ज्ञान-अज्ञान:श्रावस्ती और बहराइच ‘गौतम और गाज़ी की भूमि?
उत्तर प्रदेश के श्रावस्ती एनयूजेआई राष्ट्रीय कार्यकारिणी बैठक का एकमात्र दुख । आयोजकों ने बैनर बना रखा था- गौतम-गाजी की भूमि पर देश के लब्ध प्रतिष्ठित पत्रकारों का स्वागत है ।
आयोजकों से ’गाजी‘ का मतलब ओैर बैनर में उसे लिखने का प्रयोजन पूछा तो पता चला कि आयोजक जनपदों में से एक बहराइच में किसी ’गाजी‘ का मकबरा है जिसे स्थानीय आबादी ’पीर‘ मान कर पूजती हेै जहां मई महीने में महीने भर चलने वाला मेला लगता है । आयोजकों में कुछ मुस्लिम बंधु भी थे । संभवतः उन्ही के संतोष के लिये ’गाजी‘ को बैनर पर जगह मिली । मेरे लिये अपने बंधुओं का अज्ञान और आत्माभिमानशून्यता कष्ट का विषय बनी रही । अब देखें कि ’गाजी‘ क्या होता है और ’पीर‘ क्या होता है ? दोनों को मिलाने का अर्थ भी अज्ञान की पराकाष्ठा लगती हेै ।
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भारत पर हमला कर, कत्लेआम, बलात्कार, मंदिरो को तोड़ने वाले के मजार पर जाते है हिन्दू
12:01
एक मुस्लिम हमलावर सुल्तान सैयद सालार मसूद गाज़ी जिसने भारत पर सन 1031 में विशाल सेना के साथ हमला किया
ये जिहादी स्वयं ग़ज़नी का रिश्तेदार था, वही ग़ज़नी जिसने सोमनाथ मंदिर पर 16 बार हमला किया कत्लेआम किया बलात्कार किया मंदिर को तोडा
ग़ज़नी तो भारत में बार बार लूट, हत्या, बलात्कार के बाद वापस चला जाता था पर उसी का रिश्तेदार सैयद सालार मसूद गाज़ी
ने भारत पर हमला किया और उसका मकसद था की भारत को पूरी तरह इस्लामिक राष्ट्र बना देगा जैसे पर्शिया/ ईरान को बन दिया गया
सैयद सालार मसूद अपनी सेना को लेकर “हिन्दुकुश” पर्वतमाला को पार करके पाकिस्तान (आज के) के पंजाब में पहुँचा, जहाँ उसे पहले हिन्दू राजा आनन्द पाल शाही का सामना करना पड़ा, जिसका उसने आसानी से सफ़ाया कर दिया। मसूद के बढ़ते कदमों को रोकने के लिये सियालकोट के राजा अर्जन सिंह ने भी आनन्द पाल की मदद की लेकिन इतनी विशाल सेना के आगे वे बेबस रहे। मसूद धीरे-धीरे आगे बढ़ते-बढ़ते राजपूताना और मालवा प्रांत में पहुँचा, जहाँ राजा महिपाल तोमर से उसका मुकाबला हुआ, और उसे भी मसूद ने अपनी सैनिक ताकत से हराया।
एक तरह से यह भारत के विरुद्ध पहला जेहाद कहा जा सकता है, जहाँ कोई मुगल आक्रांता सिर्फ़ लूटने की नीयत से नहीं बल्कि बसने, राज्य करने और इस्लाम को फ़ैलाने का उद्देश्य लेकर आया था। पंजाब से लेकर उत्तरप्रदेश के गांगेय इलाके को रौंदते, लूटते, हत्यायें-बलात्कार करते सैयद सालार मसूद अयोध्या के नज़दीक स्थित बहराइच पहुँचा, जहाँ उसका इरादा एक सेना की छावनी और राजधानी बनाने का था। इस दौरान इस्लाम के प्रति उसकी सेवाओं को देखते हुए उसे “गाज़ी बाबा” की उपाधि दी गई
इस्लामी खतरे को देखते हुए पहली बार भारत के उत्तरी इलाके के हिन्दू राजाओं ने एक विशाल गठबन्धन बनाया, जिसमें 17 राजा सेना सहित शामिल हुए और उनकी संगठित संख्या सैयद सालार मसूद की विशाल सेना से भी ज्यादा हो गई। जैसी कि हिन्दुओ की परम्परा रही है, सभी राजाओं के इस गठबन्धन ने सालार मसूद के पास संदेश भिजवाया कि यह पवित्र धरती हमारी है और वह अपनी सेना के साथ चुपचाप भारत छोड़कर निकल जाये अथवा उसे एक भयानक युद्ध झेलना पड़ेगा।
