जन्म जयंती: मुखबिर निपटाने में सत्येंद्र नाथ बोस को हुई थी फांसी

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जन्म: *30.07.1888* पुण्यतिथि: *21.11.1908*

क्रांतिकारी *सत्येंद्रनाथ बोस * 🙏🙏🌹🌹

चरित्र-निर्माण, समाज-सुधार व राष्ट्रवादी जन-चेतना के लिए समर्पित मातृभूमि सेवा संस्था आज के दिन जन्मी विभूतियों एवं देश की ज्ञाताज्ञात बलिदानियों को कोटि कोटि नमन करती है। राष्ट्रभक्त साथियों आज हम बात करेंगे *मातृभूमि के एक सच्चे सपूत क्रांतिकारी सत्येंद्रनथ बोस की, जिन्होंने अपने क्रांतिकारी साथी कन्हाईलाल दत्त जी के साथ मिलकर गद्दार (मुखबिर) क्रांतिकारी साथी नरेंद्रनाथ गोस्वामी को अलीपुर सेंट्रल जेल में मौत के घाट उतारा।*

📝लोकमान्य बालगंगाधर तिलक व अरविंदो घोष की विचारधारा से प्रभावित क्रांतिकारी सत्येंद्र नाथ बोस का जन्म पश्चिमी मिदनापुर, पश्चिम बंगाल में 30 जुलाई, 1882 में मिदनापुर कॉलेज के प्रोफेसर अभय चरण बोस जी के घर हुआ था। F.A. की परीक्षा उत्तीर्ण करने के उपरांत उन्होंने BA की डिग्री के लिए कलकत्ता यूनिवर्सिटी में प्रवेश लिया। वे अनुशीलन समिति के सदस्य बन क्रांतिकारी गतिविधियों से सक्रिय रूप से जुड़ गए। 30 अप्रैल, 1908 के मुजफ्फरपुर (बिहार) में न्यायाधीश डगलस किंग्सफोर्ड पर हमला असफल होने के उपरांत क्रांतिकारियों की धड़-पकड़ तेज हुई। इसी केस के संदर्भ में 02 मई, 1908 को ब्रिटिश गुप्तचर विभाग (पुलिस) ने अरविंद घोष/बरिंद्र कुमार घोष के निवास से सटे उनकी ही ज़मीन 32 मुरारीपुकुर रोड,कलकत्ता पर छापा मारकर 20 क्रांतिकारी पकड़ लिए।इन्हें पकड़कर अलीपुर सेंट्रल जेल में रखा गया। अलीपुर सेंट्रल जेल में अरविंद घोष, बरिंद्र कुमार घोष व सत्येंद्रनाथ बोस,कन्हाईलाल दत्त आदि क्रांतिकारियों में से एक नरेंद्रनाथ गोस्वामी अंग्रेजों का मुखबिर बन गया। ऐसे में इन क्रांतिकारियों के लिए वह बहुत बड़ा खतरा बन चुका था।

📝क्रांतिकारियों ने इसे मौत के घाट उतारने की योजना बनाई। इस कार्य के लिए बड़ी मुश्किल से दो बंदूकें मंगवाई गई,जो बड़ी थी। उन बंदूकों को वापस भेज छोटी आकर की बंदूकें मंगवाई गईं। इसी बीच नरेंद्रनाथ गोस्वामी को लगा कि क्रांतिकारी उसकी हत्या कर सकते हैं तो वह अंग्रेजों की कृपा से अलीपुर सेंट्रल जेल के अस्पताल के यूरोपियन वार्ड में भर्ती हो गया।अब उसकी हत्या असंभव लगने लगी क्योंकि वहां बहुत ज्यादा सुरक्षा रहती थी । ऐसे में कन्हाईलाल दत्त और सत्येंद्रनथ बोस ने भी मुखबिर बनने का नाटक किया। यह जान नरेंद्रनाथ गोस्वामी खुश हुआ और मिलने आ गया। 31 अगस्त,1908 को नरेन्द्र जेल के एक अधिकारी हिंगिस के साथ सत्येन्द्र से मिलने आया। सत्येन्द्र अस्पताल की पहली मंजिल पर उसकी प्रतीक्षा कर रहा था। वहां कन्हाई को देख एक बार नरेन्द्र को शक हुआ; पर फिर वह सत्येन्द्र के संकेत पर हिंगिस को पीछे छोड़ उनसे एकांत वार्ता करने को कमरे से बाहर बरामदे में आ गया। कन्हाई और सत्येन्द्र तो इस अवसर की प्रतीक्षा में ही थे। मौका देख कन्हाई ने नरेन्द्र गोस्वामी पर गोली दाग दी। वह चिल्लाते हुए नीचे की ओर भागा। इस पर सत्येन्द्र ने उसे पकड़ लिया। गोली की आवाज सुनकर हिंगिस और एक अन्य जेल अधिकारी लिंटन आ गये।

📝 लिंटन ने सत्येन्द्र को गिरा कन्हाई को जकड़ लिया। इस पर कन्हाई ने पिस्तौल की नाल उसके सिर में दे मारी। इस हाथापाई में कई गोलियां व्यर्थ हो गयीं। अब केवल एक गोली शेष थी। कन्हाई ने झटके से स्वयं को छुड़ाकर बची हुई गोली नरेन्द्र पर दाग दी। इस बार निशाना ठीक लगा और देशद्रोही धरती पर लुढ़क गया। दोनों ने अपना उद्देश्य पूरा होते ही समर्पण कर दिया। मुकदमे में कन्हाई ने अपना अपराध स्वीकार कर किसी वकील की सहायता लेने से मना कर दिया। उसे फांसी की सजा सुनाई गयी। न्यायालय ने सत्येन्द्र को फांसी योग्य अपराधी नहीं माना। शासन ने इसकी अपील ऊपर के न्यायालय में की। वहां से सत्येन्द्र के लिए भी फांसी की सजा घोषित कर दी गयी। अलीपुर केन्द्रीय कारागार में 10 नवम्बर, 1908 को कन्हाई को फांसी दी गयी। वह इतना मस्त था कि फांसी वाले दिन तक उसका भार 16 पौंड बढ़ गया। फांसी वाली रात वह इतनी गहरी नींद में सोया कि उसे आवाज देकर जगाना पड़ा। उसके शव की विशाल शोभा यात्रा निकालकर चंदन के ढेर पर उसका दाह संस्कार किया गया। अंत्येष्टि क्रिया पूरी होने तक हजारों लोग वहां डटे रहे। चिता शांत होने पर लोगों ने भस्म से तिलक किया। सैकड़ों लोगों ने भस्म के ताबीज बच्चों के हाथ पर बांधे। हजारों ने उसे पूजागृह में रख लिया। 21 नवम्बर, 1908 को सत्येन्द्र को भी फांसी दे दी गयी। कन्हाई की शवयात्रा से घबराये शासन ने उसका शव परिवार वालों को न देकर जेल में ही उसका दाह संस्कार कर दिया। *मातृभूमि सेवा संस्था ऐसे वीर बलिदानी के आज 138वीं जयंती पर कोटि कोटि नमन करती है।*
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