‘द प्रिंट’ की प्रगतिशील पत्रकारिता में 13 साल की सिख लड़की से 23 साल के मुसलमान का ‘प्यार’ वैध

 

13 साल की मनमीत, 23 साल का शाहिद: ThePrint की ‘पत्रकारिता’, कश्मीरी सिख लड़की के धर्मांतरण को ठहराया सही
12 July, 2021
K Bhattacharjee
ThePrint सिख धर्मांतरण
द प्रिंट ने सिख लड़की के धर्मांतरण मामले पर छापा शाहिद का पक्ष

जम्मू-कश्मीर में सिख लड़कियों के धर्मांतरण के मामले को कई दिन बीतने के बाद इस केस में कुछ नई जानकारी सामने आई है। द प्रिंट की 9 जुलाई को प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, सिख लड़की से कथित तौर पर जिस शाहिद नजीर भट्ट ने निकाह किया था, वह 2 जुलाई को रिहा हो गया है।


द प्रिंट की रिपोर्ट की हेडलाइन

ऐसे में द प्रिंट के पत्रकार ने उससे बात की और पूरे मामले में उसका पक्ष छापा। बयान में शाहिद ने कहा कि वह मनमीत कौर से 6 साल से प्यार करता था। यानी 29 साल का शाहिद 19 वर्ष की मनमीत को तबसे पसंद कर रहा था, जबसे वो मात्र 13 साल की थी और वह 23 साल का था। मामला साफ तौर पर ग्रूमिंग जिहाद का दिखता है।

मनमीत की उम्र को लेकर कन्फ्यूजन

द प्रिंट द्वारा एक्सेस किए गए दस्तावेजों के अनुसार मनमीत के आधार कार्ड में उसका जन्म वर्ष फरवरी 2003 मिला है, जिसके मुताबिक उसकी उम्र 18 साल 5 माह की बनती है। इसके अलावा अपने एफिडेविट में खुद मनमीत ने भी अपने आप को 19 साल का बताया है।

रिपोर्ट कहती है कि मनमीत ने हलफनामे में कहा कि उसने बिन किसी डर या दबाव के इस्लाम को स्वीकारा है और एक साल से वह इस्लाम का अनुसरण भी कर रही है। अब खबर में खुद ये बताया गया है कि लड़की 18-19 साल की है।

इसलिए अगर स्टोरी के मुताबिक छह साल के प्यार के दावे सही हैं, तो एक 13 साल की लड़की, संभवतः 12, और एक 23 वर्षीय व्यक्ति के बीच का रिश्ता सभ्य समाज के दायरे में वैसे भी नहीं आता है। मगर शाहिद का तो तर्क है कि मनमीत 22 साल की है और उसके माता पिता उसे 19 साल का बता रहे हैं।

द प्रिंट की रिपोर्ट के अनुसार, ये रिश्ता तब शुरू हुआ जब मनमीत 13 साल की थी या शायद 12 की ही, और शाहिद तब 23 का था।
अपने पक्ष में शाहिद लड़की का बोन डेन्सिटी टेस्ट कराने को कहता है लेकिन इस बात को कहते हुए शायद वह भूल जाता है कि मनमीत ने खुद ही अपनी उम्र 19 की बताई है।

धर्मांतरण एंगल को खारिज करने वाले सिख से द प्रिंट की बात

द प्रिंट ने इस मामले में ‘ऑल पार्टी सिख कॉर्डिनेशन कमेटी’ के अध्यक्ष जगमोहन सिंह रैना से बात की, जिन्होंने पूरे मामले को ‘राजनीतिक लाभ’ के लिए किया गया ड्रामा करार दिया। रिपोर्ट में रैना को कोट करते हुए लिखा गया,

“जब मनमीत का मामला मेरे सामने आया, तो मैंने ज्यादा ध्यान नहीं दिया क्योंकि मुझे बताया गया था कि यह सहमति से था और महिला ने मुस्लिम व्यक्ति से धर्म परिवर्तन करके शादी की, लेकिन, फिर, किसी ने सिरसा को सूचित किया और उसने एक वीडियो पोस्ट कर दी। बाद में सोशल मीडिया ने इसे लव जिहाद का मुद्दा बना दिया।”

रैना ने कहा, “मैं हैरान था कि कितने सारे लोग इकट्ठा हुए और प्रदर्शन हुआ। उन्होंने कहा कि सिख महिला का बंदूक की नोक पर धर्मांतरण करवाया गया, जो बिलकुल गलत बात है। इसके बाद उन नेताओं ने महिला के परिवार से बात की और फोटो खिंचवाई, फिर कुछ मंत्रियों से मिले और महिला की किसी और के साथ शादी भी कर वा दी।” रैना के मुताबिक ये सब सिर्फ समुदायों के बीच दुर्भावना पैदा करने के लिए किया गया।

रिश्ते में क्या है समस्या

अब यहाँ ये बताने की जरूरत नहीं कि आखिर 13 साल की एक लड़की और 23 वर्ष के युवक के बीच के संबंध में समस्या क्या है। 13 साल की बच्ची नाबालिग की श्रेणी में आती हैं। इस उम्र में कोई इतना समझदार नहीं होता कि उचित निर्णय ले सके। इसलिए 18 वर्ष से पहले देश में मतदान करना, शराब पीना, या गाड़ी चलाना भी वैध नहीं माना जाता। सभ्य समाज मानता है कि उनका बच्चा अभी इतना परिपक्व नहीं हुआ कि उसे एक व्यस्क जितने अधिकार दिए जाएँ। यही कराण है कि बच्चों की जिम्मेदारी और बच्चों से जुड़े फैसले उनके बड़े एक अभिभावक के तौर पर लेते हैं।

इसलिए कानून की नजर में ऐसे रिश्ते सही नहीं है। अगर ऐसा माना गया तो बच्चों के प्रति आपराधिक मंशा रखने वाले को रास्ता मिलेगा। साथ ही बच्चों की सुरक्षा से खिलवाड़ होगा। ऐसे अपराधिक मानसिकता वाले बच्चों को बरगलाएँगे, उन्हें धमकाएँगे और ब्लैकमेल कर करके रिलेशन में उलझा लेंगे। ऐसी समस्या परिपक्व लड़कियों के साथ भी हो सकती है लेकिन बाल अवस्था के दौरान इसका डर ज्यादा होता है।

इसके अलावा ये भी गौर देने वाली बात है कि ग्रूमिंग जिहाद में मुख्यत: 13, 14, और 15 साल की लड़कियों को निशाना बनाया जाता है। इसका कारण यही है कि लड़कियाँ इस उम्र में आसानी ने बहकावे में आती हैं।

ऐसी स्थिति के बावजूद द प्रिंट इस रिश्ते को जस्टिफाई कर रहा है बिलकुल उसी तरह जैसा कि द वायर ने किया था जब कानपुर में ग्रूमिंग जिहाद के लिए SIT जाँच बैठाई गई थी। उस समय द वायर का कहना था कि 14 केस में से 8 मामले सहमति के थे जबकि हकीकत में 11 में से 8 मामले ऐसे थे, जिसमें नाबालिग पीड़िताएँ शामिल थीं। इसलिए नाबालिग लड़कियों के साथ दूसरे समुदाय के युवकों के प्रेम संबंध को सामान्य बताना लिबरल मीडिया के लिए कोई नई बात नहीं है।

शाहिद के कर्मों पर द प्रिंट की लीपा-पोती

ये देखना वाकई अचंभित करता है कि द प्रिंट की रिपोर्ट में उनका पक्ष शाहिद की ओर स्पष्ट झुका हुआ है। रिपोर्ट की हेडलाइन दी गई है, “मैं अपनी बीवी को वापस लाने के लिए लड़ूँगा- मुस्लिम युवक कश्मीर में ‘सिख धर्मांतरण विवाद’ से पीछे नहीं हटेगा।”

शाहिद का कोट लेते हुए प्रिंट ने छापा, “उन्होंने कानूनी तौर पर बनी मेरी बीवी को, मेरे प्यार को मुझसे छीना, वो भी तब जब मैं जेल में था। वो लोग ऐसा कैसे कर सकते हैं। जब मैंने उसकी शादी की तस्वीरें देखीं तो मेरा दिल टूट गया, बाद में मैं जेल से आया। मुझे गुस्सा भी था और मैं लाचार भी था।”

वह कहता है, “मेरा निकाह हुआ था। मनमीत ने कोर्ट के सामने भी कहा कि उसने मुझसे अपनी इच्छा से निकाह किया। और मैं तब भी यहाँ हूँ, लाचार हूँ बिना अपनी पत्नी के, और वहाँ पीड़ित है। उसे बरगलाया गया है।क्या यही न्याय है।”

शाहिद ने अपने बयान में मनमीत के माता पिता को भी उसे बरगलाने का आरोपित बताया है और कहा है कि उसकी शादी बंदूक की नोक पर करवाई गई है। वह कहता है, “मैं तस्वीरों में मनमीत की आँखों में दर्द देख सकता हूँ।”

युवक आगे कहता है, “एक समय था जब मुझे लगा कि मैं दिल्ली जाऊँगा। लेकिन जिस तरह इन लोगों ने मामले का राजनीतिकरण किया है, मुझे मालूम है अगर मैं वहाँ गया तो मार डाला जाऊँगा, लेकिन मैं हार नहीं मानूँगा। मैं उसके बिना अपना जीवन की कल्पना नहीं कर सकता। भले ही मुझे सालों लगे कानूनी लड़ाई लड़ने में। वह मेरी पत्नी है, मेरा प्यार है, मैं उसे वापस लाकर रहूँगा।”

अब ये बात बेहद अजीब है कि शाहिद का नैरेटिव चलाने के लिए द प्रिंट ने उसे प्लेटफॉर्म दिया है। वो भी बिना किसी काउंटर वर्जन के, जबकि वे इस बात को खुद भी जानते होंगे कि अगर मनमीत का पक्ष सटीक है और रिश्ता 13 साल की उम्र में शुरू हुआ, तो शाहिद का कहा अपने कमजोर पड़ता है।

 

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