बरसी: बापू के भक्तों को याद है हिंदुओं का नर्क नोआखाली?
हिन्दू वकील को नंगा कर सिर कलम कर दिया, दरगाह के खादिम को प्लेट में रख पेश किया: दोनों बेटियों को मुस्लिमों को सौंप दिया, नोआखली में अहिंसा का भाषण देते रह गए गांधी
नोआखली के दंगों में अहिंसा का सन्देश देने गए गाँधी जी का मुस्लिमों ने किया था कड़ा विरोध
देश को सन् 1947 में आज़ादी तो मिली, लेकिन कॉन्ग्रेस की नीतियों के कारण इस आज़ादी के साथ-साथ देश को कई घाव भी मिले। सबसे बड़ी बात तो ये कि भारत ने विभाजन का दंश भी झेला। देश खंडित हो गया और इसकी वजह बनी इस्लामी कट्टरता। चटगाँव तब बंगाल का हिस्सा हुआ करता था, जो उसके बाद पूर्वी पाकिस्तान और फिर बांग्लादेश का हिस्सा बना। वहीं स्थित है नोआखली, जहाँ की हिन्दू जनसंख्या ने अक्टूबर-नवंबर 1946 में बड़े नरसंहार का सामना किया।
ये सब अचानक नहीं हुआ था, बल्कि संगठित रूप से अंजाम दिया गया था। इन दंगों के बीच 27 अक्टूबर को महात्मा गाँधी भी कोलकाता पहुँचे, जहाँ उन्हें एक सप्ताह तक हिरासत में रखा गया। 6 नवंबर को वो नोआखली के लिए रवाना हुआ। आज़ादी के समय कॉन्ग्रेस के अध्यक्ष रहे जेबी कृपलानी ने गाँधी जी के इस दौरे का जिक्र ‘गाँधी जीवन और दर्शन’ नामक पुस्तक में किया है। वो भारत की पहली महिला मुख्यमंत्री (यूपी की) सुचेता कृपलानी के पति थे।
जबी कृपलानी ने अपनी पुस्तक ‘गाँधी जीवन और दर्शन’ में लिखा है कि कैसे गाँधी जी के रास्ते में विष्ठा डाल दी जाती थी और उन्हें परेशान किया जाता था। स्थानीय मुस्लिम नेता आकर अफ़सोस जता कर चले जाते थे, लेकिन लौट कर वही लोग गड़बड़ियाँ करवाते थे। मुस्लिमों पर गाँधी जी की प्रार्थना सभा का असर नहीं होता था, क्योंकि वो मौलवियों के प्रभाव में थे। किसी भी कॉन्ग्रेस नेता ने वहाँ का दौरा नहीं किया। गाँधी जी भी ‘पीड़ित मुस्लिमों’ का दुःख जानने बिहार चले गए। न हिंदुओं में वो आत्मविश्वास भर पाए, न मुस्लिमों को समझा पाए।
लेकिन, पलायन का भारी दंश वहाँ हिन्दुओं ने ही झेला था। 1946 में 250 सदस्यीय बंगाल विधानसभा में डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी ‘हिन्दू महासभा’ के एकमात्र सदस्य थे। उन्होंने हिन्दुओं की पीड़ा के लिए आवाज़ उठाने में जान लगा दी। नोआखली में उस वक्त 82% मुस्लिम थे और हिन्दुओं की जनसंख्या मात्र 18% थी। हिन्दुओं की हत्याओं के अलावा जम कर लूटपाट और आगजनी की गई, जैसे मुस्लिम भीड़ की हिंसा में आमतौर पर किया जाता है।
हिन्दुओं को जबरन मुस्लिम बनाया जा रहा था। हिन्दुओं की घरों एवं संपत्तियों को योजनाबद्ध तरीके से तबाह किया गया। वो पलायन करने और राहत शिविरों में रहने को मजबूर हुए। अपनी पुस्तक ‘भारत और पाकिस्तान का उदय’ में यास्मीन खान ने लिखा है कि कलमा पढ़ने के साथ धर्मांतरण शुरू किया जाता था और फिर जबरन गोमांस खिलाया जाता था। फिर महिलाओं के साथ बलात्कार किया जाता था। मुस्लिमों में ये बात बैठ गई थी कि सभी गैर-मुस्लिमों का धर्मांतरण करा देना है।
‘राष्ट्रवादी साहित्यकार संघ’ के अध्यक्ष आचार्य मायाराम पतंग ने डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी पर लिखी एक पुस्तक में गाँधी जी के नोआखली दौरे को लेकर एक वाकये के जिक्र किया है। एक बार महात्मा गाँधी किसी मुस्लिम के आँगन में बैठ कर अहिंसा का प्रवचन दे रहे थे और उनके बगल में एक ऐसा व्यक्ति बैठा था, जिसने कई हिन्दुओं की हत्याएँ की थीं। जब सुचेता कृपलानी ने एक कागज़ पर लिख कर उन्हें ये बात बताई, तो वो मुस्कुरा दिए और उस मुस्लिम व्यक्ति से कुछ नहीं कहा।
