व्यंग्य : सठियाई जिज्ञासा,सठियाया चिंतन

क्या आप सठिया गये हैं (व्यंग्यालेख भाग-1)
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# अरे भाई नाराज मत होइये, यह शीर्षक वाक्य आपके लिये नहीं है….आप कहेंगे कि तो फिर किसके लिये है?…..हमें मालूम है कि आपको गुस्सा आ रहा होगा कि यह लिखने की हिमाक़त हमने कैसे की…प्लीज़ एक बार हमारी बात सुन लीजिये,फिर कोई निष्कर्ष निकालियेगा।असल में हमारी श्रीमती जी ने यह बात उस समय हमसे कही थी जब हम ‘लोरी बाबा’ बनने जा रहे थे,तबसे यह वाक्य हमारे सीने में गोली की तरह धंसा हुआ है।हद तो तब हो गई जब हमारी एक पोस्ट पर एक मित्र ने हमारे लिये यह लिखा कि ‘हम इतना सठियाये काहे हैं ‘….तब हमने यह विचार किया कि उन्होंने यह टिप्पणी हमारे बारे में कुछ सोच-विचार व देखकर ही लिखी होगी।
हम तभी से इसी घोर चिन्ता में डूबे हुये हैं कि क्या हम वाकई में सठिया गये हैं।पहले सोचा कि श्रीमती जी से ही कारण पूंछें लेकिन इसमें खतरा बहुत अधिक था…. वह हाथ में आये इस सुनहरे अवसर को भला क्यों छोड़ देतीं,वे तो दसियों उदाहरण देकर यह सिद्ध ही कर देंती कि हम वास्तव में सठिया गये हैं….नहीं-नहीं, पत्नी से पूंछना वैसा ही होगा जैसे कि “आ बैल मुझे मार”।तो फिर क्या करें….सोचा सठियाने से सम्बन्धित कुछ साहित्य का अध्ययन करें शायद कोई उपयोगी जानकारी मिल सके, लेकिन काफी किताबें पलटने के बाद भी ‘सठियाना’ विषय पर कोई विशेष सामग्री उपलब्ध नहीं हो पाई,मात्र यह पढ़ने को मिला कि साठ वर्ष की आयु के बाद आदमी सठिया जाता है।पहले हमने सोचा कि साठ पार के बुजुर्गों के लिये यह सम्मानसूचक शब्द होगा लेकिन ज्यादा गहराई में जाने पर यह आभास हुआ कि ‘सठियाना’ शब्द उपहास के रूप में साठ पार के व्यक्तियों की खिल्ली उड़ाने के लिये प्रयोग किया जाता है।यह पढ़कर हमें उन मित्र पर बहुत क्रोध आया जिन्होंने अपनी टिप्पणी में हमारे सठियाने का उल्लेख किया था….वे मित्र खुद साठ के ऊपर हैं तो भला वे दूसरे साठ पार के व्यक्ति को ऐसा कैसे कह सकते हैं?…फिर यह सोचकर तसल्ली कर ली कि शायद यह उनके सठिया जाने का ही लक्षण होगा।
हमने धर्मग्रंथों व पौराणिक आख्यानों का भी अध्ययन किया,कहीं पर भी ‘सठियाना’ अथवा ‘सठिया जाने’ शब्द का उल्लेख नहीं मिला, तब हमने अनुमान लगाया कि आधुनिक काल के किसी नौजवान ने अपने किसी बुजुर्ग की डांट अथवा अनावश्यक उपदेश से क्षुब्ध होकर इस शब्द की ईजाद की होगी तभी साहित्य में इस शब्द को स्थान नहीं मिल सका है।’सठियाने’ शब्द का वास्तविक अर्थ व इसके लक्षण जानने की हमारी जिज्ञासा निरन्तर बढ़ती जा रही थी लेकिन कोई उपाय नहीं सूझ रहा था कि कहां जायें, किससे पूंछें?कई बार मन में आया कि अपने विद्वान मित्रों से वार्ता कर अपनी ज्ञानपिपासा शान्त करें लेकिन फिर याद आया कि ऐसे सभी मित्र साठ पार कर चुके हैं, वे क्यों सही ज्ञान देंगे… हो सकता है कि उनमें से कुछ लोग सठिया भी गये हों,ऐसी स्थिति में उनके द्वारा दिया गया ज्ञान निष्पक्ष नहीं हो सकता, वे तो इसी बात पर अड़े रहेंगे कि वे अभी तक सठियाये नहीं है…. यह सही भी है,भला कौन यह स्वीकार करेगा कि वह सठिया गया है।इन तर्कों के आधार पर साठ पार के मित्रों से जानकारी लेने का विचार हमने त्याग दिया, साठ से कम आयु के लोगों से पूंछने का कोई तुक नहीं था…वे तो यही कहेंगे न, कि अभी हम साठ के नहीं हुये हैं अतः हम यह कैसे बता सकते हैं कि आदमी के सठिया जाने पर क्या होता है।एक आश्चर्यजनक व विचित्र जानकारी और मिली कि ‘सठिया जाना’ का प्रयोग केवल पुरुषों के लिये किया जाता है, महिलाओं के सठिया जाने की बात नहीं सुनी गई…ऐसा क्यों है, इस अजीब पहेली को भी सुलझाना बहुत जरूरी था।
हम बहुत असमंजस व ऊहापोह में थे कि अपनी जिज्ञासा कैसे शान्त करें, कहां जायें?हमारा धैर्य जवाब दे रहा था तभी अचानक हमें अपने अभिन्न जिज्ञासु मित्र की लगभग एक माह पूर्व कही बात याद आ गई जब उन्होंने बताया था कि वह एक ऐसे ज्ञानी व्यक्ति को जानते हैं जो किसी भी जिज्ञासा का समाधान चुटकियों में कर देते हैं,उन्होंने ज्ञानी जी का पता भी हमें नोट कराया था।हमें पहली बार लम्बी-अंधेरी सुरंग में प्रकाश की एक किरण नजर आई व यह विश्वास हो चला कि अब हमारी जिज्ञासा का समाधान शीघ्र हो जायेगा, सो हमने अगले ही दिन ज्ञानी जी से मिलने का निश्चय किया।
अगले दिन हम सज-संवर कर जिज्ञासु मित्र द्वारा बताये गये पते पर निकल पड़े, सजना-संवरना इसलिये जरूरी था क्योंकि आजकल आदमी का स्टेटस उसके कपड़ों,चाल-ढाल व बाहरी आवरण से आंका जाता है,सामान्य कपड़े पहनकर जाने से ज्ञानी जी हमें टुच्चा टाइप का समझ सकते थे।बताये गये पते पर पहुंचे तो वहां एक अधेड़ नुमा व्यक्ति अलसाई मुद्रा में एक तख्त पर अधलेटे होकर खैनी का आनन्द ले रहा था, पास ही में एक कुत्ता अपने पंजों से अपने शरीर को खुजा रहा था।हमने पूंछा… क्या ज्ञानी जी घर पर हैं?इस पर अधलेटे व्यक्ति ने कहा कि क्या काम है….
हमने कहा कि हम उनसे अपनी जिज्ञासा के समाधान के लिये आये हैं।यह सुनकर उस व्यक्ति में चैतन्यता का संचार हुआ व वे तख्त पर सीधे होकर बैठ गये व सामने पड़ी एक पुरानी कुर्सी पर बैठने का इशारा करते हुये बोले कि मैं ही ज्ञानी जी हूं।यह सुनते ही जैसे हम आसमान से गिर पड़े,हम तो यह कल्पना करके आये थे कि ज्ञानी जी भव्य व्यक्तित्व के स्वामी होंगे,उनका एक वातानुकूलित आफिस होगा, बाहर एक खूबसूरत रिसेप्शनिस्ट होगी व ज्ञानी जी से मिलने के लिये जिज्ञासुओं की लाइन लगी होगी।फिर सोचा….इससे हमारा क्या लेना-देना,हमें तो अपने काम से मतलब है… हो सकता है कि यह सचमुच के ज्ञानी हों इसीलिये उनका रंग-ढंग फकीरों व फक्कड़ों जैसा है।
ज्ञानी जी ने पूंछा कि बताइये,आपकी क्या जिज्ञासा है?हमने सोचा कि सीधे प्वाइंट पर आने की बजाए कुछ भूमिका बनाते हुये बात शुरू करना ठीक रहेगा।हमने अपने जिज्ञासु मित्र का नाम लेते हुये कहा कि वे आपकी बहुत प्रशंसा करते हैं, इस पर ज्ञानी जी बोले कि सुना है कि वे अच्छा व्यंग्य लिखते हैं… कई बार तो मुझसे ही आइडिया लेने आ जाते हैं। हमने आश्चर्य व्यक्त करते हुये कहा कि महामहिम राज्यपाल के सम्बन्ध में आपके जिन विचारों का उल्लेख उन्होंने अपने एक लेख में किया है उसे पढ़कर कुछ पाठकों को आपकी विद्वत्ता पर शक होने लगा है।यह सुनकर ज्ञानी जी थोड़ा गम्भीर हो गये और बोले….अच्छा यह बात है,इस बार जब आपके जिज्ञासु मित्र आयेंगे तब मैं उनसे ठीक से निपटता हूं।
उचित समय देखकर हमने ज्ञानी जी से अपनी जिज्ञासा प्रकट की तथा उनसे पूंछा कि:—
• क्या साठ वर्ष की आयु के बाद आदमी सठिया जाता है?
•सठियाने के कारण व लक्षण क्या हैं?
•क्या आदमी को इसका भान हो जाता है कि वह सठिया गया है।
•हम कैसे जान पायेंगे कि फलां आदमी सठिया गया है अथवा नहीं?
•महिलाओं के सठियाने के बारे में नहीं सुना, क्या महिलायें नहीं सठियाती हैं?
काफी देर गम्भीरता पूर्वक सोचने के उपरान्त ज्ञानी जी ने जो जवाब दिया, उसके लिये अगले व अन्तिम भाग की प्रतीक्षा करें। ★★★★★★ क्रमशः ★★★★★★★
@ जगदीश गुप्ता, रिटायर्ड आईएएस की फेसबुक वॉल से साभार

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