चाकू से गोद-गोद अंग्रेजी गर्वनर जनरल लॉर्ड मेयो की हत्या कर डाली थी शेर अली ने आज
8 फ़रवरी का इतिहास
देश विदेश के इतिहास में 8 फ़रवरी के दिन यानि आज के दिन में बहुत सी घटनाएं हमें कुछ सीख दे जाती है तो आइए आज हम उन्हीं महत्वपूर्ण घटनाएँ जाने।
- व्लादिमीर नामक रूसी शहर को मंगाेलों ने 1238 में आग के हवाले किया।
- 1774 से 1785 तक गर्वनर जनरल रहे वारेन हेस्टिंग्स ने 1785 में भारत छोड़ा।
- अंडमान जेल यानि सेल्यूलर जेल में शेर अली ने 1872 में गवर्नर पर हमला करके शहादत प्राप्त की।
जी हां, ये सच है। ना किसी कोर्स की किताब में इस व्यक्ति का जिक्र किया गया है और ना कोई उसकी जयंती या पुण्यतिथि मनाता है। यहां तक कि क्रांतिकारियों या देशभक्तों की किसी भी सूची में उसका नाम नहीं है…
जी हां, ये सच है। ना किसी कोर्स की किताब में इस व्यक्ति का जिक्र किया गया है और ना कोई उसकी जयंती या पुण्यतिथि मनाता है। यहां तक कि क्रांतिकारियों या देशभक्तों की किसी भी सूची में उसका नाम नहीं है। इसके पीछे कई वजह हैं, लेकिन ये भी सच है कि आजादी से पहले देश में तमाम बड़े क्रांतिकारियों ने जिसकी योजना बनाई, हमला भी किया लेकिन कामयाब नहीं हो पाए, वो काम उस अकेले शख्स ने कर दिखाया, बिना किसी संगठन की मदद के। उसका नाम था शेर अली अफरीदी।
अफरीदी के कारनामे के महत्व को समझने के लिए आपको पहले ये समझना होगा कि उसने जिस अंग्रेज अधिकारी की हत्या की, वो कितने बड़े ओहदे पर था। आज देश में प्रधानमंत्री की जो हैसियत है, उस वक्त वही हैसियत अंग्रेजी राज के गर्वनर जनरल की होती थी। ये अलग बात है कि वायसराय के रूप में वो ब्रिटेन की सरकार को रिपोर्ट करता था। शेर अली अफरीदी ने उस वक्त के गर्वनर जनरल लॉर्ड मेयो की हत्या कर दी थी, जो वाकई में पूरे अंग्रेजी राज के लिए बड़ा झटका था। देश में उस वक्त अगर सबसे ज्यादा किसी की सिक्यॉरिटी थी तो वह गर्वनर जनरल की ही थी लेकिन 8 फरवरी 1872 में शेर अली ने तमाम सुरक्षा बंदोबस्तों को ध्वस्त करते हुए चाकू से गोद गोद कर लॉर्ड मेयो की हत्या कर दी थी।
लॉर्ड रिचर्ड बुर्क (सिक्स्थ अर्ल ऑफ मेयो) की हत्या कितना बड़ा काम था, आप इसी बात से जान सकते हैं कि भगत सिंह ने जिस सांडर्स की हत्या की, वो डीएसपी स्तर का ऑफिसर था, पुणे में चापेकर बंधुओं ने कमिश्नर स्तर के अधिकारी की हत्या की थी, रासबिहारी बोस और विश्वास ने लॉर्ड हॉर्डिंग के हाथी पर दिल्ली में घुसते वक्त बम फेंका था, महावत की मौत हो गई लेकिन हॉर्डिंग बच गया। लॉर्ड इरविन की स्पेशल ट्रेन पर भगवती चरण बोहरा और साथियों ने आगरा से दिल्ली आते वक्त बम फेंका था, वो बच गया। ऐसे कितने ही क्रांतिकारी हुए जिन्होंने जान की बाजी लगाकर कई अंग्रेज अधिकारियों पर हमले किए, कइयों को मौत के घाट उतारा भी। लेकिन कोई उतना कामयाब नहीं हुआ, जितना शेर अली अफरीदी। फिर शेर अली अफरीदी को आप या देश की जनता क्यों नहीं जानती और क्यों इतना सम्मान नहीं देती…!
