जातिगत गणना
क्या जाति जनगणना से BJP ने अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली है, क्या होंगे राजनीतिक परिणाम
केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने जाति जनगणना को हरी झंडी दे दी है. माना जा रहा है कि इससे देश की राजनीति की दशा और दिशा दोनों ही बदल जाएगी. आइए जानते हैं कि बीजेपी के लिए इस फैसले के मायने क्या हैं?
मोदी सरकार ने जातीय जनगणना की सिफारिश की है।
केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने इस बारे में जानकारी दी।
यह फैसला राजनीतिक बहस का नया मोड़ साबित हुआ है।
नई दिल्ली:
नरेंद्र मोदी सरकार की राजनीतिक मामलों की समिति ने बुधवार को जातीय जनगणना की सिफारिश कर दी. इसकी जानकारी केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में दी. मोदी सरकार के इस फैसले ने देश में राजनीतिक बहस की दिशा को बदल लिया है. सरकार के इस फैसले को एक क्रांतिकारी कदम बताया जा रहा है. पक्ष और विपक्ष इसे अपनी-अपनी जीत बता रहे हैं. एक तरफ बीजेपी और उसके सहयोगी जहां इस बात का श्रेय ले रहे हैं कि उनकी सरकार ने यह ऐतिहासिक फैसला किया है. वहीं कांग्रेस, सपा और राजद जैसे विपक्षी दलों का कहना है कि उनके दवाब में आकर सरकार को जाति जनगणना कराने का फैसला लिया है. कुछ हल्के में यह कहा जा रहा है कि इस फैसले से बीजेपी ने अपने ही पैर में कुल्हाड़ी मार ली है.लोगों का कहना है कि इसका फायदा बीजेपी को नहीं मिलेगा. आइए जानते हैं कि क्या सच में बीजेपी इस फैसले का राजनीतिक फायदा नहीं ले पाएगी.
बीजेपी और जाति जनगणना
बीजेपी को अपर कॉस्ट की पार्टी माना जाता है. वीपी सिंह की सरकार से बीजेपी ने अपना समर्थन वापस ले लिया था. वीपी सिंह की ही सरकार ने अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) आरक्षण लागू किया था. इसी के बाद लालकृष्ण आडवाणी ने सोमनाथ से अयोध्या तक की रथयात्रा शुरू की थी. माना जाता है कि आडवाणी ने मंडल आंदोलन की धार को कुंद करने के लिए अपनी रथयात्रा शुरू की थी. इन घटनाओं ने इस छवि को और मजबूत किया था कि बीजेपी अपर कास्ट की पार्टी है. इसके बाद बीजेपी ने केंद्र और कुछ राज्यों में सरकारें तो बनाई लेकिन केंद्र में कभी स्पष्ट बहुमत हासिल नहीं कर पाया. बीजेपी को इसके लिए 2014 तक का इंतजार करना पड़ा. जब ओबीसी समाज से आने वाले नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी ने चुनाव लड़ा तो उसे स्पष्ट बहुमत मिला. बीजेपी की इस सफलता में ओबीसी का बड़ा हाथ था. कहा जाता है कि मोदी की वजह से ही बीजेपी ने यह सफलता हासिल की. बीजेपी ने इस राजनीतिक तो आकार दिया तो बीजेपी ने 2019 के लोकसभा चुनाव में 303 सीटें जीत लीं. लेकिन 2024 के चुनाव में कांग्रेस के नेतृत्व वाले इंडिया गठबंधन ने बीजेपी को आरक्षण और संविधान विरोधी बताया. उसका यह नैरेटव काम कर गया. इसकी वजह से बीजेपी 303 से 240 पर आ गई. इस हार ने बीजेपी को जाति जनगणना सोचने पर मजबूर किया.
किसकी राजनीतिक जरूरत है जाति जनगणना
जाति जनगणना कराने के फैसले के सवाल पर वरिष्ठ पत्रकार विजय त्रिवेदी कहते हैं, बीजेपी पहले हिंदू अंब्रेला के साथ चलती थी, लेकिन उसे अब यह बात समझ में आई है कि जाति जनगणना राजनीतिक जरूरत है. इसके लिए विपक्षी दलों ने भी दबाव बनाया. बिहार विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए बीजेपी को लगा कि जातिगत जनगणना के बगैर चलना मुश्किल काम होगा. इससे पहले बीजेपी ने कभी न तो जातिगत जनगणना का खुलकर सर्मथन किया और न ही कभी खुलकर विरोध. उसे लगता था कि जब तक धर्म के नाम पर राजनीति हो सकती है, तब तक किया जाए. लेकिन अब जब उसे लगा कि केवल धर्म के आधार पर राजनीति नहीं हो सकती है तो बीजेपी ने यह जातिगत जनगणना कराने का फैसला किया है.
