1857 संग्राम:500 निहत्थे,भूखे भारतीय सैनिकों की हत्या हुई थी दादियां सोफियां गांव में

*🤺 सन् 1857 के 500 सैनिकों का विद्रोह 🔥*

चरित्र-निर्माण, समाज-सुधार तथा राष्ट्रवादी जन-चेतना के लिए समर्पित मातृभूमि सेवा संस्था आज के दिवस पर जन्मी विभूतियों एवं देश के ज्ञाताज्ञात बलिदानियों को कोटि कोटि नमन करती है। 🌹🌹🙏🌹🌹

📝 भारत के पंजाब प्रांत में स्थित प्रसिद्ध अमृतसर शहर के समीप स्थित अजनाला गाँव में मौजूद “कालों के कुआँ” में अंग्रेजी हुकूमत की दरिन्दगी की ऎसी खौफनाक दास्तान छिपी हुई है, जिसे जान कर किसी की भी आँखों के आँसू नहीं रूक पाएंगे। यह वहीं कुआँ है जिसमें सन् 1857 की क्रान्ति के दौरान अंग्रेजों ने 282 क्रान्तिकारियों को जिन्दा दफन कर दिया था। सन् 1857 की क्रांति के समय ब्रिटिश सरकार ने सैनिकों में विद्रोह ना फैले इसके लिए अनेक प्रयत्न किए। अंग्रेज़ी सरकार ने शक के आधार पर सैनिक टुकड़ियों को निशस्त्र (disarming) करने लगी। *13 मई 1857 को लाहौर की मियां मीर छावनी में प्रात: 08 बजे बंगाल नेटिव इन्फेंट्री (पैदल सेना) के सिपाहियों का निशस्त्रीकरण कर दिया गया* ताकि इस क्षेत्र में सेना विद्रोह न कर पाए। सुबह की परेड के बाद इन सिपाहियों को कैद कर लिया गया। *3० जुलाई 1857 तक कैद में रहने के बाद 500 सैनिकों ने भी क्रांति का झंडा उठा लिया और अंग्रेजों की कैद से भाग निकले।* 31 जुलाई 1857 को इन सैनिकों का जत्था अजनाला कस्बे के 5-6 किलोमीटर पीछे रावी नदी के किनारे स्थित दादियां सोफियां गाँव के पास पहुँचा। भूख व थकान के मारे इन सैनिकों का बुरा हाल था, इनके पास देश के लिए लड़ने का जज्बा तो था परंतु हथियार व राशन नहीं।

📝 *दादियां सोफियां गाँव के जमींदारों ने सैनिकों को रोटी-पानी देने का लालच देकर गाँव में ही ठहरा लिया और तहसीलदार दीवान प्राण नाथ को इसकी सूचना दे दी। तहसीलदार ने अमृतसर के तत्कालीन उपायुक्त ( Deputy Commissioner ) फ्रेडरिक हेनरी कूपर को इसकी जानकारी भेजी।* उस समय थाने व तहसील में जितने भी सशस्त्र सिपाही थे उक्त गाँव में भेज दिए गए ताकि इन सैनिकों को बलिदान किया जा सके। गाँव में पहुँचते ही ब्रिटिश सेना व पुलिस के जवान इन थके मांदे व भूखे सिपाहियों पर भूखे भेडि़यों की तरह टूट पड़े। 150 सिपाही जख्मी होकर अपनी जान बचाने के लिए रावी नदी में कूद गए और बलिदान हो गए। 50 सिपाही लड़ते हुए नदी में गिर गए और सदा के लिए अलोप हो गए। इतने में डिप्टी कमिश्नर फ्रेडरिक हेनरी कूपर अपने सैनिकों के साथ पहुँच गया। गाँव के लोगों की सहायता से डिप्टी कमिश्नर फ्रेडरिक हेनरी कूपर ने 282 सैनिकों को गिरफ्तार कर लिया और रस्सियों से बांध कर इन्हें अजनाला लाया गया। 237 सैनिकों को थाने में बंद करने के बाद बाकी सैनिकों को एक कोठरी में ठूंस दिया गया।

📝 योजना के अनुसार इनको 31 जुलाई 1857 को फाँसी लगाया जाना था, परंतु भारी बरसात के कारण इस योजना को अगले दिन के लिए लंबित कर दिया गया। अगले दिन 01 अगस्त को ईद वाले दिन 237 सिपाहियों को 10-10 की टोली में बाहर निकाला गया और गोलियों से भून दिया गया। सफाई कर्मचारियों ने इन लाशों को एक-दूसरे के ऊपर इस तरह गिराना शुरू कर दिया कि वहां लाशों का ढेर लग गया। इन सिपाहियों को शहीद किए जाने के बाद कोठडी/ बुर्जी में बंद सिपाहियों को बाहर निकाला गया तो यहाँ पर बहुत से सैनिक तो दम घुटने, भूख-प्यास व थकान के मारे पहले ही बलिदान हो चुके थे। उपायुक्त कूपर के आदेश पर ब्रिटिश सेना ने अर्ध-बेहोशी की हालत में बाकी सैनिकों को भी बलिदान कर दिया। *जिला गजेटियर 1892-93 के पृष्ठ क्रमांक 170-71 के अनुसार इन सैनिकों के शव एक खाली पड़े कुएं में डलवा कर ऊपर टीला बनवा दिया गया जिसे ‘कालेयांवाले दा खूह’ नाम दे दिया गया।*

✒ *अजनाला गाँव का “कालों का कुआँ”* ✒
📝 स्थानीय गैर-सरकारी संगठन और गुरुद्वारा प्रबंध समितियों स्थानीय गुरुद्वारा प्रबंध समिति के प्रमुख अमरजीत सिंह सरकारिया और इतिहासकार सुरिंदर कोचर के स्वयंसेवियों ने भारत-पाक सीमा पर स्थित अजनाला शहर के ‘शहीदां वाला खूह’ में 28 फरवरी 2014 को खुदाई कार्य शुरू किया था। *आपकी जानकारी के लिए बता दें कि ये खुदाई का काम उस समय (सन् 1857) के अमृतसर के तत्कालीन उपायुक्त ( Deputy Commissioner ) फ्रेडरिक हेनरी कूपर की लिखी पुस्तक दी क्राइसिस इन दी पंजाब: फ्रॉम दी तेंथ ऑफ मै अंटिल दी फॉल ऑफ देल्ही (1858)/ THE CRISIS IN THE PUNJAB: From the 10th of May until the Fall of Delhi (1858) को आधार बनाकर अमृतसर के अजनाला में कुएं की खुदाई शुरू की गई।* खुदाई में 282 सैनिकों की अस्थियाँ निकली हैं, जिनमें 50 खोपडियाँ 40 से यादा साबूत जबड़े, 9000 दाँत, कंकालों के अलावा सन् 1857 काल के कुछ गोलियाँ ब्रिटिश इंडिया कम्पनी के एक-एक रुपए के 47 सिक्के जिन पर महारानी विक्टोरिया की तस्वीर बनी हुई है मिले हैं। इसके अलावा 60 सिक्के, सोने के 04 मोती, सोने के 03 तवीत, 02 अंगूठियाँ और स्वर्ण पदक, और काफी सामान भी कुएं से पाए गए।

*-राकेश कुमार


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