अंग्रेजों की कठपुतली थे वीर सावरकर? पांच सवाल, पांच जवाब,राहुल को सुको की चेतावनी
क्या सावरकर अंग्रेजों की कठपुतली थे? इस रहस्य से जुड़े 5 बड़े सवालों के जवाब
1857 के गदर को पहली बार ‘ स्वातंत्र्य संग्राम’ के रूप में परिभाषित करने वाले वीर सावरकर (Veer Savarkar) की भारतीय इतिहास में एक धुंधली छवि गढ़ दी गई है. अंग्रेजों को दया याचिका (Mercy Petition) लिखे जाने से लेकर महात्मा गांधी (Gandhi) की हत्या तक सावरकर के बारे में कई विवादित सवाल खड़े किये गए हैं.
इतिहासकारों से लेकर राजनेताओं ने अपने-अपने हितों को ध्यान में रखते हुए तमाम तर्क और तथ्यों के साथ भारतीय इतिहास में वीर सावरकर (Veer Savarkar) एक धुंधली छवि गढ़ दी है. 1857 के गदर को पहली बार स्वातंत्र्य संग्राम के रूप में परिभाषित करने वाले वीर सावरकर के बारे में एक पक्ष उन्हें भारत का महान क्रांतिकारी और हिंदुत्व (Hindutva) का प्रखर विचारक बताता है. वहीं, दूसरा पक्ष सावरकर को अंग्रेजों से माफी मांगने वाले और कट्टर हिंदूवादी नेता बताता है. भारत के आजाद होने से पहले से लेकर वीर सावरकर के मौत के बाद तक वह विवादित व्यक्तित्व के रूप में ही जाने जाते रहे हैं. सावरकर के जीवन के हर हिस्से पर व्यापक रिसर्च के साथ दो किताबें लिखने वाले इतिहासकार लेखक विक्रम संपत (Vikram Sampath) ने उनके जिंदगी के सबसे विवादित प्रश्नों के जवाब दिए हैं. फर्स्टपोस्ट से बातचीत में विक्रम संपत ने अंग्रेजों की कठपुतली से लेकर महात्मा गांधी की हत्या तक के आरोपों को लेकर वीर सावरकर पर खड़े किये जाने वाले पांच विवादित सवालों के जवाब दिए. आइए जानते हैं सवालों के तौर पर सामने आने वाली इन पहेलियों के जवाब…
वीर सावरकर के बारे में इतिहासकार और लेखक विक्रम संपत ने दो किताबें लिखी हैं.
क्या सावरकर ने लिखी थी दया याचिका?
विक्रम संपत के अनुसार, वीर सावरकर की याचिका को आमतौर पर दया याचिका (Mercy Petition) के रूप में पेश किया जाता है, जो गलत है. यह एक साधारण सी कानूनी प्रक्रिया थी, जो उस समय के सभी राजनीतिक बंदियों के मौजूद थी. युद्धकाल के दौरान ब्रिटिश सरकार ने सद्भावना दिखाने के लिए कई राजनीतिक दोषियों को माफी दी थी. ये माफी न केवल भारत में बल्कि ब्रिटिश शासन (British Government) के दुनिया के तमाम उपनिवेशों में भी दी गई थी. यह सावरकर को दिया गया कोई विशेषाधिकार या प्रावधान नहीं था. विक्रम संपत ने बातचीत में कहा कि सावरकर ने अंग्रेजों को लिखे अपने पत्र में कहीं भी अपने किसी भी कृत्य के लिए माफी नही मांगी. सावरकर का पत्र अपने मामले में बहस करने को एक चतुर वकील की कुशलता का प्रमाण था. वह अन्य राजनीतिक कैदियों के भी प्रवक्ता थे. इनका प्रतिनिधित्व कर सावरकर जेल में उनके अधिकारों और सजा की प्रकृति पर स्पष्टीकरण मांग रहे थे.
क्या सावरकर इस तरह की अपील करने वाले इकलौते थे?
विक्रम संपत का कहना है कि शचींद्रनाथ सान्याल ने भी इसी तरह की एक याचिका लिखी थी. शचींद्रनाथ सान्याल ने इस पत्र में सावरकर की तरह ही राजनीति से दूर रहने की बात लिखी थी. लेकिन, जेल से बाहर आने के बाद सान्याल ने हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन गठित की. वहीं, काकोरी कांड बाद उन्हें फिर कालापानी यानी सेल्युलर जेल भेज दिया गया. लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक जैसे लोगों ने भी ऐसी ही याचिकाएं दायर कीं. यहां तक कि सीपीआई संस्थापक श्रीपाद अमृत डांगे ने भी याचिका दायर की थी. काकोरी कांड के दोषियों की ओर से महामना मदन मोहन मालवीय ने याचिका दायर की थी. 1920 में खुद महात्मा गांधी ने सावरकर बंधुओं की ओर से एक याचिका दायर की थी. इसलिए यह नियमित मामला था.
