नोबेल पुरस्कार विजेता रूसी साहित्यकार बोरीस पास्तरनाक का जन्म हुआ था आज
10 फ़रवरी का इतिहास
देश विदेश के इतिहास में बहुत सी घटनाएँ घटी हैं जिनमे बहुत सी आपको पता नहीं होंगी। हम अपने इस लेख में आपको उन्हीं घटनाओं के बारे में, आज जन्मे उन महान लोगों के बारे में और आज के दिन ही इस दुनिया को अलविदा कहने वाले महान लोगों के बारे में जानकारी देंगे, तो आईये जानते हैं आज का इतिहास यानि 10 फ़रवरी का इतिहास।
- इंग्लैंड में सर विलियम स्टैनली को 1495 में मौत के घाट उतार दिया गया।
- ब्रिटेन के राजदूत सर थॉमस रो 1616 में मुगल शासक जहांगीर के दरबार अजमेर में आये।
- बेलग्रेड पर रूसी सैनिकों ने 1811 में कब्ज़ा किया।
- आस्ट्रिया, ब्रिटेन, रूस और प्रसिया ने 1817 में फ़्रांस से अपनी फ़ौजें हटाने की घोषणा की।
- तीसरा तथा अंतिम युद्ध रामपुर में अंग्रेजों तथा मराठा के बीच 1818 में लड़ा गया।
- दक्षिण अमेरिकी क्रान्तिकारी साइमन बोलिवार 1828 में कोलंबिया के शासक बने।
- सिख और ईस्ट इंडिया कंपनी के बीच 1846 में सोबराऊं की जंग शुरू हुई।
- फर्नीनांड प्रथम ने 1848 में नया संविधान लागू किया।
- अमेरिका के कैलिफोर्निया थियेटर में 1879 में पहली बार रोशनी के लिए बिजली का इस्तेमाल किया गया।
- रूस तथा जापान ने 1904 में युद्ध की घोषणा की।
- ब्रिटेन के किंग जार्ज पंचम तथा क्वीन मैरी 1912 में भारत से रवाना।
- ब्रिटेन में सैन्य भर्ती 1916 में शुरू हुआ।
- सोवियत नेता लियों ट्रोटस्की ने 1918 में रूस के प्रथम विश्व युद्ध से हटने की घोषणा की।
- महात्मा गांधी जी ने 1921 में काशी विद्यापीठ का उद्घाटन किया।
- ड्यूक आफ़ कनॉट ने 1921 में इंडिया गेट की नींव रखी।
- नयी दिल्ली 1931 में भारत की राजधानी बनी।
- जर्मनी के तानाशाह हिटलर ने 1933 में मार्क्सवाद के समाप्त होने की घोषणा की।
- जापानी सैनिकों ने 1939 में हेनान द्वीप, चीन पर अधिकार कर लिया।
- नीदरलैंड्स रेडियो यूनियन की स्थापना 1947 में हुईं।
- अमेरिका के सेंट लुईस में 1959 में हुए तूफान से लगभग 20 की मौत 265 घायल।
- ईटानगर को 1979 में अरुणाचल प्रदेश की राजधानी बनाया गया।
- खगोलविद राय पेंथर द्वारा 1981 में धूमकेतु की खोज।
- अमेरिका ने नेवादा परीक्षण स्थल से 1989 में परमाणु परीक्षण किया।
- अंडमान और निकोबार द्वीप 1992 से विदेशी पर्यटकों के लिए खुला।
- श्रीलंका के उत्तर में सैनिकों व लिट्टे के बीच 2008 में हुए संघर्ष में 50 विद्रोही मारे गये।
- प्रसिद्ध शास्त्रीय गायक पंडित भीमसेन जोशी को 2009 में देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारतरत्न से सम्मानित किया गया।
10 फ़रवरी को जन्मे व्यक्ति
- 1970 में हिन्दी मंच के कवि कुमार विश्वास का जन्म।
- 1805 में केरल के समाज सुधारक तथा सीरियन कैथॉलिक संत कुरिआकोसी इलिआस चावारा का जन्म।
- 1847 में बांग्ला कवि लेखक नवीनचंद्र सेन का जन्म हुआ था।
- 1915 में प्रसिद्ध लेखक सुरेन्द्र कुमार श्रीवास्तव का जन्म।
- 1890 में नोबेल पुरस्कार विजेता रूसी लेखक बोरिस पास्तरनेक का जन्म।