इसको समझने के लिए आपको शेर अली अफरीदी के बारे में जानना पड़ेगा, लेकिन उससे पहले ये समझना होगा कि अंग्रेजी राज में तमाम ऐसे बड़े नाम थे, जो देशभक्त होने के वाबजूद अंग्रेजी राज को क्रांतिकारियों की तरह एकदम जड़ से उखाड़ने के समर्थक नहीं थे। खुद कांग्रेस पार्टी ने स्थापना के 45 साल बाद 1930 में पहली बार पूर्ण स्वतंत्रता की बात की, खुद गांधीजी ने पहली बार 1942 में जाकर ‘भारत छोड़ो…’ का नारा दिया। गांधीजी से तो क्रांतिकारियों का झगड़ा ही इस बात का था कि क्यों ना 1914 के प्रथम विश्व युद्ध और 1939 के दूसरे विश्व युद्ध को मौका मानकर अंग्रेजों पर अंदर से ही हमला बोल दिया जाए।
गांधीजी अंग्रेजों की मजबूरी का लाभ उठाने के सख्त खिलाफ थे। बल्कि पहले विश्व युद्ध में तो खुद गांधीजी ने अंग्रेजी सेना में भर्ती होने के लिए भारतीय युवाओं से आह्वान किया था, तब लोग उन्हें भर्ती करने वाले सार्जेन्ट कहने लगे थे। गुरुदेव टैगोर, चितरंजन दास, मोतीलाल नेहरू, दादा भाई नौरोजी जैसे तमाम कांग्रेसी नेताओं पर सरकारी उपाधियां थीं। कांग्रेस को एक अंग्रेज ए ओ ह्यूम ने ही शुरू किया था और पहले ही सेशन में वायसराय डफरिन ने पूरी कांग्रेस को दावत दी थी।ऐसे में शेर अली का राजा राममोहन राय या वंदेमातरम लिखने वाले बंकिम चंद्र चटर्जी की तरह अंग्रेजी सरकार की नौकरी करना कोई बड़ी बात नहीं थी।
1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में अहम भूमिका निभाने वाले नाना साहेब के दीवान अजीमुल्लाह खान और आजाद हिंद फौज को खड़ी करने वाले कमांडर मोहन सिंह भी अंग्रेजों के खिलाफ जाने से पहले ईमानदारी से अंग्रेजी सरकार की नौकरी निभा रहे थे। शेर अली पेशावर के अंग्रेजी कमिश्नर के ऑफिस में काम करता था और खैबर पख्तून इलाके का रहने वाला पठान था। वो अंबाला में ब्रिटिश घुड़सवारी रेजीमेंट में भी काम कर चुका था। यहां तक कि 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में रोहिलखंड और ओढ़ के युद्ध में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की तरफ से हिस्सा भी ले चुका था। अंग्रेजी कमांडर रेनेल टेलर उसकी बहादुरी से इतना खुश हुआ कि उसको तोहफे में एक घोड़ा, एक पिस्टल और बहादुरी का बखान करते हुए एक सर्टिफिकेट भी दिया।
जिस तरह अजीमुल्लाह खान कानपुर में अंग्रेजों और यूरोपियों के बीच लोकप्रिय था, उसी तरह पेशावर के यूरोपीय शेर अली को भी काफी पसंद करते थे। टेलर ने तो उसे अपने बच्चों की सुरक्षा में लगा दिया। तब तक अंग्रेजी राज उसे बुरा नहीं लगता था, देश और देशभक्ति क्या है शायद उसे पता नहीं था, स्वामिभक्ति और बहादुरी की भावनाओं से लबालब था वो लेकिन जिस तरह गांधीजी को साउथ अफ्रीका में ट्रेन से उतारने पर उनको नस्लभेद के खिलाफ गुस्सा आया, जिस तरह करतार सिंह सराभा ने सेन फ्रांसिस्को में अपमान झेला और गदर आंदोलन से जुड़े, जिस तरह लाला लाजपत राय पर लाठियां बरसने से कई क्रांतिकारियों का खून खौल उठा, ठीक वैसा ही शेर अली अफरीदी के साथ हुआ।
