उत्‍तराखंड के 28 गांवों में कैसे बन गये हिंदू अल्पसंख्यक ?

उत्तराखंड के इन 28 गांवों में हिंदू कैसे बन गए अल्पसंख्यक? इस नियम में ढील उड़ा रही नींद

उत्तराखंड गठन के बाद सहसपुर के 28 गांवों में हिंदू समुदाय अल्पसंख्यक हो गया है. बाहरी राज्यों से आए लोग परिवार रजिस्टर में अपना नाम दर्ज करवा रहे हैं, इसकी वजह से उत्तराखंड में बड़े पैमाने पर बाहरी लोगों की घुसपैठ हो रही है. यहां की डेमोग्राफी से तेजी से बदल रही है. इसके पीछे की बड़ी वजह एक नियम में ढील है.

उत्तराखंड के तेजी से बदल रही डेमोग्राफी, इस नियम में ढील उड़ा रही नींद
उत्तराखंड में डेमोग्राफी में बदलाव के लिए कुछ लोग मूल निवास प्रमाण पत्र के लचीले प्रावधानों को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं.

मुख्य बिंदू

उत्तराखंड के 28 गांवों में हिंदू अल्पसंख्यक हो गए हैं.
बाहरी राज्यों से आए लोग परिवार रजिस्टर में नाम दर्ज करवा रहे हैं.
मूल निवास प्रमाण पत्र के लचीले प्रावधानों से डेमोग्राफी बदल रही है.
देहरादून. उत्तराखंड में बड़े पैमाने पर बाहरी लोगों की घुसपैठ और इससे पैदा हो रहे डेमोग्राफिक चेंज को लेकर चिंता गहराती जा रही है. जानकार इसके लिए मूल निवास प्रमाण पत्र के लचीले प्रावधानों को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं. इधर बीजेपी का भी मानना है कि अब इसकी समीक्षा जरूरी हो गई है. ये ग्राउंड रिपोर्ट पछुवादून का सहसपुर क्षेत्र से है. उत्तराखंड गठन के बाद सहसपुर के 28 गांवों में हिंदू समुदाय अल्पसंख्यक होता चला गया. बाहरी राज्यों से आए लोग परिवार रजिस्टर में अपना नाम दर्ज करवा रहे हैं. फिर उन्हें हर प्रमाण पत्र आसानी से सुलभ हो जा रहा है.

जानकारों का मानना है कि इसका एक बड़ा कारण मूल निवास की कोई स्पष्ट कट ऑफ डेट का तय न होना है. वर्तमान प्रावधान के अनुसार, जो कोई भी उत्तराखंड में पिछले 15 सालों से रह रहा है और उसके पास अचल संपत्ति है, उसे मूल निवासी माना जा सकता है. कई लोग मानते हैं कि राज्य की पहचान और डेमोग्राफी को सुरक्षित रखने के लिए कट ऑफ डेट 1950 या राज्य गठन के समय तय की गई 1985 होनी चाहिए.

राज्य गठन के समय मूल निवास के लिए 1985 की तारीख तय की गई थी, लेकिन बाद में आई सरकारों ने इस नियम में ढील दी और अब सिर्फ 15 साल की स्थायी निवास अवधि को ही आधार बना लिया गया. बीजेपी विधायक विनोद चमोली का भी कहना है कि अब समय आ गया है कि इस नीति की समीक्षा की जाए.

नियमों में लचीलेपन का फायदा उठाकर कई बाहरी लोग
मूल निवास नियमों में इस लचीलेपन का फायदा उठाकर कई बाहरी लोग फर्जी दस्तावेजों के जरिए परिवार रजिस्टर में नाम जुड़वा रहे हैं. इसके बाद उन्हें वोटर आईडी, आधार कार्ड जैंसे पहचान पत्र भी मिल रहे हैं. उत्तराखंड के बॉर्डर से लगे शहरी क्षेत्रों में तेजी से स्लम और आबादी में अचानक बढोत्तरी इसका संकेत है जो लोगों की चिंता का विषय बना हुआ है.