गाज़ी मसूद का जवाब भी वही आया जो कि अपेक्षित था, उसने कहा कि “इस धरती की सारी ज़मीन खुदा की है, और वह जहाँ चाहे वहाँ रह सकता है… यह उसका धार्मिक कर्तव्य है कि वह सभी को इस्लाम का अनुयायी बनाये और जो खुदा को नहीं मानते उन्हें काफ़िर माना जाये…”। उसके बाद ऐतिहासिक बहराइच का युद्ध हुआ, जिसमें संगठित हिन्दुओं की सेना ने सैयद मसूद की सेना को धूल चटा दी। इस भयानक युद्ध के बारे में इस्लामी विद्वान शेख अब्दुर रहमान चिश्ती की पुस्तक मीर-उल-मसूरी में विस्तार से वर्णन किया गया है। उन्होंने लिखा है कि मसूद सन् 1033 में बहराइच पहुँचा, तब तक हिन्दू राजा संगठित होना शुरु हो चुके थे। यह भीषण रक्तपात वाला युद्ध मई-जून 1033 में लड़ा गया। युद्ध इतना भीषण था कि सैयद सालार मसूद के किसी भी सैनिक को जीवित नहीं जाने दिया गया,
यहाँ तक कि युद्ध बंदियों को भी मार डाला गया… मसूद का समूचे भारत को इस्लामी रंग में रंगने का सपना अधूरा ही रह गया।बहराइच का यह युद्ध 14 जून 1033 को समाप्त हुआ।
बहराइच के नज़दीक इसी मुगल आक्रांता सैयद सालार मसूद (तथाकथित गाज़ी बाबा) की कब्र बनी। जब फ़िरोज़शाह तुगलक का शासन समूचे इलाके में पुनर्स्थापित हुआ तब वह बहराइच आया और मसूद के बारे में जानकारी पाकर प्रभावित हुआ और उसने उसकी कब्र को एक विशाल दरगाह और गुम्बज का रूप देकर सैयद सालार मसूद को “एक धर्मात्मा” के रूप में प्रचारित करना शुरु किया, एक ऐसा इस्लामी धर्मात्मा जो भारत में इस्लाम का प्रचार करने आया था।
मुगल काल में धीरे-धीरे यह किंवदंती का रूप लेता गया और कालान्तर में सभी लोगों ने इस “गाज़ी बाबा” को “पहुँचा हुआ पीर” मान लिया तथा उसकी दरगाह पर प्रतिवर्ष एक “उर्स” का आयोजन होने लगा, जो कि आज भी जारी है।
29 अप्रैल 2016 की मेरी पोस्ट
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हजरत सैयद सालार मसूद ग़ाज़ी
हजरत सैयद सालार मसूद ग़ाज़ी की मजार
जन्म हजरत सैय्यद मसूद
10 फरवरी सन् 1014 ईस्वी
अजमेर राजस्थान भारत
मौत
15 जून सन् 1034 ईस्वी
बहराइच उत्तर प्रदेश [[भारत]
समाधि
दरगाह शरीफ बहराइच
27°35′37.7″N 81°36′52.7″E / 27.593806°N 81.614639°E
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सैयद सालार मसूद ग़ाज़ी
अर्ध-पौराणिक इस्लामिक योद्धा
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हजरत सैय्यद सालार मसूद ग़ाज़ी
हजरत सैयद सालार मसूद ग़ाज़ी की मजार
जन्म
हजरत सैय्यद मसूद
10 फरवरी सन् 1014 ईस्वी
अजमेर राजस्थान भारत
मौत
15 जून सन् 1034 ईस्वी
बहराइच उत्तर प्रदेश [[भारत]
समाधि
दरगाह शरीफ बहराइच
27°35′37.7″N 81°36′52.7″E / 27.593806°N 81.614639°E
उपनाम
ग़ाज़ी सरकार
जाति
सुन्नी इस्लाम
पदवी
ग़ाज़ी
प्रसिद्धि का कारण
अजमेर से बहराइच आकर जंग की
अवधि
1014 से 1034 तक
धर्म
इस्लाम
माता-पिता
सालार (पिता)
संबंधी
हजरत सुलतान महमूद ग़ज़नवी (मामा)
समाधि
दरगाह शरीफ बहराइचभारत
उल्लेखनीय कार्य
सैयद सालार मसूद ग़ाज़ी के उल्लेखनीय कार्य निम्न है :