एक खानदानी झगड़े में शेर अली पर अपने ही रिश्तेदार हैदर का कत्ल करने का इल्जाम लगा। उसने पेशावर में मौजूद अपने सभी अधिकारियों के सामने खुद को बेगुनाह बताया। लेकिन किसी ने उसकी बात नहीं मानी और उसे 2 अप्रैल 1867 को मौत की सजा सुना दी गई। उसका भरोसा अंग्रेजी अधिकारियों से, अंग्रेजी राज से एकदम उठ गया। उसको लगा कि जिनके लिए उसने ना जाने कितने अनजानों और बेगुनाहों के कत्ल किए, आज वो ही उसे बेगुनाह मानने को तैयार नहीं थे। पहली बार उसे अहसास हुआ कि कभी भी किसी अंग्रेज पर कत्ल का मुकदमा चलने से पहले ही उसे ब्रिटेन वापस भेज दिया जाता था, लेकिन आज उसे बचाने वाला कोई नहीं क्योंकि वो अंग्रेज नहीं बल्कि भारतीय है।
उसने फैसले के खिलाफ अपील की, हायर कोर्ट के जज कर्नल पॉलाक ने उसकी सजा घटाकर आजीवन कारावास कर दी और उसे काला पानी यानी अंडमान निकोबार भेज दिया। तीन से चार साल सजा काटने के दौरान उसकी तमाम क्रांतिकारियों से काला पानी की जेल में मुलाकात हुई, हालांकि उस वक्त तक क्रांतिकारी आंदोलन इतना भड़का नहीं था। फिर भी अंग्रेज विरोधी भावनाएं मजबूत हुईं, जो भी लोग कैद थे उनमें से ज्यादातर अंग्रेजी राज के दुश्मन थे। जेल में उसके अच्छे व्यवहार की वजह से 1871 में उसे पोर्ट ब्लेयर पर नाई का काम करने की इजाजत दे दी गई, एक तरह की ओपन जेल थी वो। लेकिन वहां से भागने की हिम्मत कोई नहीं कर सकता था।
हालांकि उसने अंग्रेजी राज को दी गई अपनी सेवाओं के बारे में लिखते हुए वायसराय से अपील की थी कि उसकी बाकी सजा को माफ कर दिया जाए, लेकिन वायसराय ने उसकी अपील खारिज कर दी। इससे उसके मन में वायसराय को लेकर काफी गुस्सा था, वो साफ देख रहा था कि छोटे से छोटे अंग्रेजी सैनिक को बड़े से बड़े जुर्म के बावजूद कोई सजा नहीं दी जाती थी, और उसे काला पानी भेज दिया गया था तिल तिल कर मरने के लिए। उसने तय कर लिया कि उसे दो व्यक्तियों की हत्या करनी है, एक उसका सुपरिटेंडेट और एक अंग्रेजी राय का वायसराय।
उसे ये मौका मिल भी गया जब गर्वनर जनरल लॉर्ड मेयो ने अंडमान निकोबार के पोर्ट ब्लेयर में सेल्युलर जेल के कैदियों के हालात जानने और सिक्यॉरिटी इंतजामों की समीक्षा करने के लिए वहां का दौरा करने का मन बनाया।
…शाम सात बजे का वक्त था, लॉर्ड मेयो अपनी बोट की तरफ वापस आ रहा था। लेडी मेयो उस वक्त बोट में ही उसका इंतजार कर रही थीं। वायसराय का कोर सिक्यॉरिटी दस्ता जिसमें 12 सिक्यॉरिटी ऑफिसर शामिल थे, वो भी साथ साथ चल रहे थे। इधर शेर अली अफरीदी ने उस दिन तय कर लिया था कि आज अपना मिशन पूरा करना है, जिस काम के लिए वो सालों से इंतजार कर रहा था, वो मौका आज उसे मिल गया है और शायद सालों तक दोबारा नहीं मिलना है। वो खुद चूंकि इसी सिक्यॉरिटी दस्ते का सदस्य रह चुका था, इसलिए बेहतर जानता था कि वो कहां चूक करते हैं और कहां लापरवाह हो जाते हैं। हथियार उसके पास था ही, उसके नाई वाले काम का खतरनाक औजार उस्तरा या चाकू। उसको मालूम था कि अगर वायसराय बच गया तो मिशन भी अधूरा रह जाएगा और उसका भी बुरा हाल होगा, वैसे भी उसे ये तो पता था कि यहां से बच निकलने का तो कोई रास्ता है ही नहीं।