क्या 2024 के लोकसभा चुनाव के परिणाम ने इस फैसले में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. इस सवाल के जवाब में त्रिवेदी कहते हैं कि निश्चित तौर पर. वो कहते हैं कि जिसे आप फेक नैरेटिव कहकर खारिज कर रहे थे, उसने आपको नुकसान पहुंचा दिया. आपको 303 से 240 पर पहुंचा दिया. आपको 60 सीटों का नुकसान हो गया. बीजेपी बिहार चुनाव में भी इसी तरह का नुकसान नहीं चाहती थी, वह यह भी नहीं चाहती थी कि उसकी छवि जाति या आरक्षण विरोधी की बन जाए. इसलिए उसने यह फैसला किया.
इस फैसले की एक वजह हरियाणा विधानसभा चुनाव का परिणाम भी हो सकता है. साल 2024 के लोकसभा चुनाव के परिणाम के बाद हरियाणा में ओबीसी पर दांव लगाया. इसका फायदा वहां बीजेपी की हुआ. बीजेपी वहां प्रचंड बहुमत से अकेले के दम पर फिर सरकार बनाने में कामयाब रही. इस फैसले से भी उसे ओबीसी की ताकत का एहसास हुआ. जिसने बीजेपी को यह फैसला लेने का साहस दिया होगा.
जाति जनगणना का नैरेटिव
बीजेपी को इस फैसले का फायदा क्या होगा. इस सवाल पर त्रिवेदी कहते हैं कि बीजेपी अब यह नैरेटिव गढ़ेगी कि जाति जनगणना का फैसला बीजेपी और नरेंद्र मोदी की सरकार ने करवाया. यह आधिकारिक तौर पर भी दर्ज होगा कि जातिगत जनगणना का फैसला बीजेपी की सरकार ने लिया था. वो कहते हैं कि बीजेपी ने 2019 के लोकसभा चुनाव में बिहार और उत्तर प्रदेश में 93 सीटें जीती थीं. लेकिन 2024 के चुनाव में जब इंडिया गठबंधन ने बीजेपी को आरक्षण और संविधान विरोधी बताने का नैरेटिव खड़ा किया तो दोनों राज्यों में बीजेपी 45 पर सिमट गई. इससे यह साफ हुआ कि बीजेपी इंडिया गठबंधन के नैरेटिव में पिछड़ गई. नैरेटिव की इस लड़ाई ने ही बीजेपी को यहां तक पहुंचाया है. इसलिए अब बीजेपी जाति जनगणना को लेकर नया नैरेटिव खड़ा कर कांग्रेस को कमजोर करने की कोशिश करेगी.
पिछले तीन लोकसभा चुनाव में मिली हार के बाद से कांग्रेस आजकल सामाजिक न्याय के मुद्दों को लेकर मुखर है.
पिछले तीन लोकसभा चुनाव में मिली हार के बाद से कांग्रेस आजकल सामाजिक न्याय के मुद्दों को लेकर मुखर है.
कांग्रेस इस फैसले का श्रेय लेने की कोशिश करते तो दिख रही है, लेकिन जाती जनगणना पर उसका रुख बहुत कमजोर रहा है. आज राहुल गांधी सामाजिक न्याय की लड़ाई का नेता बनने की कोशिश कर रहे हैं. उनके पिता और देश के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने 1990 में ओबीसी आरक्षण लागू किए जाते समय इसका विरोध किया था. उन्होंने छह सितंबर 1990 को लोकसभा में ओबीसी आरक्षण लागू किए जाने को राजनीति में जातिवाद की वापसी का कारण बताया था. उन्होंने कहा था कि इंदिरा गांधी ने 1980 का चुनाव ‘न जात पर न पात पर’के नारे पर जीता था. वामपंथी नेता इंद्रजीत गुप्ता के हवाले से आरक्षण लागू करने के फैसले को बिना तैयारी के लागू किया गया फैसला बताया था. कांग्रेस के पास अपनी गलती सुधारने का एक और मौका 2010 में आया था. उस समय संसद में जातिगत जनगणना के लिए जोरदार बहस हुई थी, लेकिन कांग्रेस सरकार इसके लिए तैयार नहीं हुई थी. अब जब कांग्रेस को पिछले तीन लोकसभा चुनाव में जोरदार हार मिली है तो कांग्रेस ने जाति जनगणना और सामाजिक न्याय की वकालत करना शुरू किया है.
जातिगत जनगणना का फैसला किसे मिलेगी यह इस बात पर निर्भर करेगा कि कौन सा दल या गठबंधन इसको लेकर नैरेटिव खड़ा कर पाता है. अभी इसमें बीजेपी बाजी मारते हुए ही दिख रही है. यह उस समय ही नजर आया जब केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने बुधवार को जाति जनगणना कराने के फैसले की घोषणा की. उसी समय उन्होंने कांग्रेस पर हमला किया. हालांकि कांग्रेस ने इस फैसले का पूरा समर्थन किया है.
*राजेश कुमार आर्य