उन्होने अज़मेर के राजा को हराया और उनकी बहन से बालात्कारिता विवाह किया।[1][2]
सोमनाथ को ध्वस्त करने के इरादे से आक्रमण करना।[1]
बहराइच के सूर्य मन्दिर को तोड़कर मस्जिद बनाना।[3][4]
युद्ध में मृत्यु के पश्चात गाज़ी (धार्मिक योद्धा) की उपाधि पाना।[3][4]
ब्रिटिश काल
19वीं शताब्दी में, ब्रिटिश प्रशासक मसूद के प्रति हिंदू लोगों की श्रद्धा से हतप्रभ थे।[5] विलियम हेनरी स्लीमन, अवध में ब्रिटिश रेजिडेंट ने टिप्पणी की:[6]
“ यह कहना अजीब है कि मुसलमान के साथ-साथ हिन्दू भी इस दरगाह में चढ़ावा चढ़ाते हैं, और इस सैन्य गुण्डे के पक्ष में प्रार्थना करते हैं, जिसकी एकमात्र दर्ज योग्यता यह है कि उसने अपने क्षेत्र पर अनियंत्रित और अकारण आक्रमण में बड़ी संख्या में हिंदुओं को नष्ट कर दिया। ”
किंवदंती
सन् 1011 में अजमेर मुस्लिम सुल्तान महमूद से मदद की माँग की। महमूद के सेनापति सालार साहू ने अजमेर और आस-पास के क्षेत्रों के हिंदू शासकों को हराया। एक इनाम के रूप में महमूद ने अपनी बहन का सालार से विवाह किया। मसूद इसी विवाह का बालक था। मसूद का जन्म अजमेर में 10 फरवरी सन् 1014 में हुआ था।
फौजी और धार्मिक उत्साह से प्रेरित, मसूद ने ग़ज़नवी सम्राट से भारत आने और इस्लाम फैलाने की अनुमति माँगी। 16 साल की उम्र में, उसने सिंधु नदी पार करते हुए भारत पर हमला किया। उसने मुल्तान पर विजय प्राप्त की और अपने अभियान के 18वें महीने में, वह दिल्ली के पास पहुँचे। गज़नी से बल वृद्धि के बाद उन्होंने दिल्ली पर विजय प्राप्त की और 6 महीने तक वहाँ रहे। उसके बाद उसने कुछ प्रतिरोध के बाद मेरठ पर विजय प्राप्त की। इसके बाद वह कन्नौज चला गये।
महाराजा सुहेलदेव नामक शासक के आगमन तक, बहराइच में अपने हिंदू दुश्मनों को मसूद हराता चला गया। वह 15 जून 1034 को सुहेलदेव के खिलाफ लड़ाई में घातक रूप से घायल हो गया ।[7] मरने के दौरान, उन्होंने अपने अनुयायियों से जंगल में स्थित तालाब के तट पर , एक कुआ के निकट, उन्होंने दफनाने के लिए कहा। क्योंकि उस ने हज़ारो हिन्दुओं की हत्या की थी , इस लिए उसे गाज़ी (धार्मिक योद्धा) के रूप में जाना जाने लगा।
सैयद सालार मसूद ग़ाज़ी की दरगाह का प्रवेश द्वार
वर्तमान
2019 तक, मसूद के दरगाह में आयोजित वार्षिक मेले के अधिकांश आगंतुक हिंदू थे। सालार मसूद की महिमा करने वाली स्थानीय किंवदंतियों के मुताबिक, उसको पराजित करने वाला महाराजा सुहेलदेव पासी एक पराक्रमी राजा था. जिसने अपनी प्रजा का उद्धार किया था। लेकिन हिन्दुओं द्वारा सुहेलदेव पासी को एक हिन्दू व्यक्ति रूप में चित्रित किया है ,जो क्रूर मुस्लिम आक्रमणकारियों के खिलाफ लड़ा था। वही मसूद को एक विदेशी आक्रांता के रूप में चित्रित किया है जिसने हज़ारो हिंदुओं का नाश किया। जंग में लड़ते हुए मर जाने पर मुस्लिमो द्वारा शहीद और जंग पर हार प्राप्त करने पर ग़ाज़ी की उपाधि से सम्मानित किया जाता है।
सन्दर्भ
Anna Suvorova 2004, p. 157.
Shahid Amin 2016, p. xiii.
Anna Suvorova 2004, p. 158.
W.C. Benett 1877, p. 111–113.
Anna Suvorova 2004, p. 160.