वायसराय जैसे ही बोट की तरफ बढ़ा, उसका सिक्यॉरिटी दस्ता थोड़ा बेफिक्र हो गया कि चलो पूरा दिन ठीकठाक गुजर गया। वैसे भी वायसराय तक पहुंचने की हिम्मत कौन कर सकता है, जैसे कि आज के पीएम की सिक्यॉरिटी भेदने की कौन सोचेगा ! लेकिन उनकी यही बेफिक्री उनकी जिंदगी की सबसे बड़ी भूल हो गई। पोर्ट पर अंधेरा था, उस वक्त रोशनी के इंतजाम बहुत अच्छे नहीं होते थे। फरवरी के महीने में वैसे भी जल्दी अंधेरा हो जाता है, बिजली की तरह एक साया छलावे की तरह वायसराय की तरफ झपटा, जब तक खुद वायसराय या सिक्यॉरिटी दस्ते के लोग कुछ समझते इतने खून में सराबोर हो चुका था लॉर्ड मेयो कि उसने मौके पर ही दम तोड़ दिया। शेर अली को मौके से ही पकड़ लिया गया, पूरे ब्रिटिश साम्राज्य में दहशत फैल गई। लंदन तक बात पहुंची तो हर कोई स्तब्ध रह गया। जब वायसराय के साथ ये हो सकता है तो कोई भी अंग्रेज हिंदुस्तान में खुद को सुरक्षित नहीं मान सकता था।
शेर अली अफरीदी से जमकर पूछताछ की गई, उसने मानो एक ही वाक्य रट रखा था, ‘मुझे अल्लाह ने ऐसा करने का हुक्म दिया है, मैंने अल्लाह की मर्जी पूरी की है बस’। अंग्रेजों ने काफी कोशिश की ये जानने की कि क्या कोई संगठन इसके पीछे है या फिर कोई ऐसा राजा जिसका राज उन्होंने छीना हो या फिर ब्रिटिश राज के खिलाफ किसी विदेशी ताकत का हाथ हो। लेकिन ऐसा कुछ नहीं मिला। हालांकि शेर अली ने सेलुलर जेल में जो तीन-चार साल काटे थे, उस वजह से और उसकी नजरों में अंग्रेजों के दोगलेपन की वजह से उसका ब्रेनवॉश की बात की गई थी। जेल में बंद सारे लोग अंग्रेजी सरकार की खिलाफत करने वाले ही थे। उस वक्त चल रहे बहावी आंदोलन के भी कुछ अनुयायी उस वक्त इस जेल में थे।
वहीं, मुस्लिमों को इस बात की भी टीस थी कि अंग्रेजों ने मुगल बादशाह की गद्दी कब्जा ली थी। कुछ इतिहासकारों ने शेर अली अफरीदी को पहला जिहादी बताने की भी कोशिश की है। लेकिन सच ये था कि वो स्वामिभक्त तो था, लेकिन गुलामी का अहसास उसे काफी बाद में जाकर हुआ था, कि कैसे अंग्रेजों की हर खता माफ और उसकी हर खता पर सजा। शेर अली ने अपने बयान में गुलामी और उससे जुड़े बदतर हालात की भी चर्चा की, लेकिन पूरे देश को लेकर उसकी सोच शायद उस वक्त नहीं बनी थी, क्योंकि वो लड़ाकू तो था लेकिन भगत सिंह की तरह पढ़ाकू नहीं। सबसे खास बात थी कि जिस तरह असेंबली बम कांड से पहले भगत सिंह ने अपना हैट वाला फोटो पहले ही खिंचवाकर अखबारों में भेजने की व्यवस्था की थी, उसी तरह शेर अली ने भी गिरफ्तारी के बाद अपना फोटो खिंचवाने में काफी दिलचस्पी दिखाई। शायद वो भी इस बात का ख्वाहिशमंद था कि पीढ़ियां उसे याद रखें कि उसने इतना बड़ा काम कर दिया था। 11 मार्च 1873 को अंडमान निकोबार द्वीप समूह के वाइपर आइलैंड की जेल में उसको फांसी दे दी गई।
