शुद्ध ज्ञान:न्यायालय की अवमानना पर कब कैसे हो सकती है जेल

L:प्रशांत भूषण 1 रुपया जुर्माना देकर बच गए; लेकिन जानिए कोर्ट पर कोई भी टिप्पणी आपको कैसे जेल पहुंचा सकती है
सुप्रीम कोर्ट ने कन्टेम्प्ट ऑफ कोर्ट मामले में सीनियर एडवोकेट प्रशांत भूषण पर एक रुपए का जुर्माना लगाया है। यदि 15 सितंबर तक जुर्माना नहीं भरा तो तीन महीने की जेल होगी। तीन साल के लिए वकालत छूट जाएगी, वो अलग।
प्रशांत भूषण देश के नामी वकील हैं। सोशल मीडिया पर कोर्ट या जजों पर टिप्पणी करने का क्या नतीजा निकल सकता है, जानते-समझते हैं। उन्होंने केस लड़ भी लिया। लेकिन आपको पता होना चाहिए कि कोर्ट, खासकर सुप्रीम कोर्ट या किसी भी हाईकोर्ट के किसी फैसले की आलोचना या विरोध आपको जेल पहुंचा सकता है।
चलिए, बात करते हैं क्या होता है कंटेम्प्ट ऑफ कोर्ट और इसकी प्रक्रिया क्या होती है? और, हमें कोर्ट के किसी भी फैसले पर बिना सोचे-समझे सवाल क्यों नहीं उठाने चाहिए?

सबसे पहले, क्या है कंटेम्प्ट ऑफ कोर्ट?

कंटेम्प्ट ऑफ कोर्ट को यदि सरल भाषा में कहें तो आपने कोर्ट का अपमान किया है। उसके फैसले की आलोचना कर या ठुकराकर उसके सम्मान को ठेस पहुंचाई है।
सदियों पहले, इंग्लैंड में यह कंसेप्ट आया था। उस समय राजा या उसकी ओर से नियुक्त जजों का सम्मान जरूरी था। जजों के फैसले की अवहेलना को राजा का अपमान माना जाता था।
बात सिर्फ फैसलों तक सीमित नहीं थी, बल्कि कोर्ट के आदेश का पालन न करना भी कंटेम्प्ट माना जाता था। इस पर जजों को दंडित करने का अधिकार दिया गया था।
भारत में आजादी के पहले से ऐसे कानून रहे हैं। जब संविधान बना तो उसके आर्टिकल 129 में सुप्रीम कोर्ट को उसका अपमान करने वालों को दंडित करने का अधिकार दिया गया।
हाईकोर्टों को यह अधिकार आर्टिकल 215 में दिया है। 1971 में कंटेम्प्ट ऑफ कोर्ट्स एक्ट बना, जिसमें इसे विस्तार से समझाया गया।

…तो भारत में कंटेम्प्ट ऑफ कोर्ट किसे माना जाएगा?

जब इस संबंध में कानून बना तो सबकुछ उसके आधार पर ही चलने लगा। कंटेम्प्ट ऑफ कोर्ट्स एक्ट 1971 के तहत दो तरह का कंटेम्प्ट होता है- सिविल और क्रिमिनल।
जब कोर्ट की ओर से कोई आदेश जारी होता है तो उसका पालन आवश्यक होता है। यदि अदालत के आदेश का जान-बूझकर पालन नहीं हुआ है तो केस सिविल कंटेम्प्ट का बनता है।
क्रिमिनल कंटेम्प्ट कॉम्प्लेक्स है। यह तीन तरह का होता है। बोले गए या लिखे गए शब्द जो किसी कोर्ट के अधिकारों को स्कैंडेलाइज करते हैं।
इसके अलावा किसी न्यायिक कार्यवाही के प्रति पूर्वाग्रह व्यक्त करना या उसमें हस्तक्षेप करना। और, न्याय प्रक्रिया को रोकना या उसमें हस्तक्षेप करना भी क्रिमिनल कंटेम्प्ट है।
ज्युडिशियरी या किसी जज पर आरोप लगाना, जजमेंट और ज्युडिशियरी की मंशा पर सवाल उठाना और जजों के आचरण पर शाब्दिक हमलों को ज्युडिशियरी को स्कैंडेलाइज करना।
इस प्रावधान के पीछे तर्क यह है कि अदालतों का सम्मान कायम रहे, उसके फैसलों पर कोई सवाल न उठा सके। उसकी छवि खराब न की जा सके। लोगों का उस पर भरोसा बना रहे।
कंटेम्प्ट ऑफ कोर्ट के मामले में दोष साबित होने पर छह महीने तक की सजा और/या 2,000 रुपए तक का जुर्माना होता है। अक्सर कंटेम्प्ट करने वाले की माफी भी काफी होती है।
क्या करना कंटेम्प्ट ऑफ कोर्ट में नहीं आता?

ज्युडिशियल प्रोसीडिंग की निष्पक्षता के साथ सटीक रिपोर्टिंग और किसी ज्युडिशियल आदेश की तर्कों के आधार पर आलोचना को कंटेम्प्ट ऑफ कोर्ट नहीं है।
ऐसी छवि बन रही थी कि ज्युडिशियरी सिर्फ अपनी संस्था की छवि बचाए रखने और जजों के कदाचार को छिपाने के लिए कंटेम्प्ट की कार्रवाई कर रही है।
तब 2006 में कानून में संशोधन किया गया और सच को बचाव के तौर पर स्वीकार किया गया। उसका जनहित में होना आवश्यक है।

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