हैं, “हमने कश्मीर में बहुत मस्ती की थी. मेरी दीदी की शादी के दो महीने ही हुए थे पर उन्होंने इन दो महीनों में मेरी बहन को बहुत घुमाया था. कश्मीर ट्रिप में ही दूसरी ट्रिप पेरिस जाने की प्लानिंग कर रहे थे. उन्होंने दीदी से कहा था कि शादी की छठे महीने की एनिवर्सरी पेरिस में मनाएंगे.”

ऐशान्या बीकॉम तक पढ़ी है. वो बहुत अच्छा डांस करती हैं. कई स्टेज परफोर्मेंस कर चुकी हैं. कुछ दिनों में डांस क्लासेज़ स्टार्ट करने वाली थीं.

कानपुर जिला मुख्यालय से क़रीब 20 किलोमीटर दूर शुभम का पैतृक गाँव रूमा है. अब उनके घर बहुत सारे लोग बैठे मिल जायेंगे. गेट में घुसते ही  तख्त पर श्वेत चादर बिछी है जिसके ऊपर शुभम की माला डालकर फोटो रखी है.

शुभम के चचेरे भाई सौरभ (28 वर्ष) ने  कहा, “सरकार को आतंकवाद की जड़ें खत्म करके भारत के हर नागरिक को आश्वस्त करना होगा कि आप कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक सब जगह सुरक्षित हैं.”

“भाई के अंतिम संस्कार में मुख्यमंत्री आये थे. उन्होंने भाभी से कहा आप मेरी बेटी जैसी हो. जो भी आप कहेंगी हम उसे पूरा करेंगे.”

शुभम के अंतिम संस्कार के दिन प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ परिवार से मिलने गये थे. उन्होंने परिवार को आश्वासन दिया है कि “आतंकवादियों” के खिलाफ़ सख्त कदम उठाएंगे.

शुभम की बहन आरती ने कहा, “दो चार दिन खबरें चलेंगी सब भूल जाएंगे मेरा भाई. पुलवामा में 2019 के हमले की अब कितनी बात होती है. किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता. मेरे भाई के लिए कुछ ऐसा जरूर हो ताकि कम से कम हमारा शहर तो उन्हें याद रख सके.”

शुभम की याद में सुबह शाम रोज इनके घर पूजा होती है जहां पूरा परिवार एक साथ एक डेढ़ घंटे बैठकर उनकी तस्वीर पर फूल चढ़ाकर श्रद्धांजलि दे कथा सुनता है.

ऐशान्या की बहन ने कहा, “अगर उन्हें माथे के आलावा कहीं और गोली लगी होती तो शायद हम उन्हें बचा लेते. हमने उन्हें तब तक हिलाया जबतक हमें यह नहीं लगा कि अब वो जीवित नहीं हैं. बाकी लोगों के परिवार को अपने शहीद हुए लोगों के चेहरे तो देखने को मिल गए. पर हमारे जीजा का तो चेहरा ही नहीं बचा.”

संजय द्विवेदी ने बताया, “आतंकवादियों ने ज्यादातर नौजवानों को मारा है. उन्होंने देश के भविष्य की निर्मम हत्या की है. सरकार को किसी कीमत पर चुप नहीं बैठना चाहिए.”

 

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