P. D. Reeves 2010, p. 69.
“निनाद : अतीत का तिलिस्म और गाजी मियां”. जनसत्ता. 18 नव्मबर 2015. Archived from the original on 3 जुलाई 2018. Retrieved 2 जुलाई 2018. {{cite news}}: Check date values in: |date= (help); no-break space character in |title= at position 32 (help)
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ब्रिटिश काल
19वीं शताब्दी में, ब्रिटिश प्रशासक मसूद के प्रति हिंदू लोगों की श्रद्धा से हतप्रभ थे।[5] विलियम हेनरी स्लीमन, अवध में ब्रिटिश रेजिडेंट ने टिप्पणी की:[6]
“ यह कहना अजीब है कि मुसलमान के साथ-साथ हिन्दू भी इस दरगाह में चढ़ावा चढ़ाते हैं, और इस सैन्य गुण्डे के पक्ष में प्रार्थना करते हैं, जिसकी एकमात्र दर्ज योग्यता यह है कि उसने अपने क्षेत्र पर अनियंत्रित और अकारण आक्रमण में बड़ी संख्या में हिंदुओं को नष्ट कर दिया। ”
किंवदंती
सन् 1011 में अजमेर मुस्लिम सुल्तान महमूद से मदद की माँग की। महमूद के सेनापति सालार साहू ने अजमेर और आस-पास के क्षेत्रों के हिंदू शासकों को हराया। एक इनाम के रूप में महमूद ने अपनी बहन का सालार से विवाह किया। मसूद इसी विवाह का बालक था। मसूद का जन्म अजमेर में 10 फरवरी सन् 1014 में हुआ था।
फौजी और धार्मिक उत्साह से प्रेरित, मसूद ने ग़ज़नवी सम्राट से भारत आने और इस्लाम फैलाने की अनुमति माँगी। 16 साल की उम्र में, उसने सिंधु नदी पार करते हुए भारत पर हमला किया। उसने मुल्तान पर विजय प्राप्त की और अपने अभियान के 18वें महीने में, वह दिल्ली के पास पहुँचे। गज़नी से बल वृद्धि के बाद उन्होंने दिल्ली पर विजय प्राप्त की और 6 महीने तक वहाँ रहे। उसके बाद उसने कुछ प्रतिरोध के बाद मेरठ पर विजय प्राप्त की। इसके बाद वह कन्नौज चला गये।
महाराजा सुहेलदेव नामक शासक के आगमन तक, बहराइच में अपने हिंदू दुश्मनों को मसूद हराता चला गया। वह 15 जून 1034 को सुहेलदेव के खिलाफ लड़ाई में घातक रूप से घायल हो गया ।[7] मरने के दौरान, उन्होंने अपने अनुयायियों से जंगल में स्थित तालाब के तट पर , एक कुआ के निकट, उन्होंने दफनाने के लिए कहा। क्योंकि उस ने हज़ारो हिन्दुओं की हत्या की थी , इस लिए उसे गाज़ी (धार्मिक योद्धा) के रूप में जाना जाने लगा।
सैयद सालार मसूद ग़ाज़ी की दरगाह का प्रवेश द्वार
वर्तमान
2019 तक, मसूद के दरगाह में आयोजित वार्षिक मेले के अधिकांश आगंतुक हिंदू थे। सालार मसूद की महिमा करने वाली स्थानीय किंवदंतियों के मुताबिक, उसको पराजित करने वाला महाराजा सुहेलदेव पासी एक पराक्रमी राजा था. जिसने अपनी प्रजा का उद्धार किया था। लेकिन हिन्दुओं द्वारा सुहेलदेव पासी को एक हिन्दू व्यक्ति रूप में चित्रित किया है ,जो क्रूर मुस्लिम आक्रमणकारियों के खिलाफ लड़ा था। वही मसूद को एक विदेशी आक्रांता के रूप में चित्रित किया है जिसने हज़ारो हिंदुओं का नाश किया। जंग में लड़ते हुए मर जाने पर मुस्लिमो द्वारा शहीद और जंग पर हार प्राप्त करने पर ग़ाज़ी की उपाधि से सम्मानित किया जाता है।
सन्दर्भ
Anna Suvorova 2004, p. 157.
Shahid Amin 2016, p. xiii.
Anna Suvorova 2004, p. 158.
W.C. Benett 1877, p. 111–113.
Anna Suvorova 2004, p. 160.
P. D. Reeves 2010, p. 69.
“निनाद : अतीत का तिलिस्म और गाजी मियां”. जनसत्ता. 18 नव्मबर 2015. Archived from the original on 3 जुलाई 2018. Retrieved 2 जुलाई 2018. {{cite news}}: Check date values in: |date= (help); no-break space character in |title= at position 32 (help)