मोदी का वाल्मीकि और रविदास मंदिर जाने का आव्हान
राम मंदिर के बाद संत रविदास और वाल्मीकि… 2024 से पहले PM मोदी ने यूं ही नहीं किया ज़िक्र
2023 शुरू होते ही राज्यों में विधानसभा चुनाव की चर्चा शुरू हो गई है। 9 राज्यों में चुनाव 2024 से पहले सेमीफाइनल माने जा रहे हैं। भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ईसाई और सिख समुदाय का जिक्र करते हुए संत रविदास और महर्षि वाल्मीकि मंदिरों का भी जिक्र किया है। इसके राजनीतिक अर्थ भी हैं।
हाइलाइट्स
1-भाजपा ने लोकसभा चुनाव पर शुरू कर दिया काम
2-नेताओं से बोले मोदी, बिना चुनावी लालसा के काम करें
3-संत रविदास और महर्षि वाल्मीकि मंदिरों में जाने को कहा
नई दिल्ली 18 जनवरी: भाजपा का जिक्र होते ही राम मंदिर और हिंदुत्व की बातें जेहन में आने लगती हैं। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद अयोध्या में भव्य राम मंदिर का निर्माण हो रहा है। श्रीराम जन्मभूमि मंदिर का प्रथम तल लोकसभा चुनाव से पहले बनकर तैयार हो जाएगा। दिल्ली में भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के समापन सत्र को संबोधित करते हुए पीएम ने राम मंदिर का जिक्र करते हुए दो और मंदिरों का जिक्र किया, जिसकी अब चर्चा हो रही है। इसके राजनीतिक मायने भी निकाले जा रहे हैं। प्रधानमंत्री ने कहा कि राम मंदिर निर्माण का हमारा उद्देश्य पूरा हो गया है और यह अच्छी बात है लेकिन, हमें आत्मनिरीक्षण करने की भी जरूरत है कि क्या हम अपने क्षेत्रों में संत रविदास और महर्षि वाल्मीकि के मंदिरों में गए हैं या नहीं। दरअसल, दोनों दलित संत हैं और 9 राज्यों में विधानसभा चुनाव, उसके बाद लोकसभा चुनाव से पहले पीएम के इस संदेश के निहितार्थ निकाले जा रहे हैं। 2024 के लोकसभा चुनाव में अब करीब 400 दिन ही बचे हैं और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भाजपा के लिए चुनावी एजेंडा सेट कर दिया है। उन्होंने समाज के हर वर्ग तक पहुंचने और बिना किसी चुनावी लालसा के काम करने का मंत्र दिया है।
भारत का ‘सर्वोत्तम समय’ आने वाला है… हमें केवल वोट को ध्यान में रखकर वंचित और गरीबों से नहीं जुड़ना है। हमें उनके साथ खुद को जोड़ना है क्योंकि वे हाशिए पर हैं और गरीब हैं।
भाजपा नेताओं से क्या-क्या बोले मोदी
भाजपा नेताओं को संबोधित करते हुए मोदी ने कई बड़ी बातें कहीं। 1998 में एमपी में भाजपा की हार का उदाहरण देते हुए उन्होंने अति आत्मविश्वास को लेकर आगाह किया तो फिल्मों को लेकर बेवजह प्रतिक्रिया देने से बचने की भी नसीहत दी। मोदी ने कहा कि हमारा कैंपेन इस तरह से डिजाइन किया जाना चाहिए कि हम सभी समुदायों के वंचित वर्ग तक पहुंचें। इस दौरान पीएम ने सिखों और ईसाइयों के करीब पहुंचने की बात कही। उन्होंने कहा कि रविवार को जब लोग इकट्ठा होते हैं तो हमें चर्च के सामने पहुंचना चाहिए। इसी प्रकार, हमें सिख समुदाय से भी जुड़ना चाहिए।
ऐसा चाहूं राज मैं… कौन थे संत रविदास
राजनीतिक पक्ष पर बात करने से पहले यह जानना महत्वपूर्ण है कि संत रविदास और महर्षि वाल्मीकि कौन थे। पहले बात रविदास की। भक्तिकाल के संत और कवि रविदास को आध्यात्मिक समाज सुधारक माना जाता है। उन्होंने कहा था कि जन्म ईश्वर के हाथ में है। उन्होंने जन्म के आधार पर भेदभाव का विरोध किया था। उन्होंने समाज को नई राह दिखाई और कुरीतियों को दूर करने का प्रयास किया। उन्होंने धार्मिक एकता की बात की थी। उन्होंने कहा, ‘जनम जात मत पूछिए, का जात अरू पात, रैदास पूत सब प्रभु के, कोए नहि जात कुजात’ यानी, किसी की जाति नहीं पूछनी चाहिए क्योंकि संसार में कोई जाति-पांति नहीं है। सभी मनुष्य एक ईश्वर की संतान हैं।
काशी कनेक्शन