जेल में उसकी सेल के साथियों से भी पूछताछ की गई, एक कैदी ने बताया कि शेर अली अफरीदी कहता था कि अंग्रेज देश से तभी भागेंगे जब उनके सबसे बड़े अधिकारी को मारा जाएगा और वायसराय ही सबसे बड़ा अधिकारी था। उसकी हत्या के बाद वाकई वो खौफ में आ गए। इसीलिए ना केवल इस खबर तो ज्यादा तवज्जो देने से बचा गया बल्कि शेर अली को भी चुपचाप फांसी पर लटका दिया गया। लंदन टाइम्स के जिस रिपोर्टर ने उस फांसी को कवर किया था, वो लिखता है कि जेल ऑफिसर ने आखिरी इच्छा जैसी कोई बात उससे पूछी थी तो शेर अली ने मुस्कराकर जवाब दिया था, ‘नहीं साहिब’। लेकिन फांसी से पहले उसने मक्का की तरफ मुंह करके नमाज जरूर अदा की थी।
अंग्रेजों की तरह ही बाकी भारतीय इतिहासकारों ने भी शेर अली के इस काम को व्यक्तिगत बदला माना, किसी ने ये नहीं सोचा कि बदला लेना होता तो वो गिरफ्तार करने वाले ऑफिसर या सजा देने वाले जज से लेता, सीधे वायसराय का खून क्यों करता? वो क्यों अंग्रेजों को भारत से निकालने लायक खौफ उनके मन में पैदा करने के लिए वायसराय के कत्ल का अपना सपना अपने साथी कैदियों को बताता? जो भी हो लॉर्ड मेयो की याद में उसी साल ढूंढे गए एक नए द्वीप का नाम रख दिया गया। दिलचस्प बात ये है कि उन्हीं दिनों महाराष्ट्र में भी एक वीर बासुदेव बलवंत फड़के अंग्रेजों पर अपनी युवा सेना के जरिए कहर ढा रहा था, उसे भी हमारे इतिहासकार सालों तक डकैत ही कहते रहे। शेर अली अफरीदी का नाम तो इतिहास के छात्रों को भी पता हो तो हैरत की बात है।
सुप्रीम कोर्ट में आयोजित स्वतंत्रता दिवस के 71वें समारोह पर सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीशज स्टिस जगदीश सिंह खेहर ने अपने भाषण की शुरूआत देश की आजादी के लिए आवाज उठाने वाले अब्दुल्लाह और शेर अली अफरीदी के जिक्र के साथ की. उन्होंने पुछा क्या आपने कभी अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने वाले अब्दुल्लाह का नाम सुना है? फिर बाद में स्वयं ने ही इस सवाल का जवाब दिया और कहा, अब्दुल्लाह एक मुस्लिम जांबाज़ थे, जिन्होंने ब्रितानी साम्राज्य की भेदभावपूर्ण नीतियों का विरोध करते हुए 28 सितम्बर 1871 को कोलकता में हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जान पेकिंस्टन नारमन को चाक़ू मारकर हत्या कर दी थी. उन्होंने बताया, अब्दुल्लाह हत्या करने के बाद भागे नहीं बल्कि ख़ुद को पुलिस के हवाले कर दिया.इस दौरान चीफ जस्टिस ने शेर अली अफरीदी भी जिक्र किया, और बताया कि अंग्रेज न्यायाधीश की हत्या के बाद भारत में ब्रिटेन के गर्वनर जनरल ने एलान कर दिया कि वह एक भी बहावी मुसलमान को ज़िंदा न छोड़ेंगे. जवाब में 4 फ़रवरी 1872 को अंग्रेज़ गर्वनर जनरल की शेर अली आफ़रीदी नामक एक मुसलमान ने चाक़ू से हमला करके हत्या कर दी. लेकिन आज भारत में कितने लोग अंग्रेज़ गर्वरन जनरल की हत्या करने वाले के बारे में जानते हैं ?
- यूरोपीय देश जर्मनी और फ्रांस के बीच 1909 में मोरक्को संधि पर हस्ताक्षर किये गये।
- स्वतंत्रता सेनानी नेताजी सुभाष चंद्र बोस 1943 में जर्मनी के केल से एक नौका के जरिये जापान के लिये रवाना हुये।
- महारानी एलिजाबेथ 1952 में ब्रिटेन की महारानी और राष्ट्रमंडल देशों की अध्यक्ष बनी थीं।
- दुनिया के पहले इलेक्ट्रॉनिक शेयर बाजार नैस्डैक की शुरुआत 8 फ़रवरी 1971 को हुई।
- लाओस पर दक्षिणी वियतनामी सेना ने 1971 में हमला किया।
- दिल्ली हवाई अड्डे पर 1986 में पहली बार प्रीपेड टैक्सी सेवा शुरु की गई।
- क्रिकेटर कपिल देव ने 1994 में टेस्ट मैचों में 432 विकेट लेकर रिचर्ड हैडली के सबसे अधिक विकेट लेने के विश्व रिकार्ड को तोड़ दिया था।
- केनेडी अंतरिक्ष केंद्र से अमेरिकी अंतरिक्ष यान स्टारडस्ट 1999 में रवाना।
- सिओल में भारत और दक्षिण कोरिया के बीच 2006 में तीन समझौते सम्पन्न।
- बैंगलौर स्थित इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ़ साइंस के वरिष्ठ वैज्ञानिक शांतनु भट्टाचार्य को 2008 में जी.डी. बिड़ाला पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
- उड़ीसा के शिशुपालगढ़ में 2008 में खुदाई के दौरान 2500 वर्ष पुराना शहर मिला।
8 फ़रवरी को जन्मे व्यक्ति – Born on 7 February
- 1897 में देश के तीसरे राष्ट्रपति जाकिर हुसैन का जन्म हुआ था।
- 1925 में प्रसिद्ध भारतीय ठुमरी गायिका शोभा गुर्टू का जन्म हुआ था।
- 1941 में गजलों को भारत के हर घर में जगह दिलाने वाले जगजीत सिंह का जन्म हुआ था।
- 1939 में भारत के बारहवें ‘मुख्य चुनाव आयुक्त’ जेम्स माइकल लिंगदोह का जन्म हुआ था।
- 1951 में हिन्दी के मंचीय कवियों में से एक अशोक चक्रधर का जन्म हुआ था।
- 1963 में क्रिकेटर मोहम्मद अज़रुद्दीन का जन्म हुआ था।
- 1928 में गोमांतक दल के सदस्य बाला देसाई का जन्म हुआ था।
- 1986 में भारतीय महिला क्रिकेटर एकता बिष्ट का जन्म हुआ था।
- 1881 में भारतीय सिविल सेवक और प्रशासक वी.टी. कृष्णमाचारी का जन्म हुआ था।
8 फ़रवरी को हुए निधन – Died on 8 February
- 1265 में ‘इलख़ानी साम्राज्य’ के संस्थापक हुलेगु ख़ान का निधन।
- 1995 में आज़ादी के लिए संघर्ष करने वाली महिला क्रांतिकारियों में से एक कल्पना दत्त का निधन।
- 1971 में महान् लेखक कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी का निधन।