पुण्य स्मरण:RSS से दो साल बड़ा डॉ. हार्डिकर का सेवा दल है कहां?

कांग्रेस सेवादल के प्रेसनोट में दो साल पहले राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की तारीफ कर दी गई तो खूब बवाल हुआ, हालांकि इसका कारण समझना मुश्किल है। सेवादल का गठन संघ से दो साल पहले 1923 में हुआ था और संघ का गठन 1925 में। सेवादल के संस्थापक डाक्टर नारायण सुब्बाराव हार्डिकर और संघ के संस्थापक डाक्टर केशव बलिराम हेडगेवार दोनों अगर एक साथ पढ़ते थे तो इस तथ्य में भी कोई एतिहासिक गलती नहीं है। लेकिन सेवादल अगर कांग्रेस का फालोअर्स बन कर रह गया है और आरएसएस भाजपा का मास्टर्स तो इसमें गलती किन लोगों की है, इसे समझना क्या कठिन है। डाक्टर हेडगेवार के लक्ष्य लंबे थे इसलिए उन्होंने खरगोश की चाल को चुना। डाक्टर हार्डिकर ने सेवादल को एक फौजी अनुशासन में ढालने की कोशिश की तो डाक्टर हेडगेवार ने संघ में इसे अमल में लाने में कामयाब हो गए।
आजादी की लड़ाई के दौरान ही 1931 में सेवादल का स्वतंत्र अस्तित्व खत्म कर इसे कांग्रेस का हिस्सा बना दिया गया था। उस समय के कांग्रेस नेताओं की सोच थी, यदि सेवादल को स्वतंत्र छोड़ दिया गया तो यह सभी बडे नेताओं को लील जाएगा। तब इसका नाम हिन्दुस्तानी सेवादल हुआ करता था। सेवादल का महत्व इससे भी समझा जा सकता है कि जब 1932 में अंग्रेज सरकार ने कांग्रेस और सेवादल पर प्रतिबंध लगाया तो बाद में कांग्रेस से तो प्रतिबंध उठा लिया गया लेकिन सेवादल पर प्रतिबंध जारी रहा। आजादी के बाद सेवादल के पास कोई और लक्ष्य बाकी नहीं रहा लिहाजा उसे कांग्रेस में सबसे पीछे धकेल दिया गया। कांग्रेस के बड़े कार्यक्रमों में सेवादल के कार्यकर्ता के पास वर्दी पहनकर बस खड़ा होने के अलावा अब और काम नहीं है। कांग्रेस के किसी भी मामले में सेवादल की कहीं कोई निर्णायक भूमिका नहीं है। हालांकि आजादी के बाद कांग्रेस में शामिल होने वालों को सेवादल में प्रशिक्षण दिया जाता था, लेकिन बाद में यह व्यवस्था भी खत्म हो गई। 1969 के बाद तो कांग्रेस वैसे भी एक परिवार के प्रभाव वाली पार्टी में सिमटकर रह गई इसलिए कांग्रेस में अब बस नाम के लिए ही बाकी रह गया है।
दूसरी तरफ हिन्दू राष्ट के लक्ष्य को लेकर शुरू हुआ ,राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ कछुआ चाल से चलता हुआ अपना विस्तार करता रहा। महात्मा गांधी की हत्या के बाद जब संघ पर प्रतिबंध लगा तो उसे लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं में अपने हितों की रक्षा के लिए एक राजनीतिक दल की जरूरत महसूस हुई। लिहाजा, 1952 में कांग्रेस से ही आए श्यामाप्रसाद मुखर्जी के साथ मिलकर संघ के कुछ लोगों ने जनसंघ की स्थापना की। 1977 में इमरजेंसी के बाद जब देश के तमाम गैर कांग्रेसी राजनीतिक दल जनता पार्टी के रूप में एक हुए तो जनसंध का भी उसमें विलय हो गया। लेकिन राष्टÑीय स्वयं सेवक संघ ने अपनी जो कार्यपद्धति विकसित की, उसमें अपने तमाम अनुषांगिक संगठनों को स्वतंत्र रूप से अपने क्षेत्र मेंं काम करने के अवसर दिए। बस, हर संगठन की मजबूती के लिए संघ ने अपने पूर्णकालिक, निष्ठावान और जीवन समर्पित कार्यकर्ताओं को हर जगह संगठन महामंत्री के तौर पर स्थापित किया। लिहाजा, संघ से जुड़े तमाम संगठन एक तयशुदा कार्यशैली से आगे बढ़ते हुए मजबूत होते चले गए। किसी भी एक संगठन का किसी दूसरे संगठन में कोई हस्तक्षेप नहीं है, जो भी हस्तक्षेप है, वो बस संघ का है।
1980 में जब जनता पार्टी टूटी तो उसका जनसंघ के रूप में जो घड़ा था वो 6 अप्रैल, 1980 को भारतीय जनता पार्टी के रूप में एक नए दल के तौर पर सामने आ गया। यह एक ऐसा राजनीतिक दल था जिसके कार्यकर्ता और आधार सब कुछ पहले से ही तय और मजबूत था। जाहिर है ऐसा इसलिए था क्योंकि यह संघ का अनुषांगिक संगठन है। सिर्फ 38 साल में भाजपा पूरे बहुमत के साथ केन्द्र की सत्ता में आने वाली आजादी के बाद गठित हुई देश का पहली राजनीतिक पार्टी है। कांग्रेस में सेवादल उपेक्षा का शिकार हो गया और दूसरी तरफ आरएसएस ने अपने संस्कारों से अपने हर अनुषांगिक संगठन को मजबूत स्वरूप दिया। लिहाजा, आज भाजपा देश में काडर बैस सबसे बड़ा राजनीतिक दल माना जाता है। कांग्रेस में तो काडर का कभी निर्माण ही नहीं हो पाया। एक तरफ संघ जहां निर्णायक भूमिका में है तो दूसरी तरफ सेवादल कांग्रेस में अनसुनी आवाज है। जिसका अब कोई महत्व नहीं है। यह हकीकत फिर भी अपनी जगह कायम है कि सेवादल और आरएसएस दो सहपाठियों के अपने सपनों के साथ खड़े किए गए दो अलग संगठन है। जिनमें एक आज देश का सबसे ताकतवर स्वयंसेवी संगठन माना जाता है। देश भर में आज संघ की पचपन हजार से भी ज्यादा शाखाएं लगती है, जहां उसके स्वयंसेवक रोज आपस में मिलते हैं।
संघ के उद्देश्य आज भी अपनी गति से रफ्तार पा रहे हैं। राजनीति में संघ का सीधा कोई दखल नहीं है। भाजपा देश की राजनीतिक परिस्थितियों के अनुसार अपने निर्णय करने के लिए स्वतंत्र है लेकिन संगठन का जहां तक सवाल है, उस पर नियंत्रण आज भी संघ का ही मजबूत है। संघ के स्वयंसेवकों ने खुद भी अनेक प्रकल्प खड़े किए हैं और संघ सेवा कार्यों में आज भी बढ-चढ़ कर हिस्सा लेता है। ताजा तौर पर देखना हो तो केरल में बाढ़ की जो आपदा आई है, उसमें संघ के स्वयंसेवक, संघ के राहत शिविर बिना किसी भेदभाव के पीढ़ितों की सेवा करते हुए नजर आ रहे हैं। संघ की कछुआ चाल और लक्ष्य के प्रति स्पष्ट सोचा का ही असर है कि आज देश के प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और लोकसभा अध्यक्ष जैसे तमाम बड़े पदों पर संघ के स्वयंसेवक मौजूद हैं। दूसरी और कांग्रेस में ही कोई यह कहने की स्थिति में नहीं है कि उसने सेवादल में कब और क्या काम किया है क्योंकि सेवादल कांग्रेस के निर्देशों पर चलने वाला संगठन बन कर रह गया है। इसलिए अगर आज कांग्रेस में जब संगठन लगभग बर्बाद हो चुका है तो संघ का उदाहरण देकर ही बार-बार संगठन खड़ा करने की वकालत की जा रही है। यह बहुत मुश्किल है, संघ के पास जो निष्ठावान, अनुशासित और अपना जीवन संगठन के लिए समर्पित करने वाले कार्यकर्ता हैं, उन्हें कांग्रेस में अब कैसे खड़ा किया जा सकता है। असल में कांग्रेस का लक्ष्य सिर्फ सत्ता है जबकि संघ लक्ष्य हमेशा सेवा रहा है। ये जमीन आसमान का अंतर है जिसे पाटना कम से कम कांग्रेस के वर्तमान नेतृत्व के लिए तो संभव नहीं है।

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