संत रविदास का जन्म 1433 में काशी में एक दलित परिवार में हुआ था। उस समय समाज में जात-पात, छुआछूत, पाखंड और अंधविश्वास काफी हावी था। दलितों का एक बड़ा हिस्सा संत रविदास को पूजता है। इस समय यूपी, पंजाब, हरियाणा, महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान समेत कई राज्यों में उनके अनुयायी हैं। इनके महत्व को ऐसे समझिए कि पिछले साल संत रविदाय जयंती के कारण पंजाब विधानसभा चुनाव की तारीख आगे बढ़ा दी गई थी। बताते हैं कि हर साल पंजाब में रहने वाले रविदास समुदाय के लाखों लोग काशी जाते हैं। रविदास के अनुयायियों को रैदसिया कहते हैं।
पिछले साल संत रविदास की जयंती पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद करोल बाग स्थित गुरु रविदास मंदिर पहुंचे थे। उन्होंने वहां अरदास की और भजन के दौरान मंजीरा भी बजाया था। कोरोना काल में गरीबों को राशन देने की योजना पर भी पीएम ने कहा था कि संत रविदास कहते थे कि ‘ऐसा चाहूं राज मैं, मिले सबन को अन्न’… उनके इसी मंत्र को ध्यान में रखकर मुफ्त राशन दिया जा रहा है। इसका ज्यादातर लाभ पिछड़े वर्ग, अनुसूचित जाति और जनजाति के गरीब परिवारों को मिला।
वाराणसी का सीरगोवर्धनपुर रविदासिया समुदाय की आस्था का प्रमुख केंद्र है। ‘मन चंगा तो कठौती में गंगा’ का संदेश देने वाले संत रविदास कर्म को जीवन में सबसे महत्वपूर्ण मानते थे।
महर्षि वाल्मीकि के बारे में जानिए
संस्कृत में ‘रामायण’ लिखने वाले महर्षि वाल्मीकि की जाति पर विवाद होता रहता है, लेकिन दलित समुदाय खुद को उनसे जोड़ता है। उनके अनुयायियों के समूह को वाल्मीकि समुदाय कहा गया, जो दलित हैं। दलित चिंतक ‘अति दलितों’ को वाल्मीकि समुदाय के तौर पर संबोधित करते हैं। इसमें हेला, डोम, महार, बेदा, कोली आदि शामिल हैं। वाल्मीकि समुदाय के लोग अपने गुरु को ईश्वर का अवतार मानते हैं। ये खुद को उनका वंशज मानते हैं। वाल्मीकि जयंती पर समुदाय के लोग धूमधाम से आयोजन करते हैं। पिछले दिनों जम्मू-कश्मीर में वाल्मीकि समुदाय को अनुसूचित जाति की सूची में शामिल करने की चर्चा चली थी। देश के ज्यादातर राज्यों में यह समुदाय SC लिस्ट में शामिल है।
उप्र में वाल्मीकि समुदाय
अब राजनीतिक पक्ष की बात करें तो सबसे ज्यादा लोकसभा सीटों वाले राज्य उत्तर प्रदेश में ही 21 प्रतिशत दलित आबादी रहती है, जो राज्य की सत्ता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। उत्तर प्रदेश की दलित आबादी में एक तिहाई हिस्सेदारी वाल्मीकि समाज के लोगों की है। इसी साल जिन 9 राज्यों में चुनाव हैं उसमें मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान भी है, जहां संत रविदास के अनुयायी और वाल्मीकि समुदाय की अच्छी खासी संख्या है।
पॉइंट में समझिए राजनीतिक गणित
मुख्य रूप से वाल्मीकि समाज हिंदू धर्म को मानता है, पंजाब में इस समुदाय के कुछ लोग सिख धर्म के अनुयायी हैं।
पंजाब में वाल्मीकि समुदाय अनुसूचित जाति की आबादी का 12 फीसदी है।
दिल्ली-NCR में वाल्मीकि समुदाय दूसरी सबसे अधिक आबादी वाली अनुसूचित जाति मानी जाती है।
जम्मू-कश्मीर में भी करीब 500 वाल्मीकि परिवार रहता है। यहां आबादी का करीब 8 फीसदी अनुसूचित जाति के लोग रहते हैं। जनसंख्या की बात करें तो कुल 10 लाख हैं।
मध्य प्रदेश में अनुजा वर्ग के लिए 35 सीटें आरक्षित हैं और राज्य की आबादी में 20 प्रतिशत SC हैं।
छत्तीसगढ़ में भी इसी साल चुनाव होने हैं। यहां लगभग 13 फीसदी एससी हैं। राज्य की 90 में से 10 सीटें एससी के लिए आरक्षित हैं।
कर्नाटक के रायचूर, चित्रदुर्ग समेत कई जिलों में वाल्मीकि समुदाय के लोग रहते हैं, यहां भी चुनाव है।
एक रिपोर्ट के मुताबिक पूरी दुनिया में रविदासिया समुदाय के 22 लाख से ज्यादा अनुयायी हैं। इसमें सबसे ज्यादा पंजाब में हैं। इनकी संख्या 15 लाख के करीब बताई जाती है।
एक समय दलितों की नेता के रूप में उभरी मायावती संत रविदास का खूब जिक्र किया करती थीं लेकिन बाद में प्रधानमंत्री मोदी, राहुल गांधी, प्रियंका गांधी, अखिलेश यादव, अरविंद केजरीवाल समेत लगभग सभी पार्टियों के नेता वाराणसी के मंदिर में मत्था टेकने के लिए पहुंचते रहे।
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