नोबेल पुरस्कार विजेता बोरीस लियोनिदोविक पास्तरनाक रूसी कवि, कथाकार और साहित्यिक अनुवादक थे। रूस की राजधानी मॉस्को में 10 फरवरी 1890 में पैदा हुए पास्तरनाक का पहला काव्य संग्रह ‘मेरी जिंदगी बहन’ रूसी भाषा में आज तक प्रकाशित सबसे प्रभावशाली संग्रहों में से एक है। 1958 में उन्हें साहित्य में योगदान के लिए नोबेल पुरस्कार से नवाज़ा गया।नोबेल पुरस्कार विजेता बोरीस पास्तरनाक : मेरी ज़िंदगी बहन
मेरी ज़िंदगी बहन मेरी ज़िंदगी बहन ने आज की बाढ़
और बहार की इस बारिश में
ठोकरें खाई हैं हर चीज से
लेकिन सजे-धजे दंभी लोग
बड़बड़ा रहे हैं जोर-जोर से
और डस रहे हैं एक विनम्रता के साथ
जई के खेतों में साँप।बड़ों के पास अपने होते हैं तर्क
हमारी तर्क होते हैं उनके लिए हास्यास्पद
बारिश में बैंगनी आभा लिए होती हैं आँखें
क्षितिज से आती है महक भीगी सुरभिरूपा की।मई के महीने में जब गाड़ियों की समय सारणी
पढ़ते हैं हम कामीशिन रेलवे स्टशेन से गुजरते हुए
यह समय सारणी होती है विराट
पावन ग्रंथों से भी कहीं अधिक विराट
भले ही बार-बार पढ़ना पड़ता है उसे आरंभ से।ज्यों ही सूर्यास्त की किरणें
आलोकित करने लगती हैं गाँव की स्त्रियों को
पटड़ियों से सट कर खड़ी होती हैं वे
और तब लगता है यह कोई छोटा स्टेशन तो नहीं
और डूबता हुआ सूरज सांत्वना देने लगता है मुझे।तीसरी घंटी बजते ही उसके स्वर
कहते हैं क्षमायाचना करते हुए :
खेद है, यह वह जगह है नहीं,
पर्दे के पीछे से झुलसती रात के आते हैं झोंके
तारों की ओर उठते पायदानों से
अपनी जगह आ बैठते हैं निर्जन स्तैपी।झपकी लेते, आँखें मींचते मीठी नींद सो रहे हैं लोग,
मृगतृष्णा की तरह लेटी होती है प्रेमिका,
रेल के डिब्बों के किवाड़ों की तरह इस क्षण
धड़कता है हृदय स्तैपी से गुजरते हुए।– बोरीस पास्तरनाक
साभार – हिन्दी समय
बोरिस पास्तरनाक – व्यक्तित्व
कलम में एक जानवर की तरह, मैं कट गया हूं
अपने दोस्तों से, आज़ादी से, सूर्य से
लेकिन शिकारी हैं कि उनकी पकड़ मजबूत होती चली जा रही है।
मेरे पास कोई जगह नहीं है दौड़ने की
घना जंगल और ताल का किनारा
एक कटे हुए पेड़ का तना
न आगे कोई रास्ता है और न पीछे ही
सब कुछ मुझ तक ही सिमट कर रह गया है।
क्या मैं कोई गुंडा हूं या हत्यारा हूंया कौन सा अपराध किया है मैंने
मैं निष्कासित हूं? मैंने पूरी दुनिया को रुलाया है
अपनी धरती के सौन्दर्य पर
इसके बावजूद, एक कदम मेरी कब्र से
मेरा मानना है कि क्रूरता, अंधियारे की ताकत
रौशनी की ताकत के आगे
टिक नहीं पायेगी।कातिल घेरा कसते जा रहे हैं
एक गलत शिकार पर निगाहें जमाये
मेरी दायीं तरफ कोई नहीं है
न कोई विश्वसनीय और न ही सच्चाऔर अपने गले में इस तरह के फंदे के साथ
मैं चाहूंगा मात्र एक पल के लिए
मेरे आंसू पोंछ दिये जायें
मेरी दायीं तरफ खड़े किसी शख्स के द्वाराये कविता है प्रख्यात कवि, उपन्यासकार और चिंतक बोरिस पास्तरनाक की जो उसने १९५९ में नोबेल पुरस्कार लेते समय रची थी।
कितनी तड़प, कितनी पीड़ा और कितनी बेचैनी है इन शब्दों में कि मन पढ़ कर ही बेचैन हो उठता है, और कितनी बड़ी त्रासदी है कि पास्तरनाक का पूरा जीवन ही इसी कविता के माध्यम से अभिव्यक्त हो जाता है।
यह कविता नहीं, उनका पूरा जीवन है जो उन्होंने भोगा और अपने आपको पूरी ईमानदारी से अभिव्यक्त करने के लिए वे हमेशा छटपटाते रहे।
अपने समकालीन दूसरे बुद्धिजीवी रचनाकारों की ही तरह पास्तरनाक हमेशा डर और असुरक्षा में सांस लेते रहे। सोवियत रूस की क्रांति के बाद के कवि के रूप में उन्हें भी शासन तंत्र के आदेशों का पालन करने और अपनी अंतरात्मा की आवाज सुन कर अपनी बात कहने की आजादी के बीच के पतले धागे पर हमेशा चलना पड़ा। उन्होंने उन स्थितियों में भी हर संभव कोशिश की कि कला को जीवन से जोड़ कर सामने रखें जब कि उस वक्त का तकाजा यह था कि सारी कलाएं क्रांति की सेवा के लिए ही हैं। अपनी सारी रचनाएं, कविताएं, संगीत लहरियां और लेखों के सामने आने में हर बार इस बात का डर लगा रहता था कि कहीं ये सब उनके लिए जेल के दरवाजे न खोल दें।
पास्तरनाक की बदकिस्मती कि वे ऐसे युग में और माहौल पर जीने को मजबूर हुए। उन्होंने कभी भी दुनिया को राजनीति या समाजवाद के चश्मे से देखा। उनके लिए मनुष्य और उसका जीवन कहीं आधक गहरी मानसिक संवेदनाओं, विश्वास और प्यार तथा भाग्य के जरिये संचालित था। उनका साहित्य कई बार कठिन लगता है लेकिन उसके पीछे जीवन के जो अर्थ हैं या मृत्यु का जो भय है, वे ही उत्तरदायी है। वे समाजवाद को तब तक ही महत्त्व देते हैं जब तक वह मनुष्य के जीवन को बेहतर बनाने में सहायक होता है। उस वक्त का एक प्रसिद्ध वाक्य है कि आपकी दिलचस्पी बेशक युद्ध में न हो, युद्ध की आप में दिलचस्पी है।
पास्तरनाक अपने समय के रचनाकार नहीं थे और इसकी सजा उन्हें भोगनी पड़ी। वे इतने सौभाग्यशाली नहीं थे कि उस समय रूस में चल रही उथल पुथल के प्रति तटस्थ रह पाते। इसी कारण से बरसों तक उनका साहित्य रूस में प्रकाशित ही न हो सकता। क्योंकि अधिकारियों की निगाह में उनके साहित्य में सामाजिक मुद्दों को छूआ ही नहीं गया था। वे जीवनयापन के लिए गेटे, शेक्सपीयर, और सोवियत रूस के जार्जियन काल के कवियों के अनुवाद करते रहे।दूसरे विश्वयुद्ध के बाद उन्होंने अपनी विश्व प्रसिद्ध कृति डॉक्टर जिवागो की रचना शुरू की जिसे उन्होंने १९५६ में पूरा कर लिया था। इसे रूस से बाहर ले जा कर प्रकाशित किया गया। १९५८ में उन्हें नोबल पुरस्कार दिया गया जो रूस के लिए खासा परेशानी वाला मामला था। यही कारण रहा कि यह किताब रूस में १९८८ में ही प्रकाशित हो सकी।
१८९० में जन्मे बोरिस पास्तरनाक की मृत्यु १९६० में हुई।
इतिहास की इससे बड़ी घटना क्या होगी कि जिस बोल्शेविक शासन तंत्र ने पास्तरनाक को आजीवन सताया और उसकी रचनाओं को सामने न लाने के लिए संभव कोशिश की, उसका आज कोई नाम लेवा भी नहीं है और पास्तरनाकका साहित्य आज भी पूरी दुनिया में पढ़ा जाता है और उसकी कब्र पर दुनिया से लोग फूल चढ़ाने आते हैं।
- 1922 में हंगरी के राष्ट्रपति अर्पद गाँक्ज़ का जन्म।
10 फ़रवरी को हुए निधन
- प्रसिद्ध साहित्यकार गुलशेर ख़ाँ शानी का 1995 में निधन।
- कलकत्ता के संस्थापक जॉब चारनॉक का 1692 में कलकत्ता में निधन।
- सोवियत राष्ट्रपति यूरी आंद्रोपोव का 1984 में देहांत।