बैंकर तलवार,जो संजय और इंदिरा सरकार के सामने अड़ गया इमरजेंसी में

आर.के. तलवार- एक ईमानदार SBI अध्यक्ष, जिसने आपातकाल के दौरान संजय गांधी को दिखाया आईना – नारायणन वाघुल

आर.के. तलवार एक ऐसी शख्सियत जो 1959 से 1976 तक स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के चेयरमैन रहे, और जिनकी इमानदारी से आजिज आकर, परेशान होकर तत्कालीन

आर.के. तलवार एक ऐसी शख्सियत जो 1959 से 1976 तक स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के चेयरमैन रहे, और जिनकी इमानदारी से आजिज आकर, परेशान होकर तत्कालीन इंदिरा सरकार को उन्हें हटाने के लिए संसद में प्रस्ताव लाकर कानूनों में संशोधन करना पड़ा । बैंक के कामकाज में सरकार द्वारा किये जाने वाले अन्यायपूर्ण और अनैतिक हस्तक्षेप के खिलाफ उनके सैद्धांतिक स्टैंड के कारण लाये गए इस संसोधन को आज भी बैंकिंग सर्किलों में, उनके ही नाम पर “तलवार संशोधन” के रूप में अच्छी तरह से जाना जाता है । व्यावसायिक साहस का यह उदाहरण आज के घोटालों के युग में प्रेरक बन सकता है |

आखिर तलवार ने ऐसा क्या किया था, जो सरकार को इस स्तर तक जाना पड़ा?

1971 के बांग्लादेश मुक्ति संग्राम में पाकिस्तान के साथ युद्ध के बाद अर्थव्यवस्था एक समय एक मुश्किल दौर से गुजर रही थी। कई सीमांत कंपनियों को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा था । भारतीय स्टेट बैंक, सबसे बड़ा बैंक होने के नाते ज्यादातर उद्यमों को उस पर ही आश्रित रहना पड़ता था और बैंक भी घाटे में डूबती कई कंपनियों को बचाने में सहायता करने के लिए तैयार भी रहता था। ऐसे में लगातार नुकसान उठा रही एक सीमेंट कंपनी ने बैंक के ऋण को पुनर्गठन सहायता के लिए बैंक से संपर्क किया। बैसे तो यह एक सामान्य प्रक्रिया है, जिसे हर बैंक करता ही रहता है, किन्तु इस कंपनी को लेकर एक जटिल समस्या आड़े आ रही थी | बैंक द्वारा मजबूत आकलन किया गया था कि कंपनी जिन कठिनाइयों से जूझ रही है, वे बड़े पैमाने कुप्रबंधन के कारण हैं | अतः बैंक ने जोर देकर कहा कि बैंक मदद तब ही कर पायेगा, जब कम्पनी अपने चेयरमेन जो कि कम्पनी का सीईओ भी थे, को हटकर किसी प्रोफेशनल को कम्पनी के प्रबंधन में शामिल करे ।

बैंक द्वारा इसी तरह की परिस्थितियों में अमूमन यही किया जाता है और स्वाभाविक ही इसका विरोध भी होता है | बैंक की यह शर्त आमतौर पर तब ही मानी जाती है, जब बैंक की मदद के बिना काम ही नहीं चल पाता । इस विशिष्ट मामले में भी यही हुआ | प्रबंधन और बैंक दोनों ही अड़ गए, क्योंकि कंपनी के प्रमोटर को अपने संपर्कों पर बहुत भरोसा था | और उसका आत्मविश्वास स्वाभाविक भी था | आखिर भारत की तत्कालीन प्रधान मंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी के बेटे संजय गांधी, उसके दोस्त जो थे । संजय गांधी को लगा कि भला यह भी कोई काम है, उन्होंने वित्त मंत्री को बुलाया और बैंक को आवश्यक निर्देश देने को कहा। संजय गांधी को लगा था कि उन्होंने अपना निर्णय सुना दिया है, तो मामला निबट ही जाएगा । लेकिन ऐसा हुआ नहीं, क्योंकि सरकार के सामने एक अलग किस्म का व्यक्ति था – तलवार, जिसे केवल अपने कर्तव्य से ही मतलब था ।

वित्त मंत्री ने तलवार को फोन किया और कहा कि ऋण के पुनर्गठन हेतु प्रबंधन में बदलाव की शर्त पर जोर न दिया जाए । तलवार ने विभाग से ब्यौरा मांगा और मामले को समझने के बाद वित्त मंत्री को सूचित किया कि प्रबंधन में बदलाव की शर्त हटाना बैंक के लिए संभव नहीं है । वित्त मंत्री ने तलवार को बुलाया और उन्हें बताया कि उन्हें देश के “उच्चतम प्राधिकरण” से यह निर्देश प्राप्त हुआ है, अतः बिना किसी हीला हवाली के इसका पालन किया जाना चाहिए । तलवार ने अपना रुख स्पष्ट कर दिया और वित्त मंत्री को साफ़ शब्दों में कह दिया कि बैंक की स्थिति अपरिवर्तित रहेगी।

जब संजय गांधी को यह जानकारी दी गई तो वह अचंभित हो गए, क्योंकि आपातकाल घोषित हुए एक वर्ष का समय व्यतीत हो चुका था और इस दौर में उन्हें एक भी ऐसा व्यक्ति नहीं मिला था, जिसने उनसे किसी भी मुद्दे पर असहमति जताई हो, या उनके आदेशों को मानने से इनकार किया हो । यहाँ तक तो कोई ख़ास बात नहीं थी, किन्तु संजय गांधी का पारा उस समय सातवें आसमान पर पहुँच गया, जब उन्हें बताया गया कि तलवार ने उनसे मिलने को यह कहकर इनकार कर दिया है कि वे किसी संवैधानिक पद पर नहीं हैं, और वे केवल वित्त मंत्री के प्रति जवाबदेह है। संजय गांधी ने वित्त मंत्री को हुकुम दनदना दिया – हटाओ इस तलवार को !

लेकिन वित्त मंत्री के लिए यह इतना आसान भी नहीं था, क्योंकि तलवार विगत सात सालों से बैंक के ऐसे अध्यक्ष थे, जिन्होंने प्रतिष्ठा अर्जित की थी | उन्हें हटाने का अर्थ था, बिगड़ी हुई अर्थ व्यवस्था को और डुबाना तथा उद्योग जगत को सदमे में डालना ।

हालांकि, आपातकाल के चलते वित्त मंत्री इस का प्रबंधन कर सकते थे और देश की तत्कालीन असाधारण परिस्थितियों में यह असामान्य भी नहीं था। किन्तु जब प्रकरण लीगल डिपार्टमेंट को भेजा गया तो पता चला कि स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया के एक्ट में एक विशिष्ट प्रावधान है, जिसके अनुसार चेयरमेन को अकारण नहीं हटाया जा सकता | उसके लिए पर्याप्त आधार चाहिए |

वित्त मंत्री ने एक मध्यमार्ग निकाला तथा तलवार को बुलाकर कहा कि सरकार बैंकिंग प्रणाली के कामकाज में सुधार हेतु, बैंकिंग आयोग की स्थापना का विचार कर रही है, क्या वे उसका अध्यक्ष पद स्वीकार करेंगे ?

तलवार ने तपाक से वित्त मंत्री को जबाब दिया – जरूर, मुझे आयोग का अध्यक्ष बनकर प्रसन्नता होगी और मैं अपने स्टेट बैंक अध्यक्ष के मौजूदा दायित्व के साथ उसे भी बखूबी निभा सकता हूँ । वित्त मंत्री को भोंचक्का देखकर तलवार ने शांतिपूर्वक वित्त मंत्री की आंखों में देखते हुए कहा – श्रीमान क्या यह सही नहीं है कि आप मुझे भारतीय स्टेट बैंक के अध्यक्ष के रूप में नहीं देखना चाहते?

वित्त मंत्री को जबाब देना पड़ा – “हाँ, आप जानते ही हैं कि समस्या क्या है ? हम सभी की के मन में आपकी क्षमताओं के प्रति बहुत सम्मान है, किन्तु दुर्भाग्य से आप इस एक मुद्दे पर लचीलापन नहीं दिखा रहे हैं, जो देश के उच्चतम प्राधिकारी के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। यदि आप किसी भी अन्य स्थिति को स्वीकार नहीं करना चाहते हैं, तो मुझे विवश होकर आपसे इस्तीफा मांगना होगा । हालांकि यह मेरे लिए बेहद दर्दनाक होगा, लेकिन मेरे पास कोई दूसरा विकल्प नहीं है ।

तलवार ने उत्तर दिया – मंत्री जी, ऐसी हालत में इस्तीफा देने का मेरा कोई इरादा नहीं है, अब आप ही यह तय कीजिए कि मुझे बर्खास्त किया जाए या नहीं। बैसे भी मेरा कार्यकाल समाप्त होने में एक वर्ष से भी कम समय शेष है और मुझे कोई कारण नहीं दिखता है कि मुझे इसे पूरा करने की अनुमति क्यों नहीं दी जानी चाहिए।

पहले से दुखी वित्त मंत्री और दुखी हो गए । उन्होंने यह सारी जानकारी संजय गांधी को बताई | संजय ने सीबीआई को जिम्मेदारी सोंपी कि तलवार की निजी जिन्दगी की छानबीन कर उन्हें बर्खास्त करने हेतु कोई मुद्दा बनाया जाए । बमुश्किल तमाम सीबीआई को दो जानकारियां हाथ आई – पहली तो यह कि लगभग हर महीने तलवार पोंडिचेरी के अरविंदो आश्रम जाते हैं | हालांकि यह कोई ढका छुपा तथ्य भी नहीं था, और जब यह मुद्दा एक बार चर्चा में आया था तो उन्होंने सरकार को यह स्पष्ट कर दिया था कि वे “अपनी बैटरी रिचार्ज करने” के लिए वहां जाते हैं | किन्तु यदि उनके दायित्व निर्वहन में इससे कोई व्यवधान अनुभव हो, तो वे इसे बंद कर देंगे । स्वाभाविक ही इसे बर्खास्तगी का पर्याप्त कारण नहीं माना जा सकता था ।

दूसरा कारण थोड़ा अधिक गंभीर था और वह यह कि तलवार ने आश्रम के लिए दान हेतु उद्योगपतियों से अपील की थी, जिनमें से कई बैंक के ग्राहक भी थे । लेकिन केंद्रीय जांच एजेंसी इस मुद्दे को भी आधार नहीं बना पाई, क्योंकि एक भी उद्योगपति यह कहने को तैयार नहीं हुआ कि तलवार ने उन्हें दान देने के लिए कोई दबाब डाला है । इतना ही नहीं तो स्वयं प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी और संयुक्त राष्ट्र के महासचिव, यू थांट द्वारा भी आश्रम की ऑरोविल परियोजना की सराहना करते हुए जन सामान्य से सहयोग की अपील की गई थी ।

अंततः सीबीआई ने मामले को बंद कर दिया, और एक बार फिर गेंद ​​वित्त मंत्री के पाले में आ गई | इस बार तो संजय गांधी ने अपना आपा ही खो दिया और उन्होंने वित्त मंत्री को भारतीय स्टेट बैंक अधिनियम में ही संशोधन करने का निर्देश दे दिया।

स्टेट बैंक ऑफ इंडिया अधिनियम में संशोधन करने वाले कानून को रिकॉर्ड समय में ही पारित किया गया और उसे अविलम्ब राष्ट्रपति की सहमति भी प्राप्त हो गई । अधिनियम में नए प्रावधान के साथ सशक्त, वित्त मंत्री ने तलवार को एक बार फिर बुलाया और कहा कि अगर उन्होंने सेवा से इस्तीफा नहीं दिया, तो उन्हें हटाने के अलावा उनके पास कोई विकल्प नहीं है। लेकिन, तलवार अडिग थे। उन्होंने वित्त मंत्री से कहा कि उनका इस्तीफा देने का कोई इरादा नहीं है और वित्त मंत्री को जो उचित लगे, वे करने को स्वतंत्र हैं।

और 4 अगस्त 1976 की शाम तलवार को एक फेक्स मिला, जिसमें वित्त मंत्री ने उनकी 13 महीने की छुट्टी प्रदान करते हुए प्रभार प्रबंध निदेशक को सौंपने के लिए कहा गया था ।

है ना हैरत की बात ? इतनी शक्तियों जुटा लेने के बाद भी सरकार तलवार को बर्खास्त करने का साहस नहीं जुटा पाई!! इसे कहते हैं – ईमानदारी की ताकत

Admirers remember iconic banker R.K. Talwar
THROWING LIGHT ON VALUES: R. Seshasayee, Executive Vice Chairman, Ashok Leyland, launching the book‘R.K. Talwar-Values in Leadership,’ by handing over the first copy to Surendra Dave, former SEBIchairman, at a function held in Chennai on Sunday. (From left), V.A. George, Chairman, KnowledgeXchange, T.T. Srinivasaraghavan, president, MCCI, and N. Vaghul, author of the book and formerChairman of ICICI Bank are in the picture. Photo: S.S. Kumar
THROWING LIGHT ON VALUES: R. Seshasayee, Executive Vice Chairman, Ashok Leyland, launching the book‘R.K. Talwar-Values in Leadership,’ by handing over the first copy to Surendra Dave, former SEBIchairman, at a function held in Chennai on Sunday. (From left), V.A. George, Chairman, KnowledgeXchange, T.T. Srinivasaraghavan, president, MCCI, and N. Vaghul, author of the book and formerChairman of ICICI Bank are in the picture. Photo: S.S. Kumar | Photo Credit: S_S_Kumar

On his 90th birth anniversary, they praise his humane approach
Iconic banker R.K. Talwar was, on the occasion of his 90 birth anniversary, remembered by colleagues and admirers as an upright and courageous man who combined leadership acumen with a deeply spiritual side and always brought a humane element to decision-making at the helms of management.

On the occasion, N. Vaghul, former ICICI Bank chairman —the very person who he would call “Boswell” —paid his tribute to his mentor in Boswellian fashion by bringing out a book titled, “R.K. Talwar-Values in Leadership.”

Launching the book at a function hosted by the Madras Chamber of Commerce and Industry and Knowledge Xchange, R. Seshasayee, Executive Vice Chairman, Ashok Leyland, said Talwar’s extraordinary sense of courage to stand up to political masters, adherence to truth and the manner of bringing the human element to every transaction were among his many enduring values that were increasingly relevant in the contemporary context of declining value.

Noting that Talwar was as much a stickler for truth as Mahatma Gandhi was, Mr. Seshasayee recounted an instance that illustrated Talwar’s ability to see an issue in black-and-white terms without shades of grey. When Mr. Seshasayee was wrought by a moral dilemma over a decision that could be argued as the correct one in one way and wrong in another, Talwar’s simple advice was to heed one’s conscience and take the decision that would give peace of mind.

On another occasion, he would rather face the sack by Government than compromise on his core values.

Mr. Vaghul, who said his book was more about

लेखक श्री * नारायणन वाघुल * आईसीआईसीआई बैंक लिमिटेड के पूर्व अध्यक्ष हैं। उन्होंने भारतीय बैंकिंग में एक नए युग की नींव रखी | यूनिवर्सल बैंकिंग मॉडल की अवधारणा को अग्रणी बनाने में उनकी भूमिका के लिए उन्हें व्यापक रूप से भारत में मान्यता प्राप्त है।

अनुवाद – हरिहर शर्मा

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