आपरेशन सिंदूर पर सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडलों में क्यों नहीं हैं खड़गे और राहुल?

 

राहुल गांधी नाराज़ क्योंकि वह वैश्विक मिशन पर नहीं हैं?
राहुल गांधी (फोटो: Inc.in)
कई कांग्रेस नेताओं को राहुल गांधी के ऑपरेशन सिंदूर को लेकर सरकार के प्रति रवैये पर चिंता है। उनका मानना है कि राहुल के विचार पार्टी की छवि को काफी नुकसान पहुंचा रहे हैं क्योंकि वह हर मुद्दे पर पीएम मोदी पर हमला करने में व्यस्त हैं। हालांकि वह सीधे तौर पर पीएम पर हमला नहीं कर रहे, बल्कि विदेश मंत्री एस जयशंकर पर तंज कस रहे हैं, फिर भी पार्टी नेताओं का मानना है कि राहुल इस बात से परेशान हैं कि मोदी ने उन्हें विपक्ष के नेता (एलओपी) के रूप में महत्व नहीं दिया और वैश्विक पहुंच के लिए सांसदों के प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व करने के लिए नहीं कहा। उन्हें लगता है कि उनका दर्जा पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी के बराबर है, जिन्होंने 90 के दशक में जिनेवा में यूएनएचआरसी की महत्वपूर्ण बैठक में विपक्ष के नेता के रूप में भारत का प्रतिनिधित्व किया था। ऐसा लगता है कि मल्लिकार्जुन खड़गे भी इस बात से निराश थे कि राज्यसभा में विपक्ष के नेता के रूप में उन्हें यह सम्मान नहीं मिला। इसके बजाय, मोदी सरकार ने उन लोगों को शामिल करना पसंद किया जो विदेश मंत्रालय के साथ मिलकर काम कर चुके थे या जिन्होंने विदेश नीति पर समझदारी भरे विचार व्यक्त किए थे, जैसे मनीष तिवारी। कहा जा रहा है कि जैसे ही नाम सामने आए, एक परेशान राहुल गांधी के सहयोगी ने सर्वदलीय पैनल के एक वरिष्ठ सदस्य को यह कहकर समझाने की कोशिश की कि अब उन्हें स्वतंत्र रूप से व्यवहार करना चाहिए और सरकार की लाइन का पालन नहीं करना चाहिए। वरिष्ठ कांग्रेस नेता ने कॉल करने वाले को सख्ती से जवाब दिया कि ऐसी विदेश नीति मिशनों में केवल एक ही लाइन होती है – भारत की लाइन। राहुल गांधी और खड़गे जैसे नेताओं को यह बारीकी समझ नहीं आ रही। कांग्रेस सूत्रों का कहना है कि खड़गे की निराशा ही उन्हें ऑपरेशन सिंदूर को “छुटपुट युद्ध” कहने के लिए प्रेरित कर रही है। युद्ध से ज्यादा, कांग्रेस को इस बात की चिंता है कि राहुल गांधी हाल ही में नियुक्त किए गए दो सलाहकारों के प्रभाव में हैं। पार्टी को लगता है कि इसके बाद से वह भटक गए हैं। ( ओपेन मैग्जीन में लक्ष्मी अय्यर )

Grok 3 से सवाल का जवाब 

 

आपरेशन सिंदूर वैश्विक प्रतिनिधिमंडल में राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खडगे क्यों नहीं हैं?
ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारत सरकार द्वारा पाकिस्तान के आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक मंचों पर अपनी स्थिति स्पष्ट करने के लिए भेजे गए सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडलों में राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे के शामिल न होने के कई कारण हो सकते हैं, जो उपलब्ध जानकारी और राजनीतिक संदर्भों से समझे जा सकते हैं:
  1. सामरिक और राजनीतिक रणनीति: राहुल गांधी (लोकसभा में विपक्ष के नेता) और मल्लिकार्जुन खड़गे (राज्यसभा में विपक्ष के नेता) कांग्रेस के शीर्ष नेता हैं। उनकी भूमिका मुख्य रूप से राष्ट्रीय स्तर पर विपक्ष की रणनीति तय करने और सरकार की नीतियों पर सवाल उठाने की रही है। वैश्विक प्रतिनिधिमंडल में शामिल होने के बजाय, वे घरेलू मंचों पर ऑपरेशन सिंदूर और सरकार की विदेश नीति पर सवाल उठाने में सक्रिय रहे हैं। उदाहरण के लिए, राहुल गांधी ने विदेश मंत्री एस. जयशंकर के बयानों पर सवाल उठाए और ऑपरेशन के दौरान कथित तौर पर पाकिस्तान को दी गई जानकारी को लेकर सरकार की आलोचना की।

  2. कांग्रेस की आंतरिक रणनीति: कांग्रेस ने प्रतिनिधिमंडल में अन्य वरिष्ठ नेताओं जैसे शशि थरूर, सलमान खुर्शीद, मनीष तिवारी और आनंद शर्मा को शामिल किया, जो अंतरराष्ट्रीय मामलों में विशेषज्ञता रखते हैं। यह संभव है कि पार्टी ने जानबूझकर अपने शीर्ष नेतृत्व को इन प्रतिनिधिमंडलों में भेजने के बजाय घरेलू स्तर पर सरकार को जवाबदेह बनाने पर ध्यान केंद्रित किया हो। खड़गे और गांधी ने संसद के विशेष सत्र की मांग की, जिससे ऑपरेशन सिंदूर और सीजफायर पर चर्चा हो सके, जो उनकी प्राथमिकता को दर्शाता है।

  3. सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल में चयन प्रक्रिया: सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडलों के लिए नामों का चयन सरकार और संसदीय कार्य मंत्रालय द्वारा पार्टियों के परामर्श से किया गया। कांग्रेस ने कुछ नाम सुझाए, जिनमें से केवल आनंद शर्मा का नाम सरकार द्वारा स्वीकार किया गया, जबकि शशि थरूर को सरकार ने स्वयं चुना। यह संभव है कि राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे ने स्वयं इन प्रतिनिधिमंडलों में शामिल होने की इच्छा नहीं जताई, या सरकार ने उनकी भागीदारी को प्राथमिकता नहीं दी, क्योंकि उनकी आलोचनात्मक टिप्पणियां पहले ही विवाद का कारण बन चुकी थीं।

  4. राजनीतिक विवाद और आलोचना: राहुल गांधी और खड़गे ने ऑपरेशन सिंदूर के संदर्भ में सरकार की विदेश नीति और कथित अमेरिकी मध्यस्थता पर सवाल उठाए, जिसके कारण बीजेपी ने उन पर “पाकिस्तान की भाषा बोलने” का आरोप लगाया। उनकी यह आलोचनात्मक रुख सरकार के साथ सहमति की कमी को दर्शाता है, जिसके कारण उन्हें प्रतिनिधिमंडल में शामिल करना सरकार के लिए असुविधाजनक हो सकता था। इसके अलावा, कांग्रेस के कुछ नेताओं, जैसे शशि थरूर और सलमान खुर्शीद, ने सरकार के रुख का समर्थन किया, जो राहुल और खड़गे की लाइन से अलग था।

  5. प्रतिनिधिमंडल की प्रकृति: ये प्रतिनिधिमंडल वैश्विक मंचों पर भारत की स्थिति को मजबूत करने और पाकिस्तान के आतंकवाद को उजागर करने के लिए भेजे गए थे। इसमें शामिल सांसदों को कूटनीतिक और तकनीकी विशेषज्ञता की आवश्यकता थी। शशि थरूर जैसे नेता, जो पूर्व राजनयिक और विदेश राज्य मंत्री रहे हैं, इस भूमिका के लिए अधिक उपयुक्त माने गए। राहुल और खड़गे की भूमिका अधिक राजनीतिक और विपक्षी नेतृत्व की रही, जिसके कारण उनकी अनुपस्थिति स्वाभाविक हो सकती है।

निष्कर्ष: राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे के वैश्विक प्रतिनिधिमंडल में शामिल न होने का कारण उनकी राष्ट्रीय स्तर पर विपक्षी नेतृत्व की भूमिका, सरकार के साथ मतभेद, और कांग्रेस की रणनीति हो सकता है, जिसमें उन्होंने घरेलू मंचों पर सवाल उठाने को प्राथमिकता दी। इसके अतिरिक्त, सरकार द्वारा चयन प्रक्रिया और कूटनीतिक विशेषज्ञता की आवश्यकता ने भी उनकी गैर-मौजूदगी सुनिश्चित कर दी.

 

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