क्या अंग्रेजों और सावरकर के बीच कोई गुप्त समझौता था?
विक्रम संपत के अनुसार, माना जाता है कि सावरकर ने अंग्रेजों के सहयोग को गुप्त रूप से कोई पत्र लिखा था. हालांकि, इन सब कयासों से इतर उन्होंने अपने मराठी संस्मरण माझी जन्मठेप (माई ट्रांसपोर्टेशन फॉर लाइफ) में इस बारे में खुलकर लिखा है और इकोज ऑफ अंडमान में उनके छोटे भाई नारायण राव ने वीर सावरकर के सभी पत्र प्रकाशित किये थे. अगर ब्रिटिश सरकार और सावरकर में कोई समझौता हुआ होता, तो उन्हें पांच वर्ष राजनीति से दूर रहने को नहीं कहा जाता. जिसे बाद में बढ़ाकर 13 साल कर दिया गया था.
क्या गांधी की हत्या के पीछे सावरकर थे?
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1949 में महात्मा गांधी की हत्या का मामला (Gandhi Murder Case) लाल किले की अदालत में सुनवाई के बाद बंद कर दिया गया था. सभी नौ आरोपितों में से केवल सावरकर को ही दोषमुक्त मान छोड़ा गया. नाथूराम गोडसे (Nathuram Godse) और नारायण आप्टे (Narayan Apte) को फांसी दी गई, जबकि गोपाल गोडसे, विष्णु करकरे और मदन लाल पाहवा जैसे अन्य लोगों को लगभग 15 साल कैद सुनाई गई. सजा पूरी करने के बाद 1964-65 में जब ये लोग जेल से बाहर आए, तो उनके लिए पुणे में विशाल सार्वजनिक समारोह किया गया. तब केसरी के तत्कालीन संपादक जीवी केतकर ने एक चौंकाने वाला बयान दिया था. जीवी केतकर ने कहा था कि उन्हें महात्मा गांधी की हत्या के बारे में बहुत पहले से ही जानकारी थी और उन्होंने महाराष्ट्र सरकार और केंद्र को इस बारे में बताया था. इस बयान के सामने आने पर काफी हंगामा हुआ था. केतकर के आरोपों की जांच को जीवन लाल कपूर आयोग का गठन किया गया.
इस बात में कोई शक नहीं है कि नाथूराम गोडसे और नारायण आप्टे सावरकर से जुड़े थे, ये दोनों ही हिंदू महासभा के शक्तिशाली गुट थे. जीवन लाल कपूर आयोग ने यही गलती की. इस आयोग ने सावरकर से जुड़े लोगों की तुलना सीधे सावरकर से करने की गलती की. जीवन लाल कपूर आयोग ने सावरकर समूह के गोडसे और आप्टे की संलिप्तता के कारण सावरकर को गांधी की हत्या के पीछे साजिश में जुड़ा माना. यह केवल मामले को बढ़ाने की कोशिश थी और इस कल्पना को सही साबित करने को कोई पुख्ता सबूत नहीं थे. हाल ही में मार्च, 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि याचिकाकर्ता के तर्क कि सावरकर को गांधी जी की हत्या में दोषी ठहराया गया था, गलत है. सावरकर को कई बार इस मामले में क्लीन चिट दी जा चुकी है. लेकिन, राजनीतिक संकीर्णता और एक व्यक्ति को दूसरे से श्रेष्ठ साबित करने के कोशिश में इस हत्या के मामले में उनका नाम घसीटा जाता है.
क्या इंदिरा गांधी ने की थी सावरकर की तारीफ?
विक्रम संपत के अनुसार, 8 मार्च 1980 को बांबे (वर्तमान मुंबई) के स्वातंत्र्यवीर सावरकर राष्ट्रीय स्मारक के पंडित बाखले ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को सावरकर के आने वाले शताब्दी कार्यक्रम के बारे में पत्र लिखा था. 20 मई 1980 को लिखे अपने जवाब में इंदिरा गांधी ने लिखा था कि सावरकर का ब्रिटिश सरकार का साहसिक विरोध भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में महत्वपूर्ण स्थान रखता है. मैं भारत के इस महान सपूत के 100वें जन्म जयंती उत्सव के लिए शुभकामनाएं देती हूं. इतना ही नहीं, इंदिरा गांधी ने सावरकर ट्रस्ट को निजी तौर पर 11 हजार रुपये का दान भी दिया था.