 

 

देहरादून । जिले के पछुवा इलाके के गांव के गांव जो कभी हिंदू बाहुल्य हुआ करते थे अब मुस्लिम बाहुल्य हो गए है।देवभूमि उत्तराखंड में डेमो ग्रैफी चेंज का सबसे बड़ा उदाहरण ,हिमांचल ,हरियाणा और उत्तर प्रदेश के जुड़े इस सीमांत क्षेत्र में प्रवेश लेते ही दिखाई देने लगा है। ऊंची ऊंची मस्जिदों को मिनारे,बड़े बड़े मदरसे यहां की पहचान होते जा रहे है।

उत्तराखंड के देहरादून जिले के पछुआ यानि पश्चिम क्षेत्र विकासनगर, हरबर्टपुर, सहसपुर, सेलाकुई आदि क्षेत्रों में कट्टर मुस्लिम संगठनों की सक्रियता भविष्य के लिए चिंता पैदा करने के लिए काफी है। मस्जिदों मदरसों की बढ़ती संख्या और वहां चल रही मुस्लिम संगठनों की गतिविधियां शासन प्रशासन के लिए चुनौतियां पैदा करने लगी है।

हिमाचल यूपी हरियाणा के साथ लगी उत्तराखंड सीमा के पछुवा देहरादून इलाके में योजनाबद्ध तरीके से मुस्लिम आबादी बढ़ रही है। यहां गांव के गांव मुस्लिम बाहुल्य हो चुके है जबकि बीस साल पहले यहां इक्का दुक्का मुस्लिम परिवार ही रहा करते थे।

28 गांव हिंदू से मुस्लिम बाहुल्य वाले बने

उत्‍तराखंड में कौन कौन गांव मुस्लिम बहुल हैं

उत्तराखंड में मुस्लिम बहुल गांवों की विशिष्ट सूची सार्वजनिक रूप से उपलब्ध आंकड़ों में स्पष्ट रूप से दर्ज नहीं है, क्योंकि जनगणना या सरकारी दस्तावेज़ आमतौर पर गांव-स्तरीय धार्मिक जनसांख्यिकी को विस्तार से प्रकाशित नहीं करते। हालांकि, 2011 की जनगणना और विभिन्न मीडिया रिपोर्ट्स के आधार पर, कुछ क्षेत्रों और जिलों में मुस्लिम आबादी का उल्लेखनीय प्रतिशत देखा गया है, खासकर मैदानी जिलों में। निम्नलिखित जानकारी उपलब्ध स्रोतों पर आधारित है:
मुस्लिम आबादी वाले प्रमुख क्षेत्र:
हरिद्वार जिला:
हरिद्वार में मुस्लिम आबादी 34.2% (2011 जनगणना) तक दर्ज की गई है, जो उत्तराखंड में सबसे अधिक है।
ज्वालापुर जैसे क्षेत्रों में मुस्लिम समुदाय की उल्लेखनीय उपस्थिति है, जहां मस्जिदों और मजारों का निर्माण भी देखा गया है।

उधम सिंह नगर:
इस जिले में मुस्लिम आबादी लगभग 32% है।
रुहेलखंड क्षेत्र से आए मुस्लिम समुदाय के लोग यहां बसे हैं, जो मुख्य रूप से वैल्डिंग, कारीगरी जैसे कार्यों में संलग्न हैं।
बनभूलपुरा और गफूर बस्ती जैसे क्षेत्रों में मुस्लिम समुदाय की घनी आबादी है, हालांकि ये शहरी बस्तियां हैं।
ग्रामीण क्षेत्रों में विशिष्ट गांवों का उल्लेख नहीं है, लेकिन मैदानी क्षेत्रों में मुस्लिम आबादी का विस्तार देखा गया है।
देहरादून:
देहरादून में मुस्लिम आबादी लगभग 30% है।
विकासनगर और हरबर्टपुर (पछुवादून क्षेत्र) में मुस्लिम आबादी बढ़ी है, जहां सरकारी जमीनों पर बस्तियां बसी हैं।
देहरादून में कुछ गांवों में मुस्लिम आबादी  है।
नैनीताल:
नैनीताल जिले में भी मुस्लिम आबादी लगभग 30% है।
हल्द्वानी जैसे क्षेत्रों में बंगाली मुस्लिम कॉलोनियां बसी हैं, जहां लगभग 50,000 बंगाली मुस्लिम रहते हैं।
ग्रामीण क्षेत्रों में मुस्लिम बहुल गांवों का स्पष्ट उल्लेख नहीं है।
पौड़ी गढ़वाल:
मैदानी क्षेत्रों जैसे लालतप्पड़ और यमकेश्वर ब्लॉक में मुस्लिम आबादी में वृद्धि हुई है।
पौड़ी गढ़वाल के लगभग आधा दर्जन गांवों में मुस्लिम या सिख बहुसंख्यक आबादी  है।
रामा गांव और हलूणी गांव में मुस्लिम आबादी है, जहां वे गढ़वाली संस्कृति में रच-बस गए हैं।
पर्वतीय क्षेत्रों में स्थिति:
पर्वतीय जिलों (जैसे रुद्रप्रयाग, चमोली, उत्तरकाशी) में मुस्लिम आबादी नगण्य है। उत्तरकाशी और बद्रीनाथ जैसे क्षेत्रों में मुस्लिम आबादी  है, लेकिन ये मुख्य रूप से शहरी या अस्थायी बस्तियों में हैं।

जनसांख्यिकीय परिवर्तन: हरिद्वार, उधम सिंह नगर, देहरादून और नैनीताल जैसे मैदानी जिलों में मुस्लिम आबादी में वृद्धि देखी गई है, जो मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश, बिहार, बंगाल और अन्य क्षेत्रों से पलायन के कारण है।
सांस्कृतिक एकीकरण: पौड़ी गढ़वाल जैसे क्षेत्रों में मुस्लिम समुदाय गढ़वाली संस्कृति, खान-पान और रीति-रिवाजों में एकीकृत है।
सुझाव:
आधिकारिक आंकड़े: विशिष्ट गांव-स्तरीय जानकारी के लिए, आपको उत्तराखंड सरकार के जनगणना विभाग या जिला प्रशासन से संपर्क करना पड़ सकता है।

यदि आप किसी विशिष्ट जिले या क्षेत्र के बारे में अधिक जानकारी चाहते हैं, तो कृपया बताएं, मैं उस दिशा में और खोज सकता हूँ!
देहरादून में मुस्लिम बहुल गांव

देहरादून जिले में मुस्लिम बहुल गांवों की विशिष्ट सूची आधिकारिक जनगणना डेटा या सरकारी दस्तावेजों में स्पष्ट रूप से उपलब्ध नहीं है, क्योंकि गांव-स्तरीय धार्मिक जनसांख्यिकी आमतौर पर प्रकाशित नहीं की जाती। हालांकि, उपलब्ध स्रोतों, समाचार रिपोर्ट्स, और कुछ ऑनलाइन दावों के आधार पर, देहरादून के कुछ क्षेत्रों, विशेष रूप से पछुवादून (विकासनगर और सहसपुर क्षेत्र) में मुस्लिम आबादी में वृद्धि देखी गई है। निम्नलिखित जानकारी उपलब्ध डेटा और स्रोतों पर आधारित है:
देहरादून में मुस्लिम बहुल गांव:
माजरी गांव:
एक X पोस्ट में दावा किया गया कि 1991 में माजरी गांव में हिंदू आबादी 82% और मुस्लिम आबादी 8% थी, जबकि 2024 में यह अनुपात बदलकर हिंदू 30% और मुस्लिम 70% हो गया।

हालांकि, यह दावा स्वतंत्र रूप से सत्यापित नहीं है और इसे सतर्कता के साथ देखा जाना चाहिए, क्योंकि X पोस्ट में तथ्यगत त्रुटियां हो सकती हैं।

माजरी माफी देहरादून के रायपुर ब्लॉक में स्थित है और नगर निगम में शामिल गांवों में से एक है।
जटोवाला गांव:
उसी X पोस्ट के अनुसार, 1991 में जटोवाला में हिंदू आबादी 81% और मुस्लिम आबादी 20% थी, जो 2024 में बदलकर हिंदू 19% और मुस्लिम बहुल हो गया।

यह जानकारी भी असत्यापित है और आधिकारिक स्रोतों से पुष्टि की आवश्यकता है।

जटोवाला विकासनगर क्षेत्र के निकट है, जहां मुस्लिम आबादी की मौजूदगी की बात कही गई है।
ढकरानी:
पंचजन्य की एक रिपोर्ट के अनुसार, ढकरानी में 1991 में हिंदू आबादी 80% और मुस्लिम आबादी 20% थी, जो 2023 तक बदलकर मुस्लिम 60% और हिंदू 40% हो गई।
ढकरानी विकासनगर क्षेत्र में एक प्रमुख गांव है, जहां मुस्लिम समुदाय का सामाजिक और धार्मिक प्रभाव बढ़ा है।

रिपोर्ट में इसे योजनाबद्ध जनसांख्यिकीय परिवर्तन का हिस्सा बताया गया, लेकिन यह दावा विवादास्पद है और स्वतंत्र सत्यापन की आवश्यकता है।
शंकरपुर, लक्ष्मीपुर, रामपुर, सहसपुर, हरबर्टपुर, और सेलाकुई:
ये गांव भी पंचजन्य की रिपोर्ट में उल्लेखित हैं, जो पहले हिंदू बहुल थे लेकिन अब कथित तौर पर मुस्लिम बहुल हो गए हैं।
इन गांवों में मस्जिदों और मदरसों की संख्या में वृद्धि की बात कही गई है, जो मुस्लिम आबादी की बढ़ती उपस्थिति का संकेत देती है।

विशेष रूप से सहसपुर और हरबर्टपुर में उत्तर प्रदेश, हरियाणा, और हिमाचल प्रदेश की सीमाओं के निकट होने के कारण पलायन से जनसांख्यिकीय बदलाव देखा गया है।

सामान्य टिप्पणियां:
पछुवादून क्षेत्र: देहरादून का पछुवादून क्षेत्र (विकासनगर, सहसपुर, और हरबर्टपुर) मुस्लिम आबादी में वृद्धि का प्रमुख केंद्र रहा है। यह क्षेत्र उत्तर प्रदेश और हिमाचल प्रदेश की सीमाओं से सटा है, जिसके कारण पलायन और बस्तियों का विस्तार हुआ है।
जनसांख्यिकीय परिवर्तन: 2011 की जनगणना के अनुसार, देहरादून जिले में मुस्लिम आबादी लगभग 30% है। पछुवादून जैसे क्षेत्रों में यह अनुपात कुछ गांवों में अधिक है.देहरादून के पछुवादून क्षेत्र में कुछ गांव जैसे ढकरानी, माजरी, जटोवाला, शंकरपुर, लक्ष्मीपुर, रामपुर, सहसपुर, और हरबर्टपुर को मुस्लिम बहुल बताया गया है।

 

 

Uttarakhand Muslim Population Growth Against Hindus In 10 Years Mountain Community Resentment
उत्तराखंड में 10 साल में कितनी बढ़ी मुस्लिम आबादी? पहाड़ों में गुस्से में क्यों है लोग
पहाड़ी राज्य उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में कुछ ऐसे बोर्ड लगाए गए हैं जिन पर रोहिंग्या मुसलमानों और ग़ैर हिंदुओं के गांव में प्रवेश करने पर पाबंदी लगा दी गई है। आइए- जानते हैं कि उत्तराखंड में 2011 की जनगणना के बाद कितने गैर हिंदू बढ़ गए हैं और लोगों की चिंता क्या है?

दिनेश मिश्र |

2000 में एक नए राज्य के रूप में बना था उत्तराखंड
RSS ने भी किया था दावा, बॉर्डर इलाकों में बढ़े मुस्लिम
क्या घुसपैठ बन रहा है बड़ी वजह, यूपी-असम में यही हाल
नई दिल्ली: ‘गैर हिंदुओं, रोहिंग्या मुसलमानों और फेरी वालों का गांव में व्यापार करना, घूमना वर्जि है। अगर गांव में ऐसा कोई भी कहीं मिलता है तो दंडात्मक और कानूनी कार्रवाई की जाएगी।’ यह बात उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले के कई गांवों के बाहर एक बैनर के रूप में लिखकर टांगी गई हैं। सोशल मीडिया पर भी ये तस्वीरें वायरल हो रही हैं, जिसके बाद ऐसे आदेश को लेकर विवाद बढ़ गया है। हालांकि, उत्तराखंड प्रशासन ने कई गांवों से ऐसे बोर्ड हटवा दिए हैं, मगर यह मामला गरमा गया है। यह मामला ऐसे समय में सामने आया है जब हाल ही में रुद्रप्रयाग के पड़ोसी ज़िले चमोली में नाबालिग से छेड़छाड़ के मामले में सांप्रदायिक तनाव फैल गया था। राष्ट्रीय संघ सेवक ने भी बीते जुलाई में ही यह दावा किया था कि देश के सीमावर्ती राज्यों में मुस्लिमों की आबादी बढ़ रही है। आइए-जानते हैं उत्तराखंड की आबादी की हकीकत।

उत्तराखंड की जनसंख्या की वृद्धि दर भी देश के मुताबिक ही गिरी
उत्तराखंड की 2011 की जनगणना के अनुसार, कुल आबादी 10,116,752 है। वहीं, इस दौरान भारत की आबादी की वृद्धि दर में 3.84 फीसदी की गिरावट आई है। भारत की आबादी की 2001 के 21.54 फीसदी के मुकाबले 2011 में 17.70 फीसदी रह गई। वहीं, उत्तराखंड में जनसंख्या वृद्धि दर 2001 के 20.41 फीसदी के मुकाबले अब 18.81 फीसदी रह गई है।

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2001 में 1 लाख थे मुस्लिम, अब 14 लाख से ज्यादा
उत्तराखंड का गठन साल 2000 में हुआ था। उस वक्त नए बने राज्य में 2001 की जनगणना के मुताबिक करीब 1 लाख आबादी ही मुस्लिमों की थी, जो 2011 में बढ़कर 14 लाख से ज्यादा हो चुकी है। इस दौरान हिंदुओं की आबादी की वृद्धि दर 16 फीसदी थी तो पूरे दशक के दौरान मुस्लिम जनसंख्या की वृद्धिदर 39 फीसदी हो चुकी है। ये आंकड़े तब के हैं, जब बीते एक दशक से भारत की जनगणना के आंकड़े जारी नहीं हुए हैं।

10 साल में ऐसे घट गए हिंदू और बढ़ गए मुस्लिम
2001 की जनगणना के अनुसार, उत्तराखंड की आबादी में हिंदू 84.95% थे, जबकि मुस्लिम 11.92% थे। 2011 की जनगणना तक हिंदू आबादी घटकर 82.97% रह गई थी और मुस्लिम आबादी बढ़कर 13.95% हो गई थी। जो दस वर्षों में 2% की बढ़ोतरी दिखाता है।

हरिद्वार में हिंदुओं के बाद मुस्लिम आबादी ज्यादा
आश्चर्यजनक रूप से हरिद्वार में मुस्लिमों की आबादी भी काफी ज्यादा है। हरिद्वार एक तीर्थनगरी है। इसके बाद भी यहां पर हिंदुओं के बाद दूसरे नंबर मुस्लिम ही सबसे ज्यादा हैं। 2011 की जनगणना के अनुसार, देहरादून, नैनीताल, हरिद्वार और ऊधमसिंह नगर इन चारों जिलों में औसत हिंदू आबादी करीब 75 फीसदी है। वहीं, औसत मुस्लिम आबादी 20.5 फीसदी है.
पहाड़ों में क्यों बढ़ रहा है समुदाय विशेष के खिलाफ गुस्सा
उत्तराखंड के चमोली जिले के बीते हफ्ते नंदानगर घाट में एक विशेष समुदाय के युवक की ओर से नाबालिग लड़की के साथ छेड़खानी के बाद जमकर हंगामा हुआ था। गुस्साए स्थानीय लोगों ने एक मुस्लिम की दुकान पर तोड़फोड़ कर दी। करीब 500 अज्ञात लोगों पर मुकदमा हुआ था। आक्रोशित लोगों का कहना है कि पहाड़ों में लगातार ऐसी घटनाएं बढ़ती जा रही है। लोगों को अपने बच्चों की चिंता भी सताने लगी है। लोगों का कहना था कि पहाड़ों में भी अब बेटियां सुरक्षित नहीं है। वहीं, मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि महिलाओं की अस्मिता और सम्मान हमेशा सर्वोपरि है। किसी भी महिला या बेटी के साथ होने वाली अप्रिय घटना की वे निंदा करते हैं। सीएम ने कहा कि कानून प्राथमिकता के साथ अपराधी को सजा देगा, देवभूमि में ऐसी घटनाएं बर्दाश्त नहीं की जा सकती है।

रुद्रप्रयाग में बाहरी बनाम स्‍थानीय लोगों का विवाद बढ़ा, ग्रामसभाओं में लगे पोस्‍टर, पुलिस ने हटवाए

RSS ने भी किया था दावा, बॉर्डर इलाकों में बढ़ी मुस्लिम आबादी
इससे पहले जुलाई में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (RSS) के मुखपत्र ऑर्गेनाइजर वीकली ने व्यापक राष्ट्रीय जनसंख्या नीति की वकालत करते हुए यह दावा किया था कि भारत के बॉर्डर इलाकों में मुस्लिमों की आबादी बढ़ रही है। मुखपत्र के संपादकीय में कहा गया था कि पश्चिम बंगाल, बिहार, असम और उत्तराखंड जैसे सीमावर्ती राज्यों में सीमाओं पर अवैध विस्थापन की वजह से अप्राकृतिक तरीके से आबादी बढ़ रही है।

यूपी में भी नेपाल सीमा से सटे इलाकों में 32 फीसदी बढ़े मुस्लिम
2022 में गृह मंत्रालय को भेजी गई यूपी और असम पुलिस की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि यूपी और असम में इंटरनेशनल बॉर्डर के पास के इलाकों में मुस्लिम आबादी बढ़ती जा रही है। यूपी के नेपाल बॉर्डर से लगे पीलीभीत, लखीमपुर खीरी, महराजगंज, बलरामपुर और बहराइच समेत 7 जिलों के बारे में कहा गया है, जहां मुस्लिम आबादी बीते 10 साल के दौरान 32% तक बढ़ गई है।

यूपी बॉर्डर के कितने जिलों में मस्जिद और मदरसे बढ़े
यूपी के इन सीमावर्ती जिलों में मस्जिदों और मदरसों की संख्या अप्रैल 2018 से लेकर मार्च 2022 तक 25% बढ़ी है। 2018 में सीमावर्ती जिलों में कुल 1,349 मस्जिदें और मदरसे थे, जो अब बढ़कर 1,688 हो गए हैं।

*किन कारणों से बढ़ रही है यह जनसंख्या, यह घुसपैठ तो नहीं*
दोनों राज्यों की पुलिस रिपोर्ट में मुस्लिमों की आबादी बढ़ने के पीछे यह संकेत दिया गया है। सीमाई इलाकों में काफी समय से घुसपैठ चल रही है। बाहर से आने वाले लोग ज्यादातर मुस्लिम हैं। असम के मुख्यमंत्री ने तो सुप्रीम कोर्ट में सीमा से घुसपैठ की बात स्वीकार की।

असम के सीमावर्ती जिलों में मुस्लिम जनसंख्या 32 प्रतिशत बढ़ी
बांग्लादेश सीमा से सटे असम के जिले धुवरी, करीमगंज, दक्षिण सलमारा और काछर में मुस्लिम जनसंख्या 32% तक बढ़ी है। 2011 में हुई जनगणना के राष्ट्रीय औसत अनुमान से आबादी में वृद्धि 12.5% और राज्य स्तरीय अनुमान के अनुसार 13.5% होनी चाहिए थी। सीमावर्ती जिलों में मुस्लिम जनसंख्या अचानक बढ़ना बहुत से लोगों को सामान्य बात लग सकती है। इसमें कहा गया है कि ये पाकिस्तान और चीन का षडयंत्र भी हो सकता है।

बंगाल में हिंदू जनसंख्या में गिरावट, मुस्लिम जनसंख्या बढ़ी
2011 की जनगणना के अनुसार, पूरे देश में हिंदू जनसंख्या में 0.7 प्रतिशत की गिरावट आई। जबकि पश्चिम बंगाल में हिंदू जनसंख्या में 1.94 प्रतिशत गिरावट आई है। वहीं, पूरे देश में मुस्लिम जनसंख्या 0.8 जनसंख्या बढ़ी है। जबकि इस बीच मुस्लिम जनसंख्या बढ़कर 1.77 प्रतिशत हो गई है, जो अच्छी खासी वृद्धि है। ये आंकड़े 2011 की जनगणना के मुकाबले हैं। बंगाल में 2001 में मुस्लिम जनसंख्या 25 प्रतिशत थी, जो 2011 में बढ़कर 27 प्रतिशत के पार जा चुकी थी। आज बंगाल की 9.5 करोड़ की जनसंख्या में करीब 2.5 करोड़ मुसलमान हैं।

 

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