एक सप्ताह से भी अधिक समय तक चले नोआखली के दंगों में 5000 हिन्दुओं के मारे जाने की बात कही जाती है, लेकिन आँकड़ा इससे कहीं बहुत ज्यादा है। सैकड़ों हिन्दू महिलाओं का बलात्कार किया गया। हिन्दुओं से ‘जजिया’ नामक कर वसूला जाने लगा था, जो ‘काफिरों’ के लिए इस्लामी आक्रांताओं के काल में अनिवार्य हुआ करता था। बंगाल में उस समय मुस्लिमों की सरकार थी और उसे पढ़े-लिखे और समृद्ध हिन्दुओं का आगे बढ़ना रास नहीं आ रहा था।
फेनी नदी में अपने जीवन-यापन के लिए मछली पकड़ रहे मछुआरों पर मुस्लिम भीड़ ने ईद-अल-फितर के दिन ही हमला बोल दिया। इसी तरह चरुईयाह में मछुआरों के एक समूह पर हमला किया गया। बाबूपुर नामक गाँव में एक कॉन्ग्रेस नेता के ही बेटे की हत्या कर दी गई। कॉन्ग्रेस दफ्तर को आग के हवाले कर दिया गया और परिवार के अन्य लोगों और नौकरों पर हमले किए गए। मुस्लिम भीड़ ने हथियार लेकर लूटपाट शुरू कर दिया।
इससे पहले कोलकाता में ‘डायरेक्ट एक्शन डे‘ के ऐलान के बाद मुस्लिम भीड़ ने कहर बरपाया था। बंगाल के एक नेता गुलाम सरवर हुसैनी का इन दंगों में बड़ा हाथ था, जिसने जमींदारों पर हमले के बहाने मुस्लिम किसानों को भड़काया और उन्हें अपने साथ लेकर एक ‘मियार फ़ौज’ नामक एक इस्लामी फ़ौज बनाई। वो श्यामपुर (अब लक्ष्मीपुर स्थित रामगंज) के दरया शरीफ दरगाह का खादिम था और सूफी परिवार से था। नोआखली के ‘बार एसोसिएशन’ और जिले में ‘हिन्दू महासभा’ के अध्यक्ष राजेंद्र रॉय चौधरी का कटा हुआ सिर सरवर को एक प्लेट में रख कर पेश किया गया था।
उनकी दो बेटियों को इस्लामी फ़ौज के दो सरदारों को सौंप दिया गया। उस समय ‘भारत सेवाश्रम संघ’ के स्वामी त्रयम्बकानंद उनके घर ही ठहरे हुए थे, लेकिन एक दिन पहले किसी तरह उन्हें सुरक्षित स्थान पर भेज दिया गया था। कहा जाता है तो चौधरी रॉय को नंगा कर के उनका सिर काटा गया था। उनके घर को आग के हवाले कर दिया गया था। उनके घर की महिलाओं को आपत्तिजनक रूप से खुले में घुमाया गया, ताकि लोग तमाशा देखें।
चौधरी के घर महात्मा गाँधी भी पहुँचे थे। वहाँ कई शव ऐसे थे, जिन्हें जल जाने के कारण पहचानना तक मुश्किल था और उनका अंतिम संस्कार भी नहीं हो पाया था। वहाँ महिलाओं की लाशें भी थीं। सुजाता चौधरी ने अपने एक उपन्यास में इस घटना को जगह दी है। इन दंगों के बाद भी हिन्दुओं को सताया जाना कम नहीं हुआ। महिलाओं को मंगलसूत्र-सिंदूर हटाने को मजबूर किया गया और उन्हें कलमा पढ़वाने के लिए मौलवियों को उनके घर भेजा जाने लगा।
साथ ही पुरुषों को इस्लामी धर्मांतरण के बाद मुस्लिमों की तरह दाढ़ी रखने और स्कल कैप पहनने को मजबूर किया गया। हालाँकि, इस्लामी पत्र-पत्रिकाओं ने जबरन धर्मांतरण की घटनाओं को नकार दिया। त्रिपुरा, असम और पश्चिम बंगाल में पीड़ित हिन्दुओं को शरण लेनी पड़ी। हिन्दुओं को राहत शिविर की तरफ ले जा रहे पुलिस वालों पर भी मुस्लिम भीड़ ने हमला किया। अंत में हार कर महात्मा गाँधी को कहना पड़ा कि हिन्दू या तो नोआखली छोड़ दें, या फिर अपनी दुर्दशा को तैयार रहें।