इंदिरा गांधी ने वीर सावरकर को भारत का महान सपूत कहा था
1970 में इंदिरा गांधी सरकार ने सावरकर के सम्मान में उनकी जन्म जयंती पर एक डाक टिकट भी जारी किया था. इस डाक टिकट पर सावरकर की तस्वीर के साथ बैकग्राउंड में सेल्युलर जेल की तस्वीर थी. इंदिरा गांधी के निर्देश पर केंद्रीय सूचना और संचार मंत्रालय के फिल्म डिवीजन ने वीर सावरकर पर एक डॉक्यूमेंट्री भी बनाई थी. हालांकि, 1990 के पहले तक भारत का राजनीतिक वातावरण अन्य दृष्टिकोणों और विचारधाराओं के विरोध वाला ही रहा, उस दौरान इनके लिए उदारता देखने को कम ही मिली।
supreme court attacks rahul gandhi on veer savarkar says you cant mock freedom fighters
वीर सावरकर पर SC की राहुल गांधी को सीख- उन्होंने आजादी दिलाई थी, दोबारा ऐसा ना हो
वीर सावरकर पर राहुल गांधी की माफीवीर वाली टिप्पणी पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि स्वतंत्रता सेनानियों का मजाक न उड़ाएं। बेंच ने राहुल गांधी के वकील सिंघवी से पूछा कि क्या राहुल गांधी को पता है कि महात्मा गांधी ने भी अंग्रेजों से संवाद में खुद के लिए ‘आपका वफादार सेवक’ शब्द का इस्तेमाल किया था।
Fri, 25 Apr 2025, 12:27:PM
स्वतंत्रता सेनानी विनायक दामोदर सावरकर पर आपत्तिजनक टिप्पणी मामले में राहुल गांधी को सुप्रीम कोर्ट ने सीख दी है। शुक्रवार को अदालत ने कांग्रेस नेता से कहा कि वीर सावरकर जैसे लोगों ने हमें आजादी दिलाई थी और आप उनसे इस तरह का बर्ताव कर रहे हैं। यही नहीं, राहुल गांधी को पढाते हुए अदालत ने कहा कि भविष्य में कभी ऐसी टिप्पणी न करें, अन्यथा अदालत स्वत: संज्ञान ले सकती है। वीर सावरकर पर राहुल गांधी की माफीवीर टिप्पणी को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि स्वतंत्रता सेनानियों का मजाक न उड़ाएं। बेंच ने राहुल गांधी के वकील अभिषेक मनु सिंघवी से पूछा कि क्या राहुल गांधी को पता है कि महात्मा गांधी ने भी अंग्रेजों से संवाद में खुद के लिए ‘आपका वफादार सेवक’ शब्द का इस्तेमाल किया था।
शीर्ष अदालत ने साफ कहा कि वीर सावरकर को लेकर राहुल गांधी की टिप्पणी गैरजिम्मेदाराना थी। उन्हें ऐसा नहीं बोलना चाहिए। हालांकि अदालत ने इस मामले में उन्हें राहत भी दी है। बेंच ने सावरकर पर टिप्पणी को लेकर मानहानि के मामले में राहुल गांधी के खिलाफ जारी समन रद्द करने से इनकार करने वाले इलाहाबाद हाई कोर्ट का फैसला रोका है। साथ ही मामले में यूपी सरकार को भी सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस जारी किया है। राहुल गांधी ने एक रैली में वीर सावरकर पर विवादित बयान दिया था।
अदालत बोली- महात्मा गांधी ने भी खुद को बताया था ‘अंग्रेजों का वफादार नौकर’
पूरा मामला 2022 में शुरू हुआ था। तब राहुल गांधी ने अपनी भारत जोड़ो यात्रा में महाराष्ट्र के अकोला में रैली की थी। इसमें उन्होंने वीर सावरकर पर विवादित टिप्पणी की थी। उन्होंने एक चिट्ठी दिखाते हुए कहा था कि सावरकर ने अंग्रेजों का नौकर बने रहने की बात कही थी। साथ ही डरकर माफी भी मांगी थी। गांधी-नेहरू ने ऐसा नहीं किया, इसलिए वे सालों तक जेल में रहे। इस मामले में राहुल गांधी के खिलाफ एक अधिवक्ता ने केस किया था। हालांकि अदालत ने केस की सुनवाई में राहुल गांधी को सीख देते हुए ऐतिहासिक तथ्य भी गिनाए। बेंच ने कहा कि क्या आपको पता है कि महात्मा गांधी ने भी अंग्रेजों के साथ संवाद में खुद को ‘वफादार नौकर